त्याग – तपस्या: नीरज सोशल मीडिया और फोन से दूर, सिर्फ मां से बात को खुलता था फ़ोन

टोक्यो में नीरज ने जीता गोल्ड:नीरज चोपड़ा एक साल से फोन स्विच ऑफ रख रहे थे, सिर्फ मां से बात करने के लिए ऑन करते थे

पानीपत( राजकिशोर)07अगस्त।नीरज ने अपने पहले ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीत कर इतिहास रच दिया। वे इंडिविजुअल में गोल्ड मेडल जीतने वाले देश के दूसरे खिलाड़ी हैं। नीरज से पहले 2008 बीजिंग ओलिंपिक में शूटिंग में अभिनव बिंद्रा ने गोल्ड मेडल जीता था। नीरज को गोल्ड यूं ही नहीं मिला है। इसके लिए उन्होंने काफी त्याग किए हैं। तैयारी पर फोकस रहे, इसलिए पिछले एक साल से वे मोबाइल को स्विच ऑफ ही रखते थे। यही नहीं वे सोशल मीडिया से भी दूर रहे।

नीरज के चाचा ने जीत के बाद से बातचीत में कहा कि नीरज का सपना देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना था। 2016 में वे रियो में नहीं जा सके थे। हालांकि उस साल उनका परफॉर्मेंस काफी शानदार था। उन्होंने जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था और वे क्वालिफिकेशन मार्क्स को भी पार कर गए थे, लेकिन उनका यह रिकॉर्ड 23 जुलाई के बाद का था। जबकि रियो के लिए क्वालिफाई की आखिरी तारीख ही 23 जुलाई थी। ऐसे में नीरज को ओलिंपिक में भाग नहीं लेने का दुख था।

इसके बाद से वे अगले ओलिंपिक की तैयारी में जुट गए थे। उनका सपना देश के लिए गोल्ड जीतना था और वे इसमें किसी तरह की कोताही नहीं बरतना चाहते थे। इसलिए पिछले एक साल से वे मोबाइल को स्विच ऑफ रखते थे। जब भी मां सरोज और परिवार के अन्य लोगों से बात करनी होती थी, वे खुद ही वीडियो कॉलिंग करते थे। हम चाहकर भी उन्हें संपर्क नहीं कर पाते थे।

नीरज ने मई 2019 में कोहनी की सर्जरी कराई थी

टोक्यो ओलिंपिक की देरी नीरज के लिए फायदेमंद
चाचा बताते हैं कि टोक्यो ओलिंपिक एक साल देरी से होना नीरज के लिए फायदेमंद रहा। नीरज को मई 2019 में कोहनी का ऑपरेशन कराना पड़ा था। ऐसे में हमें डर था कि वे ओलिंपिक से पहले तक रिकवर हो पाएंगे या नहीं, लेकिन भगवान का शुक्र है कि कोरोना की वजह से टोक्यो ओलिंपिक एक साल आगे टल गया और नीरज को रिकवरी का समय मिल गया। साथ ही उन्हें अपने फॉर्म में लौटने का भी पर्याप्त समय मिल गया।

मुकाबला देखने के लिए एलईडी स्क्रीन लगाई

नीरज चोपड़ा का मुकाबला देखने के लिए उनके पानीपत के गांव खांडरा स्थित घर में बड़ी स्क्रीन लगाई गई। घर में पूरा परिवार, रिश्तेदार, गांववाले और एथलेटिक्स फेडरेशन के अधिकारी जुटे, जिन्होंने एक साथ बैठकर लाइव मुकाबला देखा। पंडाल लगाकर कुर्सियां लगाई गईं। गांव के बड़े बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं सुबह से ही नीरज के घर पर जुटने लगे थे।

नीरज की बहनें बोलीं-भाई ने रक्षाबंधन का अनमोल गिफ्ट दिया:खांडरा गांव में देर शाम तक चला जश्न, खुशी में एथलीट के पिता और चाचा के साथ सोफे पर चढ़कर नाचने लगे DC

नीरज चोपड़ा की बहनें।

टोक्यो ओलिंपिक में भारत को पहला गोल्ड मेडल दिलाने वाले नीरज चोपड़ा के परिजनों के खुशी के आंसू नहीं रुके। बहन संगीता और सरिता ने कहा कि रक्षाबंधन आने वाला है। भाई इस पवित्र त्योहार से पहले ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीता गया। किसी भी बहन के लिए दुनिया का सबसे बड़ा उपहार है। मां बोलीं कि नीरज ने 11 साल की मेहनत को सोने में बदल दिया। नीरज की जीत के बाद गांव में जश्न का माहौल देखने को मिला। मैच के दौरान नीरज के थ्रो करने पर पिता सतीश चोपड़ा, चाचा भीम सिंह और DC सुशील कुमार ससारवान सोफे से खड़े होकर नाच उठते थे।

भारत को ओलिंपिक में पहला गोल्ड मेडल दिलाने वाले पानीपत के गांव खांडरा निवासी नीरज चोपड़ा के परिजन खुशी के आसुओं में डूबे दिखाई दिए। थ्रो करने पर पूरा पंडाल नीरज-नीरत के जयकारों से गूंजता रहा।

बहनें बोलीं- रक्षा बंधन के लिए इससे अनमोल कोई गिफ्ट नहीं

घर के पुरुष और गांव के लोग घेर के बाद बड़ी LED पर मैच देखते रहे। जबकि मां, बहनें और पड़ोस की महिलाओं ने घर पर मैच देखा। मैच के दौरान और बाद में नीरज की बहनों की आंखों में खुशी के आंसू देखने को मिले।

गोल्ड मेडल जीतने के बाद नीरज की मां सरोज को मिठाई खिलाती महिला।

मां बोलीं- 11 साल की मेहनत को सोने में बदला

नीरज के गोल्ड जीतने के बाद मां सरोज देवी ने बताया कि नीरज ने देश के लिए गोल्ड जीतने को 11 साल से कड़ी मेहनत की है। परिवार भी पूरी तरह नीरज के साथ रहा। इसी का परिणाम है कि नीरज ने 11 साल की मेहनत को सोने में बदला है।

ओलिंपिक में गोल्ड जीतने के बाद नीरज के गांव में जश्न मनाते लोग।

जीत के साथ ही गांव में शुरू हुआ जश्न

खांडरा गांव में शनिवार दोपहर 1 बजे से ही नीरज का मैच देखने की तैयार शुरू हो चुकी थी। गांव की मुख्य सड़कों पर स्वागत और मैच देखने के लिए उनके घर के बाहर LED स्क्रीन लगाई गई। पूरा गांव पंडाल जुटा। नीरज के स्क्रीन पर आते ही पूरा पंडाल नीरज-नीरज के नाम से गूंज उठा। गोल्ड जीतते ही पूरा गांव में जश्न डूब गया।

 

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