भूल पर भूल: पांच लाख वोट के बाद भी भाजपाई अयोध्या से विमुख
संपादकीयम:अयोध्या के अवसाद में कब तक डूबी रहेगी भाजपा, रामलला से दूरी क्यों बना रहे हैं पार्टी के नेता?
अयोध्या की हार को भाजपा भुला नहीं पा रही है. पर भाजपा को यह समझना होगा कि अयोध्या में कोई पहली बार भाजपा को हार नहीं मिली है. फिर तीसरी बार अगर केंद्र में लगातार पार्टी को सत्ता मिली है तो क्या उसमें रामलाल मंदिर की बिलकुल भूमिका नहीं है? अब तक हिमंता बिस्व सरमा ही आगे आए हैं, जो अयोध्या जाकर भगवान राम से आशीर्वाद लिए हैं.
राम लला दरबार में नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ
नई दिल्ली,13 जून 2024,भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में करारी हार हो या केंद्र में सरकार बनाने के लिए पूर्ण बहुमत के लायक सीट न जीतने का गम, कोई भी दुख अयोध्या में मिली पराजय के बराबर नहीं है. पर राजनीति और युद्ध में कोई भी पराजय स्थाई नहीं होती है. रण में सेनापति का रोल हमेशा युद्ध करना ही होता है. आज मिली हार को कल विजय में बदलना होता है. सेनापतियों के लिए किसी हार को अवसाद मान लेना ठीक नहीं होता. पर भारतीय जनता पार्टी अयोध्या की हार से उबर नहीं पा रही है. चुनाव परिणाम के 10 दिन बाद भी पार्टी के नेताओं को राम लला याद नहीं आ रहे हैं. अब तक केवल असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने ही अयोध्या पहुंचकर राम लला के दर्शन किए हैं. आखिर भाजपा नेताओं को क्या हो गया है और वे अयोध्या को लेकर क्यों अवसाद में हैं, आइये समझते हैं.
जय जगन्नाथ के संदेश को समर्थकों ने गलत समझ लिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए चुनाव परिणाम भाजपा और एनडीए की जीत बताया था. पर जय श्रीराम की जगह जय जगन्नाथ का संबोधन किया था। प्रधानमंत्री का आशय ये था कि भारतीय जनता पार्टी ने एक नया किला जीता है.ल्वह किला है उड़ीसा. चूंकि उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण/विष्णु) का वास है,इसलिए प्रधानमंत्री ने जय जगन्नाथ का उदघोष किया. रामलला भी विष्णु के ही अवतार हैं और श्रीकृष्ण भी. पर पार्टी कार्यकर्ताओं तक शायद संदेश गलत चला गया. क्योंकि चुनाव जीतने के बाद भी नेता और कार्यकर्ता अयोध्या के श्रीराम मंदिर की न चर्चा कर रहे और न ही जयश्रीराम का उद्घोष कर रहे. गलत संदेश जाने का एक और कारण यह रहा कि चुनाव जीतने की बात तो भाजपा कर रही है पर अभी तक विजयश्री का आशीर्वाद लेने राम लला के पास न केंद्र से और न ही उत्तर प्रदेश का कोई बड़ा नेता अयोध्या पहुंचा है. शायद यही कारण है कि अब कोई भी कार्यकर्ता या नेता राम लला का नाम लेने से परहेज करता दिख रहा है. महीने में 3 बार अयोध्या जाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी चुनाव परिणाम आने के बाद अयोध्या की ओर मुंह नहीं किया.
बाबरी विध्वंस पर भी ऐसा हुआ था पर पार्टी नहीं हुई थी विचलित
अयोध्या में हमेशा से भाजपा का प्रदर्शन विशेष नहीं रहा है. पर यह अयोध्या का तेज और राम लला का प्रताप ही है कि 1984 में केवल 2 संसदीय सीट जीतने वाली भाजपा आज देश की सबसे ताकतवर पार्टी बनकर बैठी है. राम मंदिर के उद्घाटन के बाद ही तुरंत भाजपा नहीं हारी है, इसके पहले भी जब राम मंदिर निर्माण से संबंधित कोई घटना हुई तो पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विवादास्पद ढांचे के गिरा देने के बाद अयोध्या विधान सभा क्षेत्र में भाजपा हारी थी. भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह को समाजवादी पार्टी नेता तेज नारायण पांडे उर्फ पवन पांडे ने हराया था.पवन पांडे ने 5405 वोट अंतर से अयोध्या विधानसभा सीट जीती थी. यही नहीं उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार की वापसी भी नहीं हो पाई थी.
1985 में हुई पालमपुर बैठक में भाजपा ने पहली बार पार्टी मंच से राम जन्मभूमि को मुक्त कराने का संकल्प लिया. अयोध्या के नाम पर 1989 के लोकसभा चुनाव में भाजपा पूरी हिंदी पट्टी पर छा गई, किंतु फैजाबाद सीट (अयोध्या) से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के मित्रसेन यादव चुने गए. यही नहीं अयोध्या विधानसभा सीट भी भाजपा हार गई थी. वहां से जनता दल के जय शंकर पांडेय जीते थे.
इसलिए अगर 2024 में भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर हार गई तो उसमें निराश होने जैसी कोई बात नहीं है. 54,567 वोटों से हार कोई बहुत बड़ी हार नहीं है. आखिर BJP के लल्लू सिंह को 4,99,722 वोट जो मिले वो राम लला के नाम पर ही मिले. करीब 5 लाख लोग लल्लू सिंह का चेहरा देखकर वोट नहीं दिए.वो सिर्फ राम लला के नाम पर ही भाजपा को वोट दिए थे. इसलिए इन 5 लाख लोगों का तिरस्कार किसी भी कीमत पर नहीं होना चाहिए.
यह मंदिर का ही प्रताप है कि पार्टी तीसरी बार सत्ता में है
भाजपा भले ही तीसरी बार लगातार केंद्र में सरकार बनाने का श्रेय राम लला को न दे पर इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि राम मंदिर निर्माण से भाजपा के पक्ष में हवा बनी थी. यह बात अलग है कि जहां अच्छा प्रत्याशी और सजग नेतृत्व रहा वहां उसे पार्टी ने भुना लिया. हम कई बार अच्छे ब्रैंड के सामान को इसलिए भी नहीं खरीदते कि स्थानीय एजेंसी के लोग अच्छे नहीं होते. अयोध्या समेत उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार का एक कारण ये भी हो सकता है. आखिर इसी उत्तर प्रदेश से 33 सीट भाजपा जीतने में सफल हुई है. मध्य प्रदेश -छत्तीसगढ में भी भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष का सफाया ही कर दिया है. दस साल लगातार सत्ता में रहने के बाद किसी भी नेता और पार्टी के खिलाफ असंतोष का लेवल बहुत बढ़ जाता है. इसके बावजूद भी अगर तीसरी बार भाजपा को सत्ता हासिल हुई है तो इसका सीधा मतलब है कि बहुत से लोगों पर असंतोष की जगह मंदिर बनाने का वादा पूरा करना भारी पड़ा.
अयोध्या की वीरानगी भाजपा को सताएगी
अयोध्या में मिली भाजपा की हार के बाद सोशल मीडिया पर कई दिनों से ‘अयोध्या’ ट्रेंड कर रहा है. कुछ लोग अयोध्यावासियों को खलनायक साबित करने में लगे हैं तो कुछ ने यह कहना शुरू किया कि हम अयोध्या जाएंगे पर वहां से कुछ खरीदेंगे नहीं. इस बीच ANI का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें अयोध्या के ई-रिक्शा वाले कह रहे हैं कि कुछ दिनों से खर्च निकालना मुश्किल हो गया है.हालांकि यह भी दुष्प्रचार ही है.भारतीय जनता पार्टी के विरोधियों ने यह प्रचारित करना शुरू कर दिया कि राम मंदिर में आस्था जैसी कोई बात नहीं थी यह सब भाजपा का एक प्रौपेगैंडा था जो फेल हो गया है. जनता सब समझ गई है और अब अयोध्या आने वाली नहीं है.
पहली बात यह समझनी होगी कि अयोध्या में जो भक्तों की संख्या में गिरावट आई है वो 4 जून को रिजल्ट आने के पहले से ही शुरू हो गई थी.इसका कारण नौतपा का शुरू होना था. गर्मी बढ़ने के बाद अचानक तीर्थयात्रियों की कमी होती ही है.चुनाव परिणाम आने के 2 दिन पहले अमर उजाला अपनी रिपोर्ट में लिखता है कि नौतपा में श्रद्धालुओं की संख्या दो गुना घट गई थी.रामलला के दरबार में जहां रोजाना डेढ़ लाख श्रद्धालु दर्शन-पूजन को आ रहे थे,नौतपा में यह संख्या घटकर 50 से 60 हजार पहुंच गई थी.नौतपा का समापन 2 जून को हुआ तो रामलला के दरबार में सुबह से शाम तक भक्तों की कतार लगी रही.शाम पांच बजे तक 81 हजार श्रद्धालु रामलला के दरबार पहुंचे थे.
एक बात और यह है कि राम मंदिर को आस्था से अधिक हिंदू अपने इतिहास के गौरव के प्रतीक के रूप में देखता है. पूरे देश में राम मंदिरों से अधिक हनुमान मंदिरों की स्थापना इसी का प्रतीक है. अयोध्या में भी हनुमान गढी के प्रति श्रद्धा भाव भक्तों का ज्यादा रहता है. राम मंदिर को हिंदू स्वाभिमान के प्रतीक के रूप में भाजपा ने प्रतिष्ठित किया है तो उसका कर्तव्य बनता है कि वो उस भरोसे को तोड़े नहीं. भाजपा नेताओं ने जल्दी ही आना जाना नहीं शुरू किया तो वास्तव में लोग इसका गलत अर्थ ही निकालेंगे.
भीषण गर्मी के बावजूद जून में बढ़ी राम मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या
अयोध्या के राम मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के संख्या में वृद्धि का एक कारण स्कूलों और कोर्ट की जून में होने वाली छुट्टियां भी हैं. कहा जा रहा था कि लोकसभा चुनाव 2024 परिणाम बाद अयोध्या में श्रद्धालुओं की संख्या घट गई है. हालांकि आंकड़े इसकी पुष्टि नहीं करते.
जून में भारी गर्मी के बावजूद प्रतिदिन अयोध्या में भगवान रामलला के दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ी है. यह संख्या मई में 60 हजार थी, जो जून में बढ़कर 61 हजार पार हो गई है. मई के आखिरी हफ्ते में और जून के शुरुआती महीने में तापमान 47 डिग्री सेल्सियस से अधिक रिकॉर्ड हुआ.
जून में बढ़ी श्रद्धालुओं की संख्या
22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से हर महीने श्रद्धालुओं की संख्या घट रही है लेकिन जून में प्रतिदिन औसत के हिसाब से आंकड़ा बढ़ता दिख रहा है. मई में हर रोज 59,677 श्रद्धालु भगवान रामलला के दर्शन को आए. वहीं जून में प्रतिदिन 61,333 लोग दर्शन को आ रहे हैं. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के दिये आंकड़े 12 जून तक के हैं.
जनवरी से घट रही थी संख्या
फरवरी से मार्च के बीच श्रद्धालुओं की संख्या 25 प्रतिशत घटी है. मार्च से अप्रैल में 44 प्रतिशत की कमी आई. अप्रैल से मई में 26 प्रतिशत की कमी हुई. जनवरी में प्रतिदिन 3,00,000 श्रद्धालु राम मंदिर के दर्शन करने आए.
वहीं फरवरी में प्रतिदिन 2,06,897 श्रद्धालु राम मंदिर के दर्शन करने आए. मार्च में प्रतिदिन श्रद्धालुओं की संख्या घटकर 1,45,161 हो गई. अप्रैल में प्रतिदिन श्रद्धालुओं की संख्या घटकर 83,333 हो गई.
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