60% विकलांगता पर भी अरबन नक्सल प्रो.साईंबाबा पर क्यों नहीं दिखाई दया?
Supreme Court Said On Not Discharge Saibaba Mind Is Everything For Terrorists And Naxalites
माओवादी लिंक मामला: शीर्ष कोर्ट ने साईबाबा क्यों नहीं किया बरी? कहा- आतंकियों-नक्सलियों के लिए दिमाग ही सब कुछ, समझें फैसले की बारीकियां
नई दिल्ली 18 अक्टूबर। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा अर्बन नक्सल को नजरबंद किए जाने की प्रवृत्ति बढ़ी है, लेकिन घर के अंदर से सब कुछ किया जा सकता है, यहां तक कि फोन से भी। नजरबंदी कभी विकल्प नहीं हो सकती। पीठ ने नजरबंदी के आग्रह को खारिज कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आतंकी या नक्सली गतिविधि में शामिल होने को शरीर की नहीं, बस दिमाग की जरूरत होती है। यही सबसे खतरनाक बात है। आतंकवादियों या नक्सलियों के लिए दिमाग ही सब कुछ है। शीर्ष कोर्ट ने यह कहते हुए माओवादियों से संबंध के मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को निलंबित कर दिया।
जस्टिस एमआर शाह व जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने शनिवार को यह भी कहा कि उक्त टिप्पणी का इस विशिष्ट मामले से संबंध नहीं है, बल्कि सामान्य तौर पर ऐसा देखा गया है। इससे पहले, साईबाबा के वकील आर बसंत ने दलील दी थी कि पूर्व डीयू प्रोफेसर पिछले 8 साल से जेल में हैं। उनकी उम्र 55 साल है और शरीर का 90 फीसदी हिस्सा काम नहीं करता है। वह व्हीलचेयर पर चलते हैं, इसलिए जेल में अब न रखा जाए। उन्हें घर में नजरबंद किया जाए और वह कोर्ट की हर शर्त का पालन करेंगे।
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध किया। कहा, अर्बन नक्सल को नजरबंद किए जाने की प्रवृत्ति बढ़ी है, लेकिन घर के अंदर से सब कुछ किया जा सकता है, यहां तक कि फोन से भी। नजरबंदी कभी विकल्प नहीं हो सकती। पीठ ने नजरबंदी के आग्रह को खारिज कर दिया।
जेल में ही रहेंगे, पर जमानत अर्जी कर सकते हैं दाखिल
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते अब सभी दोषी जेल में ही कैद रहेंगे। पीठ ने कहा कि वह सिर्फ हाईकोर्ट के फैसले और आदेश को निलंबित कर रही है, आरोपित जमानत अर्जी दाखिल कर सकता है।
महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर मांगा जवाब
शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर साईबाबा और अन्य दोषियों से 8 दिसंबर तक जवाब देने को कहा है।
अपराध की गंभीरता पर नहीं किया विचार
पीठ ने कहा, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराध बहुत ही गंभीर प्रकृति के हैं। ये समाज ही नहीं, देश की अखंडता व संप्रभुता के भी खिलाफ हैं। आरोपियों को सबूतों की विस्तृत समीक्षा के बाद दोषी ठहराया गया था। हाईकोर्ट ने योग्यता पर विचार नहीं किया।
2013 में पड़ा था घर पर छापा
2013 में गढ़चिरौली और दिल्ली पुलिस ने माओवादियों से संबंध के आरोप में छापा मारा। इसके बाद 2014 में महाराष्ट्र पुलिस ने साईबाबा को दिल्ली में उनके घर से गिरफ्तार किया था।
निचले कोर्ट के निष्कर्षों को पलटने के बाद ही बरी कर सकती अपीलीय अदालत : सुप्रीम कोर्ट
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस एमआर शाह ने कहा, हम मामले के गुण-दोष में नहीं जाने और (मंजूरी के आधार पर) निर्णय लेने के लिए एक शॉर्टकट खोजने के लिए हाईकोर्ट के आदेश में खामी ढूंढ रहे हैं।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 386 के अनुसार, अपीलीय अदालत निचली अदालत के निष्कर्षों को पलटने के बाद ही बरी कर सकती है। हमारा मानना है कि यह धारा 390 सीआरपीसी (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) के तहत शक्ति के प्रयोग के लिए एक उपयुक्त मामला है और हाईकोर्ट के आदेश को निलंबित करने की आवश्यकता है। हाईकोर्ट ने उन्हें केवल इस आधार पर आरोपमुक्त किया कि मंजूरी अमान्य थी और कुछ सामग्री उपयुक्त प्राधिकारी के समक्ष उसी दिन मंजूर की गई थी।
पीठ ने ये सवाल किए तैयार
क्या आरोपमुक्त करना उचित
क्या धारा 465 सीआरपीसी पर विचार करते हुए अभियुक्त को गुणदोष के आधार पर दोषी ठहराए जाने के बाद,अपीलीय अदालत का अनियमित मंजूरी के आधार पर आरोपित को आरोपमुक्त करना उचित है?
कोई मंजूरी नहीं दी गई थी
ऐसे मामले में जहां ट्रायल कोर्ट ने गुणदोष के आधार पर आरोपित को दोषी ठहराया है, क्या अपीलीय अदालत ने मंजूरी के अभाव के आधार पर आरोपित को बरी करना उचित है, खासकर जब सुनवाई के दौरान विशेष रूप से कोई मंजूरी नहीं दी गई थी?
क्या परिणाम होंगे?
मुकदमे में मंजूरी के संबंध में विवाद नहीं उठाने और उसके बाद ट्रायल कोर्ट को आरोपित को दिए गए अवसरों के बावजूद आगे बढ़ने की अनुमति देने के क्या परिणाम होंगे?
माओवादी लिंक के चलते डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा जेल में हैं.कोर्ट ने उनकी रिहाई पर रोक लगा दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने (Supreme Court) माओवादियों से कथित लिंक की वजह से दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा (GN Saibaba) और पांच अन्य लोगों को बरी करने के फैसले पर रोक लगा दी है. बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन्हें राहत देते वक्त मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं किया गया.
शारीरिक रूप से अशक्त और पूरी तरह व्हीलचेयर पर आश्रित साईबाबा की उम्र 52 साल है. वह गिरफ्तारी के बाद आठ साल से ज्यादा से नागपुर केंद्रीय जेल में बंद हैं और फिलहाल वह जेल में ही रहेंगे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने भी पांच दोषियों की रिहाई पर रोक लगा दी थी. दोषियों में से एक की मौत हो चुकी है।
देश की संप्रभुता और अखंडता का सवाल!
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने शनिवार को इस मामले की सुनवाई की. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने कहा कि निचली अदालत ने जिन अपराधों के लिए आरोपियों को दोषी ठहराया है, वे गंभीर एवं देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले की विस्तारपूर्वक समीक्षा करने की आवश्यकता है, क्योंकि हाई कोर्ट ने दोषियों के खिलाफ लगे आरोप की गंभीरता समेत मामले के गुण-दोष पर गौर नहीं किया. कोर्ट ने शारीरिक अशक्तता और स्वास्थ्य स्थिति के कारण जेल से रिहा करने और घर में नजरबंद करने के साईबाबा के अनुरोध को खारिज कर दिया.
क्या थी महाराष्ट्र सरकार की दलील?
महाराष्ट्र सरकार ने इस अनुरोध का विरोध करते हुए कहा था कि आज कल ‘शहरी नक्सलियों’ के घर में नजरबंद होने की मांग करने की नई प्रवृत्ति पैदा हो गयी है. कोर्ट ने, हालांकि इस मामले में साईबाबा को नए सिरे से जमानत याचिका दायर करने की अनुमति दे दी.
हाई कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में साईबाबा और अन्य को बरी कर दिया था.पीठ ने मामले में साईबाबा समेत सभी आरोपितों की जेल से रिहाई पर रोक लगा दी.बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने उन्हें जेल से रिहा करने का आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों निलंबित किया रिहाई का आदेश?
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील पर साईबाबा और अन्य को नोटिस जारी किए.कोर्ट ने कहा है कि 8 दिसंबर तक जवाब दाखिल कर दिया जाए. कोर्ट ने इस मामले के सभी आरोपितों की जेल से रिहाई पर रोक लगा दी.
कोर्ट ने 14 अक्टूबर के आदेश को निलंबित करते हुए कहा, ‘आरोपियों को सबूतों के गुण-दोष की विस्तृत विवेचना के बाद दोषी ठहराया गया था. अपराध बहुत गंभीर हैं, जो भारत के समाज, संप्रभुता एवं अखंडता के हितों के खिलाफ हैं. उच्च न्यायालय ने इन सभी पहलुओं पर गौर नहीं किया और यूएपीए में अनुमति के आधार पर आदेश पारित किया.’
सामाजिक कार्यकर्ताओं और वामपंथी संगठनों के एक वर्ग ने शीर्ष अदालत के फैसले पर निराशा जाहिर की है और उन्हें चिकित्सा उपचार के लिए जमानत देने का आग्रह किया. छात्र संगठन भी इस फैसले का विरोध कर रहे हैं.
क्या है महाराष्ट्र सरकार का रिएक्शन?
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शीर्ष न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि यह उन पुलिसकर्मियों के परिवारों को राहत देगा,जो नक्सली हमलों में शहीद हुये हैं.फडणवीस ने कहा,’मैं प्रो. जी एन साईबाबा को लेकर उच्च न्यायालय का आदेश निलंबित करने संबंधी शीर्ष अदालत के फैसले से संतुष्ट हूं.कल,मैंने कहा था कि उच्च न्यायालय का फैसला हमारे लिए आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला था,क्योंकि तकनीकी आधार पर एक व्यक्ति को रिहा करना,जिसके खिलाफ सीधे माओवादियों की मदद के पर्याप्त सबूत थे,गलत था.इसलिए,हमने कल ही सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.’
सुनवाई में तुषार मेहता ने कहा कि मामले में कुछ परेशान करने वाली बातें हैं और साईबाबा जम्मू कश्मीर में सशस्त्र अलगाववादी आंदोलन चलाने,देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने के खिलाफ युद्ध छेड़ने और माओवादी कमांडर्स बैठकों की व्यवस्था करने समेत विभिन्न गतिविधियों में शामिल थे.वह उनका मास्टरमाइंड था और उनकी विचारधारा को लागू करता था.