ज्ञान: यूपीए ने 2007 तक जारी रखी NCERT पाठ्यक्रम में छेड़छाड़
“He who controls the past controls the future. He who controls the present controls the past.” ― George Orwell, ‘1984’
जॉर्ज ओरवेल की लिखी किताब ‘1984’ कई वामपंथी शासनों में प्रतिबंधित रही है | अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तथाकथित पैरोकारों को ये किताब कभी हज़म नहीं हुई | जब ये किताब लिखी गई थी तब ये अंदाजा लगाना लगभग नामुमकिन रहा होगा कि कैसे किताबों में इतिहास को तोड़ मरोड़ कर एक आयातित विचारधारा के लोग भारत का इतिहास गायब करने की कोशिश करेंगे |
यू.पी.ए. सरकार ने सन 2005 में नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क बनाया | इस समिति ने एन.सी.इ.आर.टी. के पाठ्यक्रम की किताबों में से कुछ चैप्टर हटवाए | साल 2007 में इन्होने क्लास 11 की पाठ्य पुस्तकों से वैदिक इतिहास पढ़ाने वाले दो चैप्टर ही गायब कर दिए | ये अध्याय क्यों हटाये गए इसके विषय में कोई भी जानकारी एन.सी.इ.आर.टी. के पास उपलब्ध नहीं है |
मजेदार बात ये है, कि हमारी इतिहास की किताबों से वैदिक काल का जिक्र उस वक्त हटाया जा रहा था जब यूनाइटेड नेशन्स में “ऋग्वेद” की पांडुलिपियों को ऐतिहासिक धरोहर के तौर पर जगह दी जा रही थी | आज जब सुबह ये खबर जी न्यूज़ पर आ रही थी तो सवाल करने पर कांग्रेस और वामपंथियों कि तरफ से वही रटे-रटाये जवाब आये | पहला जवाब तो ये था कि वो इतिहासकार वामपंथी नहीं हैं | जो कि एक शुद्ध असत्य है | दूसरा जवाब था कि भाई हमने हटा दिया तो तुम जोड़ दो ! सरकार है तो तुम्हारी 25 महीने से, जोड़ते क्यों नहीं ?
ऐसे में मेरे मन में कई सवाल उठते हैं | अगर आज उसे फिर से जोड़ा भी तो क्या उस से पिछले सालों की भरपाई हो जायेगी ? ये जो एक दशक में लाखों लोग ग्यारहवीं पास कर चुके उनकी जानकारी से इतिहास गायब कर देने का जिम्मेदार कौन है ? अपनी जवाबदेही से कांग्रेसी मूंह क्यों छुपा रहे हैं ? आखिर क्या जरूरत थी इतने सारे लोगों को भारत का वैदिक इतिहास ना पढ़ाने की ? कौन सा एजेंडा सिद्ध होता है इस से ?
सवाल मेरा तथाकथित राष्ट्रवादी सरकार से भी है | ये स्वघोषित दक्षिणपंथियों को इतिहास, साहित्य, विज्ञान हर विषय से इतनी एलर्जी क्यों है ? दक्षिणपंथी माने जाने वाले दलों के पास बौद्धिक क्षमता का इतना आभाव क्यों दिखता है | जिन्होंने दो चार दस किताबें लिख रखी हों ऐसे राष्ट्रवादी लोगों को एन.सी.आर.टी. और यूनिवर्सिटी में जगह कब दी जायेगी ? क्या इस दिशा में कोई प्रयास हुए हैं ? शायद नहीं |
बाकी सेकंड लाइन का ना होने का मतलब एक वाजपेयी या फिर एक मोदी के जाते ही सत्ता का सामर्थ्य जाना भी होता है | बिना स्कूल कॉलेज में सिखाये पढ़ाये, सेकंड लाइन तो बनेगी नहीं !
✍🏻आनन्द कुमार