मत: इंदिरा की महाभूल साबित हुई बांग्लादेश बनवाना

1971 में बांग्लादेश का निर्माण कराना क्या इंदिरा गांधी का ब्लंडर था?
1971 में भारतीय सेना ने अपूर्व युद्ध कौशल का परिचय देते हुए पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे. तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के राजनय की आज तक कसीदे पढ़े जाते हैं. पर बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद जिस तरह वहां पर हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं. अब नए सिरे से बांग्लादेश के निर्माण का मूल्यांकन हो रहा है
नई दिल्ली,09 अगस्त 2024,1971 में भारत ने पाकिस्तान को धूल चटाते हुए उसे तोड़कर दो हिस्सों में बांट दिया. भारतीय सैन्य शक्ति और कूटनीति का यह चरमोत्कर्ष था. कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इस काम के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें दुर्गा की उपाधि दी थी. 1971 की लड़ाई में भारतीय सेना के युद्ध कौशल और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली भारतीय कूटनीति का कमाल था, जो दुनिया ने देखा. आज भी जब 1971 युद्ध में 93 हजार पाकिस्‍तानी फौजियों के सरेंडर वाली फोटो दिखते हैं तो हर भारतीय को अपनी ताकत का अहसास हो जाता है. पर बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्ता पलट के बाद उस ऐतिहासिक घटना का एक बार फिर मूल्यांकन हो रहा है. 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्त कराकर एक अलग देश बनाने को पत्रकार और लेखिका मधु पूर्णिमा किश्वर ने इंदिरा गांधी का ब्लंडर बताया है. उन्होंने सोशल मीडिया वेबसाइट एक्स पर एक लंबा थ्रेड लिखकर इस विषय पर चर्चा छेड़ दी है.

1-क्या भारतीय सेना का युद्ध कौशल और इंदिरा गांधी की कूटनीति को कभी भूला जा सकता है?

प्रख्यात बांग्लादेशी लेखक हारून हबीब ने एक बार लिखा था कि ‘1971 के बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में पूर्व भारतीय प्रधान मंत्री की कूटनीतिक और व्यक्तिगत भूमिका देश के इतिहास से अविभाज्य है.’ करीब 14 साल पहले, शेख हसीना ने श्रीमती गांधी को मरणोपरांत बांग्लादेश के सर्वोच्च पुरस्कार स्वाधीनता सम्मान से सम्मानित भी किया था. वह इस सम्मान से सम्मानित होने वाली पहली विदेशी थीं. इस युद्ध में इंदिरा गांधी ने तीन मोर्चों पर काम किया – राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य.

एक तरफ तो इंदिरा गांधी ने निर्वासित सैन्य और गुरिल्ला आंदोलन, मुक्ति वाहिनी का समर्थन किया, जिसे भारतीय सेना द्वारा प्रशिक्षण, फंडिंग की गई. फील्ड मार्शल मानेकशॉ की सलाह पर पाकिस्तानी सेना पर आक्रमण करने में थोड़ी देर भी की. जिसके लिए आज भी कई सैन्य विशेषज्ञ और कूटनीतिज्ञ इंदिरा की आलोचना करते हैं. लेकिन इंदिरा गांधी ने मानेक शाॉ की बात से सहमत हो कर सही ही किया था. जो बाद में भारतीय सेना की जीत के रूप में सामने आया. हमला करने के लिए उन्हें जो टाइम मिल गया उसका सदुपयोग करते हुए गांधी ने दुनिया के नेताओं को पत्र लिखकर शरणार्थियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला. बांग्लादेश में हुए नरसंहार से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की अंतरात्मा जागृत की. हालांकि पाकिस्तान का एक प्रमुख सहयोगी अमेरिका चुप रहा. इंदिरा गांधी ने खुद जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, बेल्जियम और अमेरिका का 21 दिवसीय दौरा किया. इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक लेख में कूमी कपूर कहती हैं कि अमेरिका में पूर्वी पाकिस्तान की दुर्दशा उजागर करने को उन्हें राष्ट्रपति निक्सन और उनके विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर के क्रोध का सामना करना पड़ा. बाद में मुक्ति बाहिनी के साथ भारतीय सेना ने विद्युत गति से काम किया. 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाकर युद्ध जीतने में सिर्फ दो सप्ताह लगे. इंदिरा गांधी तब भी नहीं डरीं, जब अमेरिका ने अपना शक्तिशाली सातवां बेड़ा हिंद महासागर में भेज दिया. युद्ध जीतने के बाद संसद में इंदिरा गांधी के सम्मान में सांसदों ने खड़े होकर तालियां बजाईं.

2- पर मधु किश्वर जो कह रही हैं उसमें भी दम है

मधु किश्वर लिखती हैं कि मैं जो कह रही हूं वह बांग्लादेश के जन्म के संबंध में अभी तक आप जो समझते आए हैं, उससे अलग है. इसलिए आपको थोड़ा ओपेन माइंड से इस विषय को समझना होगा. वह कहती हैं कि नेहरू के बाद से, हमारे प्रधानमंत्रियों (लाल बहादुर शास्त्री को छोड़कर) ने भू-राजनीतिक सत्ता का खेल बहुत ही अनाड़ी ढंग से खेला है. उनमें इस्लाम की बुनियादी समझ का अभाव था और वे भारत को कमजोर करने वाले कारकों से बेखबर थे. इंदिरा गांधी के इस कदम से भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदुओं को अपूरणीय क्षति पहुंची.

किश्वर लिखती हैं कि एक उपनिवेश के रूप में पूर्वी पाकिस्तान पर अपना कब्ज़ा बनाए रखने की कोशिश करके पाकिस्तान को आर्थिक रूप से नुकसान हो रहा था. पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को पश्चिमी पाकिस्तान के लोग निचली प्रजाति के रूप में अपने से तुच्छ समझते थे. पूर्वी पाकिस्तान को एक अलग राष्ट्र के रूप में आज़ाद करके, भारत ने पाकिस्तान का आर्थिक बोझ कम कर दिया. पूर्वी पाकिस्तान के बंगालियों के लगातार विद्रोह के चलते पाकिस्तानी सशस्त्र बल भी काफी तनाव में थे. बांग्लादेश के निर्माण के बाद, पाकिस्तान को लगभग 2000 मील दूर के क्षेत्र पर कब्ज़ा बनाए रखने के आर्थिक और सैन्य बोझ से राहत मिल गई.         

3-दशकों तक चलता पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान का युद्ध

किश्वर लिखती हैं कि अगर इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमानों के पक्ष में हस्तक्षेप नहीं किया होता, तो बांग्लादेशियों ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ दशकों तक लड़ाई लड़ी होती. चूंकि पूर्वी पाकिस्तान में अच्छे हथियारों नहीं थे. इसलिए यह जंग हमेशा चलती रहती. पश्चिमी पाकिस्तान के मुसलमानों का पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमानों के साथ निरंतर युद्ध में रहना भारत के लिए फायदेमंद होता. इससे पाकिस्तानी सेना कमजोर हो जाती और पाकिस्तान दिवालिया हो जाता. पाकिस्तानियों को भारत पर हमला करने के लिए समय या ऊर्जा नहीं मिलती. किश्वर कहतीं हैं कि हमें पूर्वी पाकिस्तानी मुसलमानों के रक्षक के रूप में हस्तक्षेप करने के बजाय चुपचाप उन्हें एक-दूसरे को मारते हुए देखना चाहिए था.

चूंकि बांग्लादेश एक मुस्लिम बहुसंख्यक राज्य था, बंगाली मुसलमान 1947 के विभाजन के बाद वहां रहने वाले हिंदुओं के खिलाफ गहरी नफरत रखते रहे. यही कारण रहा कि 1947 में हिंदू आबादी 30% से घटकर आज लगभग 8% हो गई है, यह इस बात का प्रमाण है कि पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमान जिहाद और काफिर फोबिया की विचारधारा से उतने ही नशे में हैं जितने कि पाकिस्तानी.

जब तक पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमान उर्दू वर्चस्व के खिलाफ लड़ रहे थे, तब तक उन्होंने बंगाली के रूप में अपनी भाषाई पहचान का दावा किया. लेकिन जैसे ही उन्होंने अपनी भाषाई पहचान के आधार पर एक अलग देश हासिल किया, पाकिस्तान ने अरब देशों से पेट्रो-डॉलर फंडिंग वाले कट्टरपंथी तब्लीगियों को मुक्त करके अलग हुए राष्ट्र की राजनीति को नियंत्रित करने का एक सस्ता तरीका खोजने में कामयाबी हासिल कर ली. इसके बाद बच गए हिंदू काफिरों के खिलाफ नरसंहार घृणा की सुहरावर्दी विरासत को पुनर्जीवित किया गया।

4-1971 में बांग्लादेश की मुक्ति की रुमानियत से निकलें बाहर

भारत को इस अभिमान से बाहर निकलना चाहिए कि बांग्लादेश का निर्माण हमने कराया है. बांग्लादेश से संबंध न सुधरने का यह बहुत बड़ा कारण है. सी राजमोहन लिखते हैं कि चाहे यह कितना भी दुखद क्यों न हो पर दिल्ली को 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति का रूमानी चित्रण करना बंद करना चाहिए. बांग्लादेश अपने इतिहास की व्याख्या को लेकर गहराई से बंटा हुआ है, यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे दिल्ली नज़रअंदाज नहीं कर सकता. बांग्लादेश में कई ताकतें बांग्लादेश की मुक्ति पर शेख हसीना की कहानी से सहमत नहीं हैं.बांग्लादेश में विपक्ष इसी का फायदा उठा रहा है. बांग्लादेश अवामी लीग को छोड़कर सभी दलों के लीडर भारत विरोधी हैं . खालिदा जिया के समर्थक तो आज भी मानते हैं कि बांग्लादेश को पाकिस्तान के साथ ही रहना चाहिए था.

अपनी कहानी जनता के गले उतारने के शेख हसीना के अथक प्रयास के खिलाफ प्रतिक्रिया पहले से ही दिखाई दे रही थी जो अब हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में दिख रही है.

TOPICS: मधु किश्वर इंदिरा गांधी
बांग्लादेश में तख्तापलट पाकिस्तान शेख हसीना नरेंद्र मोदी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *