मोदी मंत्रीमंडल को ‘वन नेशन,वन इलेक्शन’स्वीकार’
वन नेशन वन इलेक्शन का क्यों लिया फैसला? कैबिनेट मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी ने खोला रहस्य
वन नेशन वन इलेक्शन का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि लोग लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने भाजपा पर निशाना साधा है.
नई दिल्ली 18 सितंबर 2024 । वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर कैबिनेट मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी कैबिनेट ने बुधवार (18 सितंबर 2024) को वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. इससे अब देश की कुल 543 लोकसभा सीट और सभी राज्यों की कुल 4130 विधानसभा सीटों पर एक साथ चुनाव कराने का रास्ता खुलता दिग रहा है. इस मामले को लेकर पूरे देश में राजनीति गरम है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को स्वीकृति के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त की है.
कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं- प्रधानमंत्री मोदी
कैबिनेट मीटिंग में एक देश एक चुनाव का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “यह लोगों की लंबे समय से लंबित मांग रही है और हम इसे लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए लाए हैं. इसका कोई राजनीतिक मकसद नहीं है.”
प्रधानमंत्री ने कहा, “महत्वपूर्ण पहलू देश के लोगों को ओएनओपी की नाविक विशेषताओं के बारे में शिक्षित करना होगा. हमने केवल उसी का सम्मान किया है जो देश के लोग बहुत लंबे समय से चाहते रहे हैं. लगातार चुनाव, शासन और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कानून व्यवस्था पीछे रह जाती है और यह किसी भी देश के लिए अच्छा नहीं है.”
‘भारत का लोकतंत्र और मजबूत होगा’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि कैबिनेट ने एक साथ चुनाव कराने संबंधी उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकर कर लिया है. उन्होंने कहा, “मैं इस प्रयास की अगुआई करने और विभिन्न हितधारकों और विभिन्न हितधारकों से परामर्श करने के लिए हमारे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की सराहना करता हूं. यह हमारे लोकतंत्र को और भी अधिक जीवंत और सहभागी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.”
प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि इस देश को वन नेशन वन इलेक्शन की जरूरत है और इस पर बहस नहीं की जा सकती. केंद्र सरकार वन नेशन वन इलेक्शन बिल को शीतकालीन सत्र में संसद से पास कराएगी, जिसके बाद यह कानून बन जाएगा.
Narendra Modi Govt One Nation One Election Who Support Who Opposed Know All Updates
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर कितनी सहमति, कितना विरोध? जान लीजिए पूरी बात
प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर संबोधन के दौरान एक साथ चुनाव कराने की प्रतिबद्धता दोहराई। इस पर रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च-स्तरीय समिति ने रिपोर्ट भी सौंप दी। समिति ने संविधान संशोधन और कानूनों में बदलाव की सिफारिश की। जानिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से जुड़ी बड़ी बातें।
1-‘एक देश एक चुनाव’ पर केंद्र सरकार का बड़ा कदम
2-मोदी कैबिनेट ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ प्रस्ताव पर लगाई मुहर
3-पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की समिति ने सौंपी रिपोर्ट, फिर फैसला
मोदी 3.0 सरकार ने एक बार फिर बड़े फैसले की ओर कदम बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल स्वतंत्रता दिवस पर संबोधन के दौरान लाल किले की प्राचीर से ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का मुद्दा उठाया था। ये ऐसा इश्यू है जिस चर्चा काफी वक्त से चल रही थी, हालांकि अब करीब एक दशक बाद मोदी कैबिनेट ने इस पर मुहर लगा दी। मोदी सरकार के इस कदम पर भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और ‘इंडियाज एक्सपेरिमेंट विद डेमोक्रेसी – द लाइफ ऑफ ए नेशन थ्रू इट्स इलेक्शन्स’ के लेखक एस वाई कुरैशी ने अपनी बात रखी है। उन्होंने इस प्रस्ताव को संविधान और लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ बताया है। उनका मानना है कि अगर सरकार वास्तव में इस प्रस्ताव को लेकर गंभीर होती तो पिछले 10 सालों में सभी चुनाव एक साथ कराए जाते।
वन नेशन-वन इलेक्शन से हर बड़ी बात जानिए
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट में एसवाई कुरैशी ने इस संबंध में खुलकर अपनी बात रखी है। उन्होंने कहा कि 2013 में, प्रधानमंत्री बनने से पहले ही, नरेंद्र मोदी ने कई कारणों से एक देश, एक चुनाव की मांग दोहराई थी। तब से, कई समितियों ने इस विषय पर विचार किया है लेकिन कोई स्वीकार्य हल नहीं खोजा जा सका। ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर एक और प्रयास भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने किया। इस समिति को प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष पर बहस करने के बजाय, इसे लागू करने के ठोस तरीके सुझाने का काम सौंपा गया था। समिति ने 2 सितंबर, 2023 को नोटिफाई होने के बाद, 191 दिनों तक इस विषय पर काम किया और 14 मार्च, 2024 को अपनी 18,626 पेज की रिपोर्ट सौंपी।
पूर्व राष्ट्रपति कोविंद के नेतृत्व वाली समिति की रिपोर्ट में क्या है
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली समिति में विभिन्न क्षेत्रों के जाने-माने लोग शामिल थे। इस समिति ने राजनीतिक दलों और कानून के विशेषज्ञों, जिनमें पूर्व मुख्य न्यायाधीश, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और राज्य चुनाव आयुक्त शामिल थे, उनसे सुझाव आमंत्रित किए। जनता से भी सुझाव आमंत्रित किए गए थे। बार काउंसिल ऑफ इंडिया, भारतीय उद्योग परिसंघ, भारतीय वाणिज्य और उद्योग महासंघ आदि सभी को अपनी बात रखने का अवसर दिया गया।
80 प्रतिशत ने किया ‘एक साथ चुनाव’ का समर्थन
रिपोर्ट के अनुसार, 21,558 प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं, जिनमें से 80 प्रतिशत एक साथ चुनाव के पक्ष में थीं। 47 राजनीतिक दलों से भी प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं, जिनमें से 32 ने इस प्रणाली का समर्थन किया। 15 ने इसका विरोध करते हुए इसे अलोकतांत्रिक और संघ विरोधी बताया। विरोध करने वाले राजनीतिक दलों ने आशंका व्यक्त की कि इससे क्षेत्रीय दलों का मार्जिनलाइजेशन होगा। राष्ट्रीय दलों का प्रभुत्व बढ़ेगा और राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू होगी।
रिपोर्ट के आधार पर एक्सपर्ट्स ने क्या कहा
इन्ही रिपोर्ट पर रिसर्च के आधार पर, फाइनल विश्लेषण किया गया। एक साथ चुनाव का समर्थन करने वालों की राय थी कि अलग-अलग चुनावों से संसाधनों की बर्बादी होती है। हालांकि अधिकांश विशेषज्ञों की राय थी कि ऐसा करने को संविधान और संबंधित कानूनों में संशोधन करने की आवश्यकता होगी। उन्होंने जोर दिया कि ऐसे संशोधन अलोकतांत्रिक या संघ विरोधी नहीं होंगे। वे संविधान की मूल संरचना के विपरीत नहीं होंगे और इसका परिणाम राष्ट्रपति शासन प्रणाली में नहीं होगा।
सभी सुझावों और दृष्टिकोणों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद, समिति एक साथ चुनाव कराने के लिए दो-चरणीय दृष्टिकोण की सिफारिश करती है। पहले चरण के रूप में, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जाएंगे। दूसरे फेज में, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ इस तरह से समन्वित किए जाएंगे कि ये भी सौ दिनों के भीतर हो जाएं।
संविधान और कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव
रिपोर्ट की सबसे अच्छी बात यह है कि यह विस्तृत है। ये कई खंडों में 21 वॉल्यूम्स के साथ हैं। इसमें अतीत और वर्तमान की सभी राय को ईमानदारी से पेश किया गया, जो इसे एक अत्यंत उपयोगी दस्तावेज बनाता है। समिति ने सर्वसम्मति से राय दी कि देश में एक साथ चुनाव होने चाहिए। इसने संविधान और संबंधित कानूनों में आवश्यक संशोधन का प्रस्ताव रखा। इसने संविधान में एक नया अनुच्छेद, अर्थात् 82A, जोड़ने का सुझाव दिया, जिसमें कहा गया है, ‘आर्टिकल 83 और 172 में निहित किसी भी बात के होते हुए भी, तय डेट के बाद होने वाले किसी भी आम चुनाव में गठित सभी विधान सभाएं लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति पर समाप्त हो जाएंगी।’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जहां किसी राज्य विधानसभा को अविश्वास प्रस्ताव, त्रिशंकु सदन, या किसी अन्य घटना के कारण भंग कर दिया जाता है, तो ऐसे नए सदन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जाएंगे, जिसका कार्यकाल लोकसभा के साथ समाप्त होगा। यह मध्यावधि चुनाव से नहीं रोकता है। कल्पना कीजिए कि उम्मीदवार एक से दो साल की अवधि के लिए चुनाव पर करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं। यह निश्चित रूप से एक साथ चुनाव नहीं है।