मत: मेवात में सनातनियों से कब और क्या चूक की?

मेवात- चूक कहाँ हुई ?
एक समय जब अनेक स्थानों पर मुस्लिम दुबारा हिन्दू बनना चाहते थे,परन्तु हमने रोटी- बेटी का रिश्ता नहीं जोड़ा. हमारे अंदर जाति का मिथ्याभिमान आवश्यकता से अधिक है. हरियाणा के मुस्लिम बहुल मेवात क्षेत्र में आर्य समाज के स्वामी समर्पणानंद ने मुस्लिम नेताओं के सामने हिन्दू बनने का प्रस्ताव रखा था,  उत्तर में मुस्लिम नेता खुर्शीद अहमद, जो स्वयं धोती – कुर्ता और पगड़ी बांधते थे- ने स्वामी जी के प्रस्ताव पर कहा था कि बाबा जी हिन्दू हमारी लड़कियाँ तो ले लेंगे, हमारी लड़कियाँ सुन्दर होती हैं , परन्तु हमारे लड़कों को आपके लोग लड़की देंगे ? यह प्रस्ताव कार्यान्वित नहीं हो सका | यह घटना 50 साल से ज्यादा पुरानी हैं. मेवात में हजारों हिंदू बेटियां लव जेहाद का शिकार हो मुस्लिम हो चुकी .

अब यह समस्या लाइलाज बन चुकी है क्योंकि 1980 के बाद आए पेट्रोडालर ने बाजी ही पलट दी है. सऊदी पैसा आने पर उत्तर प्रदेश से सैंकड़ों इमाम मेवात की मस्जिदों में आए और इनकी विचारधारा ही बदल दी.
स्वामी श्रद्धानन्द जी अपनी पुस्तक हिन्दू संगठन (1924) में लिखते हैं–
राजपूताना से कुछ युवक मेरे पास आए और मुझे सन्यासी मान प्रणाम किया. मैंने उन्हें हिन्दू समझा. उन्होंने अपनी टोपी उतार कर चोटी भी दिखाई .मैंने उन्हें शुद्धि की आवश्यकता के बारे में बताया. तभी कोई आया और उसने मुझे बताया कि ये युवक मुस्लिम हैं. तब मैंने सोचा इनकी कैसी शुद्धि? इन्होने तो अत्यन्त कठिन परिस्थिति में भी अपना धर्म नहीं छोड़ा. प्रायश्चित तो हिन्दू समाज को करना चाहिए जिन्होंने अपने भाइयों को अलग कर दिया.
श्री एम0 मुजीब ने अपनी पुस्तक ‘दी इडियन मुस्लिम‘ में कई उदाहरण दे विस्तार से बताया कि धर्म बदलने के बावजूद मुसलमानों ने अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों में हिंदू सभ्यता अपनाये रखी। उन्होंनें लिखा है-
‘ करनाल में 1865 तक बहुत से मुस्लिम किसान अपने पुराने गांवों के देवताओं की पूजा करते थे और साथ ही मुसलमान होने से कलमा भी पढ़ते थे। इसी तरह अलवर और भरतपुर के मेव और मीना मुसलमान तो हो गये थे पर उनके नाम पूर्णरुपेण हिंदू होते थे और अपने नाम के साथ वो खान लगाते थे। ये लोग दीपावली, दुर्गापूजा, जन्माष्टमी तो मनाते ही थे साथ ही कुएं की खुदाई के वक्त चबूतरे पर हनुमान पूजा करते थे। मेव भी हिंदुओं की तरह अपने गोत्र में शादी नहीं करते। मीना जाति वाले मुस्लिम भैरो (शिव) तथा हनुमान की पूजा करते थे और (क्षत्रिय हिंदुओं की तरह) कटार से शपथ लेते थे।
बूंदी राज्य में रहने वाले परिहार मीना गाय और सूअर दोनों के गोश्त से परहेज करते थे। रतलाम से लगभग 50 मील दूर जाओरा क्षेत्र में कृषक मुसलमान शादी के समय हिंदू रीति-रिवाज को मानतें है.

.    क्या आज कुछ बदला है?

हरियाणा के कुरुक्षेत्र के निकट एक गाँव में मिशनरियों की चंगाई सभा हो रही थी. आर्य समाज के कुछ अत्यन्त उत्साही युवकों ने उसे रोकने को सिर धड़ की बाजी लगा दी. संस्थाओं ने साथ नहीं दिया. गाँव में पंचायत हुई. ये आर्य समाजी युवक इसाई मिशनरी का विरोध कर रहे थे. बाकी सभी हिन्दू कह रहे कि तुम आर्य समाजियों के साथ पता नहीं क्या समस्या है. जिसे इसाई बनना है बने. यह उसका निजी मामला है. हमे चुप रहना चाहिए. ईश्वर कृपा से इन युवकों का परिश्रम सफल हुआ और गाँव में चंगाई सभा कार्यक्रम नहीं हो पाया.
ध्यान रखें – आपका घर, गाँव जिला और प्रान्त यहीं रहेगा. भारत यहीं रहेगा. परन्तु आज से 100 साल बाद यहाँ कौन रहेगा इसका निर्णय हमें करना है. हम नहीं रहेंगे परन्तु यहाँ पर गौरक्षक रहेंगे या गौभक्षक. प्रार्थना करने वाले रहेंगे या नमाज करने वाले. वेटिकन वाले रहेंगे या मक्का वाले या काशी वाले यह हमारे आज के निर्णय पर निर्भर होगा.
विचार करें-
स्वतन्त्रता से पहले और बाद में, जहाँ मुस्लिम वर्चस्व रहा है वहाँ बलपूर्वक, हिंसा, तलवार के जोर से हिन्दूओं को मुसलमान बनाया गया और आज भी बनाया जा रहा है |

स्वतन्त्रता बाद देश में प्रलोभन, झूठे प्रचार, चमत्कार दिखाकर बड़ी संख्या में हिन्दू धर्मान्तरित किये गये, आज भी धर्मान्तरित किया जा रहा है|

तीसरा इन दोनों परिस्थितियों में जहाँ धर्मान्तरण करने वाले दोषी है, वहाँ हिन्दूओं का जन्मना जातिपाति मानना, ऊँचनीच, अस्पृश्यता आदि को हिन्दू समाज उत्तरदायी है |
घर वापसी का विरोध करने वालों को घर वापसी की कमियों का ही पता नहीं है या वे केवल हिन्दू विरोधी होने का गौरव प्राप्त करना चाहते हैं. जहाँ बलपूर्वक हिंसा या भय से धर्म परिवर्तन हुआ है, वहाँ घर वापसी की बात ठीक लगती है | जहाँ धर्मान्तरण में हिन्दू समाज की विचारधारा उत्तरदायी है, वहाँ घर वापसी के लिए हिन्दू समाज को स्वयं में सुधार लाना होगा, वास्तविकता तो यह है कि हिन्दू जिस हिन्दूत्व पर गर्व करता है वही उसके विनाश का कारण है, आज भी हिन्दू की पहचान उसकी किसी सामाजिक समानता से नहीं होती,हिन्दू की यदि पहचान है तो उसकी जाति से है।
फिर किसी ईसाई या मुसलमान की घर वापसी करेंगे तो ब्राह्मण को तो ब्राह्मण बनायेंगे और ठाकुर या जाट रहा तो उसे ठाकुर या जाट बना देंगे, यदि वह दलित रहा तो उसे घर वापसी में दलित ही बनाना पड़ेगा | यदि घर वापसी पर उसे दलित ही बनना पड़ा तो इस खण्डहर में उसे लौटने में लौटने वाले का क्या आकर्षण होगा ?

आर्य समाज और स्वामी दयानंद के शुद्धि की चर्चा करते हुए इन हिन्दूवादियों का गला सूखता है परन्तु उदाहरण हमारे सामनें है जहाँ आर्य समाज के प्रयास सार्थक हुए हैं | उत्तर भारत में जो जाट मुसलमान हो गये उन्हें मूल जाट कहा जाता है तथा जो राजपूत मुसलमान हुए उन्हें रांघड़ राजपूत कहते हैं | उत्तर प्रदेश में  जिनावा गुलियान गाँव में मूले जाट रहते थे, आर्यसमाज ने सम्मेलन करके उन्हें शुद्ध कर हिन्दू समाज में मिलाने का प्रयास किया | उस समय सबसे बड़ी बाधा यही सामने आई, मुसलमानोॉ ने कहा कि हम हिन्दू तो बन जायेंगे परन्तु हमें कौन हिन्दू अपनी लड़की देगा | उस समय आर्य नेता बूढ़पुर निवासी श्री लज्जाराम के सुपुत्र पूर्ण चन्द, जो बाद में स्वामी पूर्णानंद नाम से प्रसिद्ध हुए, ने सभा में खड़े होकर घोषणा कि सबसे पहले वे अपनी लड़की का विवाह मुस्लिम लड़के से करने को तैयार है, बस फिर क्या था ? सारा गाँव हिन्दू हो गया, आज सारा गाँव हिन्दू है | यही उपाय है धर्मान्तरण रोकने का और घर वापसी सफल बनाने का |
स्वामी श्रद्धानंद जी ने शुद्धि का सबसे बड़ा आन्दोलन चलाया, उन्होंने शुद्धि सम्मेलन कर बड़े-बड़े हिन्दू नेताओं की उपस्थिति में अस्सी हजार मूले जाटों की शुद्धि की थी |इसकी शिकायत 1923-24 में आगरा में हुए कांग्रेस अधिवेशन में मौलाना अली बंधुओं ने मोती लाल नेहरू से की थी, तब मोती लाल नेहरू ने अली बंधुओं को उत्तर दिया-अली भाई ये आर्यसमाजी कब से शुद्धि का कार्य कर रहे हैं ? तब स्वामी दयानंद का स्वर्गवास हुए 40 वर्ष हो गये थे | अली भाई ने कहा कि 40 वर्ष से । तब मोती लाल नेहरू ने अली बंधु से कहा- मौलाना जमीन का मोरूसी (स्वामित्व) 12 वर्ष में हो जाती है इसलिये तुम्हारी शिकायत का कोई मूल्य नहीं है, अली बंधुओं ने यह शिकायत गाँधी जी से भी कही थी | गाँधी जी ने स्वामी श्रद्धानंद जी को बुलाकर उन्हें कहा- आप शुद्धि काम छोड़ दें | इससे मुसलमानों को दु:ख होता है तब स्वामी जी ने उत्तर दिया-  मुसलमान तबलीग  छोड़ दें तो मैं भी शुद्धि बंद कर दूंगा | तब अली बंधुओं ने कहा कि हमारे लिए यह धार्मिक आदेश है, धर्मान्तरण कार्य हम बंद नहीं कर सकते | तब श्रद्धानंद ने कहा फिर मैं शुद्घि का काम कैसे बंद कर सकता हूँ |

***विवेक आर्य 

हरियाणा के मेवात में दलितों से अत्याचार का मामला सामने आने के बाद चहुँओर चर्चा है। सोशल मीडिया से लेकर कई मीडिया चैनलों पर डिबेट जारी है। हर जगह साक्ष्यों के साथ सवाल उठ रहा है कि आखिर हरियाणा जैसी पावन भूमि पर पाकिस्तान वाली स्थितियां पैदा करने को कौन जिम्मेदार है?

बावजूद इन सभी बातों के तथाकथित बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया हैरान करती है, जो मानने को ही तैयार नहीं है कि मुस्लिम  कहीं भी जिम्मेदार है।

बीते दिनों मेवात मामले पर न्यूज स्टेट पर दीपक चौरसिया ने डिबेट करवाई- “मेवात: वो जगह जहाँ जाकर पाकिस्तान वाली फीलिंग आती है!”  डिबेट में इस्लामिक स्कॉलर इलियास शरीफुद्दीन और राजनीतिक विश्लेषक बने पत्रकार माजिद हैदरी ने मेवात पर जो बोला उसे सुनने से साफ है कि उन्हीं जैसी मानसिकता वालों के कारण मेवात के कट्टरपंथियों को शह मिली और उन्ही की आड़ में कट्टरपंथ अपने चरम पर है।

सबसे पहले तो इस्लामिक स्कॉलर शरीफुद्दीन की बात पर गौर करिए। शरीफुद्दीन, मेवात में तेजी से हो रहे धर्मांतरण को कोई गुनाह नहीं मानते हैं। बल्कि उनका तो कहना है कि वहाँ दलित हिंदू बच्चियाँ इस्लाम की उन्नति, शांति, एकता देखकर इस धर्म को स्वीकार कर रही हैं।

वहीं, दूसरे बुद्धिजीवी व राजनीतिक विश्लेषक माजिद हैदरी कहते हैं कि जबरन धर्म परिवर्तन की इजाजत उनका दीन नहीं देता। अगर कोई ऐसा कर रहा है तो इसका मतलब है कि वह संघ का एजेंट होगा।

माजिद हैदरी मेवात क्षेत्र में धर्मांतरण के मामले पर उठती आवाजों की मंशा पर सवाल करते हैं और प्रियंका चोपड़ा का उदाहरण देकर पूछते हैं कि जब वह किसी फिरंगी ईसाई से शादी करती हैं, तब किसी के पेट में दर्द नहीं होता। लेकिन मेवात पर सब सवाल उठाते हैं।

यह दोनों इस्लामी बुद्धिजीवी इस प्रकार की टिप्पणी उस शो में करते हैं,जिसमें इस्लामिक बर्बरता का शिकार  मीना की कहानी खुदपति और बच्चे बताते हैं कि कैसे उनकी माँ का अपहरण हुआ, गैंगरेप हुआ, फिर धर्मपरिवर्तन न करने पर कैसे उनकी नसें काट-काटकर हत्या कर दी गई।

सोचें कि उलेमाओं के रूप में मुस्लिम कैसे लोगों को अपने प्रतिनिधि  चुन रहा है जिनके समक्ष आज सारी स्थिति शीशे की तरह साफ होने के बाद भी वह हकीकत नहीं देखना चाहते और यह मानने को तैयार नहीं है कि मेवात में दलितों पर अत्याचार हो रहा है या मुस्लिम बहुल आबादी से मेवात के गाँव हिंदूविहीन हो रहे हैं।

यदि वाकई शरीफुद्दीन जैसों का तर्क सही है कि इस्लाम की उन्नति देखकर वहाँ की दलित लड़कियाँ इस्लाम अपना रही हैं तो सवाल उठता कि आखिर मीना जैसी महिलाओं से क्या हुआ? आखिर क्यों साल 2019 में मेवात की जमीन पर लव जिहाद का मुद्दा चर्चाओं में आया?

क्यों आकिल खान और राशिद खान ने लड़की का जादू टोने  से धर्मांतरण करवाया ? क्यों वहाँ दलित बहन-बेटियों के अपहरण के मामले बढ़ते देख आक्रोश उमड़ा था? क्यों उन सबने खफा होकर हाइवे पर प्रदर्शन किया था?

बात सिर्फ बेटियों के साथ होते अपराध तक सीमित नहीं है। यह मामला दलितों के अस्तित्व को लेकर है,जिस पर मजहबी नेता या तथाकथित दलित नेता हमेशा अपनी राजनीति खेलते हैं। पर बात जब इनके लिए आवाज उठाने की आती है, तो सब मौन हो जाते हैं।

माजिद हैदरी वही हैं, जिसने साल 2018 में कश्मीर में होती पत्थरबाजी को भी RSS को वजह बता दिया था। वह एक बार फिर साल 2020 में मेवात में फैले कट्टरपंथ के बचाव में कहता हैं कि मेवात में धर्मांतरण को संघ के लोग जिम्मेदार हैं। लेकिन संघ को 500 में से 103 गाँवों को हिन्दुविहीन कर देने से मिलेगा क्या? वह क्यों चाहेंगे कि ऐसी स्थिति पैदा हो,जिससे 84 गाँवों में सिर्फ 4-5 हिन्दू परिवार रह जाएं।
सोचिए क्या वाकई ये बात कोई जिम्मेदार आदमी कह सकता है। वो भी तब जब उसे विश्लेषक की उपाधि मिल गई हो और उसके सामने ऐसे कई उदहारण हों, जो साबित करे कि मेवात की बहुल आबादी ने अल्पसंख्यकों पर अनेक प्रकार से दबाव बनाया, उनकी दुर्गति की।

साल 2017 का एक मामला है। जब हरियाणा के मेवात मॉडल स्कूल पर आरोप लगे थे कि यहाँ पर हिंदू छात्रों को धर्म परिवर्तन और नमाज पढ़ने को दबाव बनाया जाता है और ऐसा करने से इंकार करने पर उन्हें मारा-पीटा तक जाता है।

2018 का एक केस है, जब मेवात के नगीना खंड गाँव मोहालका से दलित परिवार पर जानलेवा हमला हुआ। इस हमले का कारण ही ये निकल कर आया था गाँव में रहने वाले किशन के परिवार पर इस्लाम नाम का युवक लंबे समय से धर्म परिवर्तन का दबाव डाल रहा था। जब किशन के परिवार ने इंकार किया तो इस्लाम, तौफीक, मोसिम, अतरु, असमीना ने उसके परिवार पर लाठी डंडों व सरिया से जानलेवा हमला कर दिया और जातिसूचक शब्दों से संबोधित कर उन्हें अपमानित किया।

इसके बाद, साल 2018 में ही एक नाबालिग से दुष्कर्म की  घटना सामने आई थी। नूँह के भंडका में इस घटना में पुलिस ने 14 वर्षीय लड़की के घर में घुसकर उससे रेप के आरोप में असलम को गिरफ्तार किया था। जबकि बाकी दोनों उस समय तक पकड़ में नहीं आए थे।

मेवात में हुई इन धर्मांतरण, रेप, मारपीट जैसी घटनाओं के चुनिंदा उदाहरण पढ़िए, समझिए और बताइए, कहाँ आपको धर्मांतरण में हिंदुओं की मर्जी दिखी? कहाँ मारपीट में आपसी भाईचारा लगा? और कहा संघ नेताओं के नाम आए?

क्या जिन जगहों पर आपसी प्रेम होता है, वहाँ एक समुदाय का नाम धीरे धीरे मलिन होता जाता है? क्या उस जगह अल्पसंख्यक रोते-बिलखते दिखते हैं? क्या वहाँ की महिलाएँ असुरक्षित होती हैं? क्या वहाँ दलित बच्चों पर फब्तियाँ कसी जाती हैं? क्या स्कूलों में धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया जाता है? नहीं, ये सब अत्याचार आपसी प्रेम वाली जगहों पर नहीं होते, बल्कि उन जगहों पर देखने को मिलते हैं, जहाँ हिंदू अल्पसंख्यक हों जैसे पाकिस्तान।

आज कई हिन्दू संगठनों का दावा है कि मेवात में हिंदुओं की हालत पाकिस्तान से बदतर है। कार्यकर्ताओं ने कुछ मामले ही उठाए हैं, अभी बहुत प्रकाश में आना बाकी है। अनेक खबरें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि आखिर क्यों मेवात को दलितों का कब्रिस्तान बताया गया। कई रोते बिलखते चेहरे वीडियो में कैद हैं, जो दिखाते हैं कि मीडिया में उठा मेवात का यह मुद्दा निराधार नहीं है।

मगर फिर भी देश में इस्लामोफोबिया का रोना रोने वाले समुदाय विशेष के पढ़े लिखे लोग, यह मान चुके हैं कि मेवात में हो रही घटनाएँ सामान्य हैं और गंगा जमुना तहजीब को बढ़ावा दे रही है। तो विचार करिए, वहाँ की अल्पसंख्यक आबादी की पीड़ाओं का अब कोई अंत कैसे होगा? मेवात का भूगोल बदलकर कट्टरपंथियों ने न केवल हिंदुओं की जमीन, धार्मिक स्थल, पहचान को अपनी मुट्ठी में किया है, बल्कि राजनीति व प्रशासन को भी कठपुतली बना लिया है।

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