मत:थे कौन हनुमान? बंदर? वानर? कहां हुआ था जन्म?

1)क्या हनुमान बंदर थे? वानर?कि मानव?

इन प्रश्नों का उत्तर वाल्मीकि रामायण से ही प्राप्त करते है।

1. प्रथम “वानर” शब्द पर विचार करते है। सामान्य रूप से हम “वानर” शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते है कि वानर का अर्थ होता है “बन्दर” परन्तु अगर इस शब्द का विश्लेषण करे तो वानर शब्द का अर्थ होता है वन में उत्पन्न होने वाले अन्न को ग्रहण करने वाला। जैसे पर्वत अर्थात गिरि में रहने वाले और वहाँ का अन्न ग्रहण करने वाले को गिरिजन कहते है। उसी प्रकार वन में रहने वाले को वानर कहते है। वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।

2. सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते है उसमें उनकी पूंछ लगी हुई दिखाई देती हैं। परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती? नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता। इसलिए यह स्पष्ट होता हैं की हनुमान आदि के पूंछ होना केवल एक चित्रकार की कल्पना मात्र है।

3. किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट हुई तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्र जी लक्ष्मण से बोले

न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः |
न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् || 4/3/28

अर्थात-

“ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको बोध नहीं है तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया है, वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होनें सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार अभ्यास किया है, क्यूंकि इतने समय तक बोलने में इन्होनें किसी भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया है। संस्कार संपन्न, शास्त्रीय पद्यति से उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय को हर्षित कर देती है”।

4. सुंदर कांड (30/18-20) में जब हनुमान अशोक वाटिका में राक्षसियों के बीच में बैठी हुई सीता को अपना परिचय देने से पहले हनुमान जी सोचते है-

“यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूँगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से संत्रस्त हो जाएगी। मेरे इस वनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही राक्षसों से डरी हुई यह सीता और भयभीत हो जाएगी। मुझको कामरूपी रावण समझकर भयातुर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर देगी। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूँगा।”

इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की हनुमान जी चारों वेद ,व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञाता भी थे।

5. हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य वानर जैसे की बालि पुत्र अंगद का भी वर्णन वाल्मीकि रामायण में संसार के श्रेष्ठ महापुरुष के रूप में किष्किन्धा कांड 54/2 में हुआ है। हनुमान बालि पुत्र अंगद को अष्टांग बुद्धि से सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से युक्त मानते थे।

बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना, सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ या तात्पर्य को ठीक ठीक समझना, विज्ञान व तत्वज्ञान।

चार प्रकार के बल हैं- साम , दाम, दंड और भेद।

राजनीति के चौदह गुण हैं- देशकाल का ज्ञान, दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता, दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता, शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता, शरणागत वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता।

भला इतने गुणों से सुशोभित अंगद बन्दर कहाँ से हो सकते है?

6- वेदज्ञ और राजमन्त्री हनुमान जी :-

सचिवोऽयं कपीन्द्रस्य सुग्रीवस्य महात्मनः । तमेव कांक्षमाणस्य ममान्तिक मिहागतः ।।२३।।
ना ऋग्वेद विनीतस्य ना यजुर्वेदधरिणः । ना सामवेदविदुषः शक्यमेवविभाषितम् ।।२८।।
( वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग-३ )
अर्थात् :- हे लक्षमण ! यह ( हनुमान जी ) सुग्रीव के मन्त्री हैं और उनकी इच्छा से यह मेरे पास आये हैं । जिस व्यक्ति ने ऋग्वेद को नहीं पढ़ा है, जिसने यजुर्वेद को धारण नहीं किया है, जो सामवेद का पण्डित नहीं है, वह व्यक्ति, जैसी वाणी यह बोल रहे हैं वैसी नहीं बोल सकता है ।
शब्दशास्त्र ( व्याकरण ) के पण्डित हनुमान जी :-

नृनं व्याकरण कृत्मनमनेन बहुधा श्रुतम् । बहुव्यवहारतानेन न किञ्चिदशाब्दितम् ।।२९।।
( वाल्मिकी रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग-३ )
अर्थात् :- इन्होंने निश्चित ही सम्पूर्ण व्याकरण पढ़ा है क्योंकि इन्होंने अपने सम्पूर्ण वर्तालाप में एक भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया है ।

श्रीरामो लक्ष्मणं प्राह पश्यैनं बटृरूपिणाम । शब्दशास्त्रमशेण श्रुतं नृनमनेकधा ।।१७।।
अनेकभाषितं कृत्सनं न किञ्चिदपशब्दितम् । ततः प्राह हनुमन्तं राघवो ज्ञान विग्रहः ।।१८।।
( वाल्मिकी रामायण किष्किन्धा काण्ड सर्ग-१ )
अर्थात् :- राम ने कहा “हे लक्षमण ! इस ब्रह्मचारी को देखो । अवश्य ही इसने सम्पूर्ण व्याकरण कई बार भली प्रकार से पढ़ा है । देखो ! इतनी बातें कहीं किन्तु इसके बोलने में कहीं कोई एक भी अशुद्धि नहीं हुई ।

7. अंगद की माता तारा के विषय में मरते समय किष्किन्धा कांड 16/12 में बालि ने कहा था कि-

“सुषेन की पुत्री यह तारा सूक्षम विषयों के निर्णय करने तथा नाना प्रकार के उत्पातों के चिन्हों को समझने में सर्वथा निपुण है। जिस कार्य को यह अच्छा बताए, उसे नि:संग होकर करना। तारा की किसी सम्मति का परिणाम अन्यथा नहीं होता।”

ऐसे गुण विशेष मनुष्यों में ही संभव है।

8 . किष्किन्धा कांड (25/30) में बालि के अंतिम संस्कार के समय सुग्रीव ने आज्ञा दी – मेरे ज्येष्ठ बन्धु आर्य का संस्कार राजकीय नियन के अनुसार शास्त्र अनुकूल किया जाये। किष्किन्धा कांड (26/10) में सुग्रीव का राजतिलक हवन और मन्त्रादि के साथ विद्वानों ने किया।

क्या बंदरों में शास्त्रीय विधि से संस्कार होता हैं?

9 . जहाँ तक जटायु का प्रश्न है, वह गिद्ध नामक पक्षी नहीं था। जिस समय रावण सीता का अपहरण कर उसे ले जा रहा था। तब जटायु को देख कर सीता ने कहाँ –
जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथ वत् |
अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणा || अरण्यक 49/38

हे आर्य जटायु ! यह पापी राक्षस पति रावण मुझे अनाथ की भान्ति उठाये ले जा रहा है।

कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम् |
सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले द्विजोत्तम || 68/6

अर्थात -यहाँ जटायु को आर्य और द्विज कहा गया है। यह शब्द किसी पशु-पक्षी के सम्बोधन में नहीं कहे जाते।

रावण को अपना परिचय देते हुए जटायु ने कहा –

जटायुः नाम नाम्ना अहम् गृध्र राजो महाबलः । अरण्यक 50/4

अर्थात- मैं गृध कूट का भूतपूर्व राजा हूँ और मेरा नाम जटायु है।

यह भी निश्चित हैं की पशु-पक्षी किसी राज्य का राजा नहीं हो सकते। इन सभी प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं कि जटायु पक्षी नहीं था, अपितु एक मनुष्य था। जो अपनी वृद्धावस्था में जंगल में वास कर रहा था।

10. जहाँ तक जाम्बवान के रीछ होने का प्रश्न है। यह भी एक भ्रान्ति है। रामायण में वर्णन मिलता है कि जब युद्ध में राम-लक्ष्मण मेघनाद के ब्रहमास्त्र से घायल हो गए थे। तब किसी को भी उस संकट से बाहर निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा था। तब विभीषण और हनुमान जाम्बवान के पास परामर्श लेने गये। तब जाम्बवान ने हनुमान को हिमालय जाकर ऋषभ नामक पर्वत और कैलाश नामक पर्वत से संजीवनी नामक औषधि लाने को कहा था।
इसका सन्दर्भ रामायण के युद्ध कांड सर्ग 74/31-34 में मिलता है।

आप्त काल में बुद्धिमान और विद्वान जनों से संकट का हल पूछा जाता है। जैसे युद्धकाल में ऐसा निर्णय किसी अत्यंत बुद्धिवान और विचारवान व्यक्ति से पूछा जाता है। पशु-पक्षी आदि से ऐसे संकट काल में उपाय पूछना सर्वप्रथम तो संभव ही नहीं हैं। दूसरे बुद्धि से परे की बात है। इसलिए स्वीकार्य नहीं है।

इसलिए जाम्बवान का रीछ जैसा पशु नहीं अपितु महाविद्वान होना ही संभव है।

इन सब वर्णन और विवरणों को बुद्धिपूर्वक पढ़ने से यह सिद्ध होता है कि हनुमान, बालि, सुग्रीव आदि विद्वान एवं बुद्धिमान मनुष्य थे। उन्हें बन्दर आदि मानना केवल मात्र एक कल्पना है और अपने श्रेष्ठ महापुरुषों के विषय में असत्य कथन है।

#HanumanJayanti

+×डॉक्टर विवेक आर्य 

2)सनातन फैक्ट्सः क्या हनुमान जी बंदर थे?
हनुमान जी का स्वरुप हमेशा ही चर्चा का विषय रहा है ऐसे में हमारे लिए हनुमान जी के स्वरुप पर बात कर लेनी भी बहुत जरूरी है. तो आइये जानें हनुमान जी के स्वरूप को लेकर क्या कहता है शोध और अध्ययन…
क्या हनुमान जी बंदर थे? ठीक वैसे ही जैसे हम आज के बंदरों को देखते हैं. फिर आज के बंदर हनुमान जी की तरह इंसानों की भाषा क्यों नहीं बोल सकते? क्यों आज के बंदर पहाड़ को उठा नहीं सकते? क्यों आज के बंदर अपने शरीर को बड़ा या छोटा नहीं कर सकते? क्यों आज के बंदर समुद्र पार नहीं कर सकते हैं? कुछ विचारवान तार्किकों का मानना है कि हनुमान जी बंदर नहीं थे बल्कि वानर कबीले से आते थे. ये एक कबीला था जो वानरों की तरह दिखता था लेकिन थे ये सभी इंसान ही.कुछ विद्वानों ने आगे जाकर वानर शब्द का संधि विच्छेद भी कर दिया और कहा कि वन+नर=वानर. यानि वन में रहने वाले इंसानों को वानर कहा जाता था. फिर इनसे पूछिये कि रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग कैसे लगा दी. अगर ये वनों में रहने वाले नर ही थे तो फिर कौन सा इंसान है जो पहाड़ को उठा सकता है, कौन सा इंसान है जो रुप बदल सकता है या फिर समुद्र पार कर सकता है. फिर रावण ने हनुमान जी की पूंछ में आग कैसे लगाई. क्योंकि वानर यानि वन में रहने वाले इंसान की पूंछ तो नहीं होनी चाहिए .

आइये जानें क्या था हनुमान जी का स्वरुप क्या वो वाक़ई बंदर थे

दोनों ही तर्कों यानि वानरों को इंसान कहने वाले और हनुमान जी को आज जैसे बंदर कहने वालों के पास जवाब खत्म हो जाते हैं. मेरा मानना है कि हनुमान, सुग्रीव, वालि, अंगद सभी बंदर ही थे, उनकी पूंछ भी थी, लेकिन ये आम बंदरों की तरह नहीं थे. ये देवताओं के अंश पुत्र थे जिन्होंने वानरों का शरीर धारण किया था.

ठीक वैसे ही जैसे विष्णु जी ने कभी मत्स्य, कभी वाराह, कभी कछुए का शरीर धारण किया था लेकिन थे वो मूल रुप से विष्णु. शरीर धारण करने से वो आम कछुए या मछली, या फिर वाराह नहीं माने जा सकते ना. रामायण में तीन कथाएं इस बात का आधार मानी जाती है.

पहली, ये कि जब कार्तिकेय के जन्म के पहले शिव और पार्वती के मिलन में देवताओं ने अवरोध उत्पन्न कर दिया तो माता पार्वती ने देवताओ को श्राप दे दिया कि वो अपनी पत्नियों और अप्सराओं से संतान पैदा नहीं कर सकते.

दूसरे, जब रावण भगवान शिव को चैलेंज देने के लिए कैलाश पर्वत पर जा धमका तो वहां नंदी ने रावण का रास्ता रोक लिया. रावण ने नंदी के वानर जैसे मुख को देख कर उनका मज़ाक उड़ाया. तब नंदी ने श्राप दिया कि रावण तेरा वध वानरों की सहायता से होगा.

तीसरे, रावण ने ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि उसे न तो देवता, न राक्षस और न ही यक्ष या गंधर्व या कोई पशु मार सके. वो ये इंसान को इसमें जोड़ना भूल गया. अब ये तीनो ही स्टोरी के प्लॉट बन गए.

जब दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे तब सभी देवता उनके पास रावण के वध का उपाय पूछने के लिए गए. वहां विष्णु जी ने कहा कि मैं इंसान का शरीर धारण कर दशरथ के चारों पुत्रों के रुप में अलग अलग अंशों के साथ अवतार लूंगा.

श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न विष्णु के अलग अलग अंशों के अवतार थे. यानि विष्णु ने इंसान का शरीर धारण कर राम के रुप में अवतार लिया. इस हिसाब से श्रीराम थे तो इंसान ही लेकिन वो मूल रुप से विष्णु ही थे. आम इंसानों से एकदम अलग थे. उनकी पलकें नहीं झपकती थीं जैसे देवताओं की नहीं झपकती. और भी कई विशेषताएं थी जो उन्हें आम इंसानों से अलग करती थी और देवता साबित करती थीं.

अब बारी थी दूसरे देवताओं की. सभी देवताओं ने धरती पर बंदरों का शरीर धारण किया और अपनी पत्नियों से अपने अंश पुत्रों को जन्म दिया जिनके सिर्फ शरीर बंदरों और रीक्षों के थे. वो मूलतः थे देवताओं के पुत्र. हनुमान जी की मां अंजना दरअसल पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थी जिससे वायुदेव ने अपने अंश पुत्र के रुप में बंदर का शरीर देकर हनुमान को जन्म दिया.

इसी प्रकार सुग्रीव सूर्य के अंश पुत्र थे, वालि इंद्र का अंश पुत्र था, नील अग्निदेव के पुत्र थे, जाम्बवंत ब्रह्मा के अंश पुत्र थे जिनका शरीर रीक्ष का था. तो ये सभी शरीर से तो बंदर या रीक्ष थे लेकिन मूल रुप से देवताओं के पुत्र थे इसलिए आम बंदरों से एकदम अलग थे. ये देवताओं की तरह इंसानों की भाषा बोल सकते थे, देवताओं की तरह हवा में उड़ सकते थे, देवताओं की तरह रुप बदल सकते थे और देवताओं की तरह ही शक्तिशाली भी थे. लेकिन इनका शऱीर बंदरों वाला था.

एक बात और राम और रावण के युद्ध का कोई लेना देना इंसानों से नहीं था. सिर्फ राम और उनके भाई ही विष्णु के इंसानी अवतार के रुप में इंसान का शरीर लेकर आए थे. बाकि सभी बंदर, भालू देवताओं के पुत्र थे.

ये युद्ध देवताओं के अंशपुत्रों और राक्षसों के बीच हुआ था. इंसान सिर्फ इस युद्ध का दर्शक था. ठीक वैसे ही जैसे किसी नाटक में एक्टर्स अलग अलग रुप धारण कर एक्टिंग करते हैं और फिर नाटक खत्म होते ही अपने असली रुप में सामने आ जाते हैं.

जैसे ही राम राज्य की स्थापना हुई, हनुमान, जाम्बवंत, द्विद और मयंद को छोड़ कर सभी विष्णु रुप श्रीराम के साथ वैकुंठ चले गए या फिर स्वर्ग चले गए. इन्होंने अपने बंदर शरीर को छोड़ दिया और वापस देवताओं केे शरीर को धारण कर लिया.इसीलिए इसे नाटक या लीला कहा जाता है.

इसी लिए रामलीला खेली जाती है. क्योंकि ये देवताओं और राक्षसों के बीच आपस का खेल था, मैच था. मैच खत्म और सभी अपने रुप में वापस आ गए. अब बेचारे रह गए सामान्य बंदर जिनमें हम हनुमान जी को तलाशने लगते हैं, सोचते हैं कि ये फिर इंसानों की तरह क्यों बात नहीं कर पाते, ये रुप क्यों नहीं बदल पाते.क्योंकि ये देवताओं के अंश हैं ही नहीं ये तो सामान्य बंदर है. ये रामायण के पहले भी थे और रामायण के बाद भी. द्वापर काल में द्विद, मयंद का वध श्रीकृष्ण ने कर दिया और जाम्बवंत की लीला भी खत्म हो गई. सिर्फ हनुमान रह गए हैं जो आज भी बंदर के शरीर में देवता के अँश पुत्र हैं और चिरंजीवी हैं.

पूरे महाभारत में युधिष्ठिर को वनवास में कोई बंदर इंसान की आवाज़ में बात करता नहीं दिखता क्योंकि उस वक्त हनुमान जी को छोड़कर बाकि सभी बंदर सामान्य बंदर ही थे. हनुमान जी और भीम की जब मुलाकात होती है तब जाकर जरुर हनुमान जी बंदर होते हुए भी इंसान की भाषा बोलते नज़र आते हैं. क्योंकि वही इकलौते बचे हुए देवता पुत्र बंदर हैं.

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लेखक
 अजीत कुमार मिश्रा @ajitmishra78
लेखक पूर्व पत्रकार हैं और संस्था ShuddhSanatan.org के फाउंडर हैं.