अल्पमत सरकार के पीएम मोदी दबाव में? कतई नहीं,बता रहे नौ से 27 जून के निर्णय
Pm Modi Same Working Style After Lok Sabha Election Nda Approach Same
9 से 27 जून… इन फैसलों से समझिए क्यों दबाव में नहीं है मोदी सरकार
लोकसभा नतीजों के बाद विपक्ष की ताकत बढ़ी है और इससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता। विपक्ष के तेवर भी बदले हैं और एक अलग शैली देखने को मिल रही है। लेकिन इन सबके बीच सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी की शैली तीसरे कार्यकाल में बदली है। यदि अब तक फैसलों को देखेंगे तो इसका जवाब उससे मिल जाएगा।
मुख्य बिंदु
1-तीसरे कार्यकाल में भी प्रधानमंत्री मोदी की नहीं बदली आक्रामक शैली
2-प्रोटेम स्पीकर और फिर स्पीकर के चुनाव पर नहीं बदला भाजपा का स्टैंड
3-कैबिनेट के बाद संसद सत्र में भी दिख रही प्रधानमंत्री मोदी की वही शैली
नई दिल्ली 27 जून 2024: लोकसभा नतीजों के बाद से ही अब तक इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की शैली इस बार पिछले दो कार्यकाल जैसा नहीं दिखेगी। विपक्ष से लगातार कई दावे किए जा रहे हैं। लेकिन नई सरकार के गठन और संसद की शुरुआत तक इस बात के उलट अब तक यही संकेत मिल रहे हैं कि मोदी सरकार दबाव में नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने जैसे फैसले लिए हैं उससे पता चलता है कि वह फिलहाल किसी दबाव में नहीं हैं। कौन मंत्री बनेगा, सहयोगी क्या डिमांड करेंगे, इन सवालों पर विराम लगा तो स्पीकर पद को लेकर चर्चा शुरू हो गई। संसद सत्र के शुरू से पहले ही कई सवाल थे लेकिन पिछले चार दिनों में सदन में जो फैसले हुए और जो नजारा दिखा उससे यह बात स्पष्ट है कि मोदी सरकार दबाव में नहीं है।
प्रोटेम स्पीकर और स्पीकर को लेकर आक्रामक शैली
18 वीं लोकसभा के पहले सत्र की शुरुआत जब 24 जून को हुई तब कई सवाल थे। विपक्ष से कई सवाल आ रहे थे खासकर प्रोटेम स्पीकर को लेकर। प्रोटेम स्पीकर पर विपक्ष के सवाल में सरकार अपने फैसले पर अडिग रही। विपक्ष ने दबाव बनाने को प्रोटेम स्पीकर के सहयोग को जिन सांसदों के नाम थे, वापस ले लिये। प्रोटेम स्पीकर के बाद सवाल था कि क्या स्पीकर को लेकर सर्वसम्मति बनेगी? विपक्ष के तेवर देख इसकी उम्मीद कम थी। चर्चा चल रही थी कि इस बार भाजपा के पास बहुमत नहीं है तो स्पीकर पद एनडीए के साथी दलों के पास जा सकता है। राजनीतिक विश्लेषक तर्क दे रहे थे कि जैसा वाजपेयी सरकार में हुआ इस बार वैसा हो सकता है। विपक्ष से कहा गया कि नीतीश और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी स्पीकर पद नहीं लेती तो भाजपा उनके सांसद तोड़ सकती है। इन चर्चाओं के बीच ओम बिरला के नाम के साथ भाजपा आगे बढ़ती है। विपक्ष से उम्मीदवार खड़ा किया जाता है लेकिन वोटिंग की मांग नहीं हुई। नतीजा हुआ कि ओम बिरला दूसरी बार स्पीकर चुन लिए जाते हैं।
सदन में आपातकाल का उल्लेख
लोकसभा अध्यक्ष अध्यक्ष चुने जाने के थोड़ी देर बाद ही विपक्ष तब हैरान हो गया जब ओम बिरला ने 1975 में कांग्रेस सरकार के लगाए आपातकाल की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पढ़ा। प्रस्ताव में उन्होंने कहा कि वह कालखंड काले अध्याय के रूप में दर्ज है जब देश में तानाशाही थोप दी गई थी, लोकतांत्रिक मूल्य कुचले गये थे और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट दिया गया। आपातकाल पर प्रस्ताव पढ़ते हुए बिरला ने कहा कि अब हम सभी आपातकाल में कांग्रेस की तानाशाही सरकार के हाथों अपनी जान गंवाने वाले नागरिकों की स्मृति में मौन रखते हैं। सदस्यों ने कुछ देर मौन रखा। विपक्षी दल खासकर कांग्रेस को इस फैसले पर हैरानी थी और विरोध भी उनकी ओर से जताया गया। अभी इसे कुछ घंटे ही बीते थे कि गुरुवार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश में 1975 में लागू आपातकाल को संविधान पर सीधे हमले का सबसे बड़ा और काला अध्याय बताते हुए कहा कि ऐसे अनेक हमलों के बावजूद देश ने असंवैधानिक ताकतों पर विजय प्राप्त कर दिखाई। मुर्मू ने 18वीं लोकसभा में पहली बार दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अपने अभिभाषण में यह बात कही। राष्ट्रपति ने अपने 55 मिनट के अभिभाषण में कहा कि देश में संविधान लागू होने के बाद भी संविधान पर अनेक बार हमले हुए।
पुराने मंत्रियों पर जताया भरोसा, कैबिनेट में भी दिखा वही अंदाज
इस बार के चुनाव में भाजपा को अपने दम बहुमत नहीं मिला लेकिन एनडीए सरकार बनी। सरकार गठन से पहले ही यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश हुई कि एनडीए के साथी दल हिसाब बराबर करेंगें। कई ऐसी खबरें भी सामने आई कि इस बार सहयोगी दल अधिक मंत्री पदों की मांग कर रहे हैं । लेकिन 9 जून को जब प्रधानमंत्री मोदी ने नए मंत्रियों के साथ शपथ ली तो यह सिर्फ अटकलें ही निकली। एनडीए में शामिल बड़े दलों को भी एक कैबिनेट और एक राज्य मंत्री का ही पद मिला। इसके बाद दूसरी चर्चा मंत्रालयों को लेकर शुरू हुई। कहा जाने लगा कि भाजपा के सहयोगी दल उससे रेल और वित्त मंत्रालय जैसे पद मांगेंगें। लेकिन यहां भी कुछ नहीं बदला। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के अधिकांश मंत्री दोबारा उन्हीं मंत्रालयों को तीसरे कार्यकाल में भी संभालते हुए दिखे। रक्षा, वित्त, गृह, विदेश, पर परिवहन,रेल मंत्रालयों में कोई फेरबदल नहीं हुआ। इतना ही नहीं, मंत्रालयों के बंटवारे बाद एनडीए में शामिल किसी दल की ओर से कोई सवाल नहीं उठा। 9 जून से 27 जून के पूरे घटनाक्रम देखें तो एक बात यह समझ आती है कि प्रधानमंत्री मोदी किसी दबाव में नहीं हैं और तीसरे कार्यकाल में भी वह पहले की ही तरह फैसले ले रहे हैं।