मास्टरस्ट्रोक? कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’

Bharat Ratna To Karpoori Thakur Does Pm Modi Play Master Stroke Before Lok Sabha Elections
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न… लोकसभा चुनाव से पहले क्या प्रधानमंत्री मोदी ने खेल दिया मास्टर स्ट्रोक?
मोदी सरकार ने एक बार फिर चौंका दिया है। लोकसभा चुनाव से पहले सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्‍न से सम्‍मानित करने का फैसला किया है। कर्पूरी ठाकुर को बिहार में ‘जननायक’ कहा जाता है। उनकी जयंती से एक दिन पहले यह घोषणा हुई है। इस फैसले के राजनीत‍िक अर्थ भी न‍िकाले जाने लगे हैं।

नई दिल्‍ली 23 जनवरी: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। आज इसकी घोषणा हुई । लोकसभा चुनाव से पहले इसे मोदी सरकार के बड़े मास्‍टर स्‍ट्रोक के तौर पर देखा जा रहा है। समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को ‘जननायक’ के तौर पर जाना जाता है। वह दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और फिर दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। यह घोषणा कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती से ठीक एक दिन पहले हुई है। बुधवार को कर्पूरी ठाकुर की जयंती के मौके पर बिहार में बड़े स्‍तर पर आयोजन होने हैं। पूरे बिहार में इसे लेकर उत्‍साह है। कर्पूरी ठाकुर बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। मोदी सरकार का यह फैसला सिर्फ सम्‍मान तक सीम‍ित नहीं है। इससे भाजपा की नजर उनकी राजनीतिक व‍िरासत पर भी है।

प्रधानमंत्री के ब‍िहार दौरे से पहले हुई घोषणा

लोकसभा चुनाव से पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्‍न सम्‍मान देकर सरकार ने एक साथ कई चीजों को साधने की कोशिश की है। 4 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी बिहार के बेतिया जाने वाले हैं। बेतिया के सुगौली में वह रैली संबोधित करेंगें। बिहार में केंद्र की कई योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन भी है। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार भाजपा राज्‍य में अपने सबसे पुराने सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (JDU) के बिना चुनावी मैदान में उतरेगी। 2019 के चुनाव में एनडीए ने 39 सीटों पर जीत हासिल की थी। तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्‍व वाली पार्टी भाजपा के साथ थी। एनडीए से अलग होने के बाद भाजपा के पास 17 और जेडीयू के पास 16 सीटें हैं।

नीतीश के ओबीसी कार्ड को किया कुंद

कर्पूरी ठाकुर के जरिये नीतीश बिहार में पिछड़ों खासतौर से ओबीसी कार्ड खेलने की पुरजोर कोशिश में लगे थे। लेकिन, मोदी सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्‍न से सम्‍मानित कर उस धार को कुंद कर दिया है। कर्पूरी ठाकुर बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले थे। वह नाई समुदाय से थे। उन्‍हें पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने को जाना जाता था। उन्होंने समाज में भेदभाव और असमानता के खिलाफ लंबा संघर्ष किया। पहली बार वह सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय क्रांति दल की सरकार में मुख्यमंत्री बने थे। फिर वह जनता पार्टी की सरकार में मुख्यमंत्री बने।

सादगी की मिसाल, सामाजिक न्याय के मसीहा… पढ़ें- ‘भारत रत्न’ कर्पूरी ठाकुर की कहानी

केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा की गई है. उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा. कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं.

कर्पूरी ठाकुर (फाइल फोटो)

बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की जानकारी राष्ट्रपति भवन से जारी विज्ञप्ति में दी गई है. 24 जनवरी को उनकी 100वीं जन्म जयंती से एक दिन पहले कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा की है.

इस पर कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर ने केंद्र सरकार का शुक्रिया अदा किया. उन्होंने कहा कि हमें 36 साल की तपस्या का फल मिला है. मैं अपने परिवार और बिहार के 15 करोड़ लोगों की तरफ से सरकार को धन्यवाद देना चाहता हूं.

कर्पूरी ठाकुर अति पिछड़ा वर्ग के सबसे बड़े नेताओं में से थे. उनके बारे में कहा जाता है कि कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में उस जगह तक पहुंचे थे, जहां उनके जैसी पृष्ठभूमि से आने वाले किसी नेता के लिए पहुंच पाना लगभग असंभव था.

एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री

24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में कर्पूरी ठाकुर का जन्म हुआ था. वो नाई समाज से आते थे, जो अति पिछड़ा वर्ग में आती है.

कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और कई बार विधायक और विपक्ष के नेता रहे हैं. 1952 में सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर ताजपुर सीट से पहला विधानसभा चुनाव जीता था. इसके बाद से वो कोई भी विधानसभा चुनाव नहीं हारे।

कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री जरूर रहे, लेकिन कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर सके. वो दो बार- दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक मुख्यमंत्री रहे हैं. हालांकि, खास बात ये है कि वो बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे.

‘कर्पूरी डिविजन से पास हुए हैं’

1967 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के डिप्टी सीएम बने. उन्हें शिक्षा मंत्री का पद भी मिला. शिक्षा मंत्री बनते ही उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म कर दिया. इस फैसले की आलोचना जरूर हुई, लेकिन मिशनरी स्कूलों ने हिंदी में पढ़ाना शुरू कर दिया.

ऐसा कहा जाता है कि उस दौर में जब कोई अंग्रेजी में फेल हो जाता था, तो उसे ‘कर्पूरी डिविजन से पास हुए हैं’ कह कर मजाक उड़ाया जाता था.

इतना ही नहीं, उन्होंने आर्थिक रूप से पिछड़े गरीब बच्चों की स्कूल फीस माफ करने का फैसला भी लिया था. जब वो मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने मैट्रिक तक की स्कूल फीस माफ कर दी थी. वो पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने ऐसा फैसला लिया था.

पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण

1977 में जब वो दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने राज्य की सरकारी नौकरियों में पिछड़ों के लिए आरक्षण लागू कर दिया. उन्होंने मुंगेरीलाल कमीशन की सिफारिश पर नौकरियों में पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू कर दी.

इतना ही नहीं, उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को जरूरी कर दिया था. राज्य सरकार के कर्मचारियों के समान वेतन आयोग को राज्य में भी लागू करने का काम सबसे पहले किया था.

जब फटा कोट पहन चले गए विदेश

बिहार के इतने बड़े नेता और जननायक होने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर सादगी की मिसाल थे. उनकी सादगी का एक किस्सा बड़ा मशहूर है.

1952 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार विधायक बने थे. उन्हीं दिनों उनका ऑस्ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल में चयन हुआ था. उनके पास कोट नहीं था. तो एक दोस्त से कोट मांगा. वह भी फटा हुआ था
खैर, कर्पूरी ठाकुर वही कोट पहनकर चले गए. वहां यूगोस्लाविया के शासक मार्शल टीटो ने देखा कि कर्पूरी जी का कोट फटा हुआ है, तो उन्हें नया कोट गिफ्ट किया.

उनकी राजनीतिक शुचिता से जुड़ा एक और किस्सा उसी दौर का है कि उनके मुख्यमंत्री रहते ही उनके गांव के कुछ दबंग सामंतों ने उनके पिता को अपमानित किया. खबर फैली तो जिलाधिकारी गांव में कार्रवाई करने पहुंच गए, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने कार्रवाई करने से रोक दिया. उनका कहना था कि दबे पिछड़ों का अपमान तो गांव-गांव में हो रहा है, सबको बचाए पुलिस तब कोई बात हो.

विरासत में देने के लिए कुछ नहीं था

कर्पूरी ठाकुर का निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था. राजनीति में उनका सफर चार दशक तक रहा, लेकिन ईमानदारी ऐसी कि जब निधन हुआ तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था. ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए.

यूपी के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा- ‘कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- कर्पूरीजी कभी आपसे पांच-दस हज़ार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा. बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भाई कर्पूरीजी ने कुछ मांगा. हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं.

कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए थे. कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी झोपड़ी देख कर बहुगुणा रो पड़े थे.

>कांग्रेस के प्रणब को भाजपा ने बनाया अपना!

कांग्रेस के दिग्‍गज नेता रहे प्रणब मुखर्जी को भी भाजपा सरकार में भारत रत्‍न मिला था। 26 जनवरी 2019 को उन्‍हें इससे सम्मानित किया गया था। प्रणब मुखर्जी 2012 से 2017 तक देश के राष्ट्रपति रहे। दूसरे दलों के दिग्‍गजों को सराहने और सम्‍मानित करने में मोदी सरकार जरा भी नहीं संकोच नहीं करती। इसमें उसकी बिल्‍कुल अलग तरह की अप्रोच है। यह मामला सिर्फ सम्‍मान तक सीमित नहीं होता है। इसके जरिये भाजपा की नजर उन नेताओं की विरासत पर भी होती है।

मुलायम सिंह हैं उदाहरण…

मुलायम सिंह यादव भी इसका बड़ा उदाहरण हैं। पिछले साल के शुरू में मोदी सरकार ने अपने फैसले से समाजवादी पार्टी को चौंका दिया था। पार्टी ने जाने-माने समाजवादी मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण से सम्‍मानित किया था। जीते-जी मुलायम भाजपा के धुर विरोधी रहे। उनके गुजरने के कुछ महीने बाद ही केंद्र सरकार ने पद्म विभूषण सम्‍मान देकर मास्‍टर स्‍ट्रोक खेल दिया। खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव को यकीन नहीं रहा होगा कि मुलायम को भाजपा सरकार में पद्म विभूषण से सम्‍मानित किया जाएगा। इससे भाजपा की यादव बिरादरी को अपने साथ जोड़ने की कोशिश भी थी। 2024 के चुनाव में यादव वोट बैंक भी भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है।

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