जोशीमठ खतरे की आशंका मिश्र समिति ने 46 साल पहले दे दी थी
ग्राउंड रिपोर्ट:जोशीमठ में घरों से आ रही डरावनी आवाज:रोते हुए लोग बोले- घर अचानक हिलने लगता था,आंखों के सामने सब तबाह
जोशीमठ 10 जनवरी। ‘रात को अचानक लगा कि घर हिल रहा है,पूरा घर टेढ़ा हो गया। दीवारों पर मोटी-मोटी दरारें आ गईं। अपने ही घर में खड़े होने में डर लग रहा है। घर के नीचे से पानी बहने की आवाज आ रही है। ये आवाज कहां से और कैसे आ रही है हमें नहीं पता। अब मेरा 9 कमरे का घर रहने लायक नहीं बचा। कब गिर जाए, कोई भरोसा नहीं है।’ जोशीमठ शहर में रहने वालीं कल्पेशवरी पांडे ये बताते हुए रोने लगती हैं।
पड़ोस में रहने वाली सरिता उन्हें चुप कराती हैं और फिर उनकी आंखों में भी आंसू आ जाते हैं। कहती हैं, ‘मेरा घर भी बर्बाद हो गया। फर्श के सारे टाइल्स टूट गए। ऐसा लग रहा है कि किसी मशीन से पूरे घर को जोर का धक्का मार दिया। 2 जनवरी रात में लगा था कि हल्का सा भूकंप आया है, क्या हुआ ये नहीं पता, लेकिन उसी के बाद से दरारें बढ़ने लगीं।’
जोशीमठ: एक खिसकता शहर, घरों के साथ लोगों के टूटते सपने
2 जनवरी 2022 की रात उत्तराखंड के जोशीमठ शहर और उसके आस-पास बसे गांवों में जो हुआ, वो अचानक हुआ, ये कहना थोड़ा गलत होगा। आज जो हो रहा है, इसकी चेतावनी तो 46 साल पहले 1976 में ही 18 सदस्यों वाली एमसी मिश्रा समिति ने अपनी रिपोर्ट में दे दी थी।
इसके बाद वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी समेत कई अन्य बड़े संस्थानों ने लगातार चेतावनियां दीं। हालांकि, सरकार या प्रशासन ने इन्हें कितना सुना या माना ये आज सबके सामने है।
ऋषिकेश-बद्रीनाथ हाइवे (NH-7) पर बसे चमोली जिले के जोशीमठ में एंट्री करते ही फटी, दरकी और टूटी हुई सड़कें नजर आती हैं। 7वीं शताब्दी में उत्तराखंड के कत्यूरी राजवंश ने यहां राजधानी बनाई थी। आज यहां की सड़कों की हालत ये है कि अब इन पर गाड़ियां चलाना संभव नहीं। खड़े भी होते हैं, तो धरती कांपती सी लगती है। ऐसा महसूस होता है कि ऐसे पत्थर पर खड़े हैं, जो कभी भी लुढ़क सकता है।
जोशीमठ में जमीन धंसने के पीछे आसपास चल रहे प्रोजेक्ट वर्क को जिम्मेदार माना जा रहा है, इसके बावजूद मशीनों से पहाड़ों की खुदाई का काम चल रहा है।
इन इलाकों में हर तरफ जोर-जोर से रोती-बिलखती महिलाएं दिखती हैं, जो सिर पकड़े अपने घरों को टूटते देखने को मजबूर हैं। थोड़ा आगे बढ़कर ऐसे ही गुस्से और आक्रोश के साथ बिलख रही महिला से बात की।
नाम अंजना देवी हैं। कुछ पूछने के पहले ही बोलने लगती हैं, ‘ये हमारा घर है, आप ही देखिए, सब जगह मोटी-मोटी दरारें आ गई हैं। सरकार के लोग हमसे बिना पूछे इसे सील कर रहे हैं, पटवारी-तहसीलदार कहां हैं, मेरे घर के अंदर पूरा सामान पड़ा है, लेकिन हमें कोई बताने वाला नहीं है कि कहां जाना है।
सरकार के लोग आते हैं, नाम लिखकर ले जाते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं कर रहा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आए और दरारों के साथ फोटो खिंचाकर चले गए। पूरी जिंदगी की कमाई लगाकर बनाया था घर, अब ये रहने लायक नहीं। कौन देगा हमारा पैसा?’
चेतावनियां जो अनसुनी कर दी गईं, विनाश जिससे मुंह फेर लिया गया
जोशीमठ वाला इलाका हाई रिस्क जोन-5 में आता है। यानी छोटा सा भूकंप भी यहां भारी तबाही ला सकता है। 1976 में ही मिश्रा समिति ने जोशीमठ और आस-पास के इलाके को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की थी। इस रिपोर्ट में इलाके में विकास के काम, सड़क निर्माण और आबादी को लेकर कई जरूरी बातें थीं-
सिर्फ मिश्रा समिति ही नहीं, साल 2006 में वैज्ञानिकों की एक टीम ने ‘जोशीमठ लोकलाइज्ड सब्सिडेंस एंड एक्टिव इरोजन ऑफ द एटी वाला’ नाम से रिपोर्ट तैयार की थी। इसमें साफ बताया गया था कि जोशीमठ शहर और आस-पास के इलाके जैसे रविग्राम वार्ड, कामेट और सेमा हर साल एक सेंटीमीटर खिसक रहे हैं।
इसके बाद साल 2020 में जियोलॉजिस्ट और उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के निदेशक प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट और पीयूष रौतेला ने भी जोशीमठ इलाके पर एक स्टडी की थी, जो ‘करेंट साइंस’ में छपी थी। इसमें कहा गया था कि जोशीमठ और तपोवन इलाके भूगोल, पर्यावरण के हिसाब से संवेदनशील है। इसके बावजूद इस पूरे इलाके के आसपास हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। विष्णुगाड भी ऐसी ही एक परियोजना है।
सितंबर 2022 में ही SDRF (राज्य आपदा प्रबंधन) की टीम ने इस इलाके का सर्वे कर 11 बड़े नालों के आस-पास जमीन धंसने की चेतावनी दी थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ लैंडस्लाइड के मलबे पर बसा है और जिस तरह से यहां कंस्ट्रक्शन हुआ और सड़कें बन रही हैं, ये वजन जमीन नहीं सह पाएगी।
वाडिया इंस्टीट्यूट की भूगर्भ वैज्ञानिक स्वप्नमिता चौधरी ने भी सालभर इलाके के घरों में आ रही दीवारों और जमीन खिसकने के मामलों की स्टडी कर चेतावनी दी थी। उनका मानना है कि अभी जो नजर आ रहा है, उसकी कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन 2 जनवरी को NTPC के प्रोजेक्ट के लिए ड्रिलिंग के दौरान जमीन के नीचे जल स्रोत को नुकसान , इसमें आई तेजी का कारण हो सकता है।
जोशीमठ शहर में रहने वाले 35 वर्षीय दिगंबर भी यही मानते हैं। दिगंबर ने अपने पिता और खुद की पूरी कमाई लगाकर घर बनवाया और अब वो घर रहने लायक नहीं बचा।
सरकार क्षतिपूर्ति और विस्थापन का इंतजाम भी करे
जोशीमठ में आपदा के साथ दूसरा नजारा पलायन का है। कहीं लोग अपने घरों का सामान ले जाते हुए दिख रहे हैं तो कहीं, मरम्मत कराने की नाकाम कोशिशें कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जोशीमठ के 678 घरों में दरारें आई हैं, लेकिन असल में संख्या और ज्यादा है। सरकार ने अब तक सिर्फ 81 परिवारों के ही रहने की व्यवस्था की है।
कुछ लोगों को प्रशासन ने जोशीमठ शहर के नगरपालिका दफ्तर के पास मौजूद कॉम्प्लेक्स और पार्क में बसाया है। मैं वहां लोगों से मिलने पहुंचा, कमरे में दाखिल हुआ तो चारों तरफ लोग कम और सामान ज्यादा दिखा।
यहां मुलाकात दीपक रावत से हुई, वे बताते हैं- ‘सिंगारवार्ड माउंड व्यू होटल के पास मेरा घर था, पूरी तरह टूट गया है। 10-12 कमरों के मेरे मकान के बदले मुझे 1 कमरा दिया है, जिसमें मेरे परिवार के 6 लोग रह रहे हैं। मेरे मकान की लागत 1 करोड़ रुपए थी।’
दीपक जोशीमठ में आए पर्यटकों के लिए टैक्सी चलाते हैं। 2 जनवरी की रात को याद करते हुए दीपक बताते हैं, ‘रात को धड़धड़ाने की जोर से आवाज आई। मेरे घर के पास वाले होटल के शीशे चटकने लगे। बाहर निकलकर देखा तो दो होटलों की बिल्डिंग टूटकर एक-दूसरे पर टिक गई थीं। मेरा घर भी दरक गया, बड़ी-बड़ी दरारें आ गईं। हम रात को ही जरूरत का सामान लेकर भागे। NTPC प्रोजेक्ट ने पूरे जोशीमठ को तहस-नहस कर दिया है। हम जो भुगत रहे हैं वो NTPC जैसी कंपनियों का किया धरा है।’
दीपक की पत्नी भी रोने लगती हैं, फिर कहती हैं- जबसे घर छोड़ा फिर लौटकर नहीं देखा, अब इसी एक कमरे में पूरा परिवार रह रहा है। जब-जब ये सोचती हूं, खुद को रोने से रोक नहीं पाती।’
NTPC को जिम्मेदार मान रहे लोग, पानी में मिलावट का आरोप
लोगों के मुताबिक, जोशीमठ से करीब 8 किमी नीचे एक जगह से गंदे पानी का एक पॉइंट खुल गया है। पानी का ये रिसाव पहले नहीं होता था, लेकिन 2 जनवरी की रात को जब से लोगों के घर दरके हैं, यहां से पानी बहने लगा है।
जोशीमठ के रहने वाले 50 साल के बलबीर सिंह राणा पानी के स्त्रोत को देख चुके हैं। वो बताते हैं- ‘ये पानी पहले नहीं बहता था, लेकिन अब यहां से मटमैला पानी आ रहा है और इस पानी को अगर करीब से देखें तो इसमें तेल जैसा कुछ नजर आ रहा है। पानी में अगर मिट्टी का तेल डाल दो तो वो ऐसे ही रंगीन सा दिखता है। इस पानी में रंगीन हल्की धाराएं दिख रही हैं। ये साफ इशारा कर रही हैं कि ये पानी प्राकृतिक स्त्रोत से तो नहीं आ रहा है।’
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती भी इस पानी पर शक जाहिर करते हैं। सती कहते हैं- ‘ये पानी का बहाव ही बता रहा है कि जोशीमठ के नीचे बहुत कुछ अजीब हो रहा है।’
एक और संदेह व्यक्त कर रहे वैज्ञानिक
7 फरवरी 2021 को ऋषिगंगा नदी उफान पर आई तो उसका पानी तपोवन प्रोजेक्ट में घुस गया था। ऋषिगंगा इस दौरान जाकर धौली गंगा में मिल गई। तपोवन प्रोजेक्ट तहस-नहस हो गया। प्रोजेक्ट की सुरंग में पानी घुस गया और वहां काम कर रहे कई लोगों का अब तक पता नहीं चल पाया है।
वैज्ञानिक सवाल उठा रहे हैं कि सुरंग में जो पानी घुसा था, क्या वो अब रिस कर जोशीमठ में निकल रहा है। जोशीमठ में निकल रहे पानी में मिट्टी का रंग ऐसा है, जैसे बांध निर्माण के वक्त होता है। हालांकि इसकी जांच के बिना कुछ भी कहना मुश्किल है, लेकिन पानी का रंग भूगर्भ जल जैसा नहीं हैं।
इसके अलावा साल 2009 में हेलंग से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर NTPC की सुरंग में एक टनल बोरिंग मशीन फंस गई थी। इस मशीन से जमीन के नीचे पानी का एक स्रोत पंचर हो गया और करीब एक महीने तक पानी रिसता रहा। जोशीमठ के नीचे जो पानी है, वो ये भी हो सकता है, इसका संदेह भी व्यक्त किया जा रहा है।
12 किमी लंबी बनेगी NTPC की टनल, अभी काम रुका
12 किलोमीटर लंबी ये निर्माणाधीन सुरंग सेलग नाम की जगह से शुरू होती है,जो तपोवन तक जाएगी। अब तक सिर्फ 8 किलोमीटर तक काम हो पाया है। NTPC का कहना है कि ये सुरंग मशीन से बनाई गई है। यहां कोई भी ब्लास्ट नहीं किया गया। फिलहाल इस टनल का काम रोक दिया गया है।
उधर, अतुल सती का कहना है कि ये पानी NTPC की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना की किसी टनल का हो सकता है, लेकिन NTPC यह आरोप खारिज कर चुका है।
इन सारे आरोपों और संदेह के बीच अपनी आंखों के सामने घर उजड़ जाने की कहानियां जोशीमठ में बिखरी पड़ी हैं। सपनों से बनाए घर थे,कर्ज लेकर बनाए घर थे, रिटायरमेंट का पैसा लगाकर बनाए घर थे। अब नहीं रहे। अब बस गुस्सा और आंसू बचे हैं और सरकार से उम्मीदें हैं कि पुनर्वास हो जाए।
प्रशासन ने खतरे वाले घरों पर लाल रंग के क्रॉस के निशान लगा दिए हैं। इसका मतलब है कि ये घर अब रहने की दृष्टि से सुरक्षित नहीं हैं।
सरकार ने फिलहाल राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन इंस्टीट्यूट, भारतीय भूगर्भ सर्वे संस्थान, आईआईटी रुड़की, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी और सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की टीम बनाई है, जो जोशीमठ को बचाने के प्लान पर काम करेगी।
जिन लोगों को घर छोड़ना पड़ा है,उनके लिए सरकार ने राहत केंद्र बनाए हैं। अगर कोई किराए से रहना चाहता है तो उसे आर्थिक सहायता की घोषणा भी की गई है।
जोशीमठ पहुंची केंद्र की टीम,शहर 3 हिस्सों में बांटा गया,डेंजर जोन के घर ढहाए जाएंगें
जोशीमठ में हुए नुकसान का जायजा लेने सोमवार शाम केंद्र की एक टीम पहुंची। इससे पहले राज्य सरकार ने जोशीमठ को तीन जोन डेंजर,बफर और सेफ जोन में बांटने की घोषणा की। डेंजर जोन में ऐसे मकान होंगे,जो अब रहने लायक नहीं हैं। ऐसे मकानों को गिराया जाएगा।
सेफ जोन में वैसे घर होंगे, जिनमें हल्की दरारें हैं और जिसके टूटने की आशंका बेहद कम है। बफर जोन में वो मकान होंगे, जिनमें हल्की दरारें हैं, लेकिन दरारों के बढ़ने का खतरा है।
जोशीमठ सामरिक के साथ ही धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण शहर है। इस इलाके में पहले भी प्राकृतिक आपदाएं आती रही हैं।