ज्ञान:सांसद का वेतन लेकर भी सिब्बल कैसे लड़ रहे सरकार के विरूद्ध मुकदमा?

क्या सांसद का वेतन लेने वाला नेता वकील के रूप में सरकार के खिलाफ लड़ सकता है केस?

ये बात सुप्रीम कोर्ट में गए वक्फ बिल पर कपिल सिब्बल की भूमिका को लेकर है. दरअसल सोशल मीडिया में एक हलका ये सवाल उठा रहा है कि चूंकि सिब्बल सांसद के तौर पर वेतन लेते हैं. इसलिए सरकार के किसी कानून के खिलाफ केस नहीं लड़ सकते.

मुख्य बिंदू
कपिल सिब्बल वक्फ कानून के खिलाफ केस लड़ रहे हैं.
सिब्बल खुद सांसद हैं और इस पद का वेतन, भत्ते और सुविधाएं लेते रहे हैं
इंडियन एडवोकेट एक्ट किन मामलों में वकील को कुपात्र ठहरा देता है?

वैसे तो ये पहली बार नहीं होगा जबकि वकील से सांसद बना कोई नेता ने अदालत में जाकर वकालत नहीं की हो लेकिन सोशल मीडिया में इन दिनों एक सवाल उठाया जा रहा है कि इंडियन एडवोकेट एक्ट 1961 कहता है कि कोई सांसद वकील के तौर पर सरकार द्वारा बनाए किसी कानून पर सवाल उठाते हुए उसके खिलाफ केस नहीं लड़ सकता. क्या वास्तव में ऐसा है. ऐसा सच में सांसद के तौर पर लोकसभा या राज्यसभा से वेतन और फायदे लेने वाले नेता को ऐसा करने का हक नहीं है.

हम इसके बारे में विस्तार और साफ – साफ जानेंगे कि क्या वास्तव में इंडियन एडवोकेट एक्ट 1961 या कोई दूसरा कानून किसी सांसद को अदालत में वकील बनने से रोकता है या ये कानून ये कहता है कि सांसद के तौर पर संसद के वेतन, भत्ते और पेंशन लेने वाला नेता कोर्ट में वकील के तौर पर केस लड़ने के अयोग्य हो जाता है.

गौरतलब है कि वक्फ संशोधन एक्ट 2025 के संसद में पास होकर कानून बनने के बाद इस पर आपत्ति करने वाली बहुत सी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में डाली गई हैं. सुप्रीम कोर्ट उनकी सुनवाई कर रहा है. सांसद कपिल सिब्बल जो देश के जाने माने शीर्ष वकीलों में शामिल हैं, वो इस कानून के खिलाफ केस लड़ रहे हैं. जाहिर सी बात है कि एक पक्ष सरकार का है, जिसने ये कानून बनाया और दूसरा पक्ष, जो इसके औचित्य पर सवाल उठा रहा है. सिब्बल वक्फ कानून के औचित्य उठाने वाले लोगों के वकील हैं.

सोशल मीडिया पर इसे लेकर कपिल सिब्बल के खिलाफ बाढ़ आई है. आमतौर पर कहा जा रहा है कि सांसद के तौर पर वेतनभोगी होने के बाद वह ये केस नहीं लड़ सकते. इसके लिए अयोग्य हैं. तो हम आगे यही जानेंगे कि वो इसके योग्य हैं या नहीं.

सबसे पहले बात इंडियन एडवोकेट एक्ट 1961 की ही कर लें कि ये एक्ट क्या है और क्या कहता है और किन स्थितियों में किसी वकील को किसी का केस लड़ने के मामले में पात्र नहीं मानता.

क्या कपिल सिब्बल सांसद होने के बाद भी और इस पद की सुविधाएं लेते हुए कोर्ट में वकील के रूप में कोई केस लेकर लड़ सकते हैं.
क्या है इंडियन एडवोकेट एक्ट 1961
भारतीय अधिवक्ता अधिनियम, 1961 एक केंद्रीय कानून है जो भारत में वकीलों के पेशे को रेगुलेट करता है. ये अधिनियम वकीलों के पंजीकरण, आचरण, नैतिकता और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) तथा राज्य बार काउंसिलों के रोल को परिभाषित करता है. इसका मुख्य उद्देश्य वकालत पेशे के मानकों को बनाए रखना और कानूनी पेशे की आजादी को बनाए रखना है.

क्या हैं इस एक्ट के मुख्य प्रावधान
वकीलों का रजिस्ट्रेशन – अधिनियम कहता है कि केवल वो लोग ही वकालत कर सकते हैं जो किसी राज्य बार काउंसिल में रजिस्टर्ड हों.बार काउंसिल ऑफ इंडिया – यह वकीलों के पेशे को कंट्रोल करने वाली शीर्ष संस्था है, जो वकीलों के लिए नियम बनाती है और नैतिकता के मानकों को लागू करती है.वकीलों के अधिकार और काम – अधिनियम वकीलों को कोर्ट में प्रैक्टिस करने का अधिकार देता है, लेकिन ये भी कहता है कि वकीलों का आचरण को बार काउंसिल के नियमों के अनुकूल ही होगा.अनुशासनात्मक कार्रवाई – अगर कोई वकील अनैतिक आचरण करता है, तो बार काउंसिल उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है, जिसमें लाइसेंस निलंबन भी शामिल है.

इंडियन एडवोकेट एक्ट 1961 के कुछ नियम कुछ वकीलों को किसी केस को लड़ने के अयोग्य ठहराते हैं. उसे ये कानून बिल्कुल स्पष्ट करता है. 
किन स्थितियों में वकील कोर्ट में केस नहीं लड़ सकता
भारतीय अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और बार काउंसिल ऑफ इंडिया नियम के तहत कुछ परिस्थितियों में वकील को कोर्ट में केस लड़ने से रोका जा सकता है.

पूर्णकालिक सरकारी नौकरी या वेतनभोगी रोजगार करने वाला
बार काउंसिल ऑफ इंडिया का (Part VI, Chapter II, Rule 49) कहता है कि कोई भी वकील जो पूर्णकालिक सरकारी नौकरी या किसी अन्य वेतनभोगी रोजगार में है, वह वकालत नहीं कर सकता.

क्या सांसद और विधायक इसके पात्र हैं
सांसद, विधायक, या अन्य निर्वाचित जनप्रतिनिधि ना तो पूर्णकालिक सरकारी कर्मचारी माने जाते हैं और ना ही पूर्ण वेतनभोगी, लिहाजा वो वकालत कर सकते हैं (सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, अश्विनी उपाध्याय बनाम भारत संघ, 2018).

हितों का टकराव
बार काउंसिल नियम (Rule 13, Part VI, Chapter II) के तहत, कोई वकील उस केस में पक्ष नहीं ले सकता जिसमें उसका व्यक्तिगत हित हो या वह पहले से किसी अन्य पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहा हो. यानि अगर वकील किसी कंपनी का कर्मचारी है, तो वह उस कंपनी के खिलाफ केस नहीं लड़ सकता. कुछ मामलों में अगर कोई वकील किसी केस में गवाह है, तो वह उस केस में वकालत नहीं कर सकता.

नैतिकता का उल्लंघन
अगर कोई वकील अनैतिक आचरण में लिप्त है, जैसे कि झूठी गवाही देना, कोर्ट को गुमराह करना, या क्लाइंट से धोखाधड़ी करना, तो बार काउंसिल उसे वकालत करने से रोक सकती है.

अगर लाइसेंस निलंबित या रद्द हो गया हो
अगर बार काउंसिल ने किसी वकील का लाइसेंस निलंबित या रद्द कर दिया हो तो वह कोर्ट में केस नहीं लड़ सकता.

विशेष सरकारी पद पर हो
अगर कोई वकील सरकारी वकील (जैसे Advocate General, Additional Solicitor General, या Public Prosecutor) है, तो वह सरकार के खिलाफ केस नहीं लड़ सकता, क्योंकि यह हितों के टकराव का मामला होगा. सामान्य सांसदों पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होता, जैसा कि पहले बताया गया.

किस और पेशे में होने पर केस नहीं लड़़ सकता
बार काउंसिल नियम (Rules 47-52) के तहत, कोई वकील किसी दूसरे व्यवसाय मसलन व्यापार, पत्रकारिता, या पूर्णकालिक शिक्षण कर रहा हो तो भी वो वकालत नहीं कर सकता.

अगर कोर्ट रोके तो भी
अगर कोर्ट किसी वकील को किसी विशेष केस में पक्ष लेने से रोकता है (पक्षपात या अनुचित व्यवहार के कारण), तो वह उस केस में वकालत नहीं कर सकता.सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट ने कुछ मामलों में वकीलों को विशेष केस में हस्तक्षेप करने से रोका है.

स्वास्थ्य या मानसिक अक्षमता पर
अगर कोई वकील मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम है और कोर्ट में प्रभावी ढंग से पक्ष रखने में असमर्थ है, तो बार काउंसिल या कोर्ट उसे वकालत से रोक सकता है.

अब हम ये जानेंगे कि संसद में वेतन, भत्ते, सुविधाएं और पेंशन लेने वाले सांसद या विधायक वकील के तौर पर कोई केस लड़ सकते हैं या नहीं

क्या सांसद कोर्ट में केस लड़ सकते हैं
भारतीय अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो यह कहता हो कि कोई वकील, जो सांसद है और सांसद के तौर पर वेतन ले रहा है, वह सरकार के किसी कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा नहीं लड़ सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में एक केस में साफ कर दिया था कि सांसद (लोकसभा या राज्यसभा) पूर्णकालिक वेतनभोगी सरकारी कर्मचारी नहीं माने जाते. इसलिए, अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत सांसदों पर वकालत करने पर कोई सामान्य प्रतिबंध नहीं है.

और क्या सांसद वकील बनकर सरकार के खिलाफ मुकदमा लड़ सकते हैं
काउंसिल ऑफ इंडिया नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी वकील-सांसद को सरकार के किसी कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ने से स्पष्ट रूप से रोकता हो.

हां, अगर कोई वकील-सांसद सरकार के खिलाफ कोई केस लड़ता है, तो यह नैतिकता के आधार पर जांच का विषय हो सकता है, खासकर अगर यह हितों के टकराव (conflict of interest) का मामला हो. हालांकि ये स्थिति केस-दर-केस अलग अलग होती है.

अगर कोई वकील-सांसद सरकारी पद (जैसे केंद्रीय मंत्री) पर है, तो उसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया नियमों के तहत वकालत करने से रोका जा सकता है, क्योंकि यह पूर्णकालिक सरकारी दायित्व माना जा सकता है.

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