पुण्य स्मृति: समाज सुधारक गुरु राम सिंह के शिष्यों ने अंग्रेजों के खिलाफ छेड़ा बलिदानी कूका विद्रोह
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चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹
🙏🙏 *राम सिंह कूका जी* 🌷🌷🌷🌷🌷
📝राष्ट्रभक्त साथियों,असहयोग का उपयोग भारतीय आजादी की लड़ाई में एक प्रमुख अस्त्र के रूप में किया गया। पाश्चात्य वस्तुओं व सेवाओं का बहिष्कार हो या तर्कहीन ब्रिटिश नियमों की अवहेलना आजादी के मतवालों ने इन सबको अंग्रेजों के खिलाफ भरपूर इस्तेमाल किया। इन्ही अस्त्रों का सर्वप्रथम प्रारंभिक दौर में उपयोग करने वाले महत्वपूर्ण क्रांतिकारियों में से एक थे भारत की आजादी में कूका विद्रोह के प्रणेता व मुखिया,सिखों के नामधारी पंथ के संस्थापक व महान समाज-सुधारक राम सिंह कूका। राम सिंह कूका का जन्म 03.02.1816 को पंजाब के लुधियाना के भैणी ग्राम में वसंत पंचमी को हुआ था। कुछ समय वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे, किन्तु मनमौजी एवं आध्यात्मिक प्रवृत्ति इन्हें अधिक समय तक वहाँ नहीं रख सकी अतः वह अपनें गाँव आकर खेतीबाड़ी करने लगे। साथ ही अपने धार्मिक ज्ञान व आध्यात्मिक चिंतन को लोगों के साथ साझा करते, परिणामस्वरूप इनसे प्रभावित हो दूर दूर से लोग इनके प्रवचन सुनने आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग ही पंथ बन गया,जो कूका पंथ (नामधारी) कहलाया। अब अपने बढ़ते प्रभाव को देख इन्होंने समाज सेवा एवं समाज सुधार के प्रयासों को व्यापक रूप में अपनें शिष्यों के माध्यम से फैलना प्रारम्भ कर दिया। इन्हीं कार्यों में गोरक्षा,स्वदेशी,नारी उद्धार, अंतर्जातीय विवाह,सामूहिक विवाह आदि महत्वपूर्ण थे।
📝 यदि राम सिंह सिर्फ एक संत या आध्यात्मिक पुरुष के रूप में ही स्वयं को सीमित रखते तो संभवतः इनका आभामंडल इतना बड़ा न होता। तात्कालिक ब्रिटिश राज से त्रस्त मातृभूमि को बंधनों से मुक्त कराने की चाह ने इन्हें आजादी की लड़ाई लड़ने वाले प्रारंभिक सेनानियों में सम्मिलित कर दिया। गुरु राम सिंह ने 12.04.1857 को श्री भैणी साहिब,लुधियाना सफेद रंग का स्वतन्त्रता का ध्वज फहराकर अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया। ध्वज के साथ इस प्रकार का शंखनाद सीधे तौर पर अंग्रेजो के लिए चेतावनी थी कि जंग की स्थिति में हम किसी भी स्तर पर ब्रिटिश फ़ौज से कम नहीं हैं। अंग्रेजों के दाँत खट्टे करने की भावना ही नहीं बल्कि पूर्ण सामर्थ्य भी राम सिंह व उनके संगठित अनुयायियों के पास था। हो भी क्यों न,कूके लोगों ने पूरे पंजाब को 22 जिलों में बाँटकर अपनी समानान्तर सरकार बना डाली थी। कूके वीरों की संख्या 07 लाख से ऊपर थी और नेतृत्वकर्ता थे बालक सिंह एवं गुरु राम सिंह। सन् 1871 और 1872 के बीच इन्होंने एक सशस्त्र विद्रोह किया जो मूलतः अंग्रेजों के गायों की हत्या को बढ़ावा देने के विरोध में था। जब अंग्रेजों ने धर्म के नाम पर लोगों को लड़ने व गुलामी का अहसास करवाने के लिए पंजाब में जगह-जगह गौ-वध के लिए बूचड़खाने खोले, तब नामधारी सिखों ने इसका बड़ा विरोध किया व 100 नामधारी सिखों ने 15 जून 1871 को अमृतसर व 15 जुलाई 1871 को रायकोट बूचड़खाने पर धावा बोल कर गायों को मुक्त करवाया।
📝राष्ट्रभक्त साथियों, इसी विद्रोह के जुर्म में 05 अगस्त 1871 को 03 नामधारी सिक्खों को रायकोट,15 दिसम्बर 1871 को चार नामधारी सिखों को अमृतसर व दो नामधारी सिखों को 26 नवम्बर 1871 को लुधियाना में बट के वृक्ष से बांधकर सरेआम फाँसी देकर बलिदान कर दिया गया। मलौद में एक हल्की मुठभेड़ के पश्चात 15 जनवरी 1872 में हीरा सिंह व लहिणा सिंह के जत्थे ने मालेरकोटला में धावा बोल दिया। इसमें 10 नामधारी सिख लड़ते हुए बलिदान हो गए। अंग्रेज उस प्रत्येक चिंगारी को बुझा देना चाहते थे, जो उनकी सत्ता के लिए नुकसानदायक थी। यह संघर्ष अभी थमा नहीं था, इसी विद्रोह के क्रम में अभी मलेरकोटला कांड होना बाकी था। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गाँव में मेला लगता था। सन् 1872 में मेले में आते समय राम सिंह जी के एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुँह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू राम सिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गाँव पर हमला बोल दिया,पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अत: युद्ध का पासा पलट गया। इस संघर्ष में अनेक कूका वीर बलिदान हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से लगभग 50 को 17.01.1872 को पंजाब के मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ा कर उड़ा दिया गया।
📝 शेष 18 को अगले दिन फाँसी दी गई,लेकिन साथियों इसी सामूहिक बलिदानियों के मध्य जब बिशन सिंह कूका की बरी आई तो इस 12 वर्ष के बालक को देख अंग्रेज़ी टुकड़ी के कमांडर कॉवेन की पत्नी ने इस बालक को तोप से उड़ाने के लिए मना किया,तब कमांडर कॉवेन ने बिशन सिंह कूका से कहा कि तुम बोलो कि “राम सिंह कुका तुम्हारे गुरु नहीं।” यह सुनते ही आगबबूला बिशन सिंह दौड़कर कमांडर कॉवेन की दाढ़ी से लटक गया,दर्द से कराहते कमांडर कॉवेन को देख सिपाहियों ने बिशन सिंह को छुडाने का प्रयास किया। छुडाने में असफल देख सिपाहियों ने बिशन सिंह के दोनों हाथ काट दिए,तत्पश्चात इस वीर बालक के शीश को भी मातृभूमि के लिए अर्पित होने को काट डाला। इस बलिदान के शीघ्र उपरांत वीर बालक हरनाम सिंह की बारी आई तो अपने को तोप के समक्ष छोटा देख,अपने चाचा के पीठ पर सवार हो तोप आगे खड़े होकर मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्योछावर किया। दो दिन बाद गुरू राम सिंह को पकड़ बर्मा के मांडले जेल में भेज दिया गया। जीवन के अगले 14 वर्ष इन्होनें यहीं इसी जेल में व्यतीत किये तथा 29 नवंबर 1885 को इन्होंने ढाका में अंतिम साँस ली। प्रत्येक वर्ष इन बलिदानियों की याद में पंजाब के मालेरकोटला में एक विशाल श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया जाता है,जिसमें देशभर से नामधारी सिख श्रद्धांजलि देने यहाँ पहुँचते हैं। सतगुरु राम सिंह एक महान क्रांतिकारी, आध्यात्मिक गुरु होने के साथ साथ महान समाज सुधारक भी थे।
📝 गुरु राम सिंह महिला सशक्तिकरण एवं महिलाओं को पुरुषों के समान सामाजिक महत्व देने के प्रबल पक्षपाती थे। लड़कियों के जन्म लेते ही उन्हें मार देना,बेच देना व विद्या से वंचित रखने जैसी सामाजिक कुरीतियाँ उस दौर में प्रचलित थी। तब सतगुरु राम सिंह ने ही इन कुरीतियों को दूर करने के लिए लड़के-लड़कियों दोनों को समान रूप से पढ़ाने के निर्देश जारी किए। सिख पुरुषों की तरह स्त्रियों को भी अमृत छका कर सिखी प्रदान की गई। बिना ठाका शगुन, बारात, डोली,मिलनी व दहेज के सवा रुपये में विवाह करने की नई रीति का आरंभ हुआ। इसे आनंद कारज कहा जाने लगा। इस प्रकार महान क्रांतिकारी,आध्यात्मिक संत समाजसुधारक बाबा राम सिंह कूका का धर्म,समाज एवं देश के प्रति समरुप युगों – युगों तक न केवल याद रखा जाएगा वरन श्रद्धाभाव से उनके योगदान को नमन किया जाता रहेगा।
इस विलक्षण आंदोलन की 150वीं जयंती पर 2007 में स्मृति सिक्का जारी किया गया।
*मातृभूमि सेवा संस्था भी ऐसी महान विभूति का आज उनके 135वें बलिदान दिवस पर उनका शत शत वंदन करती है।* 🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷
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✍️ प्रशांत टेहल्यानी
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