मत:भारत का IMEE-EC ध्वस्त कर देगा चीनी BRI का सपना
मत: चीन को इस बार लगा अब तक का सबसे जोरदार झटका, IMEE-EC ध्वस्त कर देगा BRI का सपना
भारत ने जी20 का सफल आयोजन करके वही क्षण जिया है, जो चीन ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक के आयोजन से जिया था। भारत के सामने अवसर और चुनौती दोनों हैं कि वो अगले एक दशक में अपनी जीडीपी तीन गुना कर ले जैसा चीन ने बीजिंग ओलंपिक के अगले 10 वर्षों में किया था।
IMEE-EC
चीन को मिल रहा भारत का जवाब।
लेखक: सोमनाथ मुखर्जी
नई दिल्ली में हुए भव्य जी20 शिखर सम्मेलन को भारत के उदय का गौरवशाली क्षण कहा जा सकता है। यह 2008 के बीजिंग ग्रीष्मकालीन ओलंपिक से मिलता-जुलता है, जिसे व्यापक रूप से विश्व पटल पर चीन के ‘आगमन’ के मजबूत संकेत के तौर पर देखा गया था। दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय शक्ति के कई पहलुओं की दृष्टि से 2008 के चीन और 2023 के भारत में कई समानताएं हैं, खासकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पैमाने पर, जहां 2007 का चीन और 2022 का भारत लगभग समान स्तर पर हैं।
जी20 का सबसे ठोस परिणाम भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEE-EC) है। यह एक मल्टि मोडल कनेक्टिविटी की पहल है जो भारत को मध्य पूर्व में निर्मित बंदरगाहों और रेल गलियारों से यूरोप से जोड़ेगी। सैद्धांतिक रूप से यह स्वेज नहर के रास्ते मौजूदा ट्रेड कनेक्टिविटी का विकल्प बन सकता है। जैसी इसकी कल्पना की गई है और जैसा इसका डिजाइन है, ऐसा लगता है कि यह चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक विकल्प होगा। क्या भारत का BRI (बोट एंड रेल इनिशिएटिव) चीन के BRI को चुनौती देने को है? ऐसा संभव है, खासकर जब चीन का बीआरआई भारतीय उपमहाद्वीप में भी वित्तीय स्थिरता के मुद्दों पर खराब हालत से गुजर रहा है।
IMEE-EC के मूल में वह रेलवे ट्रैक है जो अरब के रेगिस्तानों में होकर जाता है और जो भारत से एक छोर पर तो यूरोप से दूसरे छोर पर शिपिंग कनेक्टिविटी देगा। यह सोचना असंभव नहीं है कि दुबई और हाइफा (इजरायल) के बंदरगाहों को जोड़ने वाला एक रेल ट्रैक हो, हालांकि इसके लिए और अधिक राजनीतिक गठबंधन बनाने होंगे। बिजली, हाइड्रोजन और डेटा पाइप भी रेलवे ट्रैक के समानांतर चलाने की योजना है। अमेरिका के प्रमुख प्रायोजक के रूप में होने से राजनीतिक, तकनीकी, प्रबंधकीय और वित्तीय संसाधनों की कोई कमी नहीं होगी। इसलिए इस पहल की सफलता की बहुत ज्यादा उम्मीद की जा सकती है। बीआरआई के विपरीत, वित्तीय रूप से तेजतर्रार भागीदारों- अमेरिका, यूएई, सऊदी अरब, यूरोप और भारत की उपस्थिति से किसी एक देश को ही मलाई मिले और बाकियों को दुष्परिणाम झेलना पड़े, इसकी आशंका नहीं होगी।
भारत ने यूरोप के साथ मध्य पूर्व/मध्य एशिया से परिवहन लिंकेज का प्रयास किया था जिसमें जटिल जियो-पॉलिटिक्स के कारण परेशानियां आईं।
भारत के लिए IMEE-EC मुख्य रूप से इन्हीं परेशानियों का हल है। भारत के लिए यूरोप पहुंचने का सबसे आसान रास्ता पाकिस्तान की तरफ से जाता है, लेकिन पड़ोसी देश की अदूरदर्शी सोच और भारत विरोधी मानसिकता से कभी इसकी पहल ही नहीं हो सकी। लंबे समय से चर्चा में रहे चाबहार पोर्ट लिंकेज ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के जोखिम से बहुत सफल नहीं रहा।
IMEE-EC रूस, मध्य एशिया और ईरान में रेल/सड़क/बंदरगाहों के माध्यम से भारत को यूरेशिया के भूभाग से जोड़ेगा। यह परियोजना यूक्रेन युद्ध से पहले भी भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रही थी। IMEE-EC में जियो-पॉलिटिक्स की ऐसी कोई दिक्कत नहीं है। वास्तव में, अगर यह सफल होता है तो मध्य पूर्व में तनावपूर्ण राजनीतिक माहौल कम करने में मदद कर सकता है। साथ ही मध्य पूर्व और अमेरिका के बीच हाल के कुछ मुद्दों से भी निपट सकता है।
IMEE-EC मध्य पूर्व में भारत की साख बढ़ाएगा । यह ब्रिटिश राज के उत्तराधिकारी के रूप में अपनी विरासत फिर से हासिल कर रहा है। कई लोगों को पता नहीं होगा कि ब्रिटिश भारत ने ही मध्य पूर्व की अवधारणा गढ़ी थी और उसे रूपरेखा दी थी। शायद भारत में सेवा देने वाले ब्रिटिश प्रशासकों में सबसे दूरदर्शी लॉर्ड कर्जन ब्रिटिश भारत की सुरक्षा को बफर स्टेट्स की सीरीज तैयार करने के प्रयास में मध्य पूर्व की अवधारणा लाये।
IMEE-EC एक ऐसी महत्वाकांक्षी परियोजना है जो भारत को मध्य पूर्व (ME) और यूरोप के माध्यम से एक बहु-modal कनेक्टिविटी प्रदान करेगी। यह परियोजना चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (BRI) के विकल्प के रूप में देखी जा रही है। IMEE-EC के पास BRI के कुछ बाध्यकारी भू-राजनीतिक बाधाओं में से कोई नहीं है। वास्तव में, अगर यह सफल होता है, तो यह मध्य पूर्व में कुछ तनावपूर्ण राजनीतिक माहौल कम करने में मदद करेगा, साथ ही मध्य पूर्व और अमेरिका के बीच कुछ हालिया मुद्दों से भी निपट सकता है।
IMEE-EC भी, कुछ मायनों में, भारत के मध्य पूर्व में दांव बढ़ा रहा है, ब्रिटिश राज के उत्तराधिकारी के रूप में अपनी विरासत पुनः प्राप्त कर रहा है। कई लोगों से अनजान, मध्य पूर्व को एक क्षेत्रीय संरचना के रूप में शाब्दिक रूप से ब्रिटिश भारत अवधारणा और रूपरेखा दी गई थी। लॉर्ड कर्जन, शायद भारत में सेवा करने वाले ब्रिटिश प्रशासकों में सबसे दूरदर्शी, ब्रिटिश भारत की सुरक्षा को बफर राज्यों की एक श्रृंखला के निर्माण की अवधारणा दी। इन बफर स्टेट्स में- तिब्बत से उत्तर, अफगानिस्तान से उत्तर पश्चिम, ईरान की खाड़ी के बंदरगाहों से अरब सागर में प्रवेश, मलक्का और सुंडा जलडमरूमध्य से बंगाल की खाड़ी में प्रवेश की अवधारणा शामिल थी।
इतिहासकार गिलमेट क्रोजेट (Guillemet Crouzet) ने अपनी पुस्तक ‘इन्वेन्टिंग द मिडल ईस्ट’ में कहा है कि 1900 के आसपास गढ़ा गया मध्य पूर्व का लेबल ‘विश्व मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण जियो-पॉलिटिकल स्पेस का वर्णन करने को बनाया गया था। यह अलग-अलग तरह की ताकतों के एक ग्रिड का नेक्सस है और जिससे लंदन से ब्रिटिश भारत को जोड़ने वाले रास्ते की एक सीरीज है।’ ब्रिटिश भारत की मध्य पूर्व में जड़ें इतनी गहरी थीं कि लंबे समय तक क्षेत्र के कई देशों ने भारतीय रुपये को लीगल टेंडर के रूप में इस्तेमाल किया, जो 1960 के दशक के मध्य तक चला।
हाल के वर्षों में भारत का मध्य पूर्व से लगाव बढ़ गया है। IMEE-EC कम से कम जियो-इकॉनोमिक नजरिए से कर्जन के विचार पर खरा उतरता है। लेकिन जैसा कि अन्य किसी भी पहल की सफलता मापी जाती है, इसके लिए किए वादों को भी जमीन पर उतारना होगा। सबसे पहले, भारत को अपना दम दिखाना होगा। चीन का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 2007 में 3.55 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 2017 में 12.3 ट्रिलियन डॉलर हो गया। आज भारत की जीडीपी 3.4 ट्रिलियन डॉलर है – क्या हम अगले दशक में चीन जैसा कर सकते हैं?
दुनिया आज एक मुश्किल जगह बन गई है। वैश्विक राजनैतिक-आर्थिक समझौता वॉशिंगटन कन्सेंस जिसने एशिया के अधिकांश हिस्से को तीव्र गति से बढ़ने में सक्षम बनाया, अब कमजोर हो रहा है। आज भारत का काम और भी कठिन है। हालांकि,कुछ सकारात्मक संकेत भी हैं। अनिश्चित जियो-पॉलिटिकल परिदृश्य से माहिर व्यापारियों को फायदा उठाने का अवसर मिलता है और भारत का प्राइवेट सेक्टर वैश्विक स्तर पर किसी भी अन्य व्यापारी के मुकाबले ज्यादा चतुर है। भारत कुछ और समय तक अनुकूल जनसांख्यिकी का आनंद लेने वाला एकमात्र प्रमुख देश है। हमारा क्रेडिट साइकल निचले स्तर पर है और बैलेंस शीट्स अच्छी स्थिति में हैं। डिजिटल पब्लिक स्टैक अभूतपूर्व पैमाने पर कई दरवाजे खोल रहा है। संक्षेप में, कई नावें बनानी हैं, कई रेल बिछानी हैं। लेकिन कोई भी गलती न करें, यह एक शानदार विचार है।
लेखक सोमनाथ मुखर्जी एएसके वेल्थ एडवाइजर्स के चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर हैं। लेख में उनके व्यक्तिगत विचार हैं
This Time China Got The Biggest Blow From India As Imee-Ec Will Destroy The Dream Of Bri