जिनके लिए बने मुल्ला मुलायम,वे मुस्लिम उनके लिए मांग रहे जहन्नुम

मुस्लिमों के लिए मुलायम सिंह यादव ने क्या नहीं किया, लेकिन उनके निधन पर उसी समुदाय के लोगों ने इस तरह से किया याद
साल 1990 में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाकर राष्ट्रीय स्तर सुर्खियों में आए उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अब इस दुनिया में नहीं रहे। मुलायम के निधन की खबर सुनकर उनके विरोधी नेता भी शोक जता रहे हैं। अयोध्या गोलीकांड के बाद मुलायम सिंह यादव मुसलमानों के बड़े हीरो के रूप में उभरे थे। जबकि हिंदू संगठनों ने समाज में उनके खिलाफ नफरत फैलाई। उन्हें मुल्ला मुलायम और मौलाना मुलायम कहा जाने लगा। वहीं, दूसरी ओर सोशल मीडिया पर कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम उनके जाने का जश्न मना रहे हैं। फेसबुक पर अली सोहराब नाम के शख्स ने लिखा, ‘मुलायम सिंह यादव अब इस दुनिया में नहीं रहे।’ इसके साथ उसने #FNJ भी लिखा है यानि ‘फी नारे जहन्नम’।

जिसके बाद पोस्ट को देखते ही फेसबुक पर कट्टरपंथी मुस्लिमों की मानो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। ज्यादातर ने इस पोस्ट पर लॉफिंग इमोजी बनाया है। मोहम्मद शाहिद नाम का एक यूजर पूछता है कि ये FNJ क्या है। इस पर सलाफी नाम का यूजर कहता है कि ‘फी नारे जहन्नम’। इसके अलावा ये लोग मुलायम सिंह यादव को ‘काफिर’ बताकर उनके निधन की खबर वाली फेसबुक पोस्ट पर ‘लाफिंग’ रिएक्शन दे रहे हैं।

बता दें कि 2 नवंबर, 1990 को अयोध्या में रामधुन में राम भक्तों पर फायरिंग हुई थी। अयोध्या की गलियों में रामभक्तों को दौड़ा-दौड़ा कर निशाना बनाया गया था। 3 नवंबर 1990 को एक रिपोर्ट में लिखा गया, “राजस्थान के श्रीगंगानगर का एक कारसेवक, जिसका नाम पता नहीं चल पाया है, गोली लगते ही गिर पड़ा और उसने अपने खून से सड़क पर लिखा सीताराम। पता नहीं यह उसका नाम था या भगवान का स्मरण। मगर सड़क पर गिरने के बाद भी सीआरपीएफ की टुकड़ी ने उसकी खोपड़ी पर सात गोलियाँ मारी।” राम भक्तों के इस नरसंहार के बाद मुलायम को मौलाना मुलायम का तमगा हासिल हुआ।

इस गोलीकांड के बाद मुलायम देशभर में मुसलमानों के पसंदीदा नेता बन गए थे। हालांकि, इस घटना के बाद राम मंदिर आंदोलन की कमान संभालने वाली बीजेपी को संजीवनी मिली। इसी गोली कांड को भुनाकर बीजेपी पहली बार 1991 यूपी की सत्ता में आई। लेकिन ये भी सच्चाई है कि राम मंदिर आंदोलन को दबाने की कोशिश करने वाले मुलायम सिंह यादव भी उसी गोली कांड की बदौलत एक बड़े राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभरे।

आपको बता दें, मुलायम सिंह यादव ने बतौर मुख्यमंत्री 1990 में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाई थी। उनका ये फैसला उनके राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा और विवादित फैसला रहा है। उस समय देश में बड़े पैमाने पर बने सांप्रदायिक माहौल में लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव के बीच मुसलमानों का बड़ा हमदर्द बनने की होड़ थी।

लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के हक में माहौल तैयार करने के मकसद से सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा पर निकले हुए थे। जिस दौरान लालू प्रसाद यादव ने 23 अक्टूर को बिहार में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करके उनकी रथयात्रा रोकवा दी गई थी। इस कदम से वो मुसलमानों की खूब हमदर्दी बटोर रहे थे। आडवाणी की गिरफ्तारी के बावजूद 30 अक्टूबर को कारसेवा करने के लिए अयोध्या में लाखों कारसेवक जुटे गए थे। जिसके बाद मुलायम सिंह यादव ने बेकाबू कारसेवकों पर गोली चलवाकर मुसलमानों के बीच बड़े हीरो बन गए थे।

बताते चलें कि 1992 में बाबरी मस्जिद गिरने के बाद मुल्ला मुलायम वाली छवि ही मुलायम के काम आई। उन्होंने बसपा के साथ गठबंधन करके 1993 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी दे दी थी। जिस दौरान ये नारा खूब उछल था, मिले मुलायम कांशीराम हवा में उड़ गए जय श्रीराम।

मुजफ्फरनगर कांड को लेकर मुलायम सिंह यादव को भूलना मुश्किल -धीरेंद्र प्रताप

उत्तराखंड कांग्रेस के उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि 2 अक्टूबर 1994 को घटित रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर कांड को लेकर मुलायम सिंह यादव को भूलना मुश्किल है ।
धीरेंद्र प्रताप ने कहा कि यद्यपि मुलायम सिंह यादव ने रमाशंकर कौशिक कमेटी बनाकर उत्तराखंड राज्य की रूपरेखा की शुरुआत की थी परंतु जिस तरह से 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर दिल्ली जा रही उत्तराखंडियों की रैली पर मुलायम सिंह यादव की सरकार में गोलियां चलाई गई और मां बहनों की आबरू लूटी गई उसको देखते हुए उत्तराखंडयों को मुलायम सिंह यादव को माफ करना मुश्किल है।
उन्होंने कहा यद्यपि हिंदू संस्कारों में मृत्यु के बाद व्यक्ति के सभी अतीत के कारनामों को भुला दिया जाता है और उसे माफ कर दिया जाता है परंतु उत्तराखंडियों के दिल पर 2 अक्टूबर 1994 को जो घाव लगे हैं उन्हें भूलना मुश्किल है। उन्होंने कहा फिर भी रमाशंकर कौशिक का उत्तराखंड राज्य की रूपरेखा बनाने के लिए गठन मुलायम सिंह की अच्छी पहल थी जिसे निश्चित ही याद रखना होगा।

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