METOO:एमजे अकबर का प्रिया रमानी पर मानहानि का मुकदमा खारिज

 

Metoo: प्रिया रमानी के खिलाफ MJ Akbar के मानहानि मामले को कोर्ट ने किया खारिज

दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि यह ‘शर्मनाक’ है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध और हिंसा की घटनाएं उस देश में हो रही हैं, जिसमें महिलाओं के सम्मान विषय के इर्दगिर्द महाभारत और रामायण लिखी गई थी. अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार पांडे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एम.जे.
खास बातें
अदालत ने प्रिया रमानी को किया बरी
अपने फैसले के दौरान कोर्ट ने किया रामायम-महाभारत का जिक्र
महिला दशकों बाद भी कर सकती है शिकायत
नई दिल्ली17फरवरी।: दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि यह ‘शर्मनाक’ है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध और हिंसा की घटनाएं उस देश में हो रही हैं, जिसमें महिलाओं के सम्मान विषय के इर्दगिर्द महाभारत और रामायण लिखी गई थी. अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार पांडे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एम.जे. अकबर पर यौन दुराचार का आरोप लगाने वाली पत्रकार प्रिया रमानी को आपराधिक मानहानि मामले में बरी करते हुए यह टिप्पणी की. साल 2018 में मी टू आंदोलन के मद्देनजर, प्रिया ने अकबर पर साल 1994 में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. इसके बाद अकबर ने प्रिया के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था और केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया.

अदालत ने लक्ष्मण का भी किया जिक्र
अदालत ने 91-पृष्ठ के एक आदेश में कहा, ‘यह शर्मनाक है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध और हिंसा की घटनाएं देश में हो रही हैं, जहां ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ जैसे मेगा महाकाव्य महिलाओं के सम्मान के विषय के इर्दगिर्द लिखे गए थे.’ न्यायाधीश लिखते हैं कि रामायण में महिलाओं के सम्मान का संदर्भ मिलता है, जब राजकुमार लक्ष्मण से राजकुमारियों सीता का वर्णन करने के लिए कहा गया था, उन्होंने जवाब दिया कि वह केवल अपने पैरों को याद करते हैं, क्योंकि उन्होंने कभी उससे आगे नहीं देखा था.

अदालत ने रामायण-महाभारत का किया जिक्र
उन्होंने कहा, ‘रामचरितमानस के अरण्य कांड में कुलीन जटायु के बारे में लिखा है कि जब उसने सीता के अपहरण का अपराध देखा तो रक्षा करने आया था, मगर रावण ने उसके पंख काट दिए गए थे.’ अदालत ने आगे कहा, इसी तरह, महाभारत के सभा पर्व में, कुरु राज्यसभा में न्याय के लिए रानी द्रौपदी की अपील के बारे में संदर्भ मिलता है और उसने दुस्साशन द्वारा घसीटे जाने की वैधता पर सवाल उठाया गया था. आगे कहा गया, ‘भारतीय महिलाएं सक्षम हैं, उनके लिए उत्कृष्टता का मार्ग प्रशस्त करें, उन्हें केवल स्वतंत्रता और समानता की आवश्यकता है. ‘कांच की छत’ भारतीय महिलाओं को समाज में उनकी उन्नति के लिए एक अवरोधक के रूप में नहीं रोकेगी, अगर समान अवसर और सामाजिक सुरक्षा. उन्हें दिया जाए.’

 

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फैसले की 10 बड़ी बातें
किसी महिला को यौन शोषण के खिलाफ अपनी आवाज उठाने पर आपराधिक मानहानि के बहाने दंडित नहीं किया जा सकता है क्योंकि महिलाओं के जीवन और सम्मान की कीमत पर प्रतिष्ठा के अधिकार को संरक्षित नहीं किया जा सकता है.
यह शर्मनाक है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध और हिंसा की घटनाएं ऐसे देश में हो रही हैं जहां महिलाओं के सम्मान के विषय पर महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों की रचना की गयी.
किसी महिला को दशकों बाद भी अपनी शिकायत अपनी पसंद के किसी मंच पर रखने का अधिकार है.
यह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि ज्यादातर समय यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का अपराध बंद दरवाजों के पीछे या निजी तौर पर किया जाता है.
समय आ गया है कि हमारा समाज यौन शोषण और उत्पीड़न और पीड़ितों पर उनके प्रभाव को समझे.
समाज को समझना चाहिए कि दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति बाकी लोगों की ही तरह है और उसका परिवार और दोस्त हैं तथा समाज में भी उनका सम्मान है.
यौन शोषण के शिकार लोग कई सालों तक इस बारे में एक शब्द भी नहीं बोलते क्योंकि कभी-कभी उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं होता है कि वे पीड़ित हैं और यह मानकर चलते हैं कि उनकी ही गलती है.
ज्यादातर महिलाएं जो ऐसे दुर्व्यवहार झेलती हैं, वे इसके बारे में शर्म या सामाजिक कलंक को लेकर इसके खिलाफ नहीं बोलती हैं.
यौन शोषण महिला की गरिमा और उनके आत्मविश्वास को छीन लेता है.
भारतीय महिलाएं सक्षम हैं, उनके लिए उत्कृष्टता का मार्ग प्रशस्त करें, उन्हें केवल स्वतंत्रता और समानता की दरकार है।

 

 

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