एनसीईआरटी पाठ्यक्रम में क्या हुआ परिवर्तन और क्यों
NCERT के सिलेबस में बदलाव – मुगल इतिहास से जुड़े कुछ पाठ, निराला-फ़िराक़ की कविताएं हटी
NCERT ने सिलेबस में कुछ बदलाव किया है. मुगल साम्राज्य से जुड़े कुछ अध्याय अब सीबीएसई और यूपी बोर्ड के 12वीं कक्षा के छात्रों के इतिहास के पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं होंगें।
नई दिल्ली 06 अप्रैल: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद(NCERT) ने सिलेबस में कुछ बदलाव किया है. मुगल साम्राज्य (Mughal Empire) से जुड़े कुछ अध्याय अब सीबीएसई और यूपी बोर्ड के 12वीं कक्षा के छात्रों के इतिहास के पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं होंगे. मुगल इतिहास के साथ-साथ नागरिक शास्त्र का सिलेबस भी बदला गया है. फिराक और निराला की रचनाएं भी अब पाठ्यक्रम में नजर नहीं आएंगी. NCERT के आला अफसरों ने इस बात की पुष्टि की है कि उनकी किताबों में इतिहास के कुछ पाठ बदले और हटाए गए हैं.
पाठ्यक्रम में ये हुए हैं बदलाव
12वीं के मध्यकालीन इतिहास से मुगलों के इतिहास से जुड़े ‘द मुगल कोर्ट’ और ‘किंग्स ऐंड क्रॉनिकल्स’ नाम के दो पाठ हटा दिए गए हैं.
बारहवीं की राजनीति शास्त्र की किताब से भी कई पाठ हटाए गए हैं.
‘Era of one party dominance’ (एक दल के प्रभुत्व का युग) नाम का पाठ हटा दिया गया है, जो आज़ादी के बाद कांग्रेस के शासन पर है.
यूपी बोर्ड की 12वीं की क्लास से भी मुग़ल दरबार से जुड़े पाठ हटा दिए गए हैं.
11वीं की इतिहास की किताब से ‘सेंट्रल इस्लामिक लैंड’ और ‘कान्फ्रन्टेशन ऑफ़ कल्चर्स’ पाठ हटा दिए गए हैं.
10वीं की राजनीति शास्त्र की किताब से ‘डेमोक्रेसी ऐंड डाइवर्सिटी’ और ‘पॉपुलर स्ट्रगल्स ऐंड मूवमेंट्स’ हटा दिए गए हैं.
NCERT ने शैक्षिक सत्र 2023-24 से इंटरमीडिएट में चलने वाली ‘आरोह भाग दो’ में कई परिवर्तन किए हैं. इसमें फिराक गोरखपुरी गजल और ‘अंतरा भाग दो’ से सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की ‘गीत गाने दो मुझे’ नहीं पढ़ सकेंगे. विष्णु खरे की ‘एक काम और सत्य’ को भी एनसीईआरटी ने ‘अंतरा भाग दो’ से हटा दिया है. ‘विद्यार्थी आरोह भाग दो’ में ‘चार्ली चैपलिन यानी हम सब’ को भी छात्र इस सत्र में नहीं पढ़ सकेंगे.
नागरिक शास्त्र की पुस्तक से समकालीन विश्व राजनीति से समकालीन विश्व में अमेरिका वर्चस्व और शीतयुद्ध को हटा दिया गया है. स्वतंत्र भारत में राजनीति की किताब से ‘जन आंदोलन का उदय’ और ‘एक दल के प्रभुत्व का दौर’ को हटाया गया है. इनमें कांग्रेस के प्रभुत्व की प्रकृति, सोशलिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, भारतीय जनसंघ आदि को पढ़ाया जाता था. ये नया सिलेबस इसी साल से लागू हो रहा है।
Ncert Clarification On Removing Chapter Of Mughals From History Book
इतिहास की किताब से क्यों हटाया मुगल दरबार चैप्टर? NCERT डायरेक्टर ने बता दिया कारण
NCERT ने 12वीं की इतिहास की किताब से मुगलों का चैप्टर हटाने के विवाद पर वस्तुस्थिति बतायी है। एनसीईआरटी निदेशक प्रोफेसर दिनेश प्रसाद सकलानी ने कहा है कि बच्चों पर पाठ्यक्रम का बोझ कम करने के उद्देश्य से ये बदलाव किया गया है।
हाइलाइट्स
1-12वीं की इतिहास की किताब से मुगलों का चैप्टर हटाने पर NCERT की सफाई
2-हाल ही में मुगल साम्राज्य से जुड़े कुछ चैप्टरों को NCERT ने सिलेबस में से हटाया था
3-गणित, विज्ञान, भूगोल समेत सभी विषयों में कंटेंट कम किया गया है
नई दिल्ली: 12वीं कक्षा के इतिहास समेत कई विषयों की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव कर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कुछ चैप्टर हटाए हैं, जिन पर विवाद हो गया है। इस मसले पर हो रहे राजनीतिक हमलों के बीच एनसीईआरटी के निदेशक प्रो. दिनेश प्रसाद सकलानी ने एनबीटी से बात करते हुए कहा कि कोविड महामारी के बाद पिछले साल हर विषय में एक्सपर्ट कमिटी बनाई गई थी ताकि बच्चों पर पाठ्यक्रम का बोझ कम किया जा सके। एक्सपर्ट कमिटी ने हर विषय के कंटेंट को देखा और उसके बाद तय किया गया कि कौन-कौन से चैप्टर हटाए जाने हैं। उन्होंने कहा कि यह सब शैक्षणिक प्रक्रिया के तहत हुआ है। एनसीईआरटी की तरफ से किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है। उन्होंने कहा कि केवल मुगल इतिहास की ही बात क्यों की जा रही है, गणित, विज्ञान, भूगोल समेत सभी विषयों में कंटेंट कम किया गया है। जहां तक मुगल इतिहास के बारे में बात की जा रही है तो छात्र अगर एक कक्षा में पढ़ते हैं तो उसी बारे में दूसरी कक्षा में पढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है।
कंटेंट का बोझ कम करने को हटाए चैप्टर
एनसीईआरटी निदेशक प्रोफेसर सकलानी ने कहा कि अभी भी छात्र मुगलों के बारे में पढ़ रहे हैं। कक्षा 7 में भी चैप्टर है और कक्षा 12 में भी है। ऐसे में यह कहना कि पूरे मुगल इतिहास को सिलेबस से हटा दिया गया है, यह ठीक नहीं है। एनसीईआरटी एक स्वतंत्र बॉडी है और बिना किसी दबाव के काम करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत अब 2024 के लिए नई किताबें बनाने का सिलसिला शुरू हो रहा है और नैशनल करिकुलम फ्रेमवर्क के आधार पर पहले सिलेबस तैयार होगा और फिर नई किताबें आएंगी। उनका कहना है कि कोविड के बाद पूरे देश से यह मांग उठ रही थी कि हर विषय के कंटेंट को कम किया जाना चाहिए। कोविड महामारी के दौरान बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हुआ था। लोग इसे मुद्दा क्यों बना रहे हैं, यह समझ से परे है। कोरोना के दौरान स्कूल बंद रहे, क्लासेज नहीं हुईं और समय का भी काफी नुकसान हुआ। एक्सपर्ट कमिटी ने ऐसे विषयों को हटाया है, जो बच्चों ने पहले कहीं न कहीं पढ़े हैं। कंटेंट रिपीट हो रहा था और यह एक सामान्य प्रक्रिया भी है। इस बार कोरोना के कारण इस प्रक्रिया में कंटेंट का बोझ कम करना जरूरी था और इसी आधार पर यह किया गया है।
पूरे देश को विश्वास में लेकर लिया गया फैसला
एनसीईआरटी निदेशक ने कहा कि पिछले साल करीब तीन महीनों तक सभी को बताया गया था कि कंटेंट को हटाने की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है और कौन से चैप्टर हटाए जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में पूरे देश को विश्वास में लिया गया था और सब लोग इससे सहमत थे। अब यह बात समझ से परे है कि लोग इस मुद्दे को दोबारा क्यों उठा रहे हैं? जब भी जरूरत महसूस होती है तो इस तरह के संशोधन किए जाते हैं।
’12वीं में अब भी मुगलों पर चैप्टर’
प्रोफेसर सकलानी ने कहा कि 12वीं में अभी भी मुगलों के बारे में एक चैप्टर पढ़ाया जा रहा है, जिसमें उनकी नीतियों और उनके द्वारा किए गए कामों के बारे में पढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि किताबों से मुगल काल को हटाया नहीं गया है। एक्सपर्ट कमिटी ने छठी से 12वीं तक की पुस्तकों को देखा था और सिफारिश की थी कि उन चैप्टर को हटाया जाए, जिनको हटाने से छात्र की नॉलेज में कोई कमी नहीं आएगी। जहां-जहां रिपिटेशन हो रही था, उन चैप्टर को हटाने पर सहमति बनी थी। 12वीं की किताब में मुगलों के बारे में एक चैप्टर अभी पढ़ाया जा रहा है, जिसमें उनकी पॉलिसी, उन्होंने समाज के लिए क्या किया, कृषि के लिए क्या किया, उसका जिक्र है।
किताबों में किए गए बदलाव
एनसीईआरटी ने 12वीं कक्षा के सिलेबस में कुछ बड़े बदलाव किए हैं। मुगल साम्राज्य से जुड़े कुछ चैप्टर किताबों में नहीं होंगे। इंटरमीडिएट में पढ़ाए जाने वाली ‘आरोह भाग दो’ में कई परिवर्तन किए हैं। इसमें फिराक गोरखपुरी गजल और ‘अंतरा भाग दो’ से सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की ‘गीत गाने दो मुझे’ शामिल है। मुगल दरबार को हटा दिया गया है। इसमें बच्चों को अकबरनामा और बादशाहनामा, मुगल शासक और उनका साम्राज्य, रंगीन चित्र, आदर्श राज्य, राजधानियां और दरबार, पदवियां, उपहार और भेंट, शाही परिवार, शाही नौकरशाही जैसे विषय पढ़ाए जाते थे।
NCERT 12वीं कक्षा की किताबों से मुगल दरबार का चैप्टर हटा दिया गया, जानें इसके पीछे का कारण
ये तो स्वाभाविक है कि जो पाठ्यक्रम में परिवर्तन किए जाते हैं, उससे पूर्व बोर्ड की मीटिंग होती है. वो इसलिए भी होती है कि हम अपने पाठ्यक्रम में हमेशा उनमें नवीनता और नवोन्मेष को बनाये रखें. अभी जो 12वीं कक्षा के सिलेबस से मुगल चैप्टर को हटाया जा रहा है उसे लेकर इतिहास को देखने का अपना एक भारतीय दृष्टिकोण और एक पक्ष है.
दूसरी बड़ी बात ये है कि हमें यह भी देखना चाहिए कि अब तक जो हमने इतिहास पढ़ा है या इससे पूर्व का जो इतिहास लिखा गया है, हमें उसकी भी गंभीरता को बहुत समझने की जरूरत भी है. किस तरीके से मुगल साम्राज्य का विवरण और उसका महिमामंडन किया गया और उसका 12वीं के छात्रों के मानस पटल और चरित्र पर क्या असर पड़ता है. मुझे लगता है कि उस दृष्टि को एक नए तरीके से रखने की कोशिश की जा रही है.
हमें यह भी समझना पड़ेगा कि जब मुगलकालीन इतिहास लिखा जा रहा था और जब ताराचंद जी इसे लिख रहे थे तो उन्होंने उस वक्त की यह संस्कृति और गंगा-जमुनी तहजीब को दिखाया और फिर इस बात को आर सी मजूमदार ने उसे कैसे परोसा. ये सब तो इतिहासकारों का एक दृष्टिकोण था. उस पर हमें फिर से सोचने और समझने की जरूरत है. दूसरी बात यह है कि हमें किस तरह के इतिहास की जरूरत है. यह भी एक बड़ा प्रश्न है. हम लोगों के समक्ष जो इतिहास लिखने और समझने की जरूरत है उसमें हमें अपनी भारतीय दृष्टिकोण को देखने की आवश्यकता है. इस पर ज्यादा सोचने और विचार करने की जरूरत है.
अब आप उदाहरण के तौर पर मध्यकालीन या मुगल कालीन चित्रकला को देखेंगे और फिर आनंद कुमार स्वामी की जो पुस्तक है ‘राजपूत पेंटिंग’ पर उस पर गौर करेंगे तो पता चलेगा कि किस तरह से राजपूत काल में चित्रकला का विकास होता है और फिर वह किस तरह से मुगल चित्रकला की दृष्टि बन जाती है. फिर वह इतिहास लेखन के तौर पर सामने आती है और ऐसा दिखाया जाता है कि मुगलों ने ही उस चित्रकला का विकास किया था. लेकिन वो समस्त दृष्टि पूरी तरह से हमारे राजपूत चित्रकला में परिलक्षित होते हुए दिखाई पड़ती है. आज जितना भी सांस्कृतिक पक्ष का हमारा अंतर्प्रवाह बना हुआ है उसमें हमारी अपनी भारतीय दृष्टि रही है. उसका रस प्रवाह बना हुआ है. वो आगे की तरफ आ सकता है या कहें कि उसे सामने लाने की जरूरत है. ये तो एक पक्ष है और दूसरी बड़ी बात यह भी है कि एनसीईआरटी एक टेक्स्ट बुक है, कोई रेफरेंस बुक तो नहीं है. रेफरेंस बुक और शोध का प्रश्न एक अलग चीज है.
चूंकि एक विद्यार्थी के मानस पटल पर इतिहास को कैसे निर्मित किया जाए, यह भी एक बड़ा प्रश्न है और हम जो अभी तक मुगलकालीन इतिहास का महिमामंडन कर रहे थे, उसको अब हटाने का प्रयास हुआ है या हटाया जा रहा है. उसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि उसके सिर्फ आभामंडल को हटाने का प्रयास किया गया है न कि उसके सांस्कृतिक पक्ष को. उदाहरण के तौर पर अगर देखा जाए तो हमारे यहां लिखने से ज्यादा श्रुतियों की परंपरा रही है. यह भारतीय परंपरा पहले से विकसित रही है. प्रश्न यह भी है कि जब सब बातें श्रुतियों में भी लिखी गई हैं तो हम उनको हटा नहीं रहे हैं और उन्हें हटाया भी नहीं जाना चाहिए.
इसके अलावा जो प्रत्यक्ष रूप से स्थापत्य कलाएं हैं, उन्हें हटाने का तो कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता है. यहां प्रयास ये किया जा रहा है कि मुगल साम्राज्य का जो महिमामंडन है सिर्फ उसको हटाया जा रहा है या कहें कि मुगलों के उस चरित्र को हटाने का एक प्रयास है. यह एनसीईआरटी का अपना भी एक पक्ष हो सकता है. उसकी अपनी दृष्टि हो सकती है. लेकिन ये बात हम लोगों को भी ध्यान में रखना चाहिए और समझना चाहिए कि हमें किस तरीके से एक मानस पटल को निर्मित करने की जरूरत है, किस तरह का पक्ष रखने की आवश्यकता है.
मुगल काल के इतिहास को तो बिल्कुल भी नहीं भुलाया जा सकता है. उस पर निरंतर विचार-विमर्श जारी रखनी चाहिए. उन सभी चीजों को हमें इस रूप में देखना चाहिए कि उस दौर के शासनकाल से जो समस्याएं पैदा हुईं या जो उसके गंभीर परिणाम सामने आए हैं और उसे लेकर जो विमर्श चल रहा है उसको खत्म नहीं होने दिया जाना चाहिए. तभी तो हमें यह पता चल पाएगा कि कौन सी चीजें सकारात्मक हैं और कौन सी चीजें नकारात्मक हैं.
दूसरी बड़ी बात यह है कि किसी कालखंड को मिटाना क्या मनुष्य के वश में है. हमें इसे भी ध्यान में रखना चाहिए कि क्या जो पूर्व में लेखन कार्य हुआ वो तर्कसंगत था, क्या वह न्यायसंगत था, क्या वह भारतीय संगत की दृष्टि थी. यह प्रश्न उस भारतीय दृष्टिकोण का भी है. यह स्वाभाविक है कि यदि कोई बदलाव हो रहा है तो उसके भी पक्ष को हमें देखना पड़ेगा, लेकिन वहां हमें बिल्कुल सचेत रहना पड़ेगा कि मुझे उस पूरे कालखंड को मिटाना नहीं है बल्कि उसे सच्चाई के साथ सबके सामने रखना भी है.
यह भी देखना है कि किस तरह इन सब चीजों के होने के बावजूद भी हमारा जो अपना विजन था चाहे वो अंग्रेजों के आने के बाद का हो या स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का हो उसमें जो भारतीय सांस्कृतिक का भाव है, क्या उसमें मेरी दृष्टि बनी हुई है या नहीं बनी हुई है. जो हमारी भारतीयता की दृष्टि है या जो वेदों की परंपरा रही है वो अभी भी हम लोगों के समाज में बनी हुई है या नहीं. हमने तो सभी का अपने यहां आदर किया है और कहा जाए तो जितनी भी संस्कृतियां हैं, उन सभी को समावेशित भी किया है, लेकिन हमने यह ध्यान रखा है कि हमारी जो भारतीय अस्मिता है वो समाप्त नहीं होने पाए.
(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)