मत:सत्ताविरोधी लहर कैसे पार करती है भाजपा,10 वर्ष में यूपीए छह,राजग जीती 10 प्रदेश

Bjp How Retained Power 10 States Where Mood Against Past 10 Years UP Haryana Mp Up Goa
दशकभर में सत्ता विरोधी रूझान में 10 राज्यों पर बनाये रखी सत्ता… भाजपा यूं ही नहीं जीत लेती है हारी बाजी
BJP Winnig Factors : हरियाणा चुनाव में भाजपा ने जीत हासिल कर बड़े-बड़े राजनीतिक जानकारों को चौंका दिया। सत्ता विरोधी लहर के बावजूद सरकार भाजपा चुनाव कैसे जीतती है, ये एक राज है। इसके पीछे भाजपा कार्यकर्ताओं की मेहनत, समय से पहले चुनावी तैयारी का रोल महत्वपूर्ण है। जानिए कैसे भाजपा जमीनी हकीकत को समझकर फैसले लेती है।

मुख्य बिंदु 

1-हरियाणा चुनाव में भाजपा ने पाई शानदार जीत
2-10 साल में 10 चुनावों में भाजपा ने की सत्ता में वापसी
3-कार्यकर्ताओं से जुड़ाव, ग्राउंड रिपोर्ट समेत इन कारकों से दिखा असर

नई दिल्ली 20 अक्टूबर 2024: हरियाणा चुनाव में जैसे भाजपा ने शानदार हैट्रिक लगाई उसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी। हाल में संपन्न चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन पर सवाल उठाए जा रहे थे। यही नहीं, सभी एग्जिट पोल में कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार का दावा हो रहा था। हालांकि, पार्टी नेतृत्व ने सत्ता विरोधी लहर के बावजूद ग्राउंड इंटेलिजेंस के सहारे हारी बाजी  जीत में बदल दी। हरियाणा चुनाव को लेकर पार्टी ने उत्तर प्रदेश के भाजपा सांसदों को मैदान में उतारा। उन्हें पूरे राज्य में तैनात किया था। इसी में एक सांसद ने करनाल की बाइक यात्रा में सड़क किनारे दुकानों पर चाय पी और स्थानीय चर्चा सुनी।
हरियाणा में भाजपा ने कैसे पलटी बाजी
यात्रा में सांसद ने पाया कि मुख्यमंत्री नायब सैनी पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से ज्यादा लोकप्रिय थे। उन्होंने तुरंत चुनावी टीम को इस संबंध में सूचित किया। तब मुख्यमंत्री सैनी को सार्वजनिक बैठकों में कुछ ही समय रहने और अपनी बात रखने को कहा गया। उन्हें बाकी समय लोगों से मिलने, उनके साथ समय बिताने को प्रोत्साहित किया गया। उनके सुरक्षाकर्मियों को सख्त निर्देश दिये गये कि वे किसी को भी मुख्यमंत्री के पास जाने से नहीं रोकें। नायब सिंह सैनी स्वेच्छा से उन लोगों के पास जाते और सेल्फी लेते थे। इस कदम का हरियाणा में खासा असर नजर आया।

सत्ता विरोधी लहर में भी खिला कमल
यह सिर्फ एक उदाहरण है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा कैसे काम करती है। पिछले एक दशक में, भाजपा ने गोवा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मणिपुर समेत 10 ऐसे राज्यों में सत्ता बनाये रखी है, जहां ये माना जा रहा था कि लोग पार्टी से नाराज़ है। भाजपा इन रा्ज्यों में हार सकती है। इसके विपरीत, 2004 से 14 तक यूपीए के 10 साल के शासन में, कांग्रेस ने 6 राज्यों में सत्ता बनाये रखी जिसमें से आखिरी 2011 में पार्टी असम में सत्तासीन हुई थी। वहीं भाजपा का प्रदर्शन कांग्रेस कहीं ज्यादा बेहतर दिखा। आखिर वो कौन से कारक रहे जिससे भाजपा हारी हुई बाजी अपने नाम कर पाई।

कार्यकर्ताओं से सीधा जुड़ाव
भाजपा पूरे साल कार्यकर्ताओं से संपर्क में रहती है। पार्टी पूरे साल कार्यक्रम देकर जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं का अपना विशाल नेटवर्क चुनाव को तैयार रखती है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने कहा, ‘हमारे पास विचार प्रेरित पार्टी कार्यकर्ताओं का व्यापक तंत्र है। हम न केवल चुनावों के दौरान, बल्कि पूरे साल उनके साथ जुड़े रहते हैं।’

जल्दी शुरुआत और विशेषज्ञ टीम
भाजपा हमेशा 365×24/7 काम करती है, इसलिए चुनाव की तैयारी का कोई तय समय नहीं है। हालांकि, चुनाव से सात से आठ महीने पहले ये और तेजी से आगे बढ़ने लगती है। शुरुआती इनपुट पार्टी को जन असंतोष दूर करने में मदद करते हैं। पार्टी नेताओं ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार ने लाडली बहना योजना लागू की, जिसका वादा कांग्रेस ने चुनाव पूर्व किया था। कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में भी इसी तरह की घोषणा की गई। कर्नाटक चुनाव से पहले, भाजपा सरकार ने अनुसूचित जाति आरक्षण 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया।

विशेषज्ञों को बड़ी जिम्मेदारी
भाजपा ने पिछले कुछ सालों में कई चुनाव विशेषज्ञ तैयार किये है। इनमें केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव, अश्विनी वैष्णव, मनसुख मंडाविया और जी किशन रेड्डी के साथ-साथ नए चेहरे शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा भी शामिल हैं। इन नेताओं को शुरू में ही बड़ी जिम्मेदारी दे दी जाती है जिससे उन्हें जमीनी हालात का आकलन करने और राज्य के लिए पार्टी की रणनीति बनाने का मौका मिलता है। अक्टूबर 2022 में, भाजपा ने मई 2023 के चुनाव को कर्नाटक प्रभारी तय कर दिये। जुलाई 2023 में, पार्टी ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के लिए प्रभारी घोषित कर दिए। वहां नवंबर में चुनाव हुए। हाल ही में हुए हरियाणा चुनाव को 17 जून को प्रभारी नियुक्त किए गए।

चेहरे भी बदले
पिछले 5 सालों में, भाजपा ने चुनाव से पहले पांच राज्यों गुजरात, उत्तराखंड, त्रिपुरा, कर्नाटक और हरियाणा में मुख्यमंत्री बदल दिये। कर्नाटक छोड़ सभी राज्यों में पार्टी का ये दांव काम कर गया। भाजपा नेताओं ने बताया कि नया चेहरा चुनना कठिन है। अगस्त 2016 में, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने आनंदीबेन पटेल की जगह ली, जिनकी जाति के साथी आरक्षण को अभियान चला रहे थे। जब 2021 में पटेलों ने भाजपा का समर्थन किया, तो पार्टी ने रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया।

ग्राउंड रिपोर्ट पर विशेष ध्यान 
2023 में, पार्टी ने ओबीसी वोटों को एकजुट करने को हरियाणा में नायब सिंह सैनी को राज्य अध्यक्ष बनाया। सैनी को जनवरी में मनोहर लाल खट्टर की जगह मुख्यमंत्री बनाया। फीडबैक से लेकर एक्शन तक भाजपा का चुनाव संगठन जमीनी गुप्त जानकारी और योजना पर निर्भर रहता है। भाजपा और बीजू जनता दल ने ओडिशा विधानसभा चुनाव में गठबंधन पर चर्चा की। हालांकि, ओडिशाभर में पार्टी सेंटर्स ने इस समझौते को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं और नागरिकों के विरोध को रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राज्य प्रभारी सुनील बंसल और दूसरे नेताओं ने दिल्ली में एक जरूरी बैठक में हिस्सा लिया। कॉल सेंटर कर्मियों के पास बहु-स्तरीय रिएक्शन एकत्र करने और एक रिपोर्ट पेश करने को 24 घंटे का समय दिया। रिपोर्ट ने भाजपा को बीजेडी से गठबंधन की अपनी योजना को छोड़ने को प्रेरित किया। इसका सीधा असर ओडिशा के परिणामों में दिखा। भाजपा ने अकेले दम पर वहां सरकार बनाई।

दिग्गज मैदान में उतारे
पिछले साल मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी ने सात सांसदों को मैदान में उतारा था, जिसमें तीन केंद्रीय मंत्री और एक राष्ट्रीय महासचिव शामिल थे। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी के लिए यह प्रयोग कारगर रहा। अरुण सिंह ने कहा कि, ‘वरिष्ठ नेताओं के चुनाव लड़ने से कार्यकर्ताओं और नागरिकों को संदेश जाता है कि पार्टी गंभीर है। यह पार्टी के एकजुट नेतृत्व को भी दर्शाता है।’

विद्रोही कैसे साधे
भाजपा अपने विद्रोहियों को अन्य पार्टियों की तुलना में बेहतर तरीके से मैनेज करती है। हाल ही में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा से करीब 33 और कांग्रेस से 36 विद्रोही थे। दोनों पार्टियों ने अपने विद्रोहियों को मैनेज करने की कोशिश की,लेकिन भाजपा का प्रबंधन बेहतर रहा। पार्टी के वरिष्ठ नेता रामविलास शर्मा को मनाने मुख्यमंत्री सैनी ने उनसे व्यक्तिगत भेंट की। इसी तरह,पार्टी के चुनाव सह-प्रभारी बिप्लव देव ने कई विद्रोहियों से भेंट की और उन्हें नामांकन वापस लेने को राजी किया।

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