‘नौशेरा के शेर’ मेजर उस्मान की कब्र खंडित होने पर सेना नाराज़,
‘नौशेरा के शेर’ ब्रिगेडयर उसमान की कब्र टूटने पर सेना सख्त, जामिया यूनिवर्सिटी से मरम्मत कराने को कहा
सेना ने कहा कि अगर जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने मरम्मत नहीं कराई तो सेना खुद महावीर चक्र विजेता की कब्र का रखरखाव करेगी. ब्रिगेडियर उस्मान ने 1947-48 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना को धूल चटाकर नौसेरा को भारत में शामिल किया था. 36 साल की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले ब्रिगेडियर उस्मान के जनाजे में तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू शामिल हुए थे.
नई दिल्ली: ‘नौशेरा के शेर’ का खिताब पाने वाले ब्रिगेडयर उसमान की राजधानी दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में कब्र टूटने को लेकर सेना सख्त हो गई है. सेना ने ‘हाई-लेवल’ पर विश्वविद्यालय प्रशासन को महावीर चक्र विजेता, ब्रिगेडियर मोहम्मद उसमान की क्रब की मरम्मत करने के लिए कहा है. अगर यूनिवर्सिटी ने ऐसा नहीं किया तो सेना खुद कब्र की मरम्मत कराएगी.
दरअसल, हाल ही में एक तस्वीर सामने आई थी जिसमें ब्रिगेडियर उसमान की कब्र टूटी-फूटी दिखाई पड़ रही थी. ये कब्र जामिया मिल्लिया इस्लामिया या यूनिवर्सिटी की जमीन (कब्रिस्तान) पर है. लेकिन यूनिवर्सिटी का कहना है कि ये कब्रिस्तान भले ही यूनिवर्सिटी की जमीन पर है, लेकिन कब्र की देखभाल की जिम्मेदारी परिवार की है. इसी को लेकर अब भारतीय सेना ने यूनिवर्सिटी प्रशासन से जल्द से जल्द कब्र की मरम्मत करने के लिए कहा है.
मिली जानकारी के मुताबिक, सेना का मानना है कि क्योंकि ये वीआईपी-कब्रिस्तान विश्वविद्यालय की जमीन पर है और क्रबिस्तान की जिम्मेदारी भी यूनिवर्सिटी पर है इसलिए जामिया मिल्लिया इस्लामिया को ही कब्र की मरम्मत करानी चाहिए. लेकिन सेना ने ये भी दो टूक कह दिया है कि अगर यूनिवर्सिटी ने मरम्त नहीं कराई तो ये काम सेना अपने हाथों में ले लगी.
बता दें कि उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने नौसेरा को अपने अधिकार-क्षेत्र में कर पाकिस्तानी सेना को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया था. उसके बाद से ही उन्हें नौसेना का शेर का खिताब दिया गया था. उनकी बहादुरी से पाकिस्तानी सेना इतनी बिलबिला गई थी कि उनकी मौत पर ईनाम की घोषणा तक कर दी थी. लेकिन युद्ध के दौरान ही 1949 में पूंछ के झांगड़ इलाके में पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए वे एक तोप के गोले की चपेट में आ गए थे, जिसके चलते उन्होने युद्ध के मैदान में दम तोड़ दिया था.
‘नौशेरा के शेर’ ब्रिगेडयर उसमान की कब्र टूटने पर सेना सख्त, जामिया यूनिवर्सिटी से मरम्मत कराने को कहा
उनकी बहादुरी के लिए सरकार ने ब्रिगेडियर उसमान को देश के दूसरे सर्वोच्च वीरता सम्मान, महावीर चक्र से नवाजा था. इस युद्ध में भारत की तरफ से ब्रिगेडियर उसमान ही इतने बड़े सैन्य-अफसर थे जिन्होनें देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था. ब्रिगेडियर उसमान के जनाजे में खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू शामिल हुए थे (ठीक उसी जगह जहां आज उनकी कब्र है)
ब्रिगेडियर उसमान के भाई एम ए अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और यूनिवर्सिटी के चांसलर भी रहे थे. आजादी के दौरान ब्रिगेडियर उसमान ब्रिटिश सेना की बलूच रेजीमेंट में थे. लेकिन देश के विभाजन के वक्त बलूच रेजीमेंट पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बन गई थी. लेकिन ब्रिगेडियर उसमान ने पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बनने से इंकार कर दिया था. हालांकि, पाकिस्तान ने उन्हें अपनी सेना का प्रमुख बनाने तक की पेशकश की थी. बाद में वे भारतीय सेना की डोगरा रेजीमेंट से जुड़ गए थे-बाद में डोगरा रेजीमेंट की ये यूनिट पैराशूट रेजीमेंट में तब्दील हो गई थी.
साल 2014 में भारतीय सेना ने ब्रिगेडियर उसमान ने उनकी शहादत के दिन (3 जुलाई) जामिया मिल्लिया स्थित कब्र पर एक खास कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें पैराशूट रेजीमेंट के वरिष्ठ सैन्य-अधिकारियों ने हिस्सा लिया था. वर्ष 2018 में जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी ने एनसीसी के साथ मिलकर उनकी कब्र पर सर्जिकल-स्ट्राइक दिवस भी मनाया था. तब तक भी कब्र बिल्कुल ठीक थी. ऐसा लगता है उसके बाद ही कब्र टूटी है. सेना के सूत्रों की मानें तो इस साल कोविड महामारी के चलते उनकी कब्र पर कोई कार्यक्रम नहीं आयोजित किया गया था, जिसके चलते उनकी कब्र की हालात का पता नहीं चल पाया था. कब्र का मलबा जिस तरह गिरा है उसे देखकर ऐसा लगता है कि वो टूट कर नीचे गिर गया है, किसी तरह की तोड़फोड़ नहीं लगती है.
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दिल्ली में जामिया के पास भारत-पाकिस्तान युद्ध के हीरो ब्रिगेडियर उस्मान की कब्र पर ‘तोड़-फोड़’
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान जिन्हें ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाता था, 1947-48 में भारत के साथ लड़ाई में पाकिस्तान से दो रणनीतिक स्थान फिर से छीन लिए थे.
पिया कृष्णनकुट्टी
28 December, 2020
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की क्षतिग्रस्त कब्र | फोटो: मनीषा मोंडल / दिप्रिंट
नई दिल्ली: 1947-48 में पहले भारत-पाक युद्ध में लड़ते हुए मारे जाने वाले उच्चतम रैंकिंग अधिकारी ब्रिगेडियर मौहम्मद उस्मान की कब्र पर कथित रूप से शरारती तत्वों ने तोड़-फोड़ की है.
उनकी ये कब्र दक्षिण दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पास बटला हाउस कब्रिस्तान में है.
‘नौशेरा का शेर’ नाम से मशहूर उस्मान ने 50 (इंडीपेंडेंट) पैराशूट रेजिमेंट की अगुवाई की जिसने 1948 में जम्मू-कश्मीर की दो रणनीतिक जगहें- झांगर और नौशेरा- पाकिस्तान से फिर से छीन ली थीं.
हेरिटेज टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उस्मान के जनाज़े में तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी और दूसरे कई कैबिनेट मंत्रियों ने शिरकत की थी.
हालांकि ये पता नहीं है कि कब्र को किसने और कब नुकसान पहुंचाया लेकिन यहां के निवासियों का कहना है कि कब्रिस्तान सुरक्षित नहीं है और इसके प्रवेश व निकास द्वार चौबीसों घंटे खुले रहते हैं और परिसर की एक पूरी साइड, जामिया मेट्रो स्टेशन और मेन रोड की ओर खुली रहती है.
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दिप्रिंट से बात करते हुए जामिया यूनिवर्सिटी के पीआरओ अहमद अज़ीम ने कहा कि यूनिवर्सिटी की ज़िम्मेदारी सिर्फ कब्रिस्तान की देखभाल की है, कब्रों की नहीं.
कब्रिस्तान की देखरेख से जुड़े यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने दिप्रिंट को बताया कि कब्रिस्तान की देखरेख के लिए एक निजी फंड कायम किया गया था.
नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने कहा, ‘यूनिवर्सिटी के पास एक निजी फंड है जिससे कब्रिस्तान की देखरेख की जाती है, जिसमें घास कटवाना और कचरा साफ कराना शामिल है. कभी-कभी रात में शराबी भी कब्रिस्तान में आ जाते हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘भावनात्मक और दूसरे कारणों से, कब्रों की देख-रेख का काम परिवार संभालते हैं. पहले भी परिवारों ने यूनिवर्सिटी से कब्रों की मरम्मत और उनपर लिखे समाधि-लेखों को सही करने के लिए अनुमति या सहायता मांगी है लेकिन इसे अलग-अलग केस के आधार पर किया जाता है.
सैन्य सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि ये मामला, फोर्स के लिए एक ‘प्रोटोकोल और भावनात्मक मुद्दा’ है और इसे उच्चतम स्तर पर देखा जा रहा है.
ये पूछे जाने पर कि क्या अवशेषों को आर्मी केंटोनमेंट में शिफ्ट करने की योजना है जैसा कि कुछ सुझाव आए हैं, सूत्रों ने कहा कि फौरी चिंता कब्र की मरम्मत की है. किसी भी दूसरी चीज़ पर फैसला समय रहते लिया जाएगा.
‘नौशेरा का शेर’
सेंटर फॉर लैंड वॉरफेयर स्टडीज़ के एक आर्काइव पेपर के अनुसार, ब्रिगेडियर उस्मान 15 जुलाई 1912 को, उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में बीबीपुर में एक सैन्य परिवार में पैदा हुए थे. उनके पिता एक पुलिस अधिकारी थे, जो बाद में वाराणसी के मेन पुलिस स्टेशन प्रमुख बने और उनके चाचा सेना में एक ब्रिगेडियर थे.
उन्हें बलूच रेजिमेंट में कमीशन मिला, जहां उन्होंने आज़ादी तक सेवाएं दीं. बंटवारे के दौरान उन्हें पाकिस्तान सेना प्रमुख के पद की पेशकश की गई जिसे उन्होंने मंज़ूर नहीं किया.
दिसंबर 1947 में उस्मान ने, नौशेरा में 50 (इंडीपेंडेंट) पैराशूट ब्रिगेड की कमान हाथ में ली जिसने इलाके में पाकिस्तानी कबाइलियों की चढ़ाई को रोक दिया और उसे पाकिस्तान से फिर छीन लिया. उनकी कमान में ही भारत ने झांगर को पाकिस्तान से फिर से ले लिया.
उनकी सैन्य उपलब्धियों के चलते पाकिस्तान ने उनके सर पर 50,000 रुपए का ईनाम घोषित कर दिया.
3 जुलाई 1948 को उनकी उस वक्त मौत हो गई, जब नौशेरा में दुश्मन सेना का एक गोला उनके पास फट गया.
युद्ध के हीरो की ज़िंदगी पर निर्देशक संजय खान एक बायोपिक बनाने जा रहे हैं जिसमें उनके बेटे ज़ायद खान मुख्य भूमिका में होंगे.
लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा ने, जो जनरल करियप्पा के जनरल स्टाफ ऑफिसर थे और बाद में सेना के वाइस चीफ बने, कहा, ‘मैं जनरल करियप्पा के साथ नौशेरा गया था. उन्होंने मोर्चाबंदी का मुआयना किया और ब्रिगेडियर उस्मान से कहा कि कोट हमारी मोर्चाबंदी के सामने पड़ता है और उसे सिक्योर किया जाना है.
‘दो दिन के बाद, उस्मान ने उस स्थान पर कामयाबी के साथ हमला कर दिया.उसे उन्होंने ऑपरेशन किपर का नाम दिया,जो जनरल का उपनाम था.कोट पर कब्ज़ा हो जाने के बाद, हमारे जवानों ने दुश्मन को बुरी तरह शिकस्त दी,जो 900 मृतकों को छोड़कर पीछे भाग गया.कश्मीर युद्ध की ये सबसे बड़ी लड़ाई थी.उस्मान एक राष्ट्रीय हीरो बन गया।