मत:किसान-पहलवान-जवान की अति ले डूबी कांग्रेस को हरियाणा में

विनेश फोगाट हारते-हारते जीत गईं पर उनके विषय ने कांग्रेस को चित कर दिया
Haryana election results: हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को विनेश फोगाट के नाम का एक अलादीन का चिराग मिल गया था. जिसे लेकर कांग्रेस ने अपने पक्ष में जबरदस्त माहौल बनाया. पर आखिर में इस चिराग की आंच में कांग्रेस ने अपने घर में ही आग लगा ली. यह अतिशयोक्ति नहीं है.

विनेश फोगाट ने कांग्रेस की टिकट पर जीता चुनाव

नई दिल्ली,08 अक्टूबर 2024,कांग्रेस नेता विनेश फोगाट ने जुलाना सीट से 6015 वोट से अधिक वोटों से जीत में  अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के योगेश बैरागी को हराया है. हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को विनेश के नाम पर अलादीन का चिराग मिल गया था. जिसे लेकर कांग्रेस ने अपने पक्ष में जबरदस्त माहौल बनाया. पर आखिर में इस चिराग की आंच ने अपने घर में ही आग लग दी. विनेश के चलते हरियाणा में जो माहौल बना वो कई तरीके से कांग्रेस पर भारी पड़ा.
विनेश फोगाट की जीत पर अब कुश्ती कांड के खलनायक भाजपा नेता बृजभूषण शरण सिंह को भी बोलने का मौका मिल गया है. उन्होंने व्यंग्य कसा है कि हमारा नाम लेकर अगर वे जीत गईं तो इसका मतलब हम महान आदमी हैं. कम से कम मेरे नाम में इतना दम तो है कि मेरे नाम से उनकी नैय्या पार हो गई लेकिन कांग्रेस को तो डुबो दिया. हुड्डा साहब तो डूब गए, प्रियंका जी तो डूब गईं, राहुल बाबा का क्या होगा? ब्रजभूषण के इस बयान को केवल व्यंग्य समझना भारी भूल होगी. वास्तव में विनेश फोगाट विषय कांग्रेस की हवा निकाल दी. आइए देखते हैं कैसे हुआ ये.

Decoding Haryana Assembly Election Result The Bjp Victory And Congress Rout

किसान, जवान, पहलवान…कांग्रेस ने नैरेटिव तो खूब गढ़ा फिर भाजपा कैसे जीत गई हरियाणा?
हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के नैरेटिव को ध्वस्त करते हुए जीत की हैटट्रिक बना दी। रुझान और नतीजे बता रहे कि जाट बनाम गैर-जाट ध्रुवीकरण का सीधा फायदा भाजपा को मिला।

हरियाणा विधानसभा चुनाव में फेल साबित हुए सारे के सारे एग्जिट पोल, अनुमान धरे के धरे रह गए, भाजपा मार ले गई बाजी
नतीजे घूमे जाट बनाम गैर-जाट ध्रुवीकरण के इर्द-गिर्द, भाजपा को लाभ

हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे ऐसे आये जैसा भाजपा ने खुद भी उम्मीद नहीं की होगी। एग्जिट पोल वाले दिन से ही मुरझाए चेहरे अचानक चमक गए। सुबह काउंटिंग के शुरुआती रुझानों में कांग्रेस एकतरफा जीत की तरफ बढ़ती दिखी लेकिन उसकी ये खुशी घंटे-दो घंटे में ही काफूर हो गई। बाजी पलट गई। बीजेपी स्पष्ट बहुमत के साथ जीत की हैटट्रिक बना गई। किसान-जवान-पहलवान से कांग्रेस ने नैरेटिव तो खूब गढ़ा लेकिन भाजपा आखिर कैसे जीत गई, जीत क्या गई, सूबे में अपनी अब तक की सबसे बड़ी जीत पा गई, आइए समझते हैं।

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने नैरेटिव गढ़ा। किसान-जवान-पहलवान पर आक्रामक प्रचार किया। किसान आंदोलन के बहाने भाजपा को घेरने की तैयारी की। अग्निवीर पर जवानों की बात करके ‘असली राष्ट्रवाद’ का भी नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की। भाजपा नेता बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पहलवानों के आंदोलन का चेहरा रहीं ओलिंपियन रेसलर विनेश फोगाट को चुनाव मैदान में उतारकर पहलवान बिरादरी के साथ-साथ जाट वोट साधने की जबरदस्त कोशिश की। 7 गारंटियों के नाम पर लोकलुभावन वादे किए।

जाट vs गैर-जाट ध्रुवीकरण का भाजपा को सीधा फायदा

कांग्रेस ने चुनाव में भाजपा के खिलाफ मजबूत नैरेटिव गढ़ा। नेताओं का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर था। सारे के सारे एग्जिट पोल भी कांग्रेस की प्रचंड जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे लेकिन पार्टी का अति-आत्मविश्वास और अति-आक्रामकता ही उसके खिलाफ चली गई। पार्टी ने पहलवानों के आंदोलन को एक तरह से जाट अस्मिता से जोड़ने की कोशिश की। महत्वपूर्ण मुकाबले से पहले वजन बढ़ने से ओलिंपिक मेडल से हाथ धोने वाली विनेश फोगाट का दीपेंद्र हुड्डा समेत तमाम कांग्रेसी नेताओं ने जुलूस निकालकर स्वागत किया। हद तो तब हुई जब जाट समाज की अगुआई का दावा करने वालों ने फोगाट को ‘खाप पंचायत गोल्ड मेडल’ दे दिया। कांग्रेस ने पहलवान आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहीं विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया को न सिर्फ पार्टी में शामिल किया बल्कि फोगाट को जुलाना विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में भी उतार दिया। इन सबके बीच अनजाने में ही सही, कांग्रेस ने कहीं न कहीं जाट बनाम गैर-जाट ध्रुवीकरण को हवा दी।

भाजपा ने चुनाव पूर्व दुष्यंत चौटाला की जेजेपी से दूरी बना ली क्योंकि उसे अंदाजा हो गया कि उसे चुनाव में जाट वोट मिलने से रहे। इस ‘पार्ट टाइम पार्टनरशिप’ की गाज जेजेपी पर पड़ी। जाट बनाम गैर-जाट ध्रुवीकरण का भाजपा को सीधा फायदा हुआ। निर्णायक रुझानों को देखने से लगता है कि भाजपा के पक्ष में गैर-जाट ओबीसी के साथ-साथ दलित वोट भी खूब पड़े हैं। हरियाणा में 20 प्रतिशत दलित हैं और इस बार भाजपा उन्हें लुभाने में शायद कामयाब हुई है।

भाजपा के लिए चुनौतियां बहुत थीं। 10 साल से सत्ता में रहने  से सत्ताविरोधी रुझान से निपटना चुनौती थी। चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने वादा किया कि वह 24 फसलों पर एमएसपी देगी। अग्निवीरों को इंट्रेस्ट-फ्री लोन की घोषणा की। लेकिन कांग्रेस का बहुत ज्यादा शोरगुल जाट-गैरजाट ध्रुवीकरण को हवा दे गया और पार्टी को उसका नुकसान उठाना पड़ा।

कांग्रेस की ‘गारंटियों’ पर भारी पड़े भाजपा के ‘संकल्प’

कांग्रेस ने चुनाव में 7 गारंटियों से लोकलुभावन वादे किए। 300 यूनिट तक फ्री बिजली, 25 लाख रुपये तक मुफ्त इलाज, गरीबों को 100 गज का प्लाट, महिलाओं को हर महीने 2000 रुपये जैसे एक से बढ़कर एक लोकलुभावन वादे। भाजपा को अंदाजा हो गया कि अगर इसकी काट नहीं की तो बाजी हाथ से निकल जाएगी। उसने भी महिलाओं के लिए लाडो लक्ष्मी योजना में 2,100 रुपये, हर परिवार को 10 लाख रुपये तक मुफ्त इलाज, हर जिले में ओलिंपिक खेलों की नर्सरी, ग्रामीण क्षेत्रों में कॉलेजिएट छात्राओं को मुफ्त स्कूटर, हरियाणा के हर अग्निवीर को सरकारी नौकरी की गारंटी समेत 20 ‘संकल्पों’ का पिटारा खोल दिया। आखिरकार जनता ने कांग्रेस की 7 ‘गारंटियों’ के मुकाबले भाजपा के 20 ‘संकल्पों’ पर भरोसा जताया।

मुख्यमंत्री बदलने का दांव चल गया

भाजपा ने लोकसभा चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री बदल दिया। मनोहर लाल खट्टर को बदलकर उनके ही भरोसेमंद नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना दिया। सैनी को ओबीसी चेहरे के तौर पर पेश किया। इससे जाट दबदबे वाले राज्य में ओबीसी को भाजपा के पक्ष में लामबंद होने का एक और कारण मिला। 10 साल की एंटी-इन्कंबेंसी की काट को चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलने का भाजपा का ये दांव काम कर गया ।

कांग्रेस की अंतर्कलह भाजपा ने भुनायी

कांग्रेस में चुनाव से पहले अंतर्कलह और मुख्यमंत्री पद को लेकर नेताओं की अपनी-अपनी दावेदारी को भाजपा ने भुनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। चुनाव में 70 से 80 प्रतिशत उम्मीदवार भूपेंद्र सिंह हुड्डा खेमे के उतरे । उनकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी सैलजा कुमारी का इससे बेचैन होना लाजिमी था। हालांकि असंध की रैली में राहुल गांधी ने सैलजा और हुड्डा को एक मंच पर लाकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश जरूर की। सैलजा हरियाणा में एक दिग्गज दलित चेहरा हैं। भाजपा ने खुलेआम उन्हें पार्टी में आने का ऑफर दिया। हालांकि, सैलजा ने उसे सार्वजनिक तौर पर ठुकरा दिया लेकिन दलितों के बीच संभवतः संदेश जा चुका था। संदेश कांग्रेस में दलित नेता की कथित उपेक्षा का। इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला।

कांग्रेस की पांच बड़ी गलतियां 

1- किसान-पहलवान आंदोलन की जुगलबंदी एंटी जाट वोटों के ध्रुवीकरण का कारण बनी

हरियाणा में विनेश को लेकर कांग्रेस इतनी उत्साहित हो गई थी कि जैसे लगता था कि उसे जादुई छड़ी मिल गई है. इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाने में महिला पहलवानों का आंदोलन बहुत काम आया. पहलवान बेटियों के अत्याचार के नाम पर जाटों के सेंटिमेंट को उभारा गया. उधर किसानों के नाम पर भी जाट स्वाभिमान ही उभार कर सामने आया. क्योंकि हरियाणा में किसान का मतलब जाट और पहलवान का मतलब भी जाट ही निकलता है. किसान और पहलवान आंदोलन की इतनी अधिक चर्चा हो गई कि गैर जाटों को लगा कि अगर ये लोग सत्ता में आ गये तब तो सर पर ही चढ़ जाएंगे. यही दलितों के साथ भी हुआ. हुड्डा समर्थकों ने जिस तरह कुमारी सैलजा का अपमान किया उससे कमजोर और दलित समुदाय सहम गया. और किसान-पहलवान की ये जुगलबंदी एंटी जाट वोटों के ध्रुवीकरण का कारण बन गई.

2- विनेश की सीट पर मिले भाजपा,जेजेपी,आप और इनेलो के वोट क्या कहते हैं

जुलाना सीट पर इस बार कांग्रेस ने विनेश फोगाट तो भारतीय जनता पार्टी ने कैप्टन योगेश को मैदान पर उतारा था.वहीं आम आदमी पार्टी ने रेसलर कविता दुग्गल को टिकट देकर मुकाबले को दिलचस्प बनाने की कोशिश की थी। जुलाना पर विनेश को 65080 वोट मिले.वोटों की समीक्षा करें तो साफ पता चलता है कि विनेश को केवल उनकी बिरादरी यानि कि जाटों का वोट ही मिला है.वह भी हंड्रेड परसेंट वोट हासिल करने में सफल नहीं हुईं हैं.उनके निकटतम प्रतिद्वंदी bjp के योगेश बैरागी ने 590 65 वोट हासिल करने में सफलता प्राप्त की.साफ दिखता है कि विनेश के सेलेब्रेटी स्टेटस का फायदा कांग्रेस को जुलाना सीट पर भी नहीं मिला.अब समझ सकते हैं कि कांग्रेस को कितना फायदा विनेश ने राज्य में पहुंचाया होगा.

जुलाना में 1.87 लाख वोटर हैं.ौ यहां करीब 70% से ज्यादा यहां जाट समाज के वोट हैं, लेकिन 5 पार्टियों में से 4 ने उम्मीदवार जाट समाज से उतारे थे. उसमें विनेश, लाठर, ढांडा और कविता दलाल शामिल थे. पर लाठर को छोड़कर जिन्हें 10 हजार के करीब वोट मिले हैं किसी को सम्मानजनक वोट नहीं मिले हैं. कहने का मतलब यहां है कि विनेश को जाटों का भी पूरा वोट नहीं मिला है.कैप्टन बैरागी को उनसे केवल 6 हजार वोट कम मिले हैं. मतलब उन्हें जाटों को छोड़कर सभी 36 बिरादरियों के वोट मिले हैं.

3- विनेश के चलते बने माहौल से कांग्रेस अति कॉन्फिडेंस में आ गई

विनेश फोगाट प्रकरण पर सोशल मीडिया और मेन स्ट्रीम मीडिया पर जिस तरह लोगो ने रिएक्ट किया उससे कांग्रेस अतिआत्मविश्वास में आ गई. किसान आंदोलन के चलते हरियाणा के जाट पहले ही कांग्रेस के पक्ष में हवा क्रिएट किए हुए थे.महिला पहलवानों को लेकर जनता की नाराजगी को असेस करने में कांग्रेस चूक कर गई.कांग्रेस ने ओवर कॉन्फिंडेंस के चलते आम आदमी पार्टी या जेजेपी आदि से गठबंधन की बजाय अकेले ग्राउंड में उतरने का फैसला कर लिया. अगर किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन हुआ होता तो कांग्रेस को कम से कम 10 सीटों पर फायदा मिलता.

4- महिला पहलवानों का चुनावी हो जाना

जब तक विनेश फोगाट महिला पहलवानों के अत्याचार के खिलाफ आंदोलनरत थीं तब तक तो जनता का सेंटिमेंट उनके साथ था. पर जैसे ही वो कांग्रेस के साथ घूमने लगीं लोगों को लगा कि ये केवल राजनीतिक लाभ को एक नौटंकी भर था. और उनके आंदोलन के राजनीतिक होने की तस्‍वीर तब एकदम साफ हो गई, जब विनेश पेरिस ओलंपिक में हिस्‍सा लेकर लौटने के बाद कांग्रेस सांसद दीपेंदर हुड्डा के साथ जीप में अपने घर पहुंचीं.उनके इस रोड शो से वे कई कांग्रेस समर्थकों के तो करीब हो गईं,लेकिन राज्‍य में उनके कई तटस्‍थ समर्थक उनसे दूर हो गए.इस सबके बीच विनेश के पिता समान चाचा और कोच महावीर फोगाट ने भी राजनीति में आने से उन्‍हें मना किया.हालांकि,तब तक विनेश बहुत आगे चली गई थीं,जबकि उनके साथ रहे कई लोग पीछे छूट गए.

5. विनेश की दोतरफा बातों ने खेल खराब किया

पेरिस ओलंपिक से लौटी विनेश की बातें पूरी तरह नेताओं जैसी होने लगीं. ऐसे में उनकी एक खिलाड़ी के रूप में जो ख्‍याति थीं,उसका नुकसान हो गया.माना गया कि विनेश जो भी कुछ कह रही हैं,वह कांग्रेस के इशारे पर है. पहले जो विनेश कहती थी कि उसकी राजनीति में कोई रुचि नहीं है और वह इसके बारे में जरा भी नहीं जानती.वही विनेश चुनाव बीच अपने इंटरव्‍यू में कहती मिली कि राजनीति वह हमेशा ऑब्‍जर्व करती आई हैं.इतना ही नहीं,एक इंटरव्‍यू में वे कहती हैं कि पेरिस में जब उनके वजन को लेकर कंट्रोवर्सी हुई तो सरकार से कोई फोन नहीं आया.जब ये झूठ पकड़े जाने को था तो उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का फोन आया था,लेकिन उन्‍होंने रिसीव नहीं किया.विनेश की ऐसी विरोधाभासी बातों ने जनता का दिल तोड़ दिया.विनेश की राजनीति से कांग्रेस पार्टी को भी लोग खलनायक जैसा देखने लगे जिसने विनेश को अपने फायदे को इस्तेमाल किया है.नहीं तो अगले ओलंपिक में विनेश गोल्ड लेकर आती.

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