मत: गिरते बाजार से नहीं,अमेरीकी बॉन्ड की घटी पूछ से ढीले पड़े ट्रंप
Trump Tariffs: क्या गिरते बाजार से नरम पड़े ट्रंप….नहीं.. ये है असली वजह
बुधवार को अचानक हुए एक अप्रत्याशित फैसले में ट्रंप ने टैरिफ को 90 दिन टालने का फैसला ले लिया. फैसला ट्रंप के उस सख्त रुख से बिल्कुल अलग था जिसमें वो फैसले पर किसी भी समझौते से इनकार कर रहे थे
शेयर बाजार में बीते हफ्ते तेज उतार-चढ़ाव देखने को मिला. ट्रंप के तेवर की वजह से दुनिया भर के बाजारों में तेज गिरावट देखने को मिली. हालांकि बुधवार को अचानक हुए एक अप्रत्याशित फैसले में ट्रंप ने टैरिफ को 90 दिन टालने का फैसला ले लिया. फैसला ट्रंप के उस सख्त रुख से बिल्कुल अलग था जिसमें वो फैसले पर किसी भी समझौते से इनकार कर रहे थे.
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या शेयर बाजार में तेज गिरावट की वजह से ट्रंप ने फैसला पलटा. अगर एक्सपर्ट्स पर भरोसा करें तो ट्रंप शेयर बाजार की वजह से नहीं बल्कि बॉन्ड मार्केट की वजह से नरम पड़े हैं आइये समझें इसे…
पहले समझें टैरिफ का असर क्या रहा
अप्रैल की शुरुआत में जब टैरिफ का एलान हुआ था तब से एसएंडपी 500 में 12 फीसदी की गिरावट देखने को मिली थी इंडेक्स 7 अप्रैल को 5670 से घटकर 4835 के स्तर पर आ गया. अगर उच्चतम स्तर से देखें तो इंडेक्स 20 फीसदी गिरा है. हालांकि इस गिरावट पर भी ट्रंप के आक्रामक रुख में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला.
हालांकि इसी दौरान एक और आंकड़े में बदलाव हो रहा था.. यूएस 10 Year Bond Yield 4 अप्रैल से 8 अप्रैल तक 3.8 फीसदी से बढ़कर 4.51 फीसदी पर पहुंच गई… ट्रंप के सलाहकारों के लिए इसे नजरअंदाज करना मुश्किल था.
क्या हुआ 8 अप्रैल को ऐसा खास
ध्यान रखें कि बॉन्ड यील्ड तब बढ़ती है जब बॉन्ड के प्राइस नीचे आते हैं. यानि मांग नहीं होती है और निवेशक बॉन्ड खरीदना नहीं चाहते. 8 अप्रैल को ऐसा ही हुआ जब अमेरिकी सरकार ने 58 अरब डॉलर के 3 साल के बॉन्ड्स का ऑक्शन किया. लेकिन इन बॉन्ड्स के लिए पर्याप्त खरीदार ही नहीं थे. इसी वजह से बैंकों को बचे हिस्से को सब्सक्राइब करना पड़ा जो कि ऑफर का 20.7 फीसदी था. ये दिसंबर 2023 के बाद से सबसे ऊंचा डीलर्स शेयर था. यही एक झटका था जिसने स्थिति बदली.
क्यों ये है एक झटका
दरअसल सरकार को लगातार कर्ज की जरूरत पड़ती है और वो बॉन्ड्स के जरिए रकम जुटाती रहती है. इससे पहले अमेरिकी बॉन्ड्स की लगातार डिमांड बनी रहती थी. इसकी वजह ये भी है कि ग्लोबल ट्रेड में डॉलर की स्थिति को देखते हुए हर देश में डॉलर की डिमांड बनी रहती है. सरकारें इसके लिए रिजर्व बनाती है जिससे ट्रेड बना रह सके. भारत भी हर शुक्रवार रिजर्व के आंकड़े जारी करता है. खास बात है कि ये रिजर्व किसी बैंक में रखे कैश की तरह नहीं होता.. सरकारें इसे निवेश के रूप में रखती हैं और डॉलर का रिजर्व बनाने के लिए सरकारें इसका डॉलर बॉन्ड में निवेश करती हैं.
जापान के पास 1 लाख करोड़ डॉलर के यूएस ट्रेजरी/बॉन्ड हैं. चीन का ये आंकड़ा 760 अरब डॉलर का है. यूके का 740 अरब डॉलर का निवेश है.
ऐसे में अगर बॉन्ड इतने जरूरी हैं तो 8 अप्रैल को इश्यू को निवेशक क्यों नहीं मिले.
क्या है असली कहानी
खास बात है कि जब टैरिफ का एलान हुआ था तब बॉन्ड प्राइस बढ़े थे और यील्ड घटी थी. क्योंकि शेयर गिरने के बाद निवेशकों ने अपना पैसा सुरक्षित एसेट्स में लगाना शुरू किया था. हालांकि इसके बाद बॉन्ड प्राइस में अचानक गिरावट आई और यील्ज बढ़ी.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक इसके पीछे ‘बेसिस ट्रेड’ वजह है. दरअसल बड़े हेज फंड निवेश के लिए रकम उधार के जरिए जुटाते हैं और इसके लिए शेयर या एसेट सिक्योरिटी के रूप में रखे जाते हैं.
शेयर बाजार में 2 अप्रैल से इतनी तेज गिरावट आई की इन सिक्योरिटी की वैल्यूएशन नीचे आ गई और मार्जिन कॉल्स ट्रिगर हुई यानि सिक्योरिटी को बढ़ाने की जरूरत हुई. इससे निपटने के लिए फंड्स की तरफ से बॉन्ड मार्केट में तेज बिकवाली देखने को मिली. यानि जब बॉन्ड का ऑक्शन होना था तब फंड्स बॉन्ड्स सेल कर रहे थे. वहीं एक दूसरी थ्योरी ये भी है कि 8 अप्रैल के ऑक्शन में चीन सहित कुछ और देशों के निवेशकों ने दूरी बनाई और इससे डिमांड पर असर देखने को मिला.आशंका है कि सरकारी बॉन्ड मार्केट की डिमांड घटने के बाद ऐसा कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट में भी देखने को मिल सकता है.
माना जा रहा है कि इन संकेतों के बाद ही अधिकारियों और कॉर्पोरेट सेक्टर ने अपनी चिंता ट्रंप के सामने रखी. उनके मुताबिक अगर बॉन्ड से रकम जुटाना ऐसे ही मुश्किल रहेगा तो बैंक और बीमा कंपनियों के सामने लिक्विडी की समस्या आ सकती है जो कि भुगतान संकट में बदल सकती है और अर्थव्यवस्था को बड़े संकट में डाल सकती है. सिलिकॉन वैली बैंक क्राइसिस इसका उदाहरण है. माना जा रहा है अर्थव्यवस्था के सामने इसी गंभीर संकट को देखते हुए ही ट्रंप नरम पडे.