महाराष्ट्र में संकट:एनसीपी के मंत्री पक्षपात कर रहे थे कांग्रेस और शिवसेना विधायकों से
आंखों में आंसू, MLC चुनाव की जिम्मेदारी, फॉर्महाउस में लंच… शिंदे की चाल में फंस गये उद्धव
महाराष्ट्र समेत पूरे देश के राजनीतिक क्षेत्र में ये किसी के गले नहीं उतर रहा है कि आखिर उद्धव ठाकरे के अपने विश्वासपात्र और करीबी ने उनके खिलाफ विद्रोह कैसे कर दिया। किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी और MLC चुनाव से बेफिक्र लग रहे उद्धव ठाकरे के नीचे से रातोंरात जमीन खींच ली गई।
हाइलाइट्स
1-उद्धव को पता चल चुका था कि एकनाथ शिंदे कुछ गड़बड़ करने वाले हैं
2-घटना से चार दिन पहले उद्धव ने शिंदे को घर बुलाया
3-शिंदे रोने लगे तो उद्धव ने भावुकता में एमएलसी चुनाव की जिम्मेदारी दे दी
नई दिल्ली23 जून: एकनाथ शिंदे के घर पर कुछ गड़बड़ हो रही है, इसे लेकर कांग्रेस और NCP ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पहले ही अलर्ट कर दिया था। चार दिन पहले ही इस पर चर्चा को उद्धव ने शिंदे को अपने घर बुलाया था। उद्धव-शिंदे की बातचीत हुई तो पोल खुलने पर एकनाथ शिंदे रोने लगे। वह आंखों में आंसू लिए कह रहे थे कि इतनी बड़ी बात आपने कह दी कि मैं विद्रोह करूंगा या मैं छोड़कर जाऊंगा… ये हो ही नहीं सकता, मैं तो आपके परिवार के लिए जान दे रहा हूं। इससे भावुक होकर उद्धव (Uddhav Thackeray) ने विधान परिषद चुनाव का पूरा जिम्मा एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को दे दिया। महाराष्ट्र के सियासत की गहरी समझ रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक अशोक वानखड़े ने बताया कि उद्धव ने शिंदे के हाथ में थाली सजाकर दे दी कि सारे विधायक इकट्ठा कर वोटिंग करवाओ। यहीं पासा पलट गया। उन्होंने बताया कि सारे विधायकों की वोटिंग हुई तो शिंदे अपनी तबीयत ठीक न होने की कह सूरत को निकल गए। बाकी विधायकों को बोला गया कि शहर के बाहर फार्महाउस में आपका लंच है। गाड़ी गुजरात के रास्ते आगे बढ़ी तब लोगों को समझ में आया कि वे कहां जा रहे हैं और महाराष्ट्र में अगली सुबह राजनीतिक भूचाल आने वाला है।
25 विधायक तो शिंदे से राजी होंगे ही
वानखेड़े कहते हैं कि 38 में से 1-2 विधायक ऐसे हो सकते हैं जो कहें कि उन्हें जबरन ले जाया गया लेकिन बाकी लोगों से उनकी मुलाकात जरूर हुई होगी। ये इतना आसान भी नहीं है कि इतने विधायकों को आप अपने कहे स्थान पर ले जाओ।
अंदरखाने टकराव की वजह समझिए
उन्होंने कहा कि अंदरखाने इस तनातनी या टकराव की शुरुआत कहां से होती है, यह समझना महत्वपूर्ण है। दरअसल, गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय एनसीपी के पास है। इन दोनों मंत्रालयों से कांग्रेस और शिवसेना के नेता काफी प्रताड़ित थे। उन्हें न फंड रिलीज हो रहा था न कोई सपोर्ट मिल रहा था। शिवसेना विधायक काफी नाराज थे। उद्धव के पास बात पहुंचती तो वह कहते कि मैं बात करूंगा, मिलीजुली सरकार है लेकिन जब वह शरद पवार से बात करते तो जवाब मिलता कि मैं देख लूंगा। अजीत पवार भी मीठी गोली दे देते। अंदरखाने यह संदेश जाता कि पूरी सरकार जब शरद पवार ही चला रहे हैं तो वह सरकार में क्यों हैं
शायद शिवसेना ने ऐसा सोचा नहीं होगा कि…
वानखड़े बताते हैं कि शिवसेना के लिए फूट की पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी छगन भुजबल 17 विधायकों को लेकर चले गए थे, 11 को लेकर नारायण राणे चले गए। राज ठाकरे भी अलग हो गए लेकिन शायद शिवसेना ने ऐसा नहीं सोचा होगा कि कभी ऐसी बगावत होगी कि शिवसेना ही अल्पमत में आ जाएगी। शिवसेना के पास 55 विधायक हैं और 38 चले जाते हैं और 17 बचते हैं तो दो तिहाई आंकड़े वाली बातें गौण हो जाती है। नैतिक रूप से देखा जाए तो आपके (उद्धव) पास अधिकार ही नहीं बचता है कि आप सत्ता में आएं।
… पर छोटे दल क्यों भागे?
वानखड़े समझाते हैं कि वास्तव में, दूसरे घटक दल देख रहे हैं कि पलड़ा उधर का भारी है तो सब उधर चले गए। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि प्रहार पार्टी के बच्चू कडू को उद्धव ठाकरे ने अपने कोटे से मंत्री बनाया था लेकिन वह भी एकनाथ शिंदे के साथ चले गए। जब उन्हें मंत्री बनाने की बात आई तो शरद पवार ने हाथ खड़े कर दिए थे कि उन्हें कौन मंत्री बनाएगा। तब उद्धव ने शिवसेना के कोटे से एक राज्य मंत्री पद बच्चू को दिया था। बचू कडू जैसे लोगों को लगता है कि शिंदे के साथ जाने से अगर बीजेपी सरकार में आती है और उन्हें कैबिनेट मंत्री का पद मिल सकता है तो वह क्यों नहीं जाएं?
वानखड़े ने कहा कि आंकड़ा पता नहीं चल रहा था, सब दावा कर रहे थे लेकिन कन्फर्म तब हुआ जब उद्धव ठाकरे की मीटिंग में कुल 17 लोग पहुंचे। कुछ लोग रास्ते में बताए गए लेकिन आंकड़ा 20 से ऊपर नहीं गया। इससे साफ हो गया कि एकनाथ शिंदे के पास 30 से ज्यादा सदस्यों का सपोर्ट है। कहा गया कि जबरन पकड़कर रखा गया है लेकिन गुवाहाटी से जो ग्रुप फोटो सामने आया है उसमें सब हंसी खुशी दिखते हैं। वे मैसेज दे रहे हैं कि वे शिवसेना के और बाला साहेब ठाकरे के ही सैनिक हैं। एक मैसेज यह भी है कि वे अब बीजेपी के साथ जा सकते हैं।
ED का महाराष्ट्र में प्रकोप है…
राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि बागी तेवर दिखाते शिवसैनिकों का साफ कहना है कि शिवसेना को भाजपा के साथ सत्ता में रहना चाहिए क्योंकि शिवसेना के कांग्रेस और एनसीपी के साथ जाने से हिंदुत्व का बाला साहेब का सपना टूट रहा है। आश्चर्यजनक बात यह है कि एकनाथ शिंदे जो ढाई साल तक मंत्री पद सुख भोगते रहे और अब जाकर उनको पता चला कि एनसीपी और कांग्रेस के साथ जाने से बाल ठाकरे का सपना ध्वस्त हुआ है। अशोक ने तंज कसा कि सबने इतना कमाकर रखा है… और ईडी का महाराष्ट्र में जो प्रकोप है, उससे संपत्ति जब्त करवाकर जेल जाने की बजाय जो हो रहा है वह ज्यादा अच्छा है।
वानखेड़े आगे कहते हैं कि हमने कई राज्यों में देख लिया है। ये हमने भाजपा के केस में देखा है कि जो लोग कल तक खिलाफ थे, जैसे ही आपके साथ चले जाते हैं ईडी की फाइल भी बंद हो जाती है और वे साफ-सुथरे हो जाते हैं। सब सत्ता का खेल है।
भारत में रिजॉर्ट पॉलिटिक्स दशकों से चली आ रही थी। मगर भाजपा ने इस बार भरोसा मनोहर लाल खट्टर पर नहीं बल्कि असम के मुख्यमंत्री हेमंता बिस्वा शर्मा पर किया । असल में मनोहर लाल खट्टर विगत महाराष्ट्र के एनसीपी विधायकों और राजस्थान के कांग्रेस विधायकों को संभालने मेंं भाजपा नेेेतृत्व के भरोसे पर खरेेेेे नहीं उतरे थे।भाजपा ने तीसरी बार उन पर दांव लगाने की बजाय पूर्वी उत्तर भारत के चाणक्य हेमंत बिस्वा सरमा पर भरोसा जताया है।
रिजार्ट पॉलिटिक्स में बीजेपी ने हेमंता बिस्वा शर्मा पर जताया भरोसा
भारतीय राजनीति में रिजॉर्ट पॉलिटिक्स का उदय दशकों पहले हो चुका था। इसका सबसे बड़ा केंद्र था दक्षिण भारत का प्रवेश द्वार कर्नाटक। तब कांग्रेस के संकट मोचक कहलाने वाले डीके शिवकुमार ने अपने राज्यसभा चुनाव के दौरान गुजरात कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने से बचा लिया था। उन्होंने गुजरात के 44 विधायकों को बिदादी के अपने रिजॉर्ट में रखा था। ये बात 2017 की है मगर अब इसकी चर्चा क्यों हो रही है ? महाराष्ट्र में तीसरी बार उद्धव सरकार खतरे में है। शिवसेना के पुराने नेता एकनाथ शिंदे 40 से ज्यादा विधायक लेकर गुवाहटी में बैठे हुए हैं। पहले ये विधायक बीजेपी का सबसे मजबूत किला माने जाने वाले गुजरात के सूरत में थे। उसके बाद प्राइवेट जेट से सभी विधायकों को असम के गुवाहटी शिफ्ट कर दिया गया। आपके मन में सवाल उठ सकता है कि पूरे भारत में गुवाहटी क्यों। अब हम बताते हैं रिजॉर्ट पॉलिटिक्स यहां कैसे काम कर रहा है ? कैसे बीजेपी के हिमंता बिस्वा शर्मा आज बीजेपी के लिए डीके शिवकुमार साबित हो रहे हैं ?
पूर्वोत्तर की राजनीति के ‘चाणक्य’
हेमंत बिस्वा सरमा को पूर्वोत्तर की राजनीति का चाणक्य भी कहा जाता है। हेमंत ने 2011 में असम में रंजन गोगोई सरकार बनवाने में काफी अहम भूमिका निभाई थी लेकिन सरकार में बहुत ज्यादा तवज्जों न मिलने के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी। 2015 में उन्होंने बीजेपी का दामन थामा। बीजेपी को असम में जीत दिलवाई और उस वक्त पार्टी ने सर्वानंद सोनोवाल को सीएम बनाया। लेकिन हेमंत बिस्वा सरमा को नजरअंदाज नहीं किया गया। उसका नतीजा था कि दूसरी बार हेमंत बिस्वा सरवा को प्रदेश का सीएम बनाया गया।
भाजपा ने बनाया नेडा का संयोजक
2015 चुनाव में असम में भाजपा को जीत दिलाने में उनकी अहम भूमिका को देखते हुए उन्हें नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) का संयोजक उसी दिन बना दिया गया, जिस दिन सोनोवाल सरकार ने शपथ ली थी। उसके बाद से हिमंत भाजपा के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े पर सवार होकर पूर्वोत्तर विजय की कामना पर निकल पड़े और एक के बाद एक राज्य पर भाजपा का राज क़ायम करते चले गए। हेमंत ने अपनी छवि कट्टर हिंदुत्ववादी नेता के तौर पर स्थापित की। वो भाजपा के एजेंडे पर काम करते रहे। इसके अलावा हेमंत बिस्वा सरमा को जोड़-तोड़ की राजनीति का माहिर खिलाड़ी कहा जाता है।
जोड़-तोड़ में माहिर हैं हेमंत बिस्वा सरमा
उदाहरण के तौर पर मणिपुर को ले लीजिए। 2017 में 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में भाजपा को मात्र 21 सीटें मिलीं थीं। सरकार बनाने की रणनीति हिमंत ने पहले से बना ली थी और छोटी पार्टियों के संपर्क में थे। वे नगा पीपुल्स पार्टी (एनपीएफ़) और नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के संपर्क में चुनाव के दौरान से थे। 2022 में तो पार्टी ने वहां पर अकेले दम सरकार बना ली। इस बार भाजपा को वहां 32 सीटें मिलीं। इसके लिए भी हेमंत ने खूब पसीना बहाया। हेमंत बिस्वा सरमा ने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वो काफी प्रखर वक्ता हैं, किताबें पढ़ने और घूमने का शौक रखते हैं। आम आदमी से उनका खास लगाव है। इसी वजह से उनको पूर्वोत्तर का चाणक्य कहा जाने लगाा।
बीजेपी ने आज उनको जो जिम्मेदारी सौंपी है वो ये बताती है कि पार्टी में अब उनका कद कितना बढ़ गया है। हेमंत बिस्वा सरमा को आज सुबह से ही गुवाहटी के उसी होटल में देखा गया जहां पर महाराष्ट्र के 40 से ज्यादा बागी विधायक मौजूद हैं। ये सभी विधायक शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में महाराष्ट्र सरकार से बगावत कर गए हैं। बीजेपी ने सबसे महफूज किला नॉर्थ ईस्ट को ही चुना।