मीडिया कुप्रचार में हुई TDS समाप्त जो रोक सकती थी मुम्बई अटैक के बाद पुलवामा

 

 
नई दिल्ली: 26/11 मुंबई हमले ने भारत में काफी कुछ बदलकर रख दिया था। संसद पर हमले के बाद देश की वित्तीय राजधानी को छलनी करने की पाकिस्तानी साजिश नाकाम कर दी गई थी, लेकिन देश ने खुफिया मोर्चे पर ज्यादा गंभीर पहल की जरूरत महसूस की। जल्द ही एक खुफिया यूनिट तैयार की गई लेकिन आगे ऐसा कुछ हुआ कि दो साल के भीतर ही इसे बंद करना पड़ा। सेना की एजेंसी पर जमकर सियासत हुई। उस यूनिट को लीड करने वाले अफसर पर गंभीर आरोप लगे। कोर्ट मार्शल की कार्यवाही भी शुरू हो गई लेकिन कहते हैं न सच हमेशा सच ही रहता है। सारे आरोप बेबुनियाद पाए गए, सेना के बहादुर अफसर कर्नल हनी बख्शी बेदाग निकले। 12 साल पहले आखिर ऐसी कौन सी एजेंसी खड़ी की गई थी जिसके बारे में कहा जाता है कि अगर वह रहती तो शायद पुलवामा जैसा हमला कभी न हो पाता।

टाइगर अभी जिंदा है…
एजेंसी का नाम था TSD, पूरा नाम Technical Support Division। इसे लीड करने वाले रिटायर्ड कर्नल हनी बख्शी ने अपने ट्विटर प्रोफाइल में लिखा है, ‘लीजेंड्री टीएसडी के कमांडर, जिसे 26/11 मुंबई हमले के बाद भारतीय सेना की पहली विशिष्ट खुफिया यूनिट के रूप में खड़ा किया गया था। यह देश के दुश्मनों की दुश्मन थी।’ आगे कर्नल बख्शी ने लिखा है, ‘टाइगर अभी जिंदा है।’ समाचार एजेंसी ANI के पॉडकास्ट शो में वह बताते हैं कि कैसे उन्होंने कश्मीर के IED एक्सपर्ट आतंकियों का सफाया किया था। वह कहते हैं, ‘पुलवामा पहली बार नहीं है जब आईईडी का इस्तेमाल किया गया और जिसमें पूरी बस जल गई। मई 2004 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था।’

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हनी बख्शी का ट्विटर प्रोफाइल।

पुलवामा में पहले भी उड़ी थी बस
रिटायर्ड कर्नल बख्शी ने बताया कि एक बीएसएफ की बस भी ऐसे ही उड़ी थी। उसमें तो BSF के जवान ही नहीं, उनके परिवार और बच्चे भी मरे थे। उन्होंने बताया कि जनरल वीके सिंह ने दक्षिण कश्मीर में विक्टर फोर्स GOC का चार्ज लिया ही था और एक हफ्ते के अंदर ये बस उड़ गई। उसके एक महीने बाद कर्नल बख्शी पोस्टिंग पर पहुंचे। उन्हें एक बड़ा टास्क दिया गया। कर्नल कहते हैं, ‘दक्षिण कश्मीर में सात आईईडी एक्सपर्ट आतंकी थे, 6 को हमने खत्म कर दिया।’ कैसे किया यह पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि वे जहां भी छिपे होते उनसे एक बार बाहर आने के लिए कहा जाता, नहीं निकले तो IED….।

वीके सिंह ने बनाई थी TSD
मुंबई हमले के बाद पुलवामा के रूप में देश में बड़ा हमला हुआ। कहा जाता है कि पूर्व आर्मी चीफ जनरल वीके सिंह की पहल पर बनाई गई मिलिट्री इंटेलिजेंस यूनिट (टेक्निकल सर्विसेज डिवीजन) अगर ऐक्टिव रहती तो पाकिस्तान में बैठे आतंकी कभी पुलवामा हमले में कामयाब नहीं हो पाते। रिपोर्ट्स की मानें तो भारत की यह एजेंसी मुंबई हमले के मास्टरमाइंड और लश्कर के सरगना हाफिज सईद को ढूंढ रही थी। इसके लिए वह पाकिस्तान में एक गुप्त ऑपरेशन भी शुरू कर चुकी थी। इसके जरिए हाफिद सईद के करीब पहुंचने के लिए सूत्र तैयार कर लिए गए थे। लेकिन जल्द ही देश में इस पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया।
लेकिन राजनीतिक विवाद हो गया
इस खुफिया एजेंसी को लेकर कई विवादित दावे किए गए। आरोप लगा कि TSD का इस्तेमाल रक्षा मंत्रालय पर नजर रखने, जम्मू-कश्मीर की निर्वाचित सरकार गिराने की साजिश रचने समेत कई मामलों में किया जा रहा था। मुंबई हमले के बाद जिस खुफिया यूनिट पर सेना के सीनियर अधिकारी राजी थे, वह दागदार हो चुकी थी। कहा गया कि इसके जरिए बड़ी राजनीतिक हस्तियों के फोन सुने जा रहे हैं। 2012 की शुरुआत में खबर सामने आई कि TSD की अत्याधुनिक तकनीक से लैस वैन खड़ी कर कैबिनेट मंत्रियों के घर के बाहर से फोन सुनने की कोशिश हो रही है।

जांच, कोर्ट मार्शल लेकिन…
बाद में आर्मी चीफ बने बिक्रम सिंह ने टीएसडी को भंग कर जांच बिठा दी। इस खुफिया यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर रहे कर्नल बख्शी के लिए 6 साल काफी मुश्किल भरे रहे। बाद में उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल की कार्यवाही रद्द कर दी गई। हालांकि वह इन परेशानियों पर मुस्कुराते हुए गर्व से कहते हैं कि सेना मेरी सब कुछ है, परिवार है और परिवार में होता रहता है। गौर करने वाली बात यह है कि TSD के बारे में कहा जाता है कि इस विशिष्ट खुफिया यूनिट की देश को काफी जरूरत थी जिससे आतंकियों के मंसूबे का पहले ही पता चल सके और पुलवामा जैसे हमलों को रोका जा सके। बाद में एक्सपर्ट ने कहा कि इसके बंद होने से सैन्य खुफिया क्षमता में काफी गैप आ गया। मंत्रियों के फोन सुनने को लेकर भले ही दावे किए गए लेकिन सेना के पास ऐसे किसी इंटरसेप्टर के खरीदे जाने की कोई जानकारी ही नहीं थी। बाद में पता चला कि इंटरसेप्टिंग के आरोप केवल मीडिया रिपोर्ट में थे। सेना ने कभी नहीं कहा कि ऐसा कोई इंटरसेप्टर मौजूद है।

सूत्रों के हवाले से खबरें आईं कि TSD के गठन से पहले मनमोहन सिंह की सरकार के तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी से लिखित में स्वीकृति ली गई थी। इसका मकसद स्पष्ट था भारतीय सेना की गुप्त ऑपरेशन करने की क्षमता विकसित करना जिससे आतंकियों के हमले से पहले ही जरूरी ऐक्शन लिया जा सके। यह एक covert unit थी मतलब जो जनता के सामने कभी न आती। सेना के एक अधिकारी ने बताया था कि TSD कभी दावा नहीं करती कि बड़े आतंकी संगठन के लीडर को पकड़ा गया है या उसे भारत लाया जा रहा है, न ही ये बताती कि वह आतंकी सरगना को पकड़ने के करीब है।

TSD में केवल चार अधिकारी और 30 अन्य सैनिक शामिल थे। इन पर फंड के दुरुपयोग के भी आरोप लगे थे। हालांकि जनरल वीके सिंह का कहना था कि इसे देश की सुरक्षा और उसके हितों की रक्षा के लिए विशेष ऑपरेशन के लिहाज से बनाया गया था। मार्च 2018 में सेना ने कर्नल बख्शी के खिलाफ लगे सभी आरोप वापस ले लिए।
रिपोर्टों में बताया गया था कि टीएसडी को दुश्मन देश में घुसकर आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन के लिए तैयार किया गया था। कोई भी आर्मी चीफ इस तरह की यूनिट नहीं चाहता था लेकिन वीके सिंह ने चीफ बनने के बाद इस दिशा में कदम बढ़ाया। TSD की ही बदौलत छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के नक्सलियों को पूर्वोत्तर के उग्रवादियों से हथियारों और गोला -बारूद की खेप नहीं मिल पाई। लेकिन जैसे ही टीएसडी बंद हुई एक साल के भीतर मई 2013 में नक्सलियों में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं पर बड़ा हमला किया। हथियार वहीं पूर्वोत्तर के उग्रवादियों से मिले थे। काश, TSD होती तो आतंरिक और वाह्य दोनों मोर्चों पर कई जानें बच सकती थी

 

 

 

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