हल्दीघाटी युद्ध विजेता महाराणा प्रताप पर राजस्थान में होती रही राजनीति

RAJASTHAN: स्कूली पाठ्यक्रम में छेड़छाड़ का पुराना है सिलसिला, सत्ता के साथ बदलता रहा है इतिहास

महाराणा प्रताप से जुड़े इतिहास से छेड़छाड़ को लेकर मच रहे बवाल से पहले भी प्रदेश में इस तरह का सिलसिला चलता रहा है. सरकारें बदलने के साथ ही स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव और ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ का मसला बार-बार उठता रहा है.
महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) से जुड़े इतिहास से छेड़छाड़ को लेकर मच रहे बवाल से पहले भी प्रदेश में इस तरह का सिलसिला चलता रहा है. सरकारें बदलने के साथ ही स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव और ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ (Tampering with historical facts) का मसला बार-बार उठता रहा है. राजस्थान में सत्ता में आने के साथ ही बीजेपी और कांग्रेस अपने-अपने हिसाब से इसमें बदलाव करती रही है. इससे कई बार स्डूडेंट्स भी भ्रमित हो जाते हैं कि आखिर क्या सही है और क्या गलत ?

कांग्रेस सरकार ने सत्ता आने पर पाठ्यक्रम में कई  बदलाव किये थे. कांग्रेस ने बदलाव बीजेपी पर स्कूली पाठ्यक्रम के भगवाकरण का आरोप लगा किये थे. इसके  विरोध में कांग्रेस पर इतिहास से छेड़छाड़ करने के आरोप लगे थे. इसे लेकर वर्तमान शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटसरा और पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी में लंबी जुबानी जंग चली थी.

 दसवीं की किताब में महाराणा प्रताप को बताया गया युद्ध कौशल में कमजोर, छिड़ा था विवाद

– गत वर्ष स्कूली पाठ्यक्रम में एक पाठ्यपुस्तक से चित्तौड़ के विश्व प्रसिद्ध जौहर की फोटो हटा उसकी जगह कीर्ति स्तंभ लगाया था. इस पर भी काफी बवाल मचा.

– भाजपा सरकार के स्‍कूली पाठ्यक्रम में महाराणा प्रताप को हल्दी घाटी युद्ध विजेता बताया गया था. सत्ता बदलते ही कांग्रेस ने युद्ध के परिणाम में संशोधन कर दिया है.

– संशोधित पाठ्यक्रम में महाराणा प्रताप की जगह अकबर को विजेता घोषित नहीं किया गया है. 12वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक में हल्दीघाटी के युद्ध के बारे में विस्तार से लिखा  लेकिन, इसमें न तो महाराणा प्रताप को विजेता बताया गया न तो अकबर को.

महाराणा प्रताप से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की गई है.

– 10वीं की सामाजिक विज्ञान की किताब में महाराणा प्रताप के इतिहास को कम कर दिया गया है. इनमें संशोधन समिति ने परिवर्तन कर हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम की समीक्षा को हटा दिया.

– इसके साथ ही चेतक घोड़े से जुड़े इतिहास को भी कम कर दिया गया.

– 10वीं की जो ई-बुक (डिजीटल बुक) बच्चों को पढ़ाई जा रही उसमें भी महाराणा प्रताप को कमजोर बताने की भी कोशिश की गई हैं. इस किताब में महाराणा प्रताप को युद्ध के दौरान प्रतिकुल परिस्थितियों में धैर्य, संयम और योजना के प्रति कमजोर बताया गया है.

 

तो ऐसे हल्दीघाटी युद्ध जीते थे महाराणा प्रताप, मिल गए हैं सुबूत

साल 1576 को हुए हल्दी घाटी के भीषण युद्ध में जीत महाराणा प्रताप की हुई थी. ये दावा किया है महाराणा प्रताप पर रिसर्च करने वाले इतिहासकार डॉक्टर चन्द्र शेखर शर्मा ने. डॉक्टर शर्मा ने इसके लिए प्रमाण भी प्रस्तुत किये हैं।

हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को हुआ था. अभी तक ये कहा जाता रहा है कि इस युद्ध में अकबर की जीत हुई थी पर अब राजस्थान एजुकेशन बोर्ड 441 साल पहले हुए इस युद्ध का परिणाम बदलने की तैयारी कर रहा है. इसका आधार डॉक्टर शर्मा की रिसर्च है.

राजस्थान विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय में उदयपुर के मीरा कन्या महाविद्यालय के प्रोफेसर और इतिहासकार डॉक्टर चन्द्र शेखर शर्मा ने अपनी रिसर्च में कहा है कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने जीत हासिल की थी. डॉक्टर शर्मा ने विजय को दर्शाने वाले प्रमाण रजत विद्यालय विश्वविद्यालय में जमा कराए हैं.

डॉक्टर शर्मा ने अपने शोध में प्रताप की विजय को दर्शाते हुए ताम्र पत्रों से जुड़े प्रमाण पेश किए हैं. उनके अनुसार युद्ध के बाद अगले एक साल तक प्रताप ने हल्दीघाटी के आस-पास के गांवों के भूमि के पट्टों को ताम्र पत्र जारी किए.

इन ताम्रपत्रों पर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर थे. उस समय भूमि पट्टे जारी करने का अधिकार केवल राजा के पास ही होता था.

डॉक्टर शर्मा ने कहा है कि युद्ध के बाद मुगल सेनापति मान सिंह और आसिफ खां से युद्ध के नतीजों के बारे में जानकर अकबर नाराज हुआ था. दोनों को छह महीने तक दरबार में ना आने की सजा दी गई थी.

डॉक्टर शर्मा कहते हैं कि अगर मुगल सेना जीतती तो अकबर अपनी सबसे बड़ी विरोधी प्रताप को हराने वाले को पुरस्कृत जरूर करते. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, जो इस बात का सुबूत है कि प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध को जीता था. मेवाड़ के कई अन्‍य इतिहासकार भी इस शोध को सही कह रहे हैं

सोशल: ‘441 साल बाद महाराणा प्रताप से हारे अकबर’

26 जुलाई 2017 की स्थिति

राजस्थान में इतिहास 360 डिग्री पर घूमता सा नज़र आ रहा है. हल्दीघाटी की लड़ाई को लेकर राजस्थान बोर्ड के स्कूल की किताबों में नया दावा होने की बात सामने आ रही है.

खबरों में कहा जा रहा है कि किताब में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को जीता हुआ दिखाया गया है. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक इन किताबों का पाठ्यक्रम इसी साल बदला गया है.

हालाँकि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन बीएल चौधरी ने बताया कि किताब में कहीं भी सीधे-सीधे यह नहीं लिखा गया है कि युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर को हराया.

उन्होंने कहा, ” किताब की पृष्ठ संख्या 31 पर लिखा है….कुछ इतिहासकारों ने इसे परिणामविहीन अथवा अनिर्णित युद्ध की संज्ञा दी है. परिणाम की समीक्षा हेतु निम्नलिखित आधार विवेचनीय हैं. अकबर का उद्देश्य महाराणा प्रताप को जिंदा पकड़ना था और दूसरे वो मेवाड़ को मुगल साम्राज्य में मिलाना चाहता था और दोनों ही उद्देश्यों में वो विफल रहा. इससे साबित होता है कि अकबर की विजय नहीं होती है. अकबर की मानसिंह और आसिफ खां के प्रति नाराजगी थी जिसमें उनकी ड्योढ़ी बंद कर दी गई थी. मुगलों का मेवाड़ की सेना का पीछा न करना. ये ऐसे परिदृष्य हैं जो हल्दीघाटी का परिणाम प्रताप के पक्ष में लाकर खड़ा कर देते हैं.”

राजस्थान बोर्ड की 10वीं क्लास की किताब का वो पेज, जो महाराणा की जीत की ओर इशारा करता है

अब तक इतिहास में ये पढ़ाया जाता रहा है कि-

उदयपुर के पास हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें अकबर ने जीत हासिल की थी.

प्रताप

सोशल साइंस की इस नई किताब को 2017-18 में छात्रों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया. इस किताब के इस चैप्टर को लिखने वाले चंद्रशेखर शर्मा का दावा है कि ऐसे कई तथ्य हैं जो इस ओर इशारा करते हैं कि लड़ाई के नतीजे महाराणा प्रताप, मेवाड़ के राजपूत राजा के पक्ष में रहे.

डॉक्टर शर्मा इन दावों के बारे में कहते हैं, ”ये ऐसे परिदृश्य हैं जो हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम प्रताप के पक्ष में लाकर खड़ा कर देते हैं.

अकबर का लक्ष्य था कि महाराणा प्रताप को पकड़ा जाए और मुगल दरबार में पेश किया जाए या मार दिया जाए.
इसका मकसद राजपूत राजा के साम्राज्य को मुगलों के अंतर्गत लाना था. लेकिन अकबर अपने किसी मंसूबे में कामयाब नहीं हो पाया.
ऐसे ऐतिहासिक सबूत हैं कि मुगल सेनाएं मेवाड़ को फ़तह करने में नाकामयाब रहीं और लड़ाई महाराणा प्रताप के पक्ष में रही.”

मुग़ल शासक बाबर, अकबर, जहांगीर और हुमायूं का चित्र

कांग्रेसी और कम्युनिस्टों की राजनीति को इस शोध से धक्का लगता है जो इसे लेकर सोशल मीडिया पर बेचैनी दिखती है। उन्ही में से एक ऋषभ श्रीवास्तव इस पर तंज कसते हुए फ़ेसबुक पर लिखते हैं, ”राजस्थान सरकार के मुताबिक महाराणा प्रताप ने अकबर को हराया था. तो ये क्यों नहीं लिखा जा सकता कि 1962 का युद्ध भारत ने जीता? देखा तो किसी ने नहीं था.”

कुंदन कुमार ने फ़ेसबुक पर लिखा, ”महाराणा की सेना में आरएसएस और बीजेपी भी थी इसलिए ही तो अकबर की हार हुई.”

सईद सलमान ने लिखा, ”हल्दीघाटी के युद्ध में बच्चे कुछ यूं जवाब देंगे- 1576 से लेकर 2017 की शुरुआत तक अकबर विजयी रहा. लेकिन 2017 के मध्य में अकबर को धूल चटाते हुए प्रताप ने अपनी हार का बदला लिया और शानदार जीत हासिल की.”

आलोक मोहन लिखते हैं, ”लगभग 450 साल महाराणा ने अकबर को हराने में लगा दिए. कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.”

 

Pratap Death anniversary Know His  Weight  Bhala kawach weight fact check

पढ़िए महाराणा प्रताप के उस भाले की कहानी, जिसके बारे में काफी गलत जानकारी फैलाई गई है
Maharana Pratap Death Anniversary: महाराणा प्रताप के भाले की कहानियां काफी पॉप्युलर है और बताया जाता है कि प्रताप काफी भारी भाला लेकर युद्ध के मैदान में उतरते थे.

कहा जाता है कि महाराणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलो था.
आज मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले अदम्य साहस और स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप (Maharana Pratap Death Anniversary) जयंती पर  सोशल मीडिया में लोग महाराणा को याद कर रहे हैं. हर कोई उनकी वीरता, पराक्रम, त्याग और बलिदान की बात कर रहा है. वैसे जब भी महाराणा प्रताप की बात होती है तो उनके भाले (Maharana Pratap Sword), कवच आदि की बात जरूर होती है, क्योंकि कहा जाता है कि महाराणा प्रताप के इन हथियारों (Maharana Pratap Weapons) में काफी वजन था. साथ ही बताया जाता है कि वो इतना वजन लेकर युद्ध में लड़ाई करते थे, जो वाकई हैरान कर देने वाला है.

लेकिन, महाराणा के हथियारों को लेकर कुछ गलत तथ्य भी इंटरनेट पर शेयर किए जाते रहे हैं, जिनमें भाले का वजन, कवच का वजन आदि से जुड़ी कहानियां शामिल हैं. ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि आखिर महाराणा प्रताप के हथियारों की क्या सच्चाई है, जिससे आपको भी महाराणा के हथियार से जुड़े वजन के बारे में हकीकत पता चल जाएगी.

हथियारों के लिए क्या कहा जाता है?

सोशल मीडिया और इंटरनेट पर मौजूद कई रिपोर्ट्स में भाले के वजन को लेकर चर्चा की जाती है. कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि महाराणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलो था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था. वहीं, उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था. जबकि, कई रिपोर्ट्स में कहा जाता है कि उनका वजन 110 किलो था और लम्बाई 7 फीट 5 इंच थी. साथ ही कई जगह तो इस 208 किलो को 500 किलो तक भी बताया गया है और कहा गया है कि प्रताप अपने वजन से कई किलो ज्यादा वजन लेकर जंग के मैदान में उतरते थे.

सच्चाई क्या है?

वैसे बहुत से लोग ये ही जानते हैं कि महाराणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलो था. लेकिन, हकीकत कुछ और है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि उनके भाले का वजन 81 किलो नहीं था, बल्कि इससे काफी कम था. साथ ही यह तथ्य भी इंटरनेट पर गलत प्रसारित किए जाते हैं कि महाराणा प्रताप 200 किलो से ज्यादा वजन लेकर घोड़े पर सवार होते थे और इतने वजन के साथ युद्ध लड़ते थे.

इसकी बात की सही जानकारी मिलती है उदयपुर में बने सिटी पैलेस म्यूजियम में. दरअसल, प्रताप को लेकर फैलाए जा रहे गलत तथ्यों को लेकर उदयपुर म्यूजियम में एक बोर्ड भी लगा है, जिसमें बताया गया है कि महाराणा प्रताप के निजी अस्त्र शस्त्र का कुल वजन 35 किलोग्राम है. बता दें कि महाराणा प्रताप सिर्फ 35 किलो वजन के साथ युद्ध भूमि में जाते थे और इस 35 किलो में उनका भाला भी शामिल है. ऐसे में माना जाता है कि प्रताप के भाले का वजन करीब 17 किलो था.

इस संदर्भ में उदयपुर एटीओ (असिस्टेंट ट्यूरिज्म ऑफिसर) जितेंद्र माली भी पुष्टि की कि महाराणा प्रताप के कुल अस्त्र शस्त्र का वजन 35 किलो था, जिसमें भाला भी शामिल था.

हल्दी घाटी युद्ध को लेकर कई कहानियां

कहा जाता है कि हल्दी घाटी के युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप ने अपने चेतक घोड़े पर सवाल होकर हाथ में भाला लेकर हाथी के सिर तक उछलकर प्रतिद्वंदी पर वार किया था. बता दें कि हल्दीघाटी की लड़ाई 18 जून 1576 को मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप की सेना और आमेर (जयपुर) के महाराजा आमेर के मानसिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगल सम्राट अकबर की सेनाओं के बीच लड़ी गई थी. हल्दीघाटी अरावली पर्वतमाला का एक क्षेत्र है, जो राजस्थान में राजसमंद और पाली जिलों को जोड़ता है. इस युद्ध में मेवाड़ की सेना, अकबर की सेना के सामने काफी छोटी थी. इसके बाद युद्ध में मेवाड़ की सेना को काफी नुकसान भी हुआ।

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