कूका विद्रोह पुण्य स्मृति:बालक हरनाम सिंह व बिशन सिंह ने आज ही तोपों के मुंह पर जा खडे हुए थे आज

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चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* आज देश के स्वतन्त्रता सेनानीयों, क्रांतिकारियों एवम ज्ञात-अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटिश: नमन करती है।🙏🙏🌷🌷

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🔥 *बिशन सिंह, हरनाम सिंह तथा ……..* 🔥
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पूजे न शहीद गए तो फिर आजादी कौन बचाएगा ?
फिर कौन मौत की छाया में जीवन के रास रचाएगा ?
पूजे न शहीद गए तो फिर यह बीज कहाँ से आएगा ?
धरती को माँ कह कर, मिट्टी माथे से कौन लगाएगा ?
मैं चौराहे—चौराहे पर,
ये प्रश्न उठाया करता हूँ।
मैं अमर शहीदों का चारण,
उनके यश गाया करता हूँ।
जो कर्ज राष्ट्र ने खाया है, मैं उसे चुकाया करता हूँ।
✍️ *श्रीकृष्ण सरल*

👳‍♀️👱‍♂️ राष्ट्रभक्त साथियों, देश, धर्म व स्वतंत्रता की रक्षा हेतु असंख्य वीर भारतीयों ने अपना जीवन बलिदान किया, जिनमें असंख्य वीर बलिदानी बालक भी थे, चाहे वे गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादा फतेह सिंह, ज़ोरावर सिंह, जुझार सिंह, अजीत सिंह हो या वीर हक़ीक़त राय या बाज़ी राउत क्यों ना हो, इन सबके बलिदान ने बलिदानी परंपरा को पोषित किया जिसके कारण बिशन सिंह तथा हरनाम सिंह जैसे वीर बालकों का अदम्य साहस एवं सर्वस्व न्योछावर की भावना देखने को मिली। साथियों आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने के विरोध में कूका लोगों (नामधारी सिखों) द्वारा एक सशस्त्र विद्रोह हुआ था जो कूका विद्रोह नाम से जाना जाता है। यह विद्रोह सिखों के नामधारी पंथ के संस्थापक, तथा महान समाज-सुधारक बाबा राम सिंह कूका जी के नेतृत्व में लड़ा गया।🙏🙏🌷🌷🌷

👳‍♀️👱‍♂️राष्ट्रभक्त साथियों, जब अंग्रेजों ने धर्म के नाम पर लोगों को लड़ने व गुलामी का अहसास करवाने के लिए पंजाब में जगह-जगह गौ-वध के लिए बूचड़खाने खोले, तब नामधारी सिखों ने इसका बड़ा विरोध किया व 100 नामधारी सिखों ने 15 जून, 1871 को अमृतसर व 15 जुलाई, 1871 को रायकोट बूचड़खाने पर धावा बोल कर गायों को मुक्त करवाया। इस विद्रोह के जुर्म में 05 अगस्त, 1871 को 03 नामधारी सिक्खों को रायकोट, 15 दिसम्बर, 1871 को 04 नामधारी सिखों को अमृतसर व 02 नाम धारी सिखों को 26 नवंबर, 1871 को लुधियाना में बट के वृक्ष से बाँधकर सरेआम फाँसी देकर बलिदान कर दिया गया। मलौद, मालेरकोटला, संगरूर, पंजाब में एक हल्की मुठभेड़ के पश्चात 15 जनवरी, 1872 में हीरा सिंह व लहिणा सिंह के जत्थे ने मालेरकोटला पर धावा बोल दिया। इसमें 10 नामधारी सिख लड़ते हुए बलिदान हुए। अंग्रेज प्रत्येक उस चिंगारी को बुझा देना चाहते थे, जो उनकी सत्ता के लिए नुकसानदायक हो। नामधारी सिक्खों को समाप्त करने के लिए मालेरकोटला के परेड ग्राउंड में देसी रियासतों से 09 तोपें मंगवाकर लगाई गई। 07 तोपें 07 बार चली, जिसमें 49 नामधारी सिखों को आजादी के लिए टुकड़े-टुकड़े कर बलिदान कर दिया गया। इस संघर्ष में अनेक कूका वीर बलिदान हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को 17 जनवरी, 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ा कर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फाँसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया।🙏🙏🌷🌷🌷

👳‍♀️👱‍♂️साथियों, 17 जनवरी, 1872 को अनेक कूका विद्रोहियों के बलिदान उपरांत अब बारी थी 12 वर्षीय बालक बिशन सिंह का। बालक बिशन सिंह को देख मिस्टर कॉवेन की पत्नी को दया आ गई। उसने मिस्टर कॉवेन से कहा कि इसे छोड़ दीजिए। यह सुन मिस्टर कॉवेन ने बिशन सिंह को छोड़ने के लिए यह शर्त रखी कि वह कहे कि *”गुरु राम सिंह तुम्हारे गुरु नहीं है”।* इस बात से आग-बबूला बिशन सिंह, सिंह की तरह गरजते हुए झट से मिस्टर कॉवेन की दाढ़ी पकड़ लटक गया और जोर से खींचने लगा। दर्द से कराहते मिस्टर कॉवेन बिशन सिंह को काबू नहीं कर पाया, तभी बगल में खड़ा सैनिक दौड़कर आया और उसने पहले बिशन सिंह के बारी बारी दोनों हाथ काटे, फिर सिर धड़ से अलग कर दिया। बिशन सिंह जी के इस महान बलिदान उपरांत अब बारी थी 09 वर्षीय हरनाम सिंह की, जो कम आयु के कारण तोप के मुख के सामने नहीं आ पा रहे था, तो यह निर्भीक एवं निडर बालक झट से दौड़कर अपने चाचा के कंधे पर जा बैठा और मातृभूमि हेतु सर्वस्व न्योछावर कर अमर बलिदानी परंपरा का संवाहक बन बैठा।🙏🙏🌷🌷🌷
*मातृभूमि सेवा संस्था बिशन सिंह, हरनाम सिंह तथा अन्य कूका बलिदाननियों के महान बलिदान के समक्ष नतमस्तक है।*

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✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳

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