ज्ञान:शाकाहारियों को भी यूं मांसाहार खिला रहे हैं व्यापारी
ज्ञान:आप जो वेजिटेरियन समझ कर खा रहे हैं, उसमें हो सकता है नॉन-वेज; जानिए दिल्ली HC ने दिए क्या निर्देश?
अभिषेक पाण्डेय
नई दिल्ली 06 जनवरी।अक्सर लोग वेजिटेरियन या शाकाहारी प्रोडक्ट खरीदने से पहले उसके पैकेट पर लिखे इंग्रीडिएंट्स (सामग्री) को देखते हैं। पैकेट पर लिखे साइन या कोड नेम के अनुसार ही वे उसे वेज प्रोडक्ट समझकर खरीदते हैं, लेकिन अगर आपको ये पता चले कि आपने जिस सामान को पैकेट पर बने ग्रीन साइन या कोड नेम के आधार पर वेज समझकर खरीदा, असलियत में वह नॉन-वेजिटेरियन चीजों से बनाया गया है, तो आपको कितना बड़ा झटका लगेगा? दिल्ली हाई कोर्ट ने भी हाल ही में अपने एक फैसले में फूड बिजनेस ऑपरेटर्स से कहा है कि वे आपने प्रोडक्ट में इस्तेमाल की गई चीजों के केवल कोड नेम की जानकारी ही नहीं, बल्कि उसे पौधों या जानवरों किससे बनाया गया है, इसकी भी स्पष्ट जानकारी दें।
चलिए जानें क्यों आया वेजिटेरियन चीजों में मिलाए जाने वाले इंग्रीडिएंट्स को लेकर स्पष्टता का आदेश? कैसे होता है वेज आइटम्स में भी नॉन-वेज का इस्तेमाल? क्या है खाने की चीजों पर लेबलिंग का नियम?
‘वेजिटेरियन चीजों में क्या मिला है, स्पष्ट रूप से बताएं’
एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने फूड बिजनेस ऑपरेटर्स को निर्देश दिया कि वे खाने की चीजों में जो भी होता है, उसकी स्पष्ट जानकारी दें।
कोर्ट ने फूड ऑपरेटर्स से कहा, ”खाने की चीजों में जो भी होता है, उसकी पूरी जानकारी दें; न केवल उनके कोड नेम की, बल्कि ये भी कि क्या उनको बनाने का सोर्स पौधे हैं या कोई जानवर, या उन्हें लैबोरेटरी में तैयार किया गया है, फिर चाहे खाने की चीज में उस सामग्री का प्रतिशत कितना भी हो।”
कोर्ट ने फूड ऑपरेटर्स को फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड (पैकेजिंग एंड लेबेलिंग) रेगुलेशंस, 2011 के रेगुलेशन 2.2.2 (4) को सख्ती से मानने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा, ”ऐसी किसी भी सामग्री का उपयोग, जिसका सोर्स जानवर हो, फिर चाहे उस सामग्री का प्रतिशत जितना भी हो, इससे बनी खाने की चीज को नॉन-वेजिटेरियन माना जाएगा।”
इस मामले की सुनवाई करने वाली दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस विपिन सांघी और जसमीत सिंह की डिवीजन बेंच ने कहा, ”हर व्यक्ति को ये जानने का अधिकार है कि वह क्या खा रहा है, किसी भी व्यक्ति की थाली में छल या छिपाकर कुछ भी नहीं परोसा जा सकता है।”
हाई कोर्ट ने केंद्र और फूड सेफ्टी और स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि फूड ऑपरेटर्स हर फूड आइटम के निर्माण में की जाने वाली सभी सामग्रियों का पूर्ण खुलासा करें। कोर्ट ने FSSAI को सुनवाई की अगली तारीख 31 जनवरी से पहले इन निर्देशों के अनुपालन की रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया।
किसने दायर की थी याचिका?
गायों की सुरक्षा और देखभाल के लिए काम करने वाली एक गैर-सरकारी संस्था ‘राम गौ रक्षा दल’ ने पिछले साल अक्टूबर में मौजूदा खाद्य पदार्थों के नियमों को लागू किए जाने की अपील के साथ एक याचिका दायर की थी।
इस याचिका में क्रॉकरी, पहनने वाले सामानों और सहायक उपकरणों जैसे न खाए जाने वाले समेत सभी प्रोडक्ट्स को उनमें प्रयोग की जाने वाले इंग्रीडिएंट्स के आधार पर चिन्हित किए जाने की अपील की गई थी।
इस याचिका में खाने की चीजों के लेबल पर न केवल उसमें प्रयोग किए जाने वाले इंग्रीडिएंट्स (सामग्री), बल्कि उसके मैन्युफैक्चरिंग प्रॉसेस में उपयोग किए जाने वाली वस्तुओं का भी जिक्र किए जाने की मांग की गई थी।
ट्रस्ट ने कहा था कि उसके सदस्य नामधारी संप्रदाय के अनुयायी हैं और वे शाकाहार के सख्त नियमों में यकीन रखते हैं। ऐसे में उनकी धार्मिक मान्यताएं, एनिमल प्रोडक्ट से बने किसी भी सामान के प्रयोग की इजाजत नहीं देती हैं।
क्या है खाने की चीजों पर लेबलिंग का नियम?
फूड रेगुलेशन 2011 के मुताबिक,मांसाहारी या नॉन-वेज फूड ऐसा फूड है, जिसमें किसी जानवर के एक हिस्से या पूरे हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें पक्षियों, ताजे पानी या समुद्री जानवरों या अंडे या किसी जानवर से निकलने वाले प्रोडक्ट शामिल हैं, लेकिन दूध या दूध के प्रोडक्ट इसमें शामिल नहीं हैं।
सभी मांसाहारी या नॉन-वेजिटेरियन फूड पर एक ब्राउन आउटलाइन वाले स्क्वायर के अंदर एक ब्राउन कलर से भरा एक सर्कल का लेबल होना चाहिए।
वहीं अंडा ही एकमात्र ऐसी मांसाहारी सामग्री है जिसके बारे में इस ब्राउन सिंबल के अतिरिक्त बताया जा सकता है।
शाकाहारी या वेजिटेरियन फूड पर हरे रंग के आउटलाइन वाले स्क्वायर के अंदर एक हरे रंग से भरे सर्कल का लेबल लगा होना चाहिए।
मैन्युफैक्चरर को साथ ही सामग्रियों की मात्रा और उनके वजन की भी एक लिस्ट प्रदर्शित करनी होती है।
मैन्युफैक्चरर को यह बताना होता है कि प्रोडक्ट में किस प्रकार के खाने योग्य वेजिटेबल ऑयल, वेजिटेबल फैट, एनिमल फैट या तेल, मछली, मुर्गी, मांस, या पनीर आदि का उपयोग किया गया है।
अगर कोई इंग्रीडिएंट खुद दो या दो से अधिक इंग्रीडिएंट्स से बना होता है और इससे बना “कंपाउंड इंग्रीडिएंट’’ किसी फूड के 5% से कम का हिस्सा होता है, तो ऐसे में फूड ऐडटिव के अलावा कंपाउंड इंग्रीडिएंट्स में शामिल अन्य इंग्रीडिएंट की लिस्ट घोषित करने की आवश्यकता नहीं है।
फूड लेबलिंग को लेकर क्यों उठे सवाल, कोर्ट ने क्या कहा?
अब सवाल ये उठता है कि जब वेजिटेरियन और नॉन-वेजिटेरियन फूड्स की लेबलिंग को लेकर नियम स्पष्ट हैं तो आखिर इसे लेकर सवाल क्यों उठ रहे हैं?
हाई कोर्ट ने कहा कि कानून में बहुत ही स्पष्ट तौर पर कहा गया कि मैन्युफैक्चरर ये बताएं कि कौन से फूड वेजिटेरियन हैं और कौन से नॉन-वेजिटेरियन हैं।
कोर्ट ने कहा कि हालांकि लगता है कि कुछ फूड बिजनेस ऑपरेटर्स रेगुलेशन के उस नियम का गलत फायदा उठा रहे हैं कि जिसमें कुछ अपवादों को छोड़कर खाने की चीजों की मैन्युफैक्चरिंग या प्रोडक्शन के लिए इस्तेमाल होने वाले इंग्रीडिएंट्स के सोर्स (पौधे या जानवर) को बताने की बाध्यता नहीं है।
कैसे वेजिटेरियन फूड में मिलाया जाता है नॉन-वेज?
भले ही कई प्रोडक्ट्स को वेजिटेरियन फूड के रूप में बेचा जाता है और उस पर उसे वेजिटेरियन बताने के लिए ग्रीन सर्कल भी लगा होता है, लेकिन इनमें ऐसे इंग्रीडिएंट्स का भी इस्तेमाल होता है जो जानवरों से बने होते हैं।
दिल्ली हाई कोर्ट ने इसके लिए इंस्टैंट नूडल्स और पोटैटो चिप्स में पाए जाने वाले फूड ऐडिटिव कैमिकल डिसोडियम इनोसिनेट (Disodium Inosinate) का उदाहरण दिया, जिसे व्यावसायिक रूप से मांस या मछली से तैयार किया जाता है। कोर्ट ने कहा, ”गूगल पर थोड़ा सर्च करने से पता चलता है… यह आमतौर पर सूअर की चर्बी से प्राप्त होता है।”
जब वेजिटेरियन प्रोडक्ट में भी इस तरह की किसी सामग्री या इंग्रीडिएंट का इस्तेमाल होता है, तब केवल उस सामग्री के कोड का खुलासा किया जाता है। पैकेजिंग पर इस बात का खुलासा किए बिना ही कि उस सामग्री का सोर्स क्या है, यानी वह पौधे से बनी है या जानवर से या लैब में रासायनिक रूप से तैयार की गई है।
कोर्ट ने कहा, ”कई खाने की चीजें जिनमें जानवरों से प्राप्त सामग्री (इंग्रीडिएंट) होती हैं, वे केवल हरी बिंदी लगाकर वेजिटेरियन के रूप में पास हो जाती हैं।”
कोर्ट ने फूड ऑपरेटर्स को जारी किए निर्देश
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कहा कि किसी वेजिटेरियन फूड में अगर “मामूली प्रतिशत” में भी नॉन-वेजिटेरियन सामग्री का उपयोग होता है तो “वह उस फूड (वेजिटेरियन) को मांसाहारी बना देगा, और शाकाहारियों की धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं और भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा, और उनके अधिकारों में हस्तक्षेप करेगा।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह की खामियों की जांच करने में अधिकारियों की विफलता फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट, 2006 का उल्लंघन है।
कोर्ट ने फूड बिजनेस ऑपरेटरों को रेगुलेशन 2.2.2(4) के सख्ती से पालन का निर्देश दिया, जो “शाकाहारी या मांसाहारी खाने के संबंध में घोषणा” का नियम है।
कोर्ट ने इन फूड ऑपरेटर्स को चेतावनी देते हुए कहा कि इस नियम के पालन में विफल रहने को उनके प्रोडक्ट का उपभोग करने वाली जनता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा। ऐसा होने पर फूड ऑपरेटर्स के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। साथ ही कोर्ट ने FSSAI को इस आदेश को लागू करवाने के निर्देश दिए हैं, मामले की अगली सुनवाई 31 जनवरी को होनी है।