बरनावा: शिवमन्दिर और लाक्षागृह को दरगाह-कब्रिस्तान बता रहे थे मुस्लिम,52 साल बाद मुकदमा जीते सनातनी

875 Dates Were Taken In 54 Years, 12 Witnesses Present In Case Of Lakshagriha, Now Decision Is In Hindu Favor
54 साल बाद बड़ा फैसला: 875 लगीं तारीखें, 12 बने गवाह, पहले ज्ञानवापी… अब लाक्षागृह भी हिंदुओं का हुआ

बागपत 05 फरवरी 2024 । बरनावा लाक्षागृह का मामला 54 साल तक कोर्ट में चला। इस दौरान 875 तारीखें लगीं और 12 गवाह बने। आखिर फैसला हिंदुआ के पक्ष में आया है। अब ज्ञानवापी के बाद लाक्षागृह भी हिंदुआ का हो गया है।


न्यायालय में बरनावा लाक्षागृह का मामला 54 साल तक चला। जिसमें करीब 875 तारीखें लगाई गईं और दोनों पक्षों के 12 गवाह बने। जिस पर न्यायालय ने 32 पेज पर 104 बिंदुओं में फैसला दिया। जिसमें न्यायाधीश ने आखिर में केवल इतना लिखा कि वादी वाद साबित करने में असफल रहे और इसे निरस्त किया जाता है।

हिंदू पक्ष के अधिवक्ता रणवीर सिंह तोमर ने बताया कि वर्ष 1997 से वह इस मुकदमे को लड़ रहे हैं। उनके अनुसार, इसमें शुरूआत से अभी तक 875 तारीख लगी है। यह मामला कई बार फैसले पर आता था और उसके बाद फिर उम्मीद टूट जाती थी। उनके अनुसार, इसमें दोनों पक्षों से 12 गवाह रहे। वादी पक्ष से मुकीम खान ने सबसे पहले याचिका दायर की और उनकी मौत के बाद खैराती खान व अहमद खान ने मरने तक पैरवी की तो अब खालिद खान पैरवी कर रहे थे।
इस तरह ही प्रतिवादी पक्ष में शुरूआत में कृष्णदत्त रहे और उनकी मौत के बाद हर्रा गांव के छिद्दा सिंह, बरनावा के जगमोहन, बरनावा के जयकिशन महाराज ने पैरवी की। इन सभी की मौत हो चुकी है। वहीं, अब मेरठ की पंचशील कॉलोनी में रहने वाले राजपाल त्यागी व जयवीर, बरनावा के आदेश व विजयपाल कश्यप पैरवी कर रहे थे। यह सभी इस मामले में गवाह भी रहे।

बागपत जनपद में ऐतिहासिक टीला महाभारत का लाक्षागृह को शेख बदरुउद्दीन की दरगाह व कब्रिस्तान बताने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका को सोमवार को कोर्ट ने खारिज कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि बरनावा में दरगाह नहीं बल्कि लाक्षागृह की जमीन है।
बागपत जनपद में हिंडन और कृष्णा नदी के संगम पर बसे बरनावा गांव स्थित ऐतिहासिक टीला महाभारत का लाक्षागृह है या शेख बदरुउद्दीन की दरगाह व कब्रिस्तान को लेकर 53 वर्षों से न्यायालय में चल रहे वाद पर सोमवार को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। बरनावा में दरगाह नहीं, लाक्षागृह की जमीन है और इसलिए ही मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी गई।

बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वर्ष 1970 में मेरठ की अदालत में दायर किए वाद में लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया था। इसमें मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज दोनों का निधन हो चुका है। दोनों पक्ष से अन्य लोग वाद की पैरवी कर रहे हैं। जिला अलग हो जाने के बाद अब यह मामला सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम की कोर्ट में चल रहा था।
वहीं, दोनों पक्षों के लोग अपने-अपने वकीलों के माध्यम से कोर्ट में साक्ष्य भी प्रस्तुत कर रहे थे। मामले में कोर्ट से मौके का मुआयना कराने की भी अपील की गई थी। वाद में कोर्ट द्वारा फैसला सुनाने के लिए पिछले कई महीने से जल्द तारीख लगाई जा रही थी। इस मामले में सोमवार को कोर्ट ने अपना फैंसला सुनाया और मुस्लिम पक्ष की याचिका को निरस्त कर दिया गया।

कोर्ट में पेश किए गए साक्ष्य के आधार पर ये माना गया कि वहां दरगाह व कब्रिस्तान की ज़मीन किसी भी जगह राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है।
बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वर्ष 1970 में मेरठ की अदालत में वाद दायर किया था, जिसमें उन्होंने लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया गया था। इसमें मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज दोनों का निधन हो चुका है और दोनों पक्ष से अन्य लोग पैरवी कर रहे हैं। अब यह मामला बागपत में सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम की कोर्ट में चल रहा था, जिसमें एक पक्ष से अय्यूब, मुन्ना समेत अन्य और दूसरे पक्ष से गांधी धाम समिति के प्रबंधक राजपाल त्यागी वकीलों के माध्यम से कोर्ट में अपने-अपने साक्ष्य प्रस्तुत कर चुके थे, जिससे केस अब फैसले पर आ चुका था।
वाद दायर करने वाले पक्ष ने दावा किया था दरगाह और कब्रिस्तान है यह
इसमें मुकीम खान की तरफ से वाद दायर करते हुए दावा किया गया था कि बरनावा में प्राचीन टीले पर शेख बदरूद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान है। वह सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में दर्ज होने के साथ ही रजिस्टर्ड है। उसमें कहा गया था कि कृष्णदत्त महाराज बाहर के रहने वाले हैं और वह कब्रिस्तान को खत्म करके हिंदुओं का तीर्थ बनाना चाहते हैं।

प्रतिवादी पक्ष ने दिया था यह तर्क
बरनावा के लाक्षागृह स्थित संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य आचार्य अरविंद कुमार शास्त्री का कहना है कि यह एतिहासिक टीला महाभारत कालीन लाक्षाग्रह है। यहां सुरंग व अन्य अवशेष इसका प्रमाण हैं। इसके सभी साक्ष्य कोर्ट में पैरवी कर रही गांधी धाम समिति के पदाधिकारियों ने दिए हुए थे।

मौके का मुआयना कराने को प्रार्थना देंगे
गांधी धाम समिति के वकील रणवीर सिंह तोमर ने बताया कि उनकी तरफ से सभी साक्ष्य कोर्ट में दिए हुए थे। वहीं अदालत के फैसले से वह काफी खुश हैं।

मंदिर को मजार बताते थे मुस्लिम, ज्ञानवापी के बाद लाक्षागृह हिंदुओं का हुआ

वकील रणवीर सिंह तोमर ने कहा कि ज्ञानवापी के बाद अब लाक्षागृह भी हिंदुओं का हुआ। उन्होंने कहा कि इस तरह से लगातार हिंदुओं के धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों को कब्जाने का प्रयास किया जा रहा है। बरनावा से भी हिंदुओं की आस्था जुड़ी थी और यहां जिसको मुस्लिम मजार बताते थे, वह भगवान शिव का मंदिर था। उन्होंने कहा कि अब उस मंदिर का जीर्णोद्धार करके पूजा की जा सकती है।

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