ज्ञान:बंगाल में राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगा रही सरकार?
To be or not to be बंगाल is the Question! ममता या मोदी! राष्ट्रपति शासन लगा तो किसे फायदा?
मोदी सरकार ने 11 सालों में अभी तक 9 बार राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की है. जिन राज्यों में यह शासन लागू किया गया, उनमें जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और अरुणाचल जैसे राज्य हैं. कांग्रेस शासन में 90 से ज्यादा बार चुनी हुई सरकारें हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया गया है.
पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगने से किसको फायदा?
देहरादून 29 अगस्त 2024,’बस अब बहुत हो गया. महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर व्यथित हूं, इस घटना से निराश और भयभीत हूं’- द्रौपदी मुर्मू, राष्ट्रपति.
कोलकाता में महिला डॉक्टर से रेप और हत्या के मामले में प्रदर्शन हो रहे हैं. राष्ट्रपति ने महिलाओं को लेकर बयान दिया.
बंगाल में लोकतंत्र नहीं है. ममता बनर्जी की सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है. उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई. मुझे बंगाल के लोगों की चिंता है. यह सरकार अपराधियों को बचा रही है. सरकार लोगों को सुरक्षा देने में पूरी तरह से विफल रही है. लोगों की जान बचाना प्राथमिकता है. बंगाल में कोई सुरक्षित नहीं है. पुलिस को लोगों को सुरक्षा देनी चाहिए लेकिन वह ऐसा करने में असफल रही है. अपराधियों को पुलिस का पूरा-पूरा संरक्षण है. पुलिस कमिश्नर को भी तुरंत हटाया जाना चाहिए. ममता को पद से इस्तीफा देना चाहिए.- सीवी आनंद बोस, बंगाल के राज्यपाल.
बाद में बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने दिल्ली आकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की.
‘अगर बंगाल में आग लगाई गई, तो असम, पूर्वोत्तर, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और दिल्ली भी प्रभावित होंगे. मोदी बाबू अपनी पार्टी का इस्तेमाल यहां आग लगाने के लिए कर रहे हैं. हम आपकी कुर्सी गिरा देंगे.’
ममता के बयान पर जबर्दस्त उबाल. भाजपा मुख्यमंत्रियों ने ममता के खिलाफ बयानों की बौछार कर दी. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा बोले – दीदी, आपकी हिम्मत कैसे हुई असम को धमकाने की? हमें लाल आंखें मत दिखाइए. अपनी असफलता की राजनीति से भारत को जलाने की कोशिश भी मत कीजिए. आपको विभाजनकारी भाषा बोलना शोभा नहीं देता.
भाजपा के वरिष्ठ नेता और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा, ‘मुख्यमंत्री ममता बनर्जी झारखंड समेत में अन्य राज्यों में अराजकता फैलाने की धमकी दे रही हैं जो अत्यंत निंदनीय एवं दुर्भाग्यपूर्ण है. खुफिया एजेंसियों ने जो संभावना व्यक्त की थी, ममता बनर्जी ठीक उसी प्रकार की अलगाववादी भाषा में बात कर रही हैं. राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा करें`
बयानों की कडुआहट यह चर्चा छेड़ गई कि क्या पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाया जा रहा है? क्या मोदी सरकार के लिए राष्ट्रपति शासन लगाना इतना आसान है? यदि राष्ट्रपति शासन जैसा कुछ हुआ तो क्या ममता को लाभ हो सकता है? भाजपा फायदे में रहेगी या नुकसान में? चलिए एक सिरे से पूरे मामले के धागे खोलते हैं. सबसे पहले जान लेते हैं कि किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितियों में लगाया जा सकता है?
अराजकता-अशांति- प्रशासनिक अव्यवस्था तो लगेगा राष्ट्रपति शासन
संविधान में राष्ट्रपति शासन के लिए दी गई परिस्थितियों के हिसाब से आर्टिकल 355, 356 में राष्ट्रपति शासन का प्रावधान है. 355 केंद्र सरकार को राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाने की ताकत देता है. जबकि 356 में यह व्यवस्था है कि यदि राज्य शासन को सुचारू रूप से चलाने में असफल रहता है तो वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. इसके लिए राज्यपाल की संस्तुति बहुत जरूरी है. कई मामलों में यदि सीधे केंद्र सरकार को यह लगता है कि राज्य का संवैधानिक तंत्र फेल हो चुका है तो वह खुद ही राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकती है.
प्रारंभिक तौर पर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन अधिकतम 6 महीने को लगाया जा सकता है. राष्ट्रपति शासन की सिफारिश पर संसद के दोनों सदनों का अनुमोदन होता है. यहां तक व्यवस्था है कि यदि लोकसभा अस्तित्व में नहीं तो इसे राज्यसभा से पारित करवाया जाए. बाद में जैसे ही लोकसभा गठित हो, वहां से एक महीने में इसे अनुमोदित करवा लिया जाए. राष्ट्रपति शासन की अधिकतम अवधि भी निर्धारित है. किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन ज्यादा से ज्यादा तीन साल तक ही लागू हो सकता है.
मोदी सरकार में 9 बार तो कांग्रेस सरकारों में 90 बार लगाया जा चुका..
मोदी सरकार ने अभी तक 9 बार जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और अरुणाचल जैसे राज्यों में राष्ट्रपति शासन की संस्तुति की हैं. कांग्रेस शासन में 90 से ज्यादा बार चुनी हुई सरकारें हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया गया है. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सबसे अधिक 50 बार इस प्रावधान का इस्तेमाल किया है.
राष्ट्रपति शासन की बारीकियां समझने के बाद आइए मूल मुद्दे पर आयें.
ममता या मोदी? बंगाल में राष्ट्रपति शासन से किसे होगा फायदा?
ममता खेल सकती हैं विक्टिम कार्ड: यह निर्णय ममता बनर्जी की स्थिति मजबूत कर सकता है. वे खुद को केंद्रीय हस्तक्षेप से पीड़ित होने का दावा करेंगी. किसी भी संभावित चुनाव को यह कार्ड खेलकर समर्थन जुटाएंगी. मोदी सरकार का डर दिखाकर मुस्लिम वर्ग को एक तरफा पोलराइज़ करेंगी. अपना बलिदान भुनाने का पुरजोर प्रयास करेंगी. मोदी सरकार बंगाल में अभी कोई बलिदानी पैदा करने का खतरा मोल लेना नहीं चाहेगी.
बढ़ेगी ममता की लोकप्रियता: लगातार ऐसा देखा जा रहा है कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में एक लोकप्रिय नेता बनी हुई हैं. उनके मुकाबले कोई और नेता दूर-दूर तक नहीं दिखता. राष्ट्रपति शासन लगाना उनकी सरकार पर हमले के रूप में देखा जा सकता है. इससे उनकी लोकप्रियता बढ़ सकती है. जिस रफ्तार से भाजपा का वोट परसेंटेज बंगाल में कम हो रहा है भाजपा टीएमसी का वोट बैंक बढ़ाने का रिस्क कतई नहीं लेना चाहेगी.
सहयोगी-विपक्षी कर सकते हैं विरोध: राष्ट्रपति शासन लगाने पर हो सकता है कि मोदी सरकार को सबसे बड़ा विरोध सहयोगी दलों से ही झेलना पड़ जाए. चंद्रबाबू नायडु या नीतीश कुमार राज्यों में केंद्र के ज्यादा हस्तक्षेप के वैसे भी खिलाफ रहे हैं. इसके अलावा अन्य सहयोगी भी विपरीत रुख अपना सकते हैं. वहीं, विपक्षी दलों और लोगों की विपरीत प्रतिक्रिया आ सकती है. इससे समाधान की तुलना में अधिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं. सरकार के पास अभी पूर्ण बहुमत नहीं है तो इस स्थिति में यह मामला और पेचीदा हो सकता है. मोदी सरकार जिस तरह से फूंक-फूंककर कदम रख रही है फिलहाल इस कदम को उठाने से बचना ही चाहेगी.
कानूनी और संवैधानिक दिक्कतें: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बोम्मई केस में फैसला देते हुए राष्ट्रपति शासन को समीक्षा योग्य माना था. 9 जजों की बेंच ने निर्णय सुनाया था कि राष्ट्रपति शासन की घोषणा को चैलेंज किया जाता है तो केंद्र सरकार को ही यह साबित करना होगा कि उसके पास इस फैसले का पर्याप्त आधार मौजूद था. राष्ट्रपति शासन वाले मामले में मोदी सरकार की पहले भी किरकिरी हो चुकी है जब अरुणाचल और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन कोर्ट ने निरस्त कर दिया था. यदि इस मामले को भी कोर्ट ने पलट दिया तो सरकार की भद पिटेगी. पिछले कुछ मामलों में यू टर्न ले चुकी सरकार इस तरह का कोई निर्णय लेने से बचना जरूर चाहेगी.
संवैधानिक मशीनरी का फेल होना जरूरीः राष्ट्रपति शासन लगाने को संवैधानिक मानदंड पूरा करना आवश्यक है. जैसे- संवैधानिक मशीनरी की विफलता या कानून और व्यवस्था की खराब स्थिति. बंगाल के राज्यपाल ने ममता सरकार के खिलाफ बयान जरूर दिया है लेकिन राष्ट्रपति शासन से संबंधित किसी भी तरह की सिफारिश केंद्र को नहीं भेजी है जिसमें राज्य की स्थिति की गंभीरता वर्णित की हो. अगर सीधे तौर पर कोई कार्रवाई हुई तो इसका औचित्य साबित करना टेढ़ी खीर होगा. इस तरह एक्सट्रीम कार्रवाई करने की स्थिति में अभी सरकार दिखाई नहीं दे रही है.
कौन लेगा अराजकता की जिम्मेदारी: इस समय बंगाल में ममता के खिलाफ लोगों का जबर्दस्त आक्रोश है. लोग उद्वेलित हैं. सड़कों पर उतरे हैं. सरकार को लॉ एंड ऑर्डर के मोर्चे पर पूरी तरह से फेल मान रहे हैं. मान रहे हैं कि सरकार महिलाओं को सुरक्षा देने में विफल हो रही है. भाजपा इस स्थिति का फायदा अपने फेवर में ले सकती है और ममता सरकार को बैकफुट पर ढकेल सकती है. पार्टी लगातार यही प्रयास कर रही है. मोर्चे-रैलियों से ममता को असफल सरकार साबित करने में लगी है. ऐसे में यदि सरकार को हटाकर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा तो सीधी जिम्मेदारी मोदी सरकार पर आ जाएगी. निश्चित तौर पर कोई भी सरकार इस सिचुएशन से बचना चाहेगी.
करूं या ना करूं….या क्या करूं?
तो डिलेमा में आखिर होगा क्या? बंगाल के अभी हालात पर शेक्सपियर की प्रसिद्ध लाइन बहुत खरी उतरती है. हालांकि उनसे क्षमा मांगते हुए उनकी लाइन का कुछ मॉडिफाइ इस्तेमाल स्थिति बेहतर तरीके से बयान कर रहा है. To be or not to be Bengal is the question! हालांकि, बंगाल ज्यादा दिनों तक सवाल नहीं रहेगा. जो परिस्थितियां बन रही हैं लगता है कि जल्दी ही इस सवाल का जवाब मिल सकता है. जिसमें इस बात की संभावना ही ज्यादा है कि यथा स्थिति ही बनी रहेगी.