भाजपा के खिलाफ 2024 में एक प्रत्याशी खड़ा पायेगा विपक्ष? प्रमं चेहरा कौन?
Opinion: सत्यपाल मलिक बने विपक्षी दलों के सलाहकार! बताया सीट शेयरिंग का फार्म्युला- भाजपा के खिलाफ वन इज टू वन कैंडिडेट दें
Opposition Unity: भाजपा के खिलाफ विपक्ष ने मोर्चाबंदी की रणनीति पर मंथन शुरू कर दिया है। नीतीश कुमार विपक्षी एकता की अगुआई कर रहे हैं। इन सबके बीच विपक्षी एकता में सबसे बड़ी बाधा सीट शेयरिंग, प्रधानमंत्री दावेदार और सत्ता में हिस्सेदारी की दिख रही है। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक विपक्ष को लगातार सलाह दे रहे हैं।
हाइलाइट्स
विपक्षी एकता की कामयाबी में दिख रहे कई पेंच
सीट शेयरिंग पहली बड़ी बाधा बन आएगी सामने प्रधानमंत्री दावेदार व सत्ता में हिस्सेदारी भी उलझाएंगे
2019 में भाजपा से अधिक वोट मिले थे विपक्ष को
दिल्ली21मई : गोवा और जम्मू कश्मीर समेत कई राज्यों में राज्यपाल रह चुके सत्यपाल मलिक पद से हटते ही विपक्षी दलों के अघोषित-अनामंत्रित सलाहकार बन गए हैं। मलिक ने विपक्षी दलों की एकजुटता में सबसे बड़ी बाधा बनी सीट शेयरिंग की समस्या सुलझाने के लिए फार्म्युला सुझाया है। उन्होंने कहा है कि भाजपा को परास्त करने को वन इज टू वन का फार्म्युला अपनाना होगा। यानी भाजपा के खिलाफ सम्मिलित विपक्षी उम्मीदवार होना चाहिए। दरअसल इसी फार्म्युला से 1977 में नवगठित जनता पार्टी ने कांग्रेस को परास्त किया था। इंदिरा गांधी हाशिये पर चली गई थीं। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी मलिक के ही फार्म्युला पर अमल करने की सलाह विपक्ष को दे रही हैं। विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने के काम में जुटे बिहार के सीए नीतीश कुमार से मुलाकात में विपक्षी एकता की जरूरत पर ममता ने सैद्धांतिक सहमति तो दे दी थी, लेकिन उन्होंने सीट शेयरिंग की शर्त भी रख दी है। ममता चाहती हैं कि जो दल जिस राज्य में प्रभावशाली भूमिका में है, वही उस राज्य में नेतृत्व करे। दूसरा कि कांग्रेस 200 सीटों पर खुद लड़े और बाकी सीटें दूसरे विपक्षी दलों के लिए छोड़ दे।
आसान नहीं है वन इज टू वन का फार्म्युला अपनाना
मलिक की सलाह और ममता की राय मेल तो खाती है, लेकिन इस फार्म्युला पर कांग्रेस कभी तैयार हो पाएगी, इसमें संदेह है। कांग्रेस की अभी चार राज्यों में सरकारें हैं। वहां के लिए यह फार्म्युला तो हो सकता है, लेकिन बाकी राज्यों में क्या होगा, जहां दूसरे विपक्षी दलों की सरकारें हैं। खासकर बंगाल और बिहार में। बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की सरकार है। कांग्रेस तो बंगाल से प्रायः खत्म हो चुकी , लेकिन उसकी जमीन अब भी है। हाल ही में हुए विधानसभा के उपचुनाव में कांग्रेस और वाम दलों ने गठजोड़ कर लिया था। नतीजा यह हुआ कि तृणमूल कांग्रेस का उम्मीदवार हार गया और कांग्रेस के प्रत्याशी को कामयाबी मिल गई।
सत्यपाल क्यों सुझा रहे वन इज टू वन का फार्म्युला
सत्यपाल मलिक का मानना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को तकरीबन 45 प्रतिशत वोट मिले थे। बंटे हुए विपक्ष को सम्मिलित तौर पर 55 प्रतिशत वोट आए थे। यानी विपक्ष अगर गोलबंद होकर चुनाव लड़ता है तो वह सर्वाधिक वोटों का हकदार हो जाएगा। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की लहर थी। इसके बावजूद विपक्ष के खाते में 55 प्रतिशत वोट आए थे। 2024 में तो मोदी के खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी भी बड़ा फैक्टर होगा। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद देश में मोदी विरोधी माहौल बना है। अगर विपक्षी एकजुटता बन गई और वन इज टू वन के फार्म्युला पर भाजपा से मुकाबला हुआ तो विपक्ष भारी मतों से जीत हासिल करने में कामयाब हो जाएगा। विपक्ष इसी फार्म्युला पर चलने की कोशिश करना चाहता है।
आइए, समझते हैं क्या है वन इज टून का फार्म्युला
सीधे शब्दों में कहें तो वन इज टू वन फार्म्युला में आमने-सामने की लड़ाई होती है। जैसे भाजपा की मुखालफत के लिए विपक्ष मिल कर एक ही उम्मीदवार उतारे। इस फार्म्युला को लागू करने में सबसे बड़ी बाधा है कि जिन राज्यों में विपक्षी दल या दलों की सरकारें हैं और कांग्रेस का जहां टोकन प्रजेंस हैं, वहां क्या कांग्रेस इसके लिए तैयार हो पाएगी। इसलिए कि तब राज्यों में प्रभुत्व वाली पार्टियां अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए अधिक सीटों की मांग करेंगी। ऐसे में चार राज्यों को छोड़ कांग्रेस को दूसरे राज्यों में सीट बंटवारे में 100 सीटें भी शायद ही मिल पाएं। बिहार की बात करें तो 2019 में कांग्रेस का एक उम्मीदवार जीता था और जेडीयू के 16 प्रत्याशी कामयाब हुए थे। उस हिसाब से अगर सीटों का बंटवारा होता है तो कांग्रेस के खाते में एक ही सीट मिलेगी। यही हाल पश्चिम बंगाल का है। वहां टीएमसी को पिछले लोकसभा चुनाव में 22 सीटें आई थीं। भाजपा के खाते में 18 सीटें गई थीं। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल को तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। ऐसे में टीएमसी क्या कांग्रेस को तरजीह दे पाएगी ? यह सबसे बड़ा अवरोध है। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का साफ कहना है कि 2024 में भाजपा उम्मीदवार के सामने अगर विपक्ष ने एक ही उम्मीदवार खड़ा किया तो भाजपा को हराना आसान हो जाएगा। 1989 में वीपी सिंह के समर्थन में और 1977 में इंदिरा गांधी के खिलाफ यही फार्म्युला अपनाया गया था। 2014 में भाजपा को अगर सत्ता में आने से रोकना है तो विपक्ष को इसी पैटर्न पर काम करना होगा।
आजमाया जा चुका है वन इज टू वन का फार्म्युला
इमरजेंसी के बाद जब इंदिरा गांधी ने मार्च 1977 में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान किया तो 23 जनवरी 1977 को 10 विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई थी। विचारधारा में भिन्नता के बावजूद सभी विपक्षी दल जयप्रकाश नारायण के सुझाव पर एकजुट हो गए थे। इन दलों का मकसद था कि एकजुट तरीके से इंदिरा गांधी का विरोध किया जाए। इसमें विपक्षी दलों को कामयाबी मिल गई थी। विपक्षी दल एक हो गए और इन्होंने हर सीट पर इंदिरा गांधी के उम्मीदवार के खिलाफ अपना एक उम्मीदवार उतारने का फैसला किया। दक्षिण के कुछ राज्यों को छोड़ कर उत्तर और मध्य भारत में कांग्रेस की लुटिया डूब गई थी। लेकिन पद और हिस्सेदारी के सवाल पर जनता पार्टी का क्या हश्र हुआ, सबको पता है। तीन साल भी सरकार नहीं चल सकी। आखिरकार इंदिरा गांधी ने 1980 के लोकसभा चुनाव में दमदार तरीके से सत्ता में वापसी की। जनता पार्टी इतिहास बन गई। इसी तरह 1989 के लोकसभा चुनाव में भी हुआ। तब दो ही राष्ट्रीय पार्टियां चुनाव मैदान में थीं- कांग्रेस और भाजपा। कई पार्टियों ने नेशनल फ्रंट बनाया। एनटी रामाराव अध्यक्ष और वीपी सिंह संयोजक बनाए गए। आंध्र प्रदेश में टीडीपी, तमिलनाडु में डीएमके और असम में असम गण परिषद ने नेशनल फ्रंट का नेतृत्व किया था। इसका नतीजा हुआ कि 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई। राजीव गांधी तब प्रधानमंत्री थे। कांग्रेस को 197 सीटें ही मिलीं। वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल ने 143 सीटें जीतीं। भाजपा को अकेले 85 सीटें मिली थीं। भाजपा के समर्थन से यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी। वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री के लिए देवी लाल के नाम का प्रस्ताव रखा। देवी लाल ने मना कर दिया और वीपी सिंह को ही प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव दे दिया। इस तरह वीपी प्रधानमंत्री और देवी लाल उप प्रधानमंत्री बने।
ममता ने कांग्रेस को दी 200 सीटों पर लड़ने की राय
ममता बनर्जी ने कांग्रेस को 200 सीटों पर लड़ने की सलाह दी है। बाकी सीटों पर दूसरे विपक्षी दल अपने उम्मीदवार उतारेंगे। कांग्रेस अगर इस पर तैयार भी हो जाती है तो सबसे बड़ा संकट बाकी दलों के बीच सीटों के बंटवारे का होगा। दिल्ली में लोकसभा की 7 सीटें हैं। आम आदमी पार्टी की वहां सरकार है। दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों पर भाजपा के खिलाफ आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, बसपा समेत विपक्षी दलों को सम्मिलित रूप से 7 उम्मीदवार ही उतारने होंगे। इससे भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा रुक जाएगा और भाजपा के उम्मीदवारों को आसानी से हराया जा सकेगा। लेकिन इसके लिए सबसे अधिक सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी क्या अपनी सीटों से कोई समझौता करना चाहेगी। बिहार-बंगाल की भी यही स्थिति है।
वन इज टू वन के फार्म्युला में कहां-कहां फंसेगा पेंच
2024 में वन इज टू वन फार्मूले को अपनाने के लिए विपक्ष अगर तैयार भी हो जाता है तो बिहार में आरजेडी और जेडीयू सूबे की बड़ी पार्टी होने के कारण ज्यादा सीटें चाहेंगे। उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और रालोद भी अधिक सीटों की मांग करेंगे। ऐसे में विपक्षी एकता ही खतरे में पड़ सकती है। इसलिए बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की गोलबंदी में यह सबसे बड़ा खतरा बन सकता है। सबसे बड़ी बात यह कि क्या कांग्रेस इसके लिए तैयार होगी, जिसे ताजातरीन कर्नाटक में कामयाबी मिली है। विपक्ष इसे लोकसभा चुनाव के सेमी फाइनल के तौर पर देख रहा है। यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि सबसे बुरी गत के बावजूद कांग्रेस की चार राज्यों में अभी सरकारें हैं। राष्ट्रीय स्तर पर उसकी पहचान है। अगर कांग्रेस को वन इज टू वन का फार्म्युला अपनाने को बाध्य किया गया तो शायद ही वह गठबंधन के लिए तैयार हो।
कांग्रेस एकता चाहती है, पर पत्ते नहीं खोल रही
कांग्रेस विपक्षी एकता की पक्षधर है। नीतीश कुमार अभी विपक्ष को एकजुट करने के जिस मिशन में लगे हैं, उसकी सलाह कांग्रेस ने ही उनको तब दी, जब उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उन्हें प्रधानमंत्री का चेहरा नहीं बनना है। ममता या दूसरे दलों ने भी यही जान कर एकजुटता के लिए हामी भरी है। लेकिन सीटों के तालमेल के अलावा एक बड़ा संकट यह भी है कि पीएम फेस कौन बनेगा। ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, केसी राव, एमके स्टालिन जैसे नेता शायद ही कांग्रेस के पीएम फेस को कबूल करें। इसलिए सीटों के तालमेल को लेकर विपक्ष में सहमति बन भी जाए तो मामला पीएम फेस पर आकर अंटक सकता है। अभी तक विपक्षी नेताओं में एकजुटता के लिए नीतीश से पहले सर्वाधिक कोशिशें ममता बनर्जी, केसी राव, एमके स्टालिन ने की हैं। नीतीश ने तो विपक्ष के नेतृत्व का प्रस्ताव एनसीपी नेता शरद पवार को ही दे दिया है। कांग्रेस ने फिलहाल चुप्पी साध ली है। माना जा रहा है कि विपक्षी एकता बने न बने, कांग्रेस पीएम पद की रेस में अपना उम्मीदवार यकीनन देगी। अगर विपक्ष सरकार बनाने में कामयाब हो भी जाता है तो दूसरा संकट सरकार में हिस्सेदारी को लेकर सामने आएगा। हर क्षेत्रीय दल की मंत्रिमंडल में अधिक हिस्सेदारी की मांग होगी।
(ये लेखक ओमप्रकाश अश्क के निजी विचार हैं)
Politics Opposition Unity Satyapal Malik Became Advisor To Opposition Parties Told Seat Sharing Formula