जयंती:डाकुओं तक को अंग्रेजों से लड़ाया पं. गेंदालाल दीक्षित ने
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चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।🙏🙏🌹🌹🌹🌹
🙏🙏 *राजीव दीक्षित जी* 🌷🌷🌷🌷🌷
📝राष्ट्रभक्त साथियों, मातृभूमि सेवा संस्था आज देश के चाणक्य ने कहा था कि ‘‘शिक्षक की गोद में सृजन और प्रलय दोनों ही पलते हैं।’’ औरैया के डीएवी विद्यालय में शिक्षण कार्य कर रहे पंंडित गेंदालाल दीक्षित जी ने यह बात 100 प्रतिशत सही साबित कर दिखाई। ‘‘उत्तर भारत के क्रांतिकारियों के द्रोणाचार्य’’ कहे जाने वाले दीक्षित जी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम योद्धा, महान क्राँतिकारी व उत्कृष्ट राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने आम आदमी तो दूर, डाकूओं तक को संगठित करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध खड़ा करने का दुस्साहस किया था।
पंंडित गेंदालाल दीक्षित का जन्म 30 नवंबर 1888 को ग्राम मई, बाह, आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था लेकिन उनकी कर्म भूमि औरैया, उत्तर प्रदेश बनी। दीक्षित जी सन् 1905 में लॉर्ड कर्जन के बंगाल विभाजन से काफी आक्रोशित थे। वर्ष 1915 में औरैया के झनी विद्यालय (बाद में एवी हाई स्कूल, वर्तमान में तिलक इंटर कॉलेज) में प्रधानाचार्य बनकर आए तो उन्होंने क्राँति का रास्ता चुना। वह यहाँ के सेठ भीखम चंद्र के पास क्राँतिकारी कार्यों के लिए मदद माँगने गए पर सेठ ने इंकार कर दिया। उन्होने ‘शिवाजी समिति’ के नाम से शिक्षित लोगों का एक संगठन बनाया और उन्हें अस्त्रों-शस्त्रों की शिक्षा प्रदान की। उन्होंने यहीं से शिवाजी समिति के जरिये गुरिल्ला युद्ध के अनोखे प्रयोग किये और अपने अभिन्न मित्र बह्मचारी लक्ष्मणानंद के साथ मिल कर भिंड, मुरैना (चंबल घाटी) के कुख्यात डाकुओं को देशभक्ति का ऐसा पाठ पढ़ाया कि सब क्राँति-योद्धा बन बैठे। अंग्रेजों के खिलाफ छापामार युद्ध छेड़ कर इन्होने 21 अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा। गोरों से मोर्चा लेने के लिए दीक्षित जी ने अपने बलबूते मातृवेदी के 5,000 लड़ाका सैनिकों और राजस्थान की खारवा रियासत से 10,000 सैनिकों का बन्दोबस्त कर लिया था। वे पंजाब और दिल्ली के क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत का तख्ता पलट देना चाहते थे। पूरी तैयारी हो चुकी थी किंतु दल के एक सदस्य दलपत सिंह की गद्दारी के कारण दीक्षित जी को गिरफ्तार कर ग्वालियर लाया गया, फिर वहाँ से उन्हें आगरा के किले में कैद करके ब्रिटिश सेना की निगरानी में रख दिया गया।
पंडित गेंदालाल दीक्षित को ‘मैनपुरी षडयंत्र’ का सूत्रधार समझकर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया व मैनपुरी के मैजिस्ट्रेट बी.क्रिस की अदालत में दीक्षित सहित सभी नवयुवकों पर ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध षड्यंत्र रचने का मुकदमा दायर करके मैनपुरी की जेल में डाल दिया गया। मुकदमे के दौरान दीक्षित जी ने एक चाल चली। जेलर से कहा कि ‘सरकारी गवाह से उनके दोस्ताना ताल्लुकात हैं, यदि दोनों को एक ही बैरेक में रख दिया जाये तो कुछ और षडयंत्रकारी पकड़ में आ सकते हैं।’ जेलर ने दीक्षित जी की बात का विश्वास करके सीआईडी की देखरेख में सरकारी गवाहों के साथ हवालात में भेज दिया। थानेदार ने सावधानी के तौर पर दीक्षित जी का एक हाथ और सरकारी गवाह का एक हाथ आपस में एक ही हथकड़ी से कस दिया ताकि रात में वे हवालात से भाग न सकें, किन्तु गेंदालाल ने वहाँ भी सबको धता बता दी और रातों-रात हवालात से भाग निकले। इतना ही नही, अपने साथ बंद उसी सरकारी गवाह रामनारायण को भी उड़ा ले गये, जिसका हाथ उनके हाथ के साथ हथकड़ी से कसकर जकड़ दिया गया था। जेल से भागकर पंंडित गेंदालाल दीक्षित अपने एक संबंधी के पास कोटा पहुँचे, पर वहाँ भी उनकी तलाश जारी थी। इसके बाद वे किसी तरह अपने घर पहुँचे, पर वहाँ उनके घरवालों ने साफ कह दिया कि आप यहाँ से चले जाएँ, अन्यथा हम पुलिस को बुलाते हैं। किसी तरह वे दिल्ली आकर पेट भरने के लिए प्याऊ पर पानी पिलाने की नौकरी करने लगे। अति विषम परिस्थितियों में जीवनयापन करने व क्षय रोग से ग्रसित हो जाने के कारण दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिए गए, जहाँ 21 दिसम्बर, 1920 बुधवार 02 बजे उनका देहांत हुआ।
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✍️ राकेश कुमार
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