परमार्थ निकेतन पर भी चढ़ा सैकुलरिज्म का भूत?
सुशील बहुगुणा (डीएवी)बसंत बिहार: की टेलीग्राम पोस्ट से
अति आवश्यक,
चिंतन मनन का विषय।
मित्रो,
उत्तराखण्ड में,ऋषिकेश भारत का एकमात्र ऐसा शहर है, जिसमे एक भी मस्जिद नहीं है.
हम सभी सनातन धर्मावलम्बियों के लिये, “ऋषिकेश” एक शहर मात्र नहीं,अपितु,सनातन धर्मालंबियों का,एकमात्र पूरी तरह से पवित्र व पूज्यनीय स्थल है.
एक और बिशेष बात,ऋषिकेश उत्तराखण्ड का
ऐसा शहर है जिसमें तीन जिले एक ही शहर में,पड़ते हैं।
साथ ही साथ ऋषिकेश,उत्तराखण्ड की पवित्र”चार धाम यात्रा” का प्रवेश द्वार भी है।
हमारे देश में शायद ही कोई ऐसा अन्य शहर होगा, जहां मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा नहीं हों. कम से कम हर शहर में मंदिर और मस्जिद तो जरूर होते हैं ,लेकिन अगर कोई ऐसी पोस्ट मिल जाए, जिसमें दावा किया जाए कि देश के फलाने शहर में कोई मस्जिद नहीं है, तो यकीन करना मुश्किल होगा।
लेकिन अब वहां भी,एक ख़तरनाक घुसपैठ की शुरुआत हो चुकी है।
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खतरनाक प्रयोग!
नीचे की तस्बीरों में,
ये ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन के वर्तमान अध्यक्ष हैं *चिदानंद सरस्वती* और दूसरे इनके भाईचारे वाले भाईजान हैं, *देवबंद के राष्ट्रीय इमाम संघ* के मुख्य *इमाम उमेर अहमद इलियासी!*
अभिनव प्रयोग ये है की शायद *धार्मिक सौहार्द बढ़ाने हेतु मदरसे के 100 छात्रों को गुरुकुल में ठहराया गया* इस प्रकार *मुस्लिम छात्र आरती में शामिल हुए और नमाज के लिए गुरुकुल के ऋषि कुमारों से गंगा तट धोकर साफ करवाया गया?*
मदरसे वालों ने आश्रम में सात्विक आहार लिया, बदले में अब इन गुरुकुल के छात्रों को भी मदरसे में जाना होगा और जाहिर है की वहां थूक मिला प्रसाद भी लेना पड़ेगा?!?
हिंदू छात्रों ने जहां *वसुधैव कुटुंबकम्* और *सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।*
*सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।*
अर्थात संसार में *सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।* गंगा मां, महादेव से प्रार्थना की होगी, इसका अर्थ भी बताया होगा!
वहीं *नमाज में मदरसे के छात्रों ने क्या प्रार्थना की, इस्लामिक लोगों के लिए और काफिरों के लिए… ये पूछना निश्चित ही महाराज भूल गए होंगे और मौलाना किस मुंह से बताएंगे?*
हमारे सभी आधुनिक भंडाराखोर संतो को *विवेक अग्निहोत्री* की फिल्म *TheKashmirFiles* देखनी चाहिए, रहा सवाल इन देवबंदी मौलानाओं का तो इनको सब पता है, इस्लामिक आतंकवाद, कश्मीर, केरल और पश्चिम बंगाल से लेकर दुनिया भर का सारा जेहाद… क्योंकि *इन्हीं देवबंदी मौलानाओं की देखरेख में होता है*…
और अब ये मौलाना तैयार कर रहे हैं *अगली खेप* और उसे दिखा रहे हैं *चारा* कर्टेसी हमारे अज्ञानी व्यापारी संत?
कभी आपने विचार किया है… आखिर हमारे… हिंदू मंदिरों, गुरुद्वारों, जैन, बौद्ध मंदिरों और उनके धर्माचार्यों को ऐसी क्या चाट है, अली मौला की, या क्या मजबूरी है… की ये एक के बाद एक… *सनातन धर्म द्रोहियों को हमारे मंदिरों में नमाज पढ़ने के लिए बुलवाते हैं*… इनका बंधन हो चुका है… या फिर *विदेशी महिला* पाप की गठरी में कोई राज है जो, मौलाना को तो अपने साथ बिठाते हैं, और हिन्दू भक्तों को अपने से नीचे…
*ये तो राजनेता भी नहीं की वोट मिलेंगे, इसका मतलब माजरा कुछ और ही है!?!*
जो भी हो चुनाव के बाद नेताओं को तो पता चल ही गया है की *मुसलमान* धोखेबाज हैं, विकास लेंगे, वोट नहीं देंगे… अब बारी महाराज की है *थूक वाला आहार* तो लेना ही पड़ेगा… ऋषिकुमार बेचारे मजबूर हैं?
आश्रम में रहना है तो माननी पड़ेगी, अभी *नमाज के गंगा तट साफ करवाया है* अध्यक्ष महोदय कहेंगे तो *जीभ* से जूते भी साफ करने पड़ सकते हैं!?!
।और एक बात क्या आजतक किसी हिंदू को इन मौलानाओं ने मस्जिद में पूजा पाठ, हवन के लिए, या *गुरुग्रंथ साहिब* के पाठ के लिए बुलाया है!?!
क्या कोई हिंदू *मक्का मदीना* में जा सकता है!?!
विचार करें *सब समझ* आ जायेगा, अधिकांश आश्रमों का ये हाल हो गया है की ये होटल बन चुके हैं, अरमार्थ, परमार्थ के नाम पर निहित स्वार्थ पूर्ति के व्यापारिक संस्थान, *ऐसे भगोड़े धनपशुओं के अड्डे जो संसार में अन्य कुछ करने में असमर्थ रहे!?!*
हिंदुओं नेताओं को छोड़ें, संत महात्मा भी अब *धर्मरक्षक* नहीं रहे… अतैव अब आपको समझ आ जाना चाहिए की *आपका दायित्व ये है की अपने परिवार की रक्षा हेतु, आत्मनिर्भर बनें, और जागरूक भी* वरना आपका क्या होने वाला है, इसको जानने के लिए न आप सावरकर की मोपला, पढ़ सकते हैं, ना स्वामी दयानंद सरस्वती का *सत्यार्थ प्रकाश* तो इसे प्रचलित माध्यम से जानने हेतु 2.5 hour की फिल्म देख लें… *(The KashmirFiles)* द कश्मीर फाइल्स, शायद कुछ समझ आ हो जाए… *अंतिम स्पीच* ध्यान से सुनना, इतिहास वहीं है, हिंदुओं की हत्या, लूट, बलात्कार तो वर्तमान है… इसको इतिहास समझने की भूल तो फिल्मी कपल *गधा और गधी* ही कर सकते हैं…या फिर *जोकर्स*
इनके साथ क्या करना हैं, ये आपको पता हैं।
फिलहाल पोस्ट को पढ़कर श्येर भी करते रहिए।साभार:-
योगी हेमंत पंचपोर
टोरंटो, कनाडा+++++++
#परमार्थ_निकेतन को भी हलाल सर्टिफिकेट चाहिये क्या?
पीले वस्त्र वाले बटुक, बाल संत कभी मांस नहीं खा सकते। यहाँ तक कि जीव को मारना, काटना भी इनके धर्म, संस्कार में महापाप है।
दूसरी तरफ टोपी लगाये बच्चे न केवल मुर्गा, भैंस, बकरा, ऊंट, बैल स्वाद से खाते होंगे। बल्कि अपने हाथ से उन्हें हलाल यानी तड़पा तड़पा कर काटते भी होंगे, ऐसा उनके मजहब में बहुत नेक कार्य है।
पीले वस्त्र वाले बच्चे संस्कृत भाषा में अध्ययन करते हैं, वो उनकी देवताओं की भाषा है और उसके प्रचार प्रसार के लिये प्रतिबद्ध हैं। जबकि टोपी वाले बच्चों के नेता, धर्म गुरु सदैव संस्कृत का विरोध करते हैं, उसका अपमान करते हैं।
पीले वस्त्र वाले बच्चे गाय, मातृ भूमि, गंगा को अपनी मां मान कर पूजा करते हैं। लेकिन टोपी वाले बच्चे गौ वंश को खाने की वस्तु मानते हैं और गंगा, मातृ भूमि आदि किसी भी चीज को वो मां नहीं मानते। वो कभी भी वन्देमातरम, भारत माता की जय नहीं बोल सकते।
पीले वस्त्र वाले बच्चे मूर्ति उपासक हैं और टोपी वाले बच्चों को सिखाया जाता है कि मूर्ति पूजा करना हराम है और मूर्ति पूजा करने वाले गुनाहगार हैं। खास बात ये है कि इस परिसर में हर कोने पर पग पग पर मूर्तियां ही मूर्तियां हैं।
दो अलग समाज ही नहीं बल्कि विरोधावासी सोच, संस्कृति, संस्कार, सभ्यता… आपस में गले मिलने का सिर्फ नाटक करवाया जा रहा है या फिर संस्कार, सोच भी आदान प्रदान हो रहे हैं??
आज मौलाना साहब अपने मदरसे के बच्चों (भविष्य के मौलवियों) को भविष्य के सनातनी सन्तों के साथ गले मिलवा रहे हैं।
कौन जाने मौलाना साहब की टीम में से आज कौन कौन भैंसा, बैल, ऊंट खाकर आया होगा??
ध्यान दीजिये, ये बटुक ही कल को पूरी दुनिया में सनातन धर्म के गुरुओं, मार्गदर्शकों और सन्तों की तरह विचरण करेंगे।
ये चित्र ऋषिकेश क्षेत्र, राम झूले के पास गंगा जी तट पर बने परमार्थ निकेतन के अंदर ही एक कुटिया type बने हिस्से का है, जहाँ गुरु जी श्रद्धालुओं के साथ संवाद करते हैं। हर कोई इस क्षेत्र में नहीं जाता, 80% लोगों ने तो देखा भी नहीं होगा। ध्यान ऊर्जा का स्थान माना जाता है।
गुरु गद्दी के पास मांसाहार करने वाले लोगों का इस तरह का कर्यक्रम किस इवेंट का हिस्सा है, हमारी सोच से परे है।
* गिरीश पांडे की फेसबुक वॉल से