इस ‘अल्लाहूअकबर’ के ही तो इंतजार में थी भाजपा!!!

मुसलमान तो वैसे भी अखिलेश यादव को वोट देते, ये टिकैत ने ‘अल्लाह हू अकबर’ क्यों कह दिया!
जिस मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत की गई, वो 2013 में हिन्दू-मुस्लिम दंगे का केंद्र रहा था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों के बाद इस हिस्से का राजनीतिक और सामाजिक ताना-बाना पूरी तरह से बदल चुका है. दंगों में खासतौर से जाटों और मुस्लिमों के बीच हुए खूनी संघर्ष में कई लोगों को जान गंवानी पड़ी थी।
बीती 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में हुई किसान महापंचायत (Kisan Mahapanchayat) में बड़ी संख्या में कई राज्यों के किसानों ने आकर ‘शक्ति प्रदर्शन’ किया. वैसे, किसान आंदोलन के तमाम प्रमुख चेहरे पूरी तरह से राजनीतिक हो चुके हैं, इसमें कोई शको-सुबह नहीं रह गया है. इसी क्रम में किसान आंदोलन के कर्ता-धर्ताओं ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत के जरिये अपने ‘मिशन यूपी’ की शुरूआत कर दी है. वैसे, किसानों को लेकर बनाए गए मंच का संयुक्त किसान मोर्चा के सभी नेताओं ने जमकर राजनीतिक इस्तेमाल किया. योगेंद्र यादव से भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) तक ने केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार पर जमकर निशाने साधे. इस किसान महापंचायत में जुटी भारी भीड़ से भी ज्यादा चर्चा राकेश टिकैत के मंच से लगाए गए ‘अल्लाह हू अकबर’ नारे ने बटोरी. हालांकि, राकेश टिकैत ने नारे को लेकर कहा कि ऐसे नारों की परंपरा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के समय से रही है. लेकिन, इस नारे के अपने अलग राजनीतिक मायने भी हैं.

जिस मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत की गई, वो 2013 में हिन्दू-मुस्लिम दंगे का केंद्र रहा था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों के बाद इस हिस्से का राजनीतिक और सामाजिक ताना-बाना पूरी तरह से बदल चुका है. दंगों में खासतौर से जाटों और मुस्लिमों के बीच हुए खूनी संघर्ष में कई लोगों को जान गंवानी पड़ी थी. उस समय उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की सरकार थी. अखिलेश यादव ने अपने एमवाई (मुस्लिम+यादव) समीकरण को बचाए रखने के लिए भरपूर कोशिशें की थीं. जिसका फायदा भाजपा को पहले 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में मिला था.2019 में भी कमोबेश यही स्थिति भाजपा के पक्ष में जाती दिखी थी.वहीं,अपने ‘मिशन यूपी’ को साकार करने को राकेश टिकैत ने मंच से ‘अल्लाह हू अकबर’ का नारा लगाकर इस दरार को पाटने की जो कोशिश का है,वो उल्टी पड़ती नजर आ रही है.

दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन और बसपा की मुस्लिम तुष्टीकरण की कोशिशों को देखते हुए जाटों ने एकजुट होकर भाजपा को वोट दिया था. 2017 में सपा-कांग्रेस और बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर ही अपना दांव लगाया और इस मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का असर कुछ ऐसा रहा था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई मुस्लिम बहुल सीटों के साथ ही भाजपा ने पूरे प्रदेश में 60 फीसदी मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. 2022 की तैयारी में किसानों के मंच से हुई राजनीति में संदेश फिर से उसी मुस्लिम तुष्टिकरण का दिया गया है. वर्तमान स्थितियों को देखते हुए भाजपा के सामने सबसे बड़ा सियासी दल सपा को ही माना जा रहा है. तो, ये बात तय थी कि भाजपा को हराने के लिए एकतरफा जाने वाला मुस्लिम वोट सपा प्रमुख अखिलेश यादव के ही खाते में जाता. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि मुसलमान तो वैसे भी अखिलेश यादव को वोट देते, ये टिकैत ने ‘अल्लाह हू अकबर’ क्यों कह दिया?

2022 की तैयारी में किसानों के मंच से हुई राजनीति में संदेश फिर से उसी मुस्लिम तुष्टिकरण का दिया गया है

अपनी इमेज बदलने में जुटे राकेश टिकैत

मुजफ्फरनगर जिले में हुए कवला कांड के बाद 7 सितंबर, 2013 को ‘बहू-बेटी बचाओ महासम्मेलन’ किया गया था. इस महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत और प्रवक्ता राकेश टिकैत ने मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिए थे. कई खापों के चौधरियों ने इस महापंचायत में बहू-बेटियों के साथ बदसलूकी करने वालों से खुद ही निपटने का निर्णय लिया था. इस महापंचायत के बाद मुजफ्फरनगर में दंगे भड़क गए थे. जिसे लेकर राकेश टिकैत पर मुस्लिमों के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी में एफआईआर भी दर्ज की गई थी. हालांकि, इसी साल जनवरी में किसानों के नाम पर नरेश टिकैत ने महापंचायत कर मुस्लिम खाप नेता गुलाम जौला को भी बुलाया था. नरेश और राकेश टिकैत ने गुलाम जौला के पैर छूकर माफी मांगी थी. कहना गलत नहीं होगा कि राकेश टिकैत ने मंच से अल्लाह हू अकबर के नारे से जाट और मुस्लिम एकता से ज्यादा अपनी बिगड़ी इमेज चमकाने की कोशिश की है.

क्या जाट भूल जाएंगे मुजफ्फरनगर दंगे?

बालियान खाप के नेता राकेश टिकैत के इस नारे ने जाट समुदाय को एक बार फिर से मुजफ्फर नगर दंगों की याद दिला दी है. किसानों के मंच का राजनीतिक इस्तेमाल लोगों को ज्यादा दर्द नहीं देगा. लेकिन, जिस मुस्लिम तुष्टीकरण के खिलाफ जाट समुदाय ने एकजुट होकर भाजपा को वोट दिया था. वही कहानी किसान महापंचायत के मंच से फिर से दोहरा दी गई है. कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा और सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ऐसी ही किसी गलती का इंतजार कर रहे थे. संयुक्त किसान मोर्चा के नेता किसान आंदोलन के सहारे भाजपा के खिलाफ जो माहौल तैयार करने की कोशिश कर रहे थे, उसे उन्होंने मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर खुद ही कमजोर कर लिया है. ऐसा ही कुछ बसपा सुप्रीमो मायावती भी अपने सिलसिलेवार ट्वीट में कहती नजर आईं. मायावती ने कहा कि यूपी के मुजफ्फर नगर जिले में हुई किसानों की महापंचायत में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द के लिए भी प्रयास अति-सराहनीय. इससे निश्चय ही सन 2013 में सपा सरकार में हुए भीषण दंगों के गहरे जख्मों को भरने में थोड़ी मदद मिलेगी, किन्तु यह बहुतों को असहज भी करेगी.

बालियान खाप के नेता राकेश टिकैत के इस नारे ने जाट समुदाय को एक बार फिर से मुजफ्फर नगर दंगों की याद दिला दी है.

भाजपा विधायक पर हमले से भड़क गई थी खाप

बीते महीने भारतीय किसान यूनियन की राजधानी कहे जाने वाले कस्बे सिसौली में भाजपा विधायक उमेश मलिक की गाड़ी पर हमला हुआ था. जिसके बाद भाजपा और किसान यूनियन बीच तनाव बन गया था. इसके बाद जाट समुदाय की बड़ा कुनबे गठवाला खाप से बालियान खाप के नरेश और राकेश टिकैत की तनातनी बढ़ गई थी. भाजपा विधायक पर हमले से नाराज़ गठवाला खाप के चौधरी राजेंद्र सिंह ने किसान महापंचायत के बहिष्कार तक की घोषणा कर दी थी. हालांकि, नरेश टिकैत ने किसी तरह किसानों के मुद्दों पर उन्हें साथ आने को मना लिया. दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में छोटी-बड़ी दर्जनभर से ज्यादा खाप हैं और ये किसानों के मुद्दे पर ही किसान आंदोलन के साथ नजर आती हैं. इनका राजनीतिक झुकाव किस ओर होगा, इसके बारे में केवल कयास ही लगाए जा सकते हैं. वहीं, किसान महापंचायत में कुछ लोगों ने मंच के सामने हूटिंग भी की थी, जिस पर राकेश टिकैत भड़क गए थे. टिकैत गुस्से में कहते दिखे कि इन्हें पीछे बिठाओ और सबकी विचारधारा पता करो.

नारे का फायदा किसे मिलेगा?

किसी जमाने में जाट और मुस्लिम गठजोड़ के सहारे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के किसान नेता चौधरी चरण सिंह की तूती बोलती थी. लंबे समय तक चौधरी अजीत सिंह ने विरासत सहेज के भी रखी. लेकिन, उनका प्रभाव धीरे-धीरे खत्म होता गया और सपा, कांग्रेस, बसपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजबूत पकड़ बना ली. वहीं, मुजफ्फर नगर दंगों बाद जाट-मुस्लिम गठजोड़ का राजनीतिक फॉर्मूला पूरी तरह से ध्वस्त हो गया. स्थितियां ऐसी बदलीं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा और आरएलडी के एकसाथ आ जाने के बाद भी अजीत सिंह और जयंत चौधरी अपना राजनीतिक गढ़ कही जाने वाली लोकसभा सीटों मुजफ्फरनगर और बागपत को भी नहीं बचा सके थे. वही 2017 विधानसभा चुनाव में भी आरएलडी का केवल एक ही विधायक जीत पाया था. हालांकि, अजीत सिंह के निधन बाद आरएलडी प्रमुख बने जयंत चौधरी ने किसान आंदोलन के सहारे जाट समुदाय के बीच फिर से पैंठ बनाने की कोशिश की है.

अगर ये मान लिया जाए कि जाट समुदाय भाजपा से नाराज है, तो भी उसके सपा, कांग्रेस के साथ जाने की संभावना बहुत कम ही नजर आती है. जाट समुदाय की राजनीति कई खापों में बंटी हुई है और, इन खाप पंचायतों के कई चौधरी- जयंत चौधरी और भाजपा के नाम पर अभी से बंटे हुए नजर आ रहे हैं. वहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मायावती का गढ़ भी माना जाता है. मायावती इस क्षेत्र में दलित मतदाताओं के सहारे एक बड़ी हिस्सेदारी रखती हैं. तो, उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. वैसे, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होने वाली इस सियासी टक्कर का फायदा किसे मिलेगा, ये तो यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे सामने आने के बाद ही पता चलेगा. लेकिन, इतना कहा जा सकता है कि ये सभी दल अलग-अलग विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, तो मुकाबला कांटे का होगा. और, जरूरी नहीं है कि राकेश टिकैत जो ख्वाब देख रहे हैं. वो पूरा भी हो.

लेखक
देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

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