विदेशी राय: दिसंबर तक 35% से ज्यादा जनता को वैक्सीन नहीं लगा पायेगा भारत
टीकाकरण मिशन:भारत में संक्रमण उतार पर लेकिन वैक्सीनेशन धीमा; इस वर्ष 35 फीसदी लोगों को वैक्सीन लग पाएगी
स्थानीय लॉकडाउन, जनता में बीमारी की दहशत से स्थिति सुधरी
भारत में कोरोना वायरस की घातक तेज लहर जिस तेजी से उभरी थी, उतनी ही तेजी से उतार पर है। देश के बहुत बड़े हिस्से खासकर गांवों में टेस्टिंग न होने के कारण प्रभावित लोगों की सरकारी संख्या वास्तविक संख्या से बहुत कम है। इसलिए महामारीविद मानते हैं कि कोविड-19 से मौतों के मामले में भारत अमेरिका और ब्राजील से बहुत आगे है। फिर भी, गलत ही सही सरकारी आंकड़े अब उम्मीद जगाते हैं। देश के कुछ भागों में जहां गिनती विश्वसनीय है, वहां गिरावट का साफ ट्रेंड दिख रहा है। इधर वायरस पर नियंत्रण के प्रमुख साधन वैक्सीनेशन की धीमी गति से जनता निराश है। शुरुआती तेजी के बाद वैक्सीन अभियान लड़खड़ा गया है। अनुमान है, इस रफ्तार से साल के अंत तक 35% लोगों को ही वैक्सीन लग पाएगी।
राष्ट्रीय पॉजिटिविटी दर 24% से घटकर 10 % से कम है। प्रमुख शहरों में ऑक्सीजन के लिए मची भागदौड़ खत्म हो चुकी है। एक ओर बीमारी की दहशत कम हो रही है, वहीं संकट अभी खत्म नहीं हुआ है। दूसरी लहर की शुरुआत पश्चिमी हिस्से से हुई थी और पूर्व में इसकी बढ़त जारी है। चेन्नई में संक्रमण पीक पर पहुंच रहा है। दिल्ली के एक बड़े अस्पताल के सर्जन अंबरीश सात्विक कहते हैं, हम आशावादी नहीं हो सकते हैं। संक्रमण शहरों से गांवों की ओर बढ़ रहा है। लिहाजा, यह कुछ समय चलेगा। दूसरी लहर ने घातक प्रभाव छोड़ा है। अगर सरकार का बहुप्रचारित वैक्सीन अभियान सफल रहता तो त्रासदी की भयावहता से हताश जनता के जख्मों पर मरहम लग सकता था। इसकी बजाय अभियान बुरी तरह नाकाम रहा है। संक्रमण में उछाल के बीच वैक्सीन लगवाने वाले लोगों की संख्या कम रही।
सरकार पर्याप्त वैक्सीन हासिल करने और सही तरीके से योजना बनाने में विफल रही है। इस वजह से वैक्सीनेशन 35 लाख प्रतिदिन से घटकर 15 लाख पर आ गया। पहली डोज लगवाने वाले लाखों लोगों को दूसरी डोज का इंतजार है। लगभग 89% भारतीयों को एक भी डोज नहीं लगी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि इस साल के अंत तक 35% से कम वयस्कों को एक डोज लग पाएगी। सरकार ने अधिक वैक्सीन हासिल करने के अपने निश्चय को स्वयं गलत ठहराया है। फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना जैसी विदेशी वैक्सीनों को अब तक हरी झंडी नहीं मिली है। वैक्सीनेशन के कारण शहरों में मौजूदा लहर का प्रकोप कम हुआ होगा। लेकिन, वायरस की प्राकृतिक प्रवृत्ति के अलावा संक्रमण कम होने का मुख्य कारण सख्त स्थानीय लॉकडाउन है। भारत की पहले से कमजोर अर्थव्यवस्था को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए मोदी सरकार ने इन उपायों को जितना संभव हो सका टालने का प्रयास किया है। फिर भी, कड़े कर्फ्यू, और पुलिस की सख्ती ने अधिकतर जानें बचाई हैं।
भास्कर की खबरों का जिक्र
इकोनॉमिस्ट ने दैनिक भास्कर में गंगा नदी के किनारों पर मिले शवों के संबंध में प्रकाशित ग्राउंड रिपोर्टिंग का जिक्र किया है। मैग्जीन ने लिखा है, भारत में गंगा के घनी आबादी वाले पठारों में जहां डॉक्टर और प्रभावित लोगों की संख्या के आंकड़े दुर्लभ हैं, वहां घटनाक्रम के संबंध में मिले सबूत भयानक स्थिति की गवाही देते हैं। हर गांव में मौतें हुई हैं और यह सिलसिला आगे बढ़ता जा रहा है। लोग भावनात्मक और आर्थिक रूप से टूट चुके हैं। भास्कर के रिपोर्टरों ने गंगा नदी के 1100 किमी में फैले क्षेत्र में दो हजार से अधिक शवों के आनन-फानन में अंतिम संस्कार का ब्योरा दिया है।
सुकून भरी खबर:60 फीसदी आबादी के वैक्सीनेशन से महामारी का खात्मा, योजना पर 3.62 लाख करोड़ रुपए खर्च होंगे
दो अर्थशास्त्रियों का प्रस्ताव, योजना पर 3.62 लाख करोड़ रु. खर्च होंगे
कोरोना वायरस महामारी पर नियंत्रण का सबसे अच्छा उपाय क्या हो सकता है। दुनियाभर में विशेषज्ञ इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश में लगे हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक का तर्क है कि हर देश की 60% आबादी को वैक्सीन लगाकर अगले साल की शुरुआत में महामारी के गंभीर दौर को खत्म करना संभव है। लाइफ साइंस डेटा कंपनी एयरफिनिटी के अनुसार वैक्सीन निर्माता इस वर्ष 11.1 अरब डोज बना सकते हैं।
यह विश्व की पांच साल से अधिक आयु की 75% जनसंख्या को टीका लगाने के लिए काफी है। विशेषज्ञों का प्रस्ताव है कि 3.62 लाख करोड़ रुपए के खर्च से महामारी की विदाई संभव है। अग्रवाल और रीड ने हिसाब लगाया है कि अमीर देशों ने दो अरब कोर्स के लिए अग्रिम ऑर्डर दिए हैं। कई कोर्स में वैक्सीन की दो डोज रहती हैं। दोनों विशेषज्ञों का अनुमान है, ढाई अरब आबादी वाले 91 विकासशील देशों को अपनी 60% अाबादी को वैक्सीन लगाने के लिए केवल 35 करोड़ कोर्स की जरूरत होगी। भारत के पास वैक्सीन की बहुत अधिक कमी है। लेकिन, लक्ष्य तक पहुंचने के लिए उसके पास पैसा और घरेलू वैक्सीन निर्माण क्षमता है।
रुचिर अग्रवाल और आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कोविड-19 महामारी खात्मे के लिए 3.62 लाख करोड़ रुपए का व्यापक प्रस्ताव तैयार किया है। केवल 28985 करोड़ रुपए की जरुरत 35 करोड़ अतिरिक्त वैक्सीन कोर्स के लिए पड़ेगी। बाकी पैसा लोगों को वैक्सीन लगाने, वायरस के नए वेरिएंट पर नजर रखने, टेस्टिंग के विस्तार, इलाज और एक अरब डोज की वैक्सीन क्षमता के निर्माण पर खर्च करने का प्रस्ताव है।
ग्लोबल जीडीपी में 57 लाख करोड़ रुपए जुड़ने का अनुमान
आईएमएफ के अनुसार महामारी का अंत जल्द होने से अगले कुछ वर्षों में ग्लोबल जीडीपी में 57 लाख करोड़ रुपए जुड़ेंगे। अमीर देशों को सात लाख करोड़ रुपए का टैक्स अधिक मिलेगा। अर्थशास्त्रियों का कहना है,इस प्रस्ताव में पैसा लगाना संभवत: अब तक का सबसे बेहतर निवेश साबित हो सकता है।