ज्ञान:उत्तरायण 21 दिसंबर को होता है, मकरसंक्रांति को नहीं
°°°°°स्वागत उत्तरायण°°°°°°°°
सभी को उत्तरायण की शुभकामनायें
युगानां परिवर्तेन
कालभेदोऽत्र केवलः॥
. लोकानामन्तकृत्कालः कालोऽन्यः कलनात्मकः।
स द्विधा स्थूलसूक्ष्मत्वान्मूर्तश्चामूर्त
उच्यते॥
. प्राणादिः कथितो
मूर्तस्त्रुट्याद्योऽमूर्तसंज्ञकः |
अर्थात – एक प्रकार का काल संसार का नाश करता है और दूसरे प्रकार का कलानात्मक है अर्थात जाना जा सकता है | यह भी दो प्रकार का होता है
(१) स्थूल और (२) सूक्ष्म | स्थूल नापा जा सकता है
इसलिए मूर्त कहलाता है और जिसे नापा नहीं जा सकता इसलिए अमूर्त कहलाता है |
उत्तरायण:-
देवताओं का एक दिन – मनुष्यों के एक वर्ष को देवताओं के एक दिन माना गया है । उत्तरायण तो उनका दिन है और दक्षिणायन रात्रि । पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव पर देवताओं के रहने का स्थान तथा दक्षिणी ध्रुव पर राक्षसों के रहने का स्थान बताया गया है | साल में २ बार दिन और रात सामान होती है | ६ महीने तक सूर्य विषुवत के उत्तर और ६ महीने तक दक्षिण रहता है | पहली छमाही में उत्तरी गोल में दिन बड़ा और रात छोटी तथा दक्षिण गोल में दिन छोटा और रात बड़ी होती है |
दूसरी छमाही में ठीक इसका उल्टा होता है | परन्तु जब सूर्य विषुवत वृत्त के उत्तर रहता है तब वह उत्तरी ध्रुव (सुमेरु पर्वत पर) ६ महीने तक सदा दिखाई देता है और दक्षिणी ध्रुव पर इस समय में नहीं दिखाई पड़ता | इसलिए इस छमाही को देवताओ का दिन तथा राक्षसों की रात कहते हैं | जब सूर्य ६ महीने तक विषुवत वृत्त के दक्षिण रहता है तब उत्तरी ध्रुव पर देवताओं को नहीं दिख पड़ता और
राक्षसों को ६ महीने तक दक्षिणी ध्रुव पर बराबर
दिखाई पड़ता है | इसलिए हमारे १२ महीने देवताओं
अथवा राक्षसों के एक अहोरात्र के समान होते हैं |
देवताओं का १ दिन (दिव्य दिन) = १ सौर वर्ष |
✍🏻जयतु भारतम्
ई.सन 285 में मकर संक्रांति और उत्तरायण दोनों एक ही दिन हुआ करते थे जो 21 दिसंबर के आस पास हुआ होगा । किंतु अब उत्तरायण तो 21 दिसंबर के आस पास ही होता है पर मकर संक्रांति आगे से आगे सरकती हुई 14/15 जनवरी को हो रही है समय के साथ साथ यह अंतर और भी बढ़ता जाएगा । ऐसा क्यों हो रहा है इसकी कहानी को मैं आज समझता हूँ ।
पृथ्वी सूर्य के परिभ्रमण कर रही है । इस परिभ्रमण का पूर्ण काल एक वर्ष कहलाता है । भारतीय पद्धति जिसे हमारें पंचांगो मे बताया गया होता है वह किसी एक नक्षत्र से लेकर उसी नक्षत्र पर जब सूर्य आ जाता है उसे वर्ष मानते हैं । अर्थात पृथ्वी-सूर्य-नक्षत्र इसमें सूर्य तथा नक्षत्र स्थिर हैं पृथ्वी घूम रही है और इस प्रकार की स्थिति से लेकर पुनः यही स्थिति आने तक जो समय लगता है उसे भारतीय पंचांग मे वर्ष माना गया है । यह पद्धति निरयन पद्धति के नाम से जानी जाती है । इसके वर्ष का मान 365.256363 दिन होता है ।
पृथ्वी का कक्ष तथा भूमध्य तल जहां कटते हैं उस बिंदु को संपात बिंदु कहते हैं । यह बिंदु नगण्य गति से नक्षत्र के सापेक्ष पश्चिम की ओर सरक रहा है । गति न्यून होने के कारण यह भी स्थिर ही माना जा सकता है । जब सूर्य इस संपात बिंदु पर होता है तो उस दिन संसार भर में दिन और रात का मान समान हुआ करता है, इस दिन को विषुव दिवस कहा गया है । अब पृथ्वी-सूर्य-संपातबिंदु को देखें यहां भी पृथ्वी घूम रही है सूर्य और संपातबिंदु स्थिर हैं । एक स्थिति से पुनः वही स्थिति आने मे भी एक वर्ष का समय लगता है पर यह वर्ष सायन वर्ष कहलाता है । ऋतुएं इस वर्ष से संगति करती हैं अर्थात इस कालावधि के अनुसार अपनी आवृत्ति करती हैं, इस कालांतर पर पुनः पुनः आती हैं । इस वर्ष का मान 365.24219 दिन हुआ करता है ।
इसप्रकार ऋतुओं वाला वर्ष एवं पंचाग मे उल्लेखित वर्ष से छोटा होता है । यह अंतर 20 मिनट 24सेकैण्ड का है । वर्षभर मे 20 मिनट का अंतर अनुभव मे नहीं आता । यह अंतर लगभग तीन वर्ष मे एक घंटे का हो जाएगा । अंतर बढ़ते बढ़ते लगभग 72 वर्ष मे एक दिन का हो जाएगा 1700/1800 वर्ष मे यह अंतर लगभग 24 दिन का हो गया है ।
ज्योतिष के जिज्ञासुओं को यह बात भलीभाँति समझ लेनी चाहिये और होने वाली गलती को सुधार लोना चाहिये अर्थात उत्तरायण को मकर संक्रांति से जोड़कर न देखें तथा उत्तरायण को उत्तरायण के दिन ही मनाएं ।
✍🏻हरीश चंद शर्मा