कश्मीर में नेगेटिव वॉर: माहौल बन रहा कि सरकार पर भारी पड़ रहे आतंकी

कश्मीर में आतंकियों ने अपना ट्रैक बदला है, तो क्या पर्सेप्शन की लड़ाई में पिछड़ रही सरकार?

वो साल था 2016, भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक कर दुनिया को दिखा दिया कि वह आतंकी हमलों को बर्दाश्त नहीं करेगा। उस ऐक्शन को जिसने लीड किया था उनका नाम था लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा। अब वह रिटायर हो चुके हैं लेकिन कश्मीर में एक बार फिर जब आतंकी खून की होली खेलने को आतुर दिख रहे हैं तो उन्होंने सरकार को अहम सुझाव दिए हैं।

Kashmiri Hindus Exodus: टारगेट किलिंग के खौफ में घाटी से हिंदुओं का पलायन, कहा- सरकार सुरक्षा देने में नाकाम

हाइलाइट्स
रिटायर्ड जनरल डीएस हुड्डा ने केंद्र सरकार को दिए अहम सुझाव
कश्मीर में हिंदुओं की हत्याओं को लेकर कहा, आतंकियों ने रणनीति बदली
पंडितों को रीलोकेट किया जाए और स्थानीय पुलिस को मजबूत बनाया जाए

नई दिल्ली 4 जूून : सर्जिकल स्ट्राइक के हीरो रिटायर्ड जनरल डीएस हुड्डा ने हाल में कश्मीरी पंडितों या कहिए अल्पसंख्यक हिंदुओं पर बढ़े आतंकी हमले को लेकर सरकार को कई सुझाव दिए हैं। आतंकियों का मंसूबा भांपते हुए उन्होंने ‘नैरेटिव वॉर’ की बात की है। इसके लिए सरकार को जोरदार पलटवार की जरूरत है। हुड्डा उत्तरी कमान के सैन्य कमांडर रहे हैं, ऐसे में वह कश्मीर की नब्ज समझते हैं। अब ताजा हालात में हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख लिखा है। 2 जून को एक हमलावर कुलगाम के Ellaquai Dehati Bank में घुस बैंक मैनेजर विजय बेनीवाल को गोली मारता है। विजय राजस्थान के थे। कुछ घंटे बाद ही बडगाम में ईंट भट्ठे पर काम करने वाले दो हिंदू मजदूर निशाना बनते हैं। गोली से घायल बिहार के दिलखुश कुमार दम तोड़ देते हैं। ये हत्याएं उन टारगेट किलिंग्स का हिस्सा हैं जिससे पिछले दिनों में कश्मीरी पंडित और हिंदू समुदाय भयभीत हैं। जनरल हुड्डा कहते हैं कि वैसे तो सभी निर्दोष लोगों की जान जाने की समान पीड़ा होनी चाहिए लेकिन अल्पसंख्यकों की हत्या का असर व्यापक होगा। इससे समुदाय में पैनिक और डर बढ़ता ही जाता है। हम पहले से पंडितों का प्रदर्शन देख रहे हैं जो कश्मीर से बाहर ट्रांसफर मांग रहे हैं। हिंदुओं की हत्याओं से जम्मू क्षेत्र में भी गुस्सा है इससे क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है।

ये नैरेटिव वॉर क्या है

उन्होंने साफ कहा कि नागरिकों पर ये हमले ‘नैरेटिव वॉर’ का हिस्सा हैं, जो आतंकी संगठनों की रणनीति का अहम हिस्सा है। वे यह दिखाकर सरकार की विश्वसनीयता खत्म कर देना चाहते हैं कि वह लोगों को सुरक्षा दे पाने में असहाय और असमर्थ है। यह दिखाने की कोशिश है कि आतंकी कश्मीरी पंडितों को जहां चाहें वहां निशाना बना सकता है, जबकि सरकार इस समुदाय के लोगों को वापस कश्मीर में बसाने के प्लान पर काम कर रही है।

सरकार जम्मू और कश्मीर में सामान्य हालात का दावा कर रही है लेकिन आतंकी इन हमलों से खौफ का वातावरण चाहते हैं। हालांकि समय के साथ इस बात की भी पूरी संभावना है कि निर्दोष लोगों की हत्याओं से आतंकियों के खिलाफ माहौल पैदा हो सकता है। दुर्भाग्य से आतंकियों के पास शायद ही कोई दीर्घकालिक रणनीति होती है।

मैग्नेटिक बम से बड़ी साजिश

जम्मू-कश्मीर में दूसरे इंडिकेटर्स भी चिंता पैदा करते हैं। बड़ी संख्या में छोटे मैग्नेटिक बम पाए जा रहे हैं और चिंता की बात यह है कि इनका इस्तेमाल अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाने को किया जा सकता है। ‘व्हाइट कॉलर टेररिस्ट’ और ‘हाइब्रिड आतंकवादी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल बढ़ा है। इसका मतलब यह है कि आतंकियों को पहचानने में मुश्किल आ रही है। पाकिस्तान से घुसपैठ लगातार जारी है और पिछले साल की तुलना में 2022 में कहीं ज्यादा विदेशी आतंकी मारे गए हैं।

तुरंत समाधान की उम्मीद नहीं

हुड्डा लिखते हैं कि कश्मीर में संघर्ष को तीन दशक से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। ऐसे में हमें इसके तुरंत और सरल समाधान की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। हालांकि इस फाइट में, सरकार को आतंकियों की रणनीति का जवाब देने के लिए बेहद तेज और मुस्तैद रहना चाहिए। इसके लिए उसे पहले यह स्वीकार करना होगा कि समस्या मौजूद है। यह कहते रहने से कि स्थिति सामान्य है, तत्काल समाधान खोजने में देरी होगी जो आतंकियों के मंसूबे कमजोर करने में मदद करे।ग्नाा्न्नाा््नाा्न््नाा्न्नाा््नाा्न्नाा्न्

उन्होंने कहा है कि कश्मीर के पंडित अल्पसंख्यकों को अवश्य ही सुरक्षित स्थानों यहां तक कि कश्मीर से बाहर भी स्थानांतरित करना चाहिए। यह सरकार की योजना के लिए झटके जैसा दिखाई दे सकता है लेकिन आतंकियों के लिए कोई आसान टारगेट नहीं होना चाहिए। यह समझना होगा कि केवल हत्याओं से ही माहौल खराब होगा और सरकार बैकफुट पर आएगी।

आतंकियों के सफाये के साथ…

जनरल हुड्डा कहते हैं कि सुरक्षाबलों को नागरिकों की सुरक्षा को अपने फोकस में शीर्ष पर रखना होगा। उन्होंने लिखा है, ‘मैं यह सुझाव नहीं दे रहा हूं कि आतंकी खत्म न किये जायें लेकिन ज्यादा प्रयास इस दिशा में होने चाहिए जिससे जनता को सुरक्षाबलों की मौजूदगी से सुरक्षित होने का एहसास हो।’

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उन्होंने कहा कि हम आतंकियों को खत्म करना जारी रख सकते हैं लेकिन हालात सामान्य तभी होंगे जब नागरिक सुरक्षित महूसस करेंगे। मैं स्वीकार करता हूं कि आबादी का आकार देखते हुए यह कोई ईजी टास्क नहीं है लेकिन आतंरिक संघर्ष के समाधान में सफलता हासिल करने को सुरक्षाबलों में लोगों का यकीन महत्वपूर्ण है।

घाटी के लोगों का अहम रोल

आखिर में, सरकार को एहसास रहे कि हालात सामान्य बनाने में जम्मू और कश्मीर के स्थानीय लोगों की बहुत बड़ी भूमिका है। उनकी मदद बगैर नई दिल्ली क्या हासिल कर सकती है, उसकी अपनी सीमाएं हैं। स्थानीय पुलिस ने 2001 से अब तक आतंकवाद की कमर तोड़ने में एक अहम भूमिका निभाई है। जम्मू-कश्मीर के अनुभवी पुलिस अफसरों को अपना नेटवर्क फिर से ऐक्टिव करना चाहिए, स्थानीय सूत्रों के साथ काम करके वे आतंकियों का सफाया करने में मदद कर सकते हैं।

वह लिखते हैं कि सिविल सोसाइटी तक ईमानदार तरीके से पहुंचना होगा खासतौर से युवाओं तक। ऐतिहासिक शिकायतों और कथित गलतियों के लिए आर्थिक विकास का वादा पर्याप्त नहीं है। इसे सहानुभूति से दूर किया जाना चाहिए। यह भी सुनिश्चित हो कि कुछ लोगों की गलत हरकतों से पूरे समाज को बदनाम करने का कोई प्रयास न हो।

नेता और आतंकवाद

आतंकवाद से फैले डर के खिलाफ लड़ाई में स्थानीय नेताओं का साथ भी लिया जाए। स्थानीय पार्टियों का अपना बढ़िया आधार है और वे अपने चुनाव क्षेत्रों में आतंकवाद से बचने और उसे खारिज करने की अपील कर सकते हैं। कुछ में इसको लेकर सनक हो सकती है लेकिन हिंसक कट्टरपंथ और आतंकवाद किसी भी राजनीतिक नेता को शोभा नहीं देता है।

कमजोर स्थिति होने पर आतंकी संगठन झट से अपनी रणनीति बदलकर अपनी जीत का नैरेटिव प्रमोट करने लगते हैं। अगर लड़ाई जीतनी है तो सरकार को जब भी जरूरी हो, अपनी रणनीति और तरीके बदलाने को तैयार रहना चाहिए।

टारगेट किलिंग को अंजाम देने वालों की पहचान करना बना टेढ़ी खीर… कश्‍मीर में साजिश का प्‍लान समझिए

कश्‍मीर मेंं  एक के बाद एक टारगेट किलिंग ने सरकार को टेंशन में डाल दिया है। उसके सामने एक सबसे बड़ी चुनौती है ‍हत्यायें करने वालों की पहचान करना। आतंकियों ने दहशत फैलाने को अपनी स्‍ट्रैटेजी में बदलाव किया है। उन्‍होंने ‘हाइब्रिड टेररिस्‍ट’ का नकाब पहन लिया है।

कश्‍मीर फिर हिंदुओं के खून से लहूलुहान है। सिलसिलेवार हत्‍याओं ने 1990 के जख्‍म हरे कर दिए हैं। चुनचुनकर हिंदुओं के खून से होली खेली जा रही है। विजय कुमार, रजनी बाला, राहुल भट्ट जैसों को आतंकी दिनदहाड़े मारकर चले जाते हैं। मकसद सिर्फ यह खौफ भर देना है कि गैर-मुस्लिमों, बाहरियों और उनके हमदर्दों की ‍कश्मीर में जगह नहीं है। असर दिखने भी लगा कश्‍मीरी हिंदुओं ने पलायन शुरू कर दिया है। आखिर कौन हैं ये आतंकी जो इतनी आसानी से हत्यायें कर देते हैं? क्‍यों इनकी पहचान करना मुश्किल हो गया है? दरअसल, सरकार के पास भी इन सवालों के सटीक जवाब नहीं हैं। उसके सामने पहली बार एक अलग तरह की चुनौती खड़ी है। आतंकियों ने आतंक फैलाने को अपना चेहरा बदल लिया है। अब ये ‘हाइब्रिड टेररिस्‍ट’ (Hybrid Terrorists) का मुखौटा लगाकर दहशत फैला रहे हैं।

एक मई से अब तक ‍कश्मीर में 9 टारगेट किलिंग हुई है। इनमें से तीन पुलिसकर्मी थे और 6 निर्दोष नागरिक। गुरुवार को आतंकियों ने बैंक मैनेजर विजय कुमार की हत्‍या कर दी। वह राजस्‍थान के थे। इसी दिन बिहार के मजदूर की भी निर्मम हत्‍या हुई। इसके पहले मंगलवार को स्‍कूल में टीचर रजनी बाला की आतंकियों ने हत्‍या की थी। टारगेट किलिंग की इन सिलसिलेवार घटनाओं ने सरकार की टेंशन बढ़ा दी है।

गुरुवार को गृहमंत्री अमित शाह ने राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) और खुफिया एजेंसी रॉ (रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग) के प्रमुख सामंत गोयल के साथ एक घंटा बैठक की थी। सिलसिलेवार टारगेट किलिंग के बीच शुक्रवार भी शाह ने जम्मू कश्मीर की सुरक्षा स्थिति का जायजा लिया। बैठक में अजीत डोभाल, सेना प्रमुख मनोज पांडे और जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा थे।

आतंकियों ने बदल दी है स्‍ट्रैटेजी…

प्रशासन के सामने हत्‍याओं करने वालों की पहचान करना सबसे बड़ी चुनौती है। वजह यह है कि आतंकियों ने अपनी स्‍ट्रैटेजी बदल दी है। अब कश्‍मीर में हिंदुओं में खौफ पैदा करने पाकिस्‍तान से एके-47 भेजने का बहुत जोखिम नहीं लिया जाता । कश्‍मीरी युवाओं को ही उकसाकर उन्हें पिस्टल थमाई जाती हैं। अक्‍सर थोड़े से पैसे या ड्रग्‍स का लालच देकर हत्‍यायें कराई जाती हैैं।

क्‍यों है इन आतंकियों के बारे में पता लगाना मुश्किल

इन हाइब्रिड टेररिस्‍टों के बारें में पता लगाना इसलिए मुश्किल है क्‍योंकि इनका कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होता है। ये हथियार चलाने की मामूली ट्रेनिंग लेकर हत्या को  तैयार हो जाते हैं। इसके लिए ऐसे कश्‍मीरी युवा ही चुने जाते हैैं जिनका अपराध की ओर झुकाव होता है। इन्‍हें उकसाकर और मामूली पैसों का लालच देकर निर्दोषों की हत्‍या करने को तैयार किया जाता है। हमले के बाद ये बड़ी आसानी से वापस भीड़ में मिल जाते हैं।

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इसके पीछे का प्‍लान समझिए…

यह पाकिस्तान में बैठे इन आतंकियों के आकाओं को बहुत मददगार है। वो आसानी से इन आतंकी वारदातों की जिम्‍मेदारी से मुकर जाते हैं। यह पाकिस्‍तान को इसे कश्‍मीरियों का विद्रोह बताकर अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर पल्‍ला झाड़़ने का मौका है। यानी पाकिस्‍तान और उसके पालतू आतंकियों दोनों के लिए यह विन-विन सिचुएशन है। इस स्‍ट्रैटेजी से ‍पाकिस्तान कश्‍मीर में आग सुलगाए रखने के साथ आसानी से अपना दामन दागदार होने से बचाता है। वहीं, सच यह है कि पाकिस्‍तान सीमा पार से हर दिन पिस्‍टलों का कंसाइनमेंट भेजता है। इनमें कई पकड़े गए हैं। हालांकि, कई हाइब्रिड टेररिस्‍टों के हाथों तक पहुंच जाते हैं।

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कैसे अपने मंसूबों में सफल हो रहे आतंकी?

अकेले इस साल 9 पुलिसकर्मी इन आतंकियों का निशाना बन चुके हैं। वहीं, 2021 में 20 ने जान गंवाई थी। जिन कैंपों में माइग्रेंट वर्कर हैं वहां सुरक्षा को इंतजाम हैं। लेकिन, बिगड़ते माहौल को देखकर वो कश्‍मीर छोड़कर अपने घर लौटने लगे हैं। ज्‍यादातर लोगों को आतंकियों ने तब टारगेट बनाया जब वो अपने काम पर जा रहे थे या काम करके लौट रहे थे। इस तरह आतंकी अपने मंसूबों में सफल होते दिख रहे हैं। वो यही चाहते हैं।

क्‍या है इस चुनौती का हल?

हाइब्रिड टेररिस्‍टों की पहचान फूस के ढेर में सुई खोजने जैैैैसा है। हालांकि, प्रशासन का मानना है कि इसमें पुलिस

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बड़ी भूमिका निभा सकती है। प्रशासन स्‍थानीय पुलिस कर्मियों को तैयार करेगा कि वे छोटे-मोटे अपराध करने वालों पर नजर रखें। उनकी भी पहचान हो जिनका व्‍यवहार असामाजिक है और रुझान आपराधिक है।

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