ओपीडी पर्चे को भटकते दिखे गांधी शताब्दी अस्पताल में रोगी
*उत्तराखंड की राजधानी में बदहाल सरकारी चिकित्सा*
*OPD पर्चे के अभाव में .. दर-दर भटकते लोग*
विशेष संवाददाता
देहरादून 20 दिसंबर । दून अस्पताल दून मेडिकल कॉलेज का अंग बना तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय ( पुराना नाम कारोनेशन) अस्पताल को जिला अस्पताल बनाया गया, जिसके साथ गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सालय को भी संबद्ध कर दिया गया , दोनों ही राजधानी की डालनवाला कॉलोनी में हैं। लेकिन वहां के हालात क्या हैं , ये आज एक भुक्तभोगी ने बताया ।
पर्ची बनाने की खिड़की पर लंबी लाइन लगी थी लेकिन पर्ची बनाने वाली महिला बाहर धूप सेंक रही थी। पूछने पर जवाब मिला कि कंप्यूटर बंद है और आफलाइन पर्चियां भी उपलब्ध नहीं हैं । उसका कहेना यह भी था की इस संबंध में उच्चाधिकारियों को भी बता दिया गया हे । दूर दूर से आये रोगियों की सुनने वाला कोई नहीं था । जिद पर अडे पुराने पर्चों वाले ही डॉक्टरों से दवा लिखवा रहे थे । पता चला कि सीएमएस डॉ शिखा जंगपांगी छुट्टी पर हैं , तब वहां पर मौजूद संवाददाता ने CMO डॉक्टर संजय जैन सहित अन्य उच्चाधिकारियों से संपर्क किया । तब कहीं जाकर पटल सहायक ने सादे कागज पर 28 रूपए की नियमित फीस ले क्रम संख्या और विवरण लिख पर्चे बनाने शुरू किए ।
*अब सवाल स्वास्थ्य व्यवस्था पर*-
उत्तराखंड सरकार जहां लोगों को उपलब्ध कराई जा रही स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति बड़े-बड़े दावे करती है, वही इसके विपरित राजधानी देहरादून में ही स्वास्थ्य विभाग के ब्रांड जिला अस्पताल में ऐसी बदहाल व्यवस्था हैं तो राज्य के सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में क्या हाल होंगें ?? समझा जा सकता है । क्या उत्तराखंड के 23 वर्षो की यही उपलब्धि मानी जाये ??
याद रहे, उत्तरांखड में डेंगू के प्रकोप से जब सभी सरकारी -गैर सरकारी अस्पताल रोगियों से भर गये थे तो उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग ने एक एडवाइजरी जारी कर उन्ही रोगियों को अस्पताल में भर्ती करने का आदेश दिया था जिनकी प्लेटलेट्स 20,000 से नीचे हो। ध्यान रहे, स्वस्थ व्यक्ति की प्लेटलेट्स ढाई -तीन लाख होती हैं। यही नहीं,निजी अस्पतालों में भी डेंगू के इलाज में इसी एडवाइजरी के कारण उन्ही रोगियों का इलाज बहुप्रचारित आयुष्मान कार्ड से हो पाया जिनकी प्लेटलेट्स 20 हजार से नीचे गिर गई हो। इस अजीबोगरीब एडवाइजरी से रोगी निजी अस्पतालों में खूब लुटे।