इतिहास-वर्तमान:नेहरू को थे नापसंद अंबेडकर,नया-नया है कांग्रेस का अंबेडकर प्रेम
Why Did Br Ambedkar Resign From Nehru Cabinet Lost Elections And How Did Babasaheb Become Favorite Of Congress Bjp
नेहरू कैबिनेट से आंबेडकर को क्यों देना पड़ा था त्यागपत्र, चुनाव भी हारे, अब कांग्रेस-भाजपा के चहेते कैसे बन गए बाबासाहेब?
Ambedkar row: संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू शायद ही पसंद करते थे। वजह यह है कि कांग्रेस ने आंबेडकर को संविधान सभा में जगह तक नहीं दी थी। नेहरू ने आंबेडकर को दो बार कांग्रेस प्रत्याशी के हाथों चुनाव हरवाया था। यही नहीं, उनके सहायक को ही उनके सामने खड़ा ही नहीं किया बल्कि आगे चलकर उसे पद्म पुरस्कार भी दिया। इससे पहले नेहरू की अंतरिम सरकार के दौरान आंबेडकर को इस्तीफा तक देना पड़ा था। आज उन्हीं आंबेडकर को कांग्रेस गले लगा रही है। भाजपा भी उनका फायदा उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती है। इसे समझते हैं।
क्या हुआ था संविधान सभा के गठन के दौरान, जानिए
आंबेडकर से कांग्रेस ने तब के दौर में क्यों बरती थी दूरी
अब भाजपा और कांग्रेस के चहेते क्यों बने आंबेडकर
नई दिल्ली 26 दिसंबर 2024: 14 नवंबर, 1956 की बात है, जब नेपाल की राजधानी काठमांडू में विश्व धर्म संसद शुरु हो रही थी। सम्मेलन का उद्घाटन तत्कालीन नेपाल के राजा महेंद्र ने किया था। नेपाल के राजा ने बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर से मंच पर अपने पास बैठने को कहा था। यह देख दुनिया को पता चला कि बौद्ध पंथ में बाबा साहेब का कद काफी बड़ा था।
भीमराव आंबेडकर की पत्नी सविता आंबेडकर ने अपनी जीवनी ‘डॉ. आंबेडकरांच्या सहवासात’ में इस बारे में लिखा है। भारत लौटते बाबासाहेब ने बौद्ध तीर्थस्थलों का दौरा किया। वो 30 नवंबर को दिल्ली लौटे, जहां संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका था। तब खराब सेहत के बाद भी आंबेडकर 4 दिसंबर को संसद पहुंचे और राज्यसभा की कार्यवाही में हिस्सा लिया। यह बाबा साहेब का संसद का आखिरी दौरा था। इसके बाद 6 दिसंबर, 1956 को आंबेडकर का निधन हो गया। जानते हैं आंबेडकर के नेहरू से रिश्तों की कहानी। इन्हीं आंबेडकर को लेकर अब कांग्रेस और भाजपा में ठन गई है। यह भी जानेंगे कि कांग्रेस और भाजपा अब आंबेडकर को क्यों गले लगाने पर उतारू हो रही हैं?
जब नेहरू ने आंबेडकर को हरवा दिया, नहीं करते थे पसंद
साल 1952 में आंबेडकर उत्तर मुंबई लोकसभा सीट से लड़े हालांकि, कांग्रेस ने आंबेडकर के ही पूर्व सहयोगी एनएस काजोलकर को टिकट दिया और आंबेडकर चुनाव हार गए। कांग्रेस ने कहा कि आंबेडकर सोशल पार्टी के साथ थे इसलिए उनका विरोध करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। नेहरू ने दो बार निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया और आंबेडकर 15 हजार वोटों से चुनाव हार गए। आंबेडकर को 1954 में कांग्रेस ने बंडारा लोकसभा उपचुनाव में एक बार फिर हराया। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू कभी आंबेडकर पर भरोसा नहीं करते थे और उन्हें पसंद भी नहीं करते थे।
आंबेडकर की समाज सुधारक की छवि से टेंशन में थी कांग्रेस
आंबेडकर की समाज सुधारक छवि कांग्रेस की चिंता का कारण थी। इसी से पार्टी ने उन्हें संविधान सभा से दूर रखने की योजना बनाई। संविधान सभा के पहले 296 सदस्यों में आंबेडकर नहीं थे। आंबेडकर सदस्य बनने को बॉम्बे के अनुसूचित जाति संघ का साथ भी नहीं ले पाए। तब के बॉम्बे के मुख्यमंत्री बीजी खेर ने पटेल के कहने पर सुनिश्चित किया कि आंबेडकर 296 सदस्यीय निकाय के लिए न चुने जाएं।
जब पाकिस्तान जाने वाले मंडल का मिला सहारा
आंबेडकर जब बॉम्बे में असफल रहे तो उनकी मदद को बंगाल के दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल सामने आए। उन्होंने मुस्लिम लीग की मदद से आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाया। यही मंडल बाद में पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने।
हिंदू बहुल होने के बाद भी चार जिले पाकिस्तान को सौंपे
लेकिन जिन जिलों के वोटों से आंबेडकर संविधान सभा पहुंचे थे वो हिंदु बहुल होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान चले गए जिससे आंबेडकर पाकिस्तान संविधान सभा सदस्य बन गए। भारतीय संविधान सभा की उनकी सदस्यता निरस्त हो गई। पाकिस्तान बाद भारत में रहे बंगाल के हिस्सों में से वे दोबारा संविधान सभा के सदस्य चुने गए।
जब आंबेडकर ने धमकी दी…तो संविधान स्वीकार नहीं करूंगा
जब कहीं से उम्मीद नहीं बची तो आंबेडकर ने धमकी दी कि वो संविधान स्वीकार नहीं करेंगे और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाएंगे। इसके बाद ही कांग्रेस ने उन्हें जगह देने का फैसला किया। तभी बॉम्बे के एक सदस्य एमआर जयकर ने संविधान सभा छोड़ दी और एमआर जयकर की खाली जगह आंबेडकर आये।
जब नेहरू की अंतरिम सरकार से आंबेडकर ने दिया था त्यागपत्र
आजादी से पहले जवाहरलाल के नेतृत्व में पहली अंतरिम सरकार बनी थी तो आंबेडकर नेहरू कैबिनेट में कानून मंत्री थे। हालांकि, अनुसूचित जातियों और हिंदू कोड बिल को लेकर आंबेडकर कांग्रेस की नीतियों से निराश थे। 11 अप्रैल, 1947 को आंबेडकर ने हिंदू कोड विधेयक, 1947 को सदन में पेश किया था जो बिना चर्चा गिर गया। आंबेडकर ने कहा कि प्रधानमंत्री के आश्वासन के बावजूद हिंदू कोड बिल संसद में गिरा दिया गया। अनुजा को लेकर कांग्रेस के रुख से भी अंबेडकर नाराज थे । इन्हीं मतभेदों से आंबेडकर को 27 सितंबर, 1951 को अंतरिम सरकार से इस्तीफा देना पड़ा लेकिन उन्हें संसद में वक्तव्य तक नहीं देने दिया गया और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन्हें अपना पक्ष रखना पड़ा। इसी के बाद उन्होंने शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन नामक संगठन बनाया था।
आंबेडकर ने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की शुरुआत की
साल 1924 में इंग्लैंड से वापस आने के बाद आंबेडकर ने वकालत और दलितों के उत्थान के लिए काम करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने एक असोसिएशन बहिष्कृत हितकारिणी सभा की शुरुआत की थी। इसके अध्यक्ष सर चिमनलाल सीतलवाड़ थे और चेयरमैन बीआर आंबेडकर थे।
भाजपा अब आंबेडकर के प्रति इतनी उदार क्यों हो गई
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉक्टर राजीव रंजन गिरि के अनुसार, इस साल लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में आंबेडकर को लेकर यात्राएं करने की बात कही थी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि संविधान हमारे लिए गीता, बाइबिल, कुरान और सब कुछ है। संविधान को कोई नहीं बदल सकता। बाबा साहेब आ भी जाएं तो अब संविधान नहीं बदला जा सकता। उनसे पहले कई मौके पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी आंबेडकर के समता के सिद्धांतों की तारीफ कर चुके हैं। भाजपा के हालिया झुकावों की वजह चुनाव हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष ये नरैटिव सेट करने में कामयाब हो गया था कि भाजपा के 400 पार के नारे का मतलब है कि वह सत्ता में बहुमत के साथ आई तो संविधान संशोधन करेगी और दलितों का आरक्षण खत्म कर देगी। नतीजा यह रहा कि बीजेपी बहुमत से दूर हो गई। उत्तर प्रदेश में तो बेहद खराब प्रदर्शन रहा। यही वजह है कि पार्टी ने हरियाणा में दलित वोटरों को साधा और अप्रत्याशित जीत हासिल की।
नेहरू के बजाय आंबेडकर कैसे बन गए कांग्रेस के हीरो
डॉक्टर राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में दलित वोटों की राजनीति का फायदा कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को मिला था। उस वक्त विपक्ष ने आरक्षण पर मोदी सरकार को घेरकर 272 के बहुमत से काफी पीछे यानी भाजपा को 32 सीटें दूर कर दिया था। हाल के बरसों में जब से बसपा और मायावती की राजनीति फीकी पड़ी है, तब से कांग्रेस दलित वोटरों को रिझाने में लगी है। यही वजह है कि राहुल गांधी अकसर संविधान, आरक्षण और आंबेडकर की बात करते नजर आते हैं। कांग्रेस नेतृत्व चुनावों में नेहरू की बात न के बराबर करता है, जबकि आंबेडकर की बातें ज्यादा करता है।
अमित शाह के त्यागपत्र पर भाजपा-कांग्रेस में युद्ध
संसद में केद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संविधान पर चर्चा के दौरान बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर पर दिए एक बयान को लेकर विपक्ष लामबंद हो गया है। ऐसा हंगामा हुआ कि संसद की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी और पूरा विपक्ष सड़कों पर आ गया है। वहीं, इस मामले में घिरे अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, जिन्होंने जीवन भर बाबा साहेब का अपमान किया, उनके सिद्धांतों को दरकिनार किया, सत्ता में रहते हुए बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं मिलने दिया, आरक्षण के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाईं, वे लोग आज बाबा साहेब के नाम पर भ्रांति फैलाना चाहते हैं। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अमित शाह पर आंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगाते हुए उनका इस्तीफा मांग लिया। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सभी ब्लू कलर के कपड़े में विरोध करने पहुंच गए।
दिनेश मिश्र