बालाधिकार सुरक्षा आयोग की चेतावनी: पाठ्यक्रम में मनमानी नहीं कर सकते राज्य

Ncpcr Letter To States Said Enforcing Own Syllabus Will Be Rte Act Violation

स्‍कूलों में वही पढ़ाना होगा जो पहले से तय है, राज्यों ने करिकुलम बदला तो चलेगा कानून का डंडा

स्कूलों में क्या पढ़ाया जाए क्या नहीं पढ़ाया जाए ये राज्य खुद तय नहीं कर सकते हैं। ऐसा करने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है। यह बात नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) ने कही है। एनसीपीसीआर ने इस संबंध में सभी राज्यों को लेटर लिखा है।

हाइलाइट्स
एनसीपीआर ने सिलेबस को लेकर राज्यों को लिखा लेटर
कहा- नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क के तहत ही हो पढ़ाई
NCERT और SCERTs के पाठ्यक्रम पर है जोर

नई दिल्ली 15 अप्रैल: देश के स्कूलों में बच्चे क्या पढ़ेंगे और क्या नहीं पढ़ेंगे इस का निर्णय राज्य सरकारें अपने स्तर पर नहीं कर सकती हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने स्कूलों में बच्चों के सिलेबस में एकरूपता पर जोर दिया है। आयोग ने सभी राज्यों को पत्र भेजकर सरकारी और प्राइवेट दोनों स्कूलों में एनसीईआरटी और एससीईआरटी की तरफ से निर्धारित पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया का पालन करने के लिए निर्देश जारी करने को कहा है। लेटर में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क का भी हवाला दिया गया है।

तो कानून का उल्लंघन माना जाएगा

आयोग ने कहा है कि बोर्ड की तरफ से अपने स्वयं के पाठ्यक्रम को लागू करने का कोई भी प्रयास जो राज्य शैक्षणिक प्राधिकरण, एनसीईआरटी के अनुपालन में नहीं है, कानून का उल्लंघन है। आयोग ने मांग की है कि स्कूलों को अनुपालन के निर्देश जारी किए जाएं और 30 दिनों के भीतर एनसीपीसीआर को कार्रवाई रिपोर्ट सौंपी जाए। NCPCR के चीफ प्रियांक कानूनगो ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रमुख सचिवों और सचिवों को लेटर लिखा है। इसमें कहा गया है कि सभी स्कूलों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किए जाएं कि यदि कोई राज्य, बोर्ड या स्कूल निर्धारित सिलेबस के अलावा अपना पाठ्यक्रम (सिलेबस और टेक्स्ट बुक) लागू करता है तो इसे प्रथम दृष्टया आरटीई अधिनियम का उल्लंघन माना जाएगा।

सरकारी किताबों पर ना हो भेदभाव

इसमें कहा गया है कि शैक्षणिक प्राधिकरण (एनसीईआरटी / एससीईआरटी) की तरफ से प्रकाशित और निर्धारित पुस्तकों को ले जाने के लिए स्कूल द्वारा किसी भी बच्चे के साथ भेदभाव, उत्पीड़न या उपेक्षा नहीं की जाएगी। ऐसा होने पर मानसिक और शारीरिक पीड़ा होती है। साथ ही यह भी कहा गया है कि बच्चे के खिलाफ कोई कदम उठाने पर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रोविजन के तहत ऐक्शन लिया जा सकता है। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया गया है कि राज्य की तरफ से जारी ऐसे निर्देश उनके विभाग की वेबसाइट पर प्रदर्शित किए जाएंगे। साथ ही स्कूलों को कहा जाए कि वे इस आशय के दिशा-निर्देश स्कूल की वेबसाइट और नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित करें।

आरटीई अधिनियम का उल्लंघन

आयोग ने अपने पत्र में चिंता व्यक्त की है कि यह देखा गया है कि कुछ बोर्ड अपने स्वयं के पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रियाओं को निर्धारित करके आरटीई अधिनियम का उल्लंघन कर रहे हैं। एनसीपीसीआर प्रमुख उदाहरण देते हुए कहते हैं कि सीबीएसई द्वारा निर्धारित प्रणाली की समीक्षा करने पर, यह देखा गया कि प्रारंभिक स्तर पर निरंतर और व्यापक मूल्यांकन के विचार का समर्थन करते हुए बोर्ड ने न केवल एनसीईआरटी के डोमेन में कदम रखा, बल्कि आरटीई अधिनियम के तहत अधिसूचित प्राधिकरण भी सीसीई के पूरे उद्देश्य की गलत व्याख्या की।

एनसीईआरटी सिलेबस को फॉलो करें

इसलिए सितंबर 2017 में, आयोग ने सीबीएसई को आदेश दिया कि मूल्यांकन की अपनी नई समान प्रणाली को या तो एनसीईआरटी द्वारा अनुमोदित और मान्य किया जाए या इसे रद्द कर दिया जाए। परिणामस्वरूप सीबीएसई ने 2018 में कक्षा 6 से 8 के लिए प्रणाली को निरस्त कर दिया। इसके साथ, एनसीईआरटी द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम को सीबीएसई से संबद्ध सभी स्कूलों में पालन करने के लिए कहा गया, जिसमें निजी स्कूल और केंद्रीय विद्यालय जैसे केंद्रीय विद्यालय शामिल हैं। आरटीई अधिनियम सभी स्कूलों में पाठ्यक्रम में एकरूपता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करता है।

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