सुप्रीम कोर्ट: आर्य समाज को विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार नहीं
आर्य समाज का मैरिज सर्टिफिकेट अवैध, सुप्रीम कोर्ट बोला- आपको यह अधिकार कहां से मिला
सुप्रीम कोर्ट ने आर्य समाज की ओर से जारी किए जाने वाले शादियों के प्रमाण पत्रों को अवैध करार दिया है। अदालत ने शुक्रवार को प्रेम विवाद से जुड़े एक केस की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।
आर्य समाज का मैरिज सर्टिफिकेट अवैध, सुप्रीम कोर्ट बोला- आपको यह अधिकार कहां से मिला
Supreme Court on Arya Samaj Marriage:
नई दिल्ली 03 जून। सुप्रीम कोर्ट ने आर्य समाज की ओर से जारी किए जाने वाले शादियों के प्रमाण पत्रों को अवैध करार दिया है। अदालत ने शुक्रवार को एक केस की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। आर्य समाज की स्थापना हिंदू समाज सुधारक दयानंद सरस्वती ने 1875 में की थी। जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागारत्ना की बेंच ने कहा कि आर्य समाज का काम और उसका अधिकार क्षेत्र शादियों के सर्टिफिकेट जारी करना नहीं है। अदालत ने कहा कि यह काम कोई सक्षम प्राधिकारी ही कर सकता है। मध्य प्रदेश में हुए एक प्रेम विवाह के मामले में सुनवाई करते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की।
इस मामले में लड़की के परिवार ने पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई थी और एक शख्स पर आरोप लगाया था कि उसने उनकी बेटी को किडनैप किया और उसका रेप किया है। उन्होंने अपनी शिकायत में बेटी को नाबालिग बताया था। इस मामले में पॉक्सो ऐक्ट में केस दर्ज हुआ था। इस पर युवक ने अर्जी दाखिल कर दावा किया था कि उसके साथ आई लड़की बालिग है और दोनों ने शादी कर ली है। उसका कहना था कि क्योंकि हम दोनों ही बालिग हैं। इसलिए हमारे पास शादी करने का अधिकार है। उसका कहना था कि हम दोनों ने आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली है।
‘आर्य समाज का विवाह… ताजा खबरें ‘आर्य समाज का विवाह प्रमाण पत्र देने में कोई काम नहीं ‘ : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक नाबालिग के अपहरण और बलात्कार से संबंधित अपराधों के लिए धारा 363, 366 ए, 384, 376 (2) (एन), 384 आईपीसी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5 (एल) / 6 के तहत दर्ज प्राथमिकी के आरोपित की जमानत अर्जी पर विचार करते हुए आर्य समाज के जारी विवाह प्रमाण पत्र को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागरत्ना की अवकाश पीठ ने वकील की उन दलीलों को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की बालिग थी और याचिकाकर्ता और पीड़िता के बीच विवाह आर्य समाज में पहले ही हो चुका था।
“आर्य समाज का विवाह प्रमाण पत्र देने में कोई काम नहीं है। यह अधिकारियों का काम है। असली प्रमाण पत्र दिखाइए।” यह ध्यान दिया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने 4 अप्रैल को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की थी, जिसमें आर्य समाज संगठन के मध्य भारत आर्य प्रतिनिधि सभा (“सभा”) को विवाह संपन्न करते समय विशेष विवाह अधिनियम 1954 (“एसएमए”) के प्रावधानों का पालन करने का निर्देश दिया गया था-
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने दिया था क्या आदेश
युवक ने अपने दावे के पक्ष में वह मैरिज सर्टिफिकेट भी दिखाया था, जिसे आर्य समाज की संस्था सेंट्रल भारतीय आर्य प्रतिनिधि सभा ने जारी किया था। इस प्रमाण पत्र को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है और आर्य समाज की ओर से शादियों का सर्टिफिकेट जारी किए जाने पर ही सवाल उठाए हैं। दरअसल मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस मामले में आर्य समाज के सर्टिफिकेट को खारिज नहीं किया था। हालांकि उसने आर्य समाज के संगठन को आदेश दिया था कि वह मैरिज सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया में स्पेशल मैरिज ऐक्ट, 1954 के सेक्शन 5, 6, 7 और 8 को भी शामिल कर ले।
आर्य समाज ने दी थी दलील, 1937 से हो रहीं हमारे मंदिरों में शादियां
हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ ही सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी। इस पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने पहले ही हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। अब उसके सर्टिफिकेट जारी करने के अधिकारी को भी खारिज कर दिया है। आर्य समाज ने केस की सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि 1937 से ही उसके मंदिरों में शादियां हो रही हैं और उन्हें वैधता रही है। उसका यह भी कहना था कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट के प्रावधानों को शामिल करना उसके लिए जरूरी नहीं है। उसका कहना था कि यदि दोनों में से कोई भी एक हिंदू है तो वह आर्य समाज मंदिर में शादी कर सकते हैं।
हाईकोर्ट की आर्य समाज संस्था पर तल्ख टिप्पणी…:शादी की दुकानें बन गई हैं यह आर्य समाज संस्था, यह विवाह समाज तंत्र को दूषित कर रहे
ग्वालियर हाईकोर्ट ने छह महीने पहले कहा था कि शादी की दुकानें बन गई हैं यह आर्य समाज संस्था, यह विवाह समाज तंत्र को दूषित कर रहे| कोर्ट ने एक आर्य समाज संस्था की रिट पर सुनवाते करते हुए यह टिप्पणी की थी।
ग्वालियर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने आर्य समाज मंदिरों में होने वाली शादियों और उनसे सामाजिक व्यवस्था के दूषित होने पर तल्ख टिप्पणी की थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि यह संस्था जाति, धर्म व उम्र नहीं देख रही हैं और शादियां करा रही हैं। अब ऐसा लगता है कि यह संस्थाएं शादियों की दुकानें बनती जा रही हैं। इन संस्थाओं के माध्यम से होने वाली शादियां समाज के तंत्र को पोषित करने के बदले दूषित कर रही हैं। जिसका समाज पर विपरित प्रभाव पड़ रहा है।
विशेष विवाह अधिनियम में किसी को भी विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार नहीं है। इसके लिए अथॉरिटी निर्धारित है, जिस पर प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार होता है। एकल पीठ ने आदेश पारित करने में कोई गलती नहीं की है। हाईकोर्ट ने आर्य समाज संस्था पर यह टिप्पणी उस समय की है जब वह मूलशंकर आर्य समाज वैदिक संस्था की रिट अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने एकल पीठ को सही बताते हुए रिट अपील खारिज कर दी थी।
यह थी अपील
– हुरावली पवनसुत कालोनी स्थित मूलशंकर आर्य समाज वैदिक संस्था ने हाईकोर्ट की एकल पीठ के आदेश 9 दिसंबर 2020 को चुनौती देते हुए युगल पीठ में रिट अपील दायर की थी। इस अपील की सुनवाई न्यायमूर्ति रोहित आर्या व न्यायमूर्ति दीपक कुमार अग्रवाल की डबल बैंच ने की। अपील में तर्क दिया गया कि उनकी संस्था विवाह करा प्रमाण पत्र जारी करती है। अग्नि के फेरे कराकर विवाह कराया जाता है, लेकिन एकल पीठ ने उनके खिलाफ गलत आदेश पारित किया है। पहले भी आदेश हुए हैं, लेकिन उन आदेशों को निरस्त किया जा चुका है। एकल पीठ के आदेश को भी निरस्त किया जाए।
आर्य समाज संस्था को विवाह प्रमाण पत्र देने का अधिकार नहीं
– सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता एमपीएस रघुवंशी ने तर्क रखा। उनका तर्क था कि विशेष विवाह अधिनियम में शादी के प्रमाण पत्र जारी करने का प्रावधान किए गए हैं। किसी भी आर्य समाज संस्था को विवाद प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार नहीं है। प्रमाण के लिए अलग से एक अथॉरिटी है जिसके पास यह अधिकार सुरक्षित है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने बहस के दौरान कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट में विवाह की प्रक्रिया निर्धारित है। माता-पिता सगाई करते हैं, विवाह की तारीखें निर्धारित होती हैं, मंत्रोच्चारण के दौरान सात फेरे दिलाए जाते हैं। इसमें नाते-रिश्तेदार आते हैं, रिसेप्शन आदि होता है।
ऐसे चला था पूरा मामला, यह था एकल पीठ का आदेश
– यह पूरा मामला प्रदीण राणा केस से जुड़ा है। ग्वालियर निवासी प्रदीप राणा ने हुरावली स्थित मूलशंकर आर्य समाज वैदिक संस्था के माध्यम से प्रेम विवाह किया था। वहां से प्रमाण पत्र लेने के बाद उसने कोर्ट में अपने परिजन से खतरा बताते हुए सुरक्षा मांगी थी। पर कोर्ट की एकल पीठ ने उसकी शादी को ही अवैध घोषित कर दिया था। इतना ही नहीं शादी कराने वाली संस्था मूलशंकर आर्य समाज वैदिक संस्था में विवाह कराने को ही प्रतिबंधित कर दिया था।
यह दिया था आदेश
कोर्ट ने आदेश दिया था कि इस संस्था में होने वाले विवाहों की जांच की जाए। यह जांच पुलिस अधीक्षक को करनी थी। साथ ही कहा था कि आर्य समाज मंदिरों में होने वाले विवाह के लिए गाइड लाइन बनाई जाए।इस गाइड लाइन में विवाह करने वाले माता-पिता को सूचना देने का नियम शामिल किया जाए। विवाह करने वालों की सूचना प्रकाशित की जाए। आदेश के मुताबिक आर्य समाज मंदिरों को एक महीने में अपने नियमों में बदलाव करना होगा। पर कोर्ट के प्रतिबंध के बाद भी इस संस्था ने विवाह करा दिया था, जिसके बाद कोर्ट ने एक अन्य याचिका में संस्था के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए थे।