मत: कौन है भूमिहार और कौन है त्यागी?

भूमिहार कौन?

पिछले कुछ दिनों से कुछ लोग whatsapp कर रहे हैं कि “संदीप जी भूमिहार पर पुरी के शंकराचार्य जी ने जो कहा है उससे आप कितने सहमत हैं? आप इस पर कुछ बोलते क्यों नहीं?”

मैं पहले ही कह चुक हूं कि मेरे अंदर शंकराचार्यजी के विरुद्ध कुछ बोलने की क्षमता नहीं है। मैं आपको बस इतिहास बता सकता हूं, वह भी किसी ऐसे-वैसे द्वारा लिखित नहीं, एक दंडी स्वामी संत और देश के किसानों के संघर्ष को मुक्ति संघर्ष बनाने वाले स्वामी सहजानंद सरस्वती जी द्वारा लिखित।

उनकी पुस्तक ‘ब्रह्मर्षि वंश विस्तर’ ब्राह्मण समाज और उनकी सभी उपजातियों का इतिहास प्रकट करती है। इसी में भूमिहार का इतिहास भी वर्णित है।

मैं यह पुस्तक मूर्धन्य लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूं। निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु Nigrahacharya Shri Bhagavatananda Guru जी के बाद त्यागी-भूमिहार समाज से ही आने वाले यति नरसिंम्हानंद जी को भी यह पुस्तक मैंने भेंट की, जब वह मेरे कार्यालय पधारे थे।

महाराज हर्षवर्धन ने तत्कालीन समाज में ब्राह्मणों को अग्रहार दिया था। अग्रहार का तात्पर्य ब्राह्मणों को दान में दी जाने वाली भूमि या गांव से है। महाराजा हर्षवर्धन से अग्रहार पाने वाले यही ब्राह्मण कालांतर में भूमिहार कहलाए। यह केवल सहजानंद सरस्वती जी ने ही नहीं, बल्कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी ने भी लिखा है।

भूमिहार मूलतः ब्राह्मण हैं, जो पुरोहिताई छोड़कर भूमि जोतने और कृषि कर्म से जुड़ गये थे। हर्षवर्धन से भूमि प्राप्त करने के बाद इन्होंने याचक ब्राह्मणों के कर्म अर्थात् पुरोहिताई को छोड़ कर अयाचक ब्राह्मणों के श्रेणी में आ गये। हालांकि काफी भूमिहार याचक ब्राह्मणों की श्रेणी में भी हाल तक बने हुए हैं और पुरोहित का कर्म भी करते हैं।

स्वामी सहजानंद जी ने श्रुति -स्मृति से सदा से दो ब्राह्मणों के वर्ग का वर्णन किया है। एक याचक(दान लेने वाले) दूसरा अयाचक(पुरोहित कर्म न करने वाले) ब्राह्मण।

याचक ब्राह्मणों के छह कर्म वेद द्वारा निर्धारित हैं:- १) यज्ञ करना २) यज्ञ कराना ३) दान लेना ४) दान देना ५) वेद आदि का अध्ययन करना ६) वेद आदि का अध्ययन कराना।

अयाचक ब्राह्मणों ने इनमें से तीन कर्म को छोड़ दिया और केवल तीन कर्म को ही अपनाया:- १) दान देना २) यज्ञ कराना ३) वेद आदि का अध्ययन करना।

इसी आधार पर याचक और अयाचक ब्राह्मणों का कर्म-विभाजन हुआ।

कर्म का यह विभाजन सर्वप्रथम भगवान परशुराम द्वारा ब्राह्मणों के निर्धारित कर्म को छोड़कर क्षत्रिय कर्म का वरण करने से माना जाता है। इसलिए भूमिहार-त्यागी ब्राह्मण अपने आप को परशुराम जी का वंशज मानते हैं। ऐतिहासिक क्रम में ब्राह्मणों के अंदर पांच विभाजन हुए। हर्षवर्धन के समय अग्रहार देने के कारण चौथा विभाजन हुआ था।

सहजानंद सरस्वती जी की पुस्तक का लिंक नीचे है। प्रत्येक ब्राह्मण और उसकी सभी उपजातियों को अपना इतिहास पता होना ही चाहिए। वैसे भी ब्रह्मणवाद का आरोप लगाकर ब्राह्मणों को मिटाने का मिशनरी षड्यंत्र वर्तमान तक अनवरत जारी है। अतः अपनी जड़ का पता तो होना ही चाहिए।

और हां, अब मुझसे पुरी के शंकराचार्य जी भूमिहार को क्या कह रहे हैं, यह सवाल पूछने की जगह स्वयं पढ़िए और अपना जवाब स्वयं ढूंढिए। मैं शंकराचार्य जी पर कुछ नहीं बोल पाऊंगा। मुझे क्षमा कीजिए। धन्यवाद।

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कौन होते हैं त्यागी? भूमिहारों से कैसे है जुड़ाव, जानिए क्या है इतिहास
Are Tyagi Bhumihars: क्या त्यागी ‘भूमिहार’ होते हैं? त्यागी महापंचायत के बैनर पर भूमिहार- ब्राह्मण का जिक्र होने के बाद एक सवाल उठने लगा है। साथ ही, सवाल यह भी कि क्या सवर्ण समाज भारतीय जनता पार्टी से दूर जा रहा है। इन तमाम सवालों के बीच भूमिहार और त्यागी में अंतर या समानता को समझने की कोशिश करते हैं.

क्या त्यागी समाज भूमिहार जाति से जुड़ा हुआ है? इस सवाल का जवाब जब आप ढूंढ़ने जाएंगे तो कई प्रकार की भ्रांतियां आपको मिलेंगी। भूमिहारों का इतिहास  देखें तो पाएंगे कि त्यागी समाज भी इसी जाति से जुड़ा हुआ है। हालांकि, भूमिहार जाति व्यवस्था में नाम के आगे लगाए जाने वाले सरनेम पर ध्यान देंगे तो आपको कई बार कन्फ्यूजन होगा। भूमिहार जाति के शब्दों को अगर देखें तो यह दो शब्दों से जुड़कर बना है- भूमि और हार। यानी भूमि का हार रखने वाले। यह जाति मूल रूप से खेती से जुड़ी हुई है। किंवदंतियों को आधार मानें तो भगवान परशुराम ने क्षत्रियों को पराजित कर जो जमीन हासिल की थी, उसे ब्राह्मणों को दे दी। इन ब्राह्मणों ने पूजा-पाठ का कार्य छोड़ कर खेती शुरू कर दी। उन्होंने युद्ध में भी खुद को मांजा। इसी जाति वर्ग से त्यागी समाज की उत्पत्ति हुई। भूमिहार वर्ग हिंदू धर्म में सवर्ण किसान के रूप में पहचाना जाता है।

त्यागी समाज के लोग मूल रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं। इसके अलावा दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान के भी कुछ हिस्सों में त्यागी  लोग पाए जाते हैं। बनारस का राजघराना विभूति साम्राज्य यानी काशी नरेश भी त्यागी समाज से जुड़े रहे हैं। इसके अलावा ईरान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान के हिस्से में भी प्राचीन काल में त्यागी समाज के मोहयाल शाखा के राजाओं का इतिहास रहा है। अफगानिस्तान के शाही मोहयाल साम्राज्य ने सबसे पहले अरबों को युद्ध में धूल चटाई थी। इसके बाद 300 सालों तक अरब अखंड भारत की तरफ नजर भी नहीं उठा पाए थे। कुछ लोग त्यागी समाज को पंजाबी भी बताते हैं। हालांकि, इस प्रकार का कोई मामला सामने नहीं आया है।

महाभारत काल से भी जुड़ा है इतिहास

त्यागी समाज का इतिहास महाभारत काल से ही एक जुझारू समाज के रूप में सामने आता है। महाभारत काल में यह समाज मेहनत करने वाला और शक्तिशाली माना जाता रहा है। महाभारत में पांडवों को शरण देने वाला कांपिल्य नगर भी त्यागियों का गांव था। कांपिल्य नगर महाभारत के समय में पंचाल जनपद की राजधानी थी। इसके राजा द्रुपद थे। प्राचीन काल का पंचाल जनपद गंगा नदी के दोनों तरफ फैला हुआ था। यजुर्वेद के तैत्तरीय संहिता में इस नगरी का जिक्र कंपिला के रूप में मिलता है। द्रुपद से आचार्य द्रोण ने युद्ध में यह साम्राज्य छीन लिया था। उसी समय से यह इलाका त्यागियों के प्रभुत्व वाले क्षेत्र के रूप में रहा है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रही है त्यागियों की जमींदारी

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में त्यागी के समाज के लोगों की बड़ी जमींदारी रही है। जमींदारों ने अपने रियासत बनाए थे। वहां उन्होंने अन्य तमाम जातियों को संरक्षण और संवर्द्धन दिया। इस इलाके में बावनी गांवों का अपना इतिहास रहा है। कहा जाता है कि त्यागी समाज के लोग 52 हजार बीघे की रियासत पर अधिकार रखते थे। इन 52 हजार बीघे के गांवों को बावनी गांव के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा तालहैटा, निवाड़ी, असौड़ा रियासत, रतनगढ़, हसनपुर दरबार दिल्ली, बेतिया रियासत, राजा क ताजपुर, बनारस राजपाठ, टेकारी रियासत जैसे प्रमुख रियासत रहे हैं। इससे साबित होता है कि त्यागी समाज भी भूमिहार जाति वर्ग से जुड़ा हुआ है।

मुसलमान और एससी भी त्यागी

त्यागी सरनेम की बात की जाए तो मुसलमान और एससी जातियों में भी यह वर्ग पाया जाता है। त्यागी से कन्वर्टेड मुसलमान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में त्यागी लिखते हैं। वहीं, पूर्वांचल के कुछ इलाकों में एससी का एक तबका अपना सरनेम त्यागी लगाता है। हालांकि, इनका पश्चिमी उत्तर प्रदेश के त्यागी समाज से कोई कनेक्शन नहीं है। पिछले दिनों वसीम रिजवी के धर्म परिवर्तन के बाद खुद को त्यागी बताए जाने का मामला सामने आया है। उन्होंने हिंदू धर्म स्वीकार करने के बाद जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी नाम लिखना शुरू कर दिया है।
सरनेम का अपना अलग ही इतिहास

भूमिहारों में सरनेम का अपना अलग ही इतिहास है। हालांकि, त्यागी समाज के लोग अपने नाम के आगे त्यागी ही लगाते हैं। वैसे भूमिहार जाति के प्रभुत्व की बात करें तो बिहार में इनकी बहुलता सबसे अधिक है। यहां ये हर मंडल में अलग-अलग टाइटल के साथ मिल जाएंगे। मगध प्रमंडल में भूमिहार वर्ग अपने नाम के साथ सिंह और शर्मा सरनेम मुख्य रूप से लगाते हैं। वहीं, मुंगेर प्रमंडल से बेगूसराय तक नाम के आगे सिंह सरनेम लगाया जाता है। समस्तीपुर के इलाके में अमूमन यह वर्ग सिंह, ठाकुर, राय और चौधरी टाइटल लगाता है। दरभंगा में मिश्रा, छपरा में सिंह एवं कुंवर, शाहाबाद मंडल में तिवारी, कुंवर एवं मिश्रा और तिरहुत एवं मुजफ्फरपुर में ठाकुर, सिंह, सिन्हा, शुक्ला और शाही जैसे टाइटल यह वर्ग लगाता है। इसके अलावा भागलपुर-पूर्णियां इलाके में सिंह, शर्मा, तिवारी, मिश्रा आदि सरनेम लगाया जाता है।


अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मण महासभा के नेता डॉक्टर वरुण शर्मा ने बताया कि उत्तर प्रदेश में भी कई सरनेम दिख जाएंगे। पूर्वांचल जिलों में भूमिहार जाति के लोग राय, सिन्हा, शर्मा, शाही, पांडेय, प्रधान, उपाध्याय जैसे टाइटल लगाते हैं। यहां यह जाति प्रमुख रूप से गोरखपुर, गाजीपुर, वाराणसी, संत कबीर नगर, मऊ, बलिया, देवरिया, कुशीनगर, प्रयागराज, आजमगढ़ आदि जिलों में पाई जाती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बागपत, नोएडा, अमरोहा, बिजनौर आदि इलाकों में यह जाति पाई जाती है। यहां मुख्य रूप से त्यागी सरनेम लगाते हैं।

राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय रहे हैं भूमिहार

राजनीतिक रूप से भूमिहार वर्ग काफी सक्रिय रहा है। बिहार की राजनीति में इस वर्ग की काफी दखल थी। वर्ष 1911 की जातीय जनगणना के आधार पर बिहार में भूमिहारों की आबादी कुल आबादी का करीब 5 प्रतिशत थी। हालांकि, बाद के समय में इस वर्ग की जनसंख्या लगभग उतनी ही रही। अन्य जातियों की जनसंख्या बढ़ने के कारण उनकी जनसंख्या का अंतर बढता गया। एक अनुमान के मुताबिक बिहार की जनसंख्या में करीब 3 से 4 प्रतिशत भूमिहार जनसंख्या है। वहीं, उत्तर प्रदेश में यह वर्ग छोटे-छोटे पॉकेट में उत्तरांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दिखता है। देश की आबादी में यह वर्ग 1 फीसदी से भी कम है। इसके बाद भी जमीन पर दबदबे के कारण यह वर्ग अपने साथ कई अन्य जातियों को साथ लेकर चलता है और वह राजनीतिक रसूख दिखाता रहता है।

भूमिहार ब्राह्मणों के कुछ महत्वपूर्ण गोत्र:

कश्यप– जैथरिया, किनवर, बरुआर, दंस्वर कुधुनिया, नोनहुलिया, तातिहा, कोल्हा, करेमुआ, भाडे चौधरी, त्रिफला पांडे, परहपे, सहस्नाम, दीक्षित, जुझौटिया, बबंदिहा, मौर, दधीरे, मरे, सिरीयर, धौरी और भूपाली आदि।
पराशर– एक्सारिया, सहदौलिया, सुरगने और हस्तगामे
वसिता– कस्तुआर, दरवालिया और मरजानी मिश्रा
संडिलया– दिघवैत, कुसुम तिवारी, कोरंच, नैनजोरा, रमियापांडे, चिक्सौरिया, करमाहे, ब्रह्मपुरिया, सिहोगिया आदि
गर्ग– शुक्ल, बासमैत, नागवा शुकला और गर्ग
भारद्वाज– दुमतीकर, जठरवार, हेरापुरीपांडे, बेलौंचे, अंबरीया, चकवार, सोनपखरेया, मचैयापांडे, मनाछेया, सोनेवर, सिएनी
अगस्त्य- अगस्त्य
कौसा– कौसा
उपमन्यु– उपमन्यु
कण्व– कणव या काणव
मौदगल्या– मौदगल्या
लौगाछी– लौगाची
तांड्या– तांड्या
कपिल– कपिल
मौनस– मौनास
कौंडिन्य– आथर्व (अथर्ववेदी) बिजुलपुरिया
आत्रेय– मैरेयपांडे, पुले, एनरवार
विष्णुवृद्ध– कुथवैत
कात्यायन– वद्रकामिश्र, लमगोदेयतेवारी, श्रीकांतपुर के पांडे
कौशिक– कुसौंझीया, टेकर के पाण्डेय, नेकतीवार
संकरी– सकरवार, मलैयापांडे, फतुहवादिमिश
सवर्ण्य– पंचोभे, सोबरनेया, टेकरापांडे, आरापे, बेमुआर
वत्स– दोनवार, गणमिश्रा, सोनभद्रेय, बगुचेया, जे अलेवर, संसारिया, हाथौरेया, गंगटिकाई
गौतम– पिपरामिश्रा, गोतमेय, दत्त्यायन, वात्स्यायन, करमैसुरौर, बदरमिया
भार्गव– भृगु, आश्रेय्या और कोठा भारद्वाज और भारद्वाज (भृगु, भार्गव और कश्यप एक ही हैं, क्योंकि उनके मूल ऋषि में समानता है)
लेखक-राहुल पराशर

 

 

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