जावेद अख्तर-शबाना से मिलने वाली ममता शरद पवार से क्यों नहीं मिल पाई
पवार से मुलाकात हुए बगैर ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा सफल कैसे समझा जाये?
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) पांच दिन के अपने दिल्ली दौरे में विपक्ष (Opposition Unity) के तमाम नेताओं से मिलीं, सिवा शरद पवार (Sharad Pawar) के – जो नेता विपक्षी एकजुटता का केंद्र बिंदु समझा जाता रहा हो वही सीन में नजर न आये तो क्या समझा जाये भला?
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के मिशन 2024 में एक लोचा सामने आ ही गया. ममता बनर्जी ने कोलकाता में रैली के मंच से ही शरद पवार (Sharad Pawar) से बोला था कि वो विपक्षी दलों (Opposition Unity) की मीटिंग बुलायें – और साथ ही अपने दिल्ली दौरे की भी बात बतायी थी, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि ममता बनर्जी शरद पवार से मिले बगैर ही चली गयीं?
हैरानी इसलिए भी हो रही है कि शरद पवार पहले से ही दिल्ली में थे और ममता बनर्जी मिशन-2024 के खास मकसद से ही कार्यक्रम भी बनाया था – फिर भी दोनों के बीच प्रत्यक्ष रूप से आमना सामना भी न हो सका.
शरद पवार खुद चल कर मीसा भारती के घर पहुंचते हैं और लालू यादव से मुलाकात करते हैं – उसके बाद ट्वीट कर तस्वीर भी शेयर करते हैं, लेकिन ममता बनर्जी के दौरे को लेकर एक शब्द भी नहीं कहते – आखिर क्यों?
जाते जाते ममता बनर्जी ने टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी के आवास पर ये जरूर बताया कि शरद पवार से उनकी बात हुई है और आगे से हर दूसरे महीने वो दिल्ली का दौरा करती रहेंगी. ममता बोलीं, ‘हम राजनीतिक मकसद से मिले थे… ये दौरा सफल रहा. लोकतंत्र कायम रहना चाहिये.’ ममता बनर्जी ने कहा, ‘हमारा स्लोगन है – लोकतंत्र बचाओ, देश बचाओ.’ ये भी कहा कि वो किसानों के मुद्दों के सपोर्ट में भी खड़ी हैं.
ममता बनर्जी भले ही अपने दिल्ली दौरे को सफल बतायें, लेकिन शरद पवार से मुलाकात न होना बता रहा है कि उनके मिशन की नींव कैसी पड़ी है. नेताओं से अलग अलग मिलने की बात और है, लेकिन विपक्षी दलों के नेताओं की कोई कॉमन मीटिंग न होना और 14 दलों की हुई एक मीटिंग से दूरी बना लेना नये सिरे से सवाल खड़ा कर रहा है.
नेताओं से मुलाकात, विपक्ष की मीटिंग से दूरी
नींव का पहला और आखिरी काम होता है इमारत को संभाले रखना. एक बार मजबूत नींव पड़ जाती है, फिर चाहे कितनी भी गगनचुंबी इमारत क्यों न बने, फर्क नहीं पड़ता. यही वजह है कि काफी सोच समझ कर ही नींव रखी जाती है – और अगर ये काम ठीक से हो गया तो भविष्य को लेकर किसी तरह की आशंका की गुंजाइश भी कम ही बचती है.
ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा विपक्षी एकजुटता और केंद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चेबंदी की नींव जैसा ही था. ममता बनर्जी ने अपनी ताबड़तोड़ मुलाकातों और बयानों से दिल्ली में एक माहौल तो बना ही दिया था जिससे ये चर्चा भी होने लगी कि 2024 में मोदी सरकार को हटाना नामुमकिन नहीं है.
दिल्ली में ममता बनर्जी के दस्तक देने के साथ ही विपक्षी खेमे में लगा जैसे जोश भर गया हो – और सबसे ज्यादा तो राहुल गांधी एक्टिव दिखे. ताबड़तोड़ दो दिन में ही दो-दो मीटिंग भी कर डाले विपक्षी नेताओं के साथ.
बताया गया कि राहुल गांधी की तरफ से बुलायी गयी मीटिंग में 14 राजनीतिक दलों के नेता शामिल थे. राहुल गांधी की मीटिंग में शामिल नेताओं में से कुछ के साथ ममता बनर्जी ने अलग से मुलाकात भी की थी, लेकिन राहुल गांधी की मीटिंग में न तो ममता बनर्जी पहुंचीं, न ही तृणमूल कांग्रेस का कोई नुमाइंदा ही.
विपक्षी दलों का मोर्चा बनाने के लिए ममता बनर्जी ने एक मीटिंग रखने का प्रस्ताव तो दिल्ली आने से पहले से ही रख दिया था. कोलकाता की शहीद रैली के मंच से ही ममता बनर्जी ने वर्चुअल तरीके से शामिल एनसीपी नेता शरद पवार और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम से कहा भी था कि वो दिल्ली पहुंच रही हैं और उसी दौरान विपक्षी दलों की एक मीटिंग बुलायी जाये.
जब ममता बनर्जी के मिशन की नींव ही हिचकोले खा रही हो, इमारत को लेकर क्या समझा जाये?
ममता बनर्जी सुबह, दोपहर और शाम लगातार विपक्ष के नेताओं से मुलाकात करती रहीं. ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तो मिलीं ही, नितिन गडकरी से भी मुलाकात कीं, लेकिन अमित शाह से नहीं मिलीं. आम चुनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी के शपथग्रहण समारोह से दूरी बना लेने वाली ममता बनर्जी उसके बाद जब पहली बार दिल्ली पहुंचीं तो प्रधानमंत्री मोदी के साथ साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मिली थीं.
ममता बनर्जी ने 10, जनपथ जाकर सोनिया गांधी से भी मुलाकात की – और वहां मौजूद राहुल गांधी से भी उनकी राजनीति चर्चा हुई. सोनिया और राहुल गांधी के अलावा ममता बनर्जी की कांग्रेस नेता कमलनाथ और आनंद शर्मा से भी मुलाकात हुई – और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो उनसे मिलने अभिषेक बनर्जी के आवास पर ही पहुंच गये थे.
ममता बनर्जी ने डीएमके नेता कनिमोझी के साथ साथ मशहूर गीतकार जावेद अख्तर और एक्टर शबाना आजमी से भी मिलीं – लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि शरद पवार के साथ सिर्फ फोन पर ही बात होकर क्यों रह गयी?
शरद पवार न मिलने की कोई खास वजह?
ये तो ममता बनर्जी के दावे और विपक्ष के वास्तव में एकजुट होने पर भी सवालिया निशान लगा रहा है. जिस काम के लिए इतने तामझाम के साथ ममता बनर्जी ने दिल्ली दौरे का कार्यक्रम बनाया. चार दिन पहले ही भतीजे अभिषेक बनर्जी को भेज दिया और वो दिल्ली में डेरा डाल लिये – लेकिन वैसी तो कोई मीटिंग हुई ही नहीं जैसी अपेक्षित थी.
बवाल तो उसी मीटिंग के बाद शुरू हो गया था जिसे शरद पवार ने होस्ट की थी – और बताया गया कि राष्ट्रमंच के बैनर तले यशवंत सिन्हा ने विपक्षी दलों की मीटिंग बुलायी है.
मीटिंग असर ये हुआ कि कांग्रेस नेतृत्व तक अंदर से हिल गया – और प्रतिनिधि बना कर कमलनाथ को शरद पवार के पास हालचाल लेने के नाम पर भेजा गया. शरद पवार को बयान भी देना पड़ा था कि विपक्षी मोर्चे से कांग्रेस को बाहर रखने जैसा कोई इरादा नहीं है. फिर प्रशांत किशोर को बुलाया गया और राहुल गांधी ने बाकायदा अच्छी खासी मीटिंग की. प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी भी मीटिंग में शुमार हुईं.
ये सब तब हो रहा था जब ममता बनर्जी दिल्ली से बहुत दूर थीं. क्या ममता बनर्जी के दिल्ली में होने के दौरान तृणमूल कांग्रेस उपाध्यक्ष यशवंत सिन्हा को भी मौजूद नहीं होना चाहिये था? तब जबकि ऐसा माहौल बना हुआ हो?
आखिर शरद पवार और ममता बनर्जी की मुलाकात न होने की क्या वजह हो सकती है?
ममता का नेता बनना बर्दाश्त न होना?
बीती बातों को याद करें तो मालूम होता है कि पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान प्रचार के लिए शरद पवार को भी कोलकाता जाना था. एनसीपी प्रवक्ता की तरफ से ये भी बताया गया था कि कोलकाता जाने से पहले शरद पवार दिल्ली में कुछ दिन रह कर विपक्षी दलों के नेताओं से भी विचार विमर्श कर सकते हैं. तभी शरद पवार के ममता बनर्जी को फोन पर मोदी-शाह से निबटने को लेकर टिप्स देने की भी खबर आयी थी.
लेकिन शरद पवार तो पश्चिम बंगाल चुनाव में प्रचार करते नजर ही नहीं आये. काफी दिनों बाद बताया गया कि एक सर्जरी के चलते वो कुछ दिनों तक राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहे, लेकिन फिर रूटीन के कामकाज में लग भी गये. स्वास्थ्य लाभ के बाद उद्धव ठाकरे से तो मिले ही, प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी मुलाकात तो खासी चर्चित भी रही.
21 जुलाई को ममता बनर्जी ने जब कोलकाता में शहीद दिवस रैली की तो वर्चुअल तरीके से शामिल होने वालों में शरद पवार भी रहे – और 26 जुलाई से ममता बनर्जी के दिल्ली दौरा शुरू होने के बाद भी शहर में ही जमे रहे. इसी दौरान लालू यादव से मुलाकात भी कर लिये, जबकि आरजेडी नेता को जेल से छूटे काफी दिन हो गये. बल्कि अब तो एक सुनवाई की तारीख नजदीक आते देख लालू यादव के जमानत के दिन भी गिने जाने लगे हैं.
कुछ दिनों से शरद पवार को यूपीए की कमान देने की शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत की तरफ से लगातार पैरवी भी की जाती रही है – और एक तरीके से ये संकेत देने की कोशिश भी रही है कि शरद पवार को विपक्ष का नेतृत्व करना चाहिये.
ये सब तभी से शुरू है जब ये भी नहीं मालूम था कि ममता बनर्जी का पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद क्या हाल होगा. महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ गठबंधन टूटने और शिवसेना के साथ मिल कर सरकार बनाने के बाद ही शरद पवार ने कहा था कि उसी मॉडल पर वो राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन खड़ा करने की कोशिश करेंगे?
शरद पवार चाहते तो ममता बनर्जी के दिल्ली पहुंचने से पहले भी रवाना हो सकते थे, लेकिन वो जमे रहे – दिल्ली में होकर भी ममता बनर्जी को छोड़ कर लालू यादव से शरद पवार का मिलना, ममता बनर्जी के साथ साथ विपक्षी दलों के नेताओं के लिए भी कोई अलग संदेश हो सकता है क्या?
ऐसा तो नहीं कि शरद पवार को ममता बनर्जी का उछलना बर्दाश्त न हुआ हो?
ममता बनर्जी की सोनिया और राहुल गांधी से मुलाकात
कांग्रेस से अलग होकर ही शरद पवार पवार ने एनसीपी बनायी थी, लेकिन बाद में केंद्र की सत्ता में हिस्सेदार बनने के लिए गठबंधन भी कर लिया था – और महाराष्ट्र में तो माना जाता है कि कांग्रेस को खत्म करने का ही ताना बाना बुन लिया गया था.
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों के बाद सरकार बनने से पहले समझा जाने लगा था कि अगर कांग्रेस शामिल नहीं हुई तो टूट जाएगी क्योंकि सत्ता के लिए विधायक पार्टी छोड़ देंगे.
पहले उद्धव ठाकरे और सोनिया गांधी के बीच शरद पवार ही मध्यस्थ बने हुए थे और एक एक करके शिवसेना नेतृत्व को कांग्रेस की कई शर्तें गिना चुके थे. बाद में जब सोनिया गांधी ने दिल्ली से अपने कुछ नेताओं को ठाकरे से मुलाकात के लिए भेजा तो पता चला कांग्रेस नेतृत्व के सामने चर्चा ही अलग हुई ही थी. अब भी महाविकास आघाड़ी सरकार में शरद पवार की भूमिका लालू यादव जैसी ही नजर आती है – और उद्धव ठाकरे को तबके नीतीश कुमार की ही तरह बीजेपी नेतृत्व से मेलजोल बनाये रखने के लिए मजबूर रहना पड़ता है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि ममता बनर्जी का गांधी परिवार से कुछ ज्यादा ही मेल मिलाप और सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मिलने के बाद अति उत्साहित नजर आना, मीटिंग को बहुत पॉजिटिव और एक उज्ज्वल भविष्य की नींव डालने वाली जैसा बताना – शरद पवार को बेहद नागवार गुजरा हो?
ममता बनर्जी के लिए विपक्ष की मीटिंग न बुलाया जाना
ममता बनर्जी और शरद पवार की मुलाकात न होने की एक बड़ी वजह तो विपक्षी दलों की वो मीटिंग न होना भी हो सकती है जिसमें ममता बनर्जी शामिल होतीं और अपने मन की बात कहतीं. पश्चिम बंगाल में बीजेपी को शिकस्त देने की गाथा सुनातीं. मोदी-शाह ने निबटने में आजमाये हुए कारगर नुस्खे शेयर करतीं – ऐसी तो कोई मीटिंग हुई ही नहीं.
आखिर ऐसी कोई मीटिंग क्यों नहीं हो पायी होगी? अगर राहुल गांधी के बुलाने पर विपक्षी दलों के नेता मीटिंग के लिए पहुंच जाते हैं तो क्या शरद पवार ऐसा नहीं कर सकते थे? अब ऐसा भी तो नहीं कि राहुल गांधी के नाम पर विपक्षी दल दौड़ पड़ें और ममता बनर्जी के नाम पर मुंह मोड़ लें.
जब ममता बनर्जी की गैरमौजूदगी में कांग्रेस को अलग रख कर विपक्ष की मीटिंग बुलायी जा सकती है, फिर तब क्यों नहीं बुलायी जा सकती जब खुद ममता बनर्जी उसी मकसद से कार्यक्रम बना कर पहुंची हों?
कोई न कोई लोचा जरूर लगता है, एक बार राष्ट्रपति चुनाव में ऐसे ही मुलायम सिंह यादव ने ममता बनर्जी को गच्चा दे दिया था – क्या शरद पवार ने वही वाकया दोहरा दिया है?
लेखक
मृगांक शेखर @mstalkieshindi