मत:संसद, संविधान और जनमत के सम्मान से ही प्रगति कर सकते हैं मुसलमान
मुस्लिम नेताओं को पुरानी मानसिकता से बाहर आना चाहिए और निर्दोषों को मारना कोई वीरता नहीं है
[डॉक्टर शंकर शरण ]
एआइएमआइएम के नेता वारिस पठान के सामुदायिक बल का गुमान दिखाने से उनके सेक्युलर-वामपंथी समर्थक ही झेंपे, क्योंकि वे मुसलमानों के बारे में कुछ और बातें कहते रहते हैं। इसी पार्टी के अकबरुद्दीन ओवैसी तो कई बार अपनी 15 मिनट वाली धमकी दोहरा चुके हैं कि हम 25 करोड़ हैं और तुम 100 करोड़ हो, लेकिन 15 मिनट के लिए पुलिस हटा दो, तब देख लेंगे कि किस में कितना दम है।’
ऐसी भावना कई मुस्लिम नेता जब-तब प्रकट करते रहते हैं। ये सार्वजनिक रूप से सरकार, सेना, न्यायपालिका को भी धमकी देते हैं। हाल में ऐसे भाषणों के तमाम वीडियो वायरल हुए हैं।
जिन्ना ने दी थी धमकी- ‘हिंदुओं को कत्लेआम और विनाश से बचाने के लिए’ देश-विभाजन करो। सबमें एक तत्व समान है-ताकत का घमंड। यह लगभग 100 साल से चल रहा है। कलकत्ता में मुस्लिम लीग के ‘डायरेक्ट एक्शन’ (1946) के बाद जिन्ना ने कांग्रेस को धमकी दी थी कि और नहीं तो ‘केवल हिंदुओं को कत्लेआम और विनाश से बचाने के लिए’ देश-विभाजन करो। उससे पहले 1924 में मौलाना अकबर शाह खान ने महामना पंडित मदनमोहन मालवीय को ‘पानीपत का चौथा युद्ध’ आयोजित करने की चुनौती दी थी। मौलाना ने यहां तक घमंड दिखाया कि वह लड़ने के लिए साधारण मुसलमान ही लाएंगें, पठान या अफगान नहीं।
सूफी विद्वान ख्वाजा हसन निजामी ने कहा था- हिंदुओं में शासन की क्षमता नहीं ,उसी दौर में निजामुद्दीन दरगाह के सूफी विद्वान ख्वाजा हसन निजामी ने कहा था,- ‘मुसलमानों ने हिंदुओं पर सैकड़ों वर्ष शासन किया है इसलिए उनका इस देश पर एकाधिकार है। हिंदुओं में शासन की क्षमता नहीं। मुसलमानों ने शासन किया है, मुसलमान ही शासन करेंगें।’
महात्मा गांधी केे ‘भारत के रत्न’ और ‘परिशुद्ध आत्मा’ मुहम्मद अली ने भी गांधीजी के ही बारे में ओछी बातें ही कही थीं कि मेरे लिए एक निष्कृृृृृृष्टतम चोर-डाकू-हत्यारा-बलात्कारी मुुसलमान भी गांधी से बेेेेहतर है। उन्होंने गांधीजी को मुसलमान बना कर उनका ‘उपकार’ कर देने का भी दंभ दिखाया था। जबकि तब गांधीजी उन्हीं की राजनीतिक मदद कर रहे थे। स्वतंत्र भारत में भी अनेक नेताओं में वही मानसिकता है।
ओवैसी और वारिस पठान जैसे मुस्लिम नेता झूठे गुमान में गलत अर्थ निकालते हैं
ओवैसी के अलावा भी कई मुस्लिम नेताओं को अपने बल के अलावा बड़े अंतरराष्ट्रीय समुदाय होने का भी गुमान है। एक बार सैयद शहाबुद्दीन ने धमकी दी थी कि ‘अरब देशों से कह भारत को तेल की आपूर्ति बंद करा देंगे।’ लंबे समय से चल रही इस मानसिकता की मूल ग्रंथि ताकत का गुरूर है। दुर्भाग्यवश गांधीजी से लेकर आज तक हमारे नेताओं ने इस पर विचार नहीं किया। या तो वे इसे क्षुद्र बात समझते रहे या मुस्लिम नेताओं की मनुहार कर मित्र बनाने की कोशिश करते रहे। इससे कोई लाभ न हुआ। उलटे दोनों समुदायों के बीच अस्वस्थकर भावनाएं बनती रहीं। ग्रंथि जहां हो, वहीं इलाज आवश्यक होता है। उपेक्षा से वह गांठ अपनी जगह जड़ीभूत रहती है। नि:संदेह धमकी का जबाव धमकी से देने की जरूरत नहीं। शांत वैचारिक उत्तर भी एक प्रतिकार है। इतिहास और वर्तमान, दोनों में ताकत की विफलताएं, हिंसा के परिणाम और उसकी सीमाएं देखी जा सकती हैं। ओवैसी और वारिस पठान जैसे मुस्लिम नेता झूठे गुमान में विविध देशों, क्षेत्रों में दूसरों की शांतिप्रियता का गलत अर्थ निकालते हैं।
इस्लामी स्थानों की रक्षा आज अमेरिकी संरक्षण में हो रही है। विश्व में स्पेन के अलावा भारत ही है जहां इस्लामी सत्ता बनी और हराकर खत्म कर दी गई। यहां 600 साल राज की भी असलियत यही है कि अकबर के पहले कोई मुस्लिम सल्तनत ज्यादा टिक न सकी। अकबर की भी इसलिए टिकी, क्योंकि उसने राजपूतों से सुलह कर ली थी। जैसे ही औरंगजेब ने कट्टरता दिखाई तो जल्द मुगल साम्राज्य ही खत्म हो गया। यह अंग्रेजों के जमने से पहले स्थानीय हिंदू लड़ाकों ने कर दिया था। दुनिया की देखें तो सबसे बड़ा तुर्क-ऑटोमन मुस्लिम साम्राज्य भी भारत के कई हिंदू शासकों के साम्राज्य से छोटा था। ललितादित्य, चंद्रगुप्त मौर्य, चोल, विजयनगर आदि कई के राज्य बहुत विस्तृत और सदियों तक शान से बने रहे थे। खुद मुहम्मद साहब का खड़ा किया इस्लामी अरब राज्य जल्द दूसरों ने जीत लिया था। फिर 20वीं सदी के चौथे दशक में ही तेेेल की खोज के साथ अरब लोग खड़े हो सके थे। तब भी सबसे प्रमुख इस्लामी स्थानों की रक्षा आज अमेरिकी संरक्षण में हो रही है।
तेल की अकूत आर्थिक ताकत मिलने के बाद भी तमाम मुस्लिम देश एक अमेरिका को नहीं हरा सकते। छोटे से इजरायल पर पांच-पांच मुस्लिम देशों का संयुक्त आक्रमण भी दो बार बुरी पराजय में बदला। छह गुनी बड़ी सेना और संसाधन आदि मिल कर भी उस इजरायल का कुछ नहीं बिगाड़ सके, जिसकी पूरी आबादी मात्र 20 लाख थी। पाकिस्तान के भी भारत पर चार-चार हमले हार में बदले। यहां तक कि आधुनिक इतिहास में 1971 में सब से बड़ी मुस्लिम सेना ने एक भारतीय जनरल के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण किया। सारे आधुनिक हथियार, तकनीक गैर-मुसलमानों ने विकसित की और वह उन्हीं के पास हैं।
साफ है मुस्लिम नेताओं को पुरानी मानसिकता से बाहर आना चाहिए और यह समझना होगा कि धोखे से किसी ट्रेन, बाजार, बिल्डिंग या ऑफिस पर हमला कर निर्दोष लोगों को मार डालने में कोई वीरता नहीं है। दुनिया के सभ्य देश-समाज उसी धोखे से उत्तर नहीं देते तो इसे उनकी कमजोरी समझना बुद्धिहीनता ही है।
मध्ययुगीन घमंड छोड़ आत्मावलोकन करना चाहिए
इस्लामी मत का इतिहास ऐसा है कि पाकिस्तान में इतिहास विषय ही वर्जित है, क्योंकि वहां के लोग तुलनात्मक सामाजिक-ऐतिहासिक सच्चाइयों का सामना करने की हालत में नहीं हैं। इसलिए सैनिक या वैचारिक, किसी क्षेत्र में मुस्लिम नेताओं के पास घमंड के लिए कुछ नहीं है। वे अपनी आक्रामक भाषा और जहां-तहां हिंसा का गुमान रखते हैं। वे लोकतांत्रिक देशों में दलीय और वोट राजनीति की कमजोरियों से मिलने वाले लाभ का भी अतिरंजित आकलन करते हैं। उन्हें मध्ययुगीन घमंड छोड़ आत्मावलोकन करना चाहिए।
इस्लामी सिद्धांत के अनेक तत्व स्वयं मुस्लिम देशों में छोड़े जा चुके हैं
इस्लामी सिद्धांत के अनेक तत्व स्वयं मुस्लिम देशों में छोड़े जा चुके हैं। उनकी अंतरराष्ट्रीयता भी नाम-मात्र बची है। अपने स्थानीय हितों को अनेक मुस्लिम शासक पड़ोसी मुस्लिम देश को तबाह करते रहते हैं। तुर्की-सीरिया, सऊदी अरब-यमन, पाकिस्तान-अफगानिस्तान आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। हर हाल में इस्लामी श्रेष्ठता के बदले मानवीय समानता का सिद्धांत सही है।
भारतीय संसद, जनमत और संविधान का सम्मान करके ही उन्नति कर सकते हैं
सो भारतीय संसद, जनमत और संविधान का सम्मान करके ही यहां सब उन्नति कर सकते हैं। ताकत का घमंड कहीं नहीं ले जाएगा। सब कुछ मानवीय विवेक से देखना पड़ेगा।