बदला: ‘चिराग’ बुझाने को नितीश चार की जगह मान गए एक ही मंत्री को
चिराग की चमक कम करने के लिए हुई डील:चिराग को कैबिनेट से बाहर रखने के लिए अपनों की बलि दी, 4 मंत्री पद न मिलने पर रूठे नीतीश सिर्फ एक पर माने
पटना08 जुलाई ( बृजम पांडेय)मई 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल में एक मंत्रालय के ऑफर को ठुकराने वाली जनता दल यूनाईटेड (JDU) दो साल बाद आखिरकार एक ही कैबिनेट बर्थ पर तैयार हो गई। अब बिहार में इसको लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। हर किसी का अपना-अपना दावा है। विपक्ष भी नीतीश कुमार को कमजोर साबित करने पर तुला है। ऐसे में हमने पड़ताल की कि आखिर इसके पीछे का माजरा क्या है?
पड़ताल में पता चला कि JDU दो साल बाद फिर एक ही मंत्रालय पर इसलिए तैयार हुई, क्योंकि उसके लिए अभी सबसे ज्यादा महत्व चिराग पासवान को कैबिनेट में शामिल नहीं होने देने का था। भाजपा के सामने चिराग का मामला रखा गया तो भाजपा ने भी इस पर एक बार फिर सांकेतिक भागीदारी (एक कैबिनेट पद) का राग अलाप दिया। इसे JDU को मानना पड़ा।
चिराग की एंट्री नहीं चाहती थी JDU
बताया जा रहा है कि JDU किसी भी हाल में चिराग पासवान की केंद्रीय मंत्रिमंडल में एंट्री नहीं होने देना चाहती थी। इसी वजह से मंत्रिमंडल विस्तार से पहले JDU के कुछ नेताओं ने मिलकर ऑपरेशन LJP तोड़ो चलाया। चिराग पासवान को अकेला छोड़ कर बाकी 5 सांसदों को अलग कर लिया गया।
बाद में राजनैतिक तिकड़म करके पशुपति पारस को LJP का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया। साथ ही लोकसभा में संसदीय दल का नेता भी मनोनीत कर दिया गया। इन सबके पीछे JDU की मंशा सिर्फ यह थी कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में चिराग पासवान की एंट्री ना हो।
अगर चिराग केंद्र में मंत्री बनते तो JDU की बढ़ जाती मुसीबत
जानकारों का कहना है कि केंद्रीय कैबिनेट में अगर चिराग पासवान मंत्री बन जाते तो बिहार में दलितों का बड़ा चेहरा उभर कर सामने आता। एक नया लीडरशिप उभर सकता था। हो सकता है कि आगे दिवंगत रामविलास पासवान के बाद चिराग ही देश में दलितों की अगुआई करने वाले के तौर पर माने जाते।
चिराग पढ़े-लिखे और युवा हैं। लालू, नीतीश और सुशील मोदी के बाद की पीढ़ी में चिराग पासवान, तेजस्वी यादव से भी आगे निकल सकते थे। वह अन्य घटक दलों में BJP के सबसे ज्यादा करीब होते और दलित चेहरे के नाम पर चिराग का उपयोग BJP दूसरे राज्यों में भी करती।
चिराग ने चुनाव में पहुंचाया था नुकसान
2020 में जब बिहार विधानसभा का चुनाव शुरू हुआ तो NDA की तरफ से BJP- JDU-LJP के बीच में सीटों के बंटवारे का फार्मूला फिट नहीं बैठा। LJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने अलग चुनाव लड़ने का मन बनाया। चिराग ने नीतीश कुमार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था। LJP ने चुन-चुन कर उन जगहों पर अपने उम्मीदवार उतारे यहां से JDU के जीतने की उम्मीद ज्यादा थी। जब रिजल्ट आया तो भले LJP को मात्र एक सीट मिली, लेकिन बताया जाता है कि इसकी वजह से JDU ने 36 सीट गंवा दिए थे।
JDU विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी बन कर रह गई थी। हालांकि NDA के तरफ से पहले से ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के उम्मीदवार थे तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। इस बात का बदला लेने के लिए JDU ने बाद में LJP के एकमात्र विधायक को अपने दल में शामिल करवा कर लिया और आगे चलकर लोकसभा में भी LJP को तोड़ दिया।
चिराग पासवान को अलग-थलग करके उनके चाचा को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करा कर उन्हें संसदीय दल का नेता भी करार दे दिया गया। अब चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस केंद्र में मंत्री भी बन चुके हैं।
दिवंगत रामविलास पासवान के श्राद्ध कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हुए थे शामिल, लेकिन चिराग से ज्यादा बात नहीं हुई।
चिराग से पूरा हुआ नीतीश का प्रतिशोध
जो JDU केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपनी जिद की वजह से शामिल नहीं हुई थी, उसने अचानक अपना मन क्यों बदल लिया? यह अहम सवाल है। वजह यह है कि JDU ने BJP से 2 कैबिनेट और 2 राज्य मंत्री तो मांगे थे ही, वहीं JDU का यह भी दबाव था कि चिराग पासवान को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं कराया जाए।
इसके बाद BJP ने अपना पुराना दांव चला। JDU की दूसरी शर्त को BJP ने मान लिया, बदले में JDU को एक कैबिनेट बर्थ देने का ऑफर किया। मजबूरन JDU को मानना पड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि पशुपति पारस भी केंद्र में मंत्री बन गए।
नीतीश ने इसलिए किया था इनकार
2019 में जब केंद्र में दूसरी बार NDA की सरकार बनी तो उसमें JDU भी सहयोगी दल के रूप में थी। बिहार से JDU के 16 सांसद जीतकर लोकसभा गए थे, लेकिन BJP ने पूर्ण बहुमत से 303 सीट पर जीत हासिल की थी। तब BJP अपने सभी सहयोगियों को सांकेतिक हिस्सेदारी के रूप में 1-1 मंत्रिमंडल दे रही थी, लेकिन उस समय के तत्कालीन JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार को यह मंजूर नहीं था। उन्होंने मंत्रिमंडल में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा था- ‘हमें संख्या के आधार पर तुलनात्मक हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।’ हालांकि, उन्होंने NDA को अपना समर्थन जारी रखा। पटना आकर उन्होंने कहा कि इस विषय पर वह आगे बात नहीं करेंगे।