फौजों ने टेके घुटने, जनता अड़ी तालिबान के सामने

ANALYSIS: तालिबान के खिलाफ अफगान क्रांति का आगाज, तीन बड़े शहरों में प्रदर्शन

अफगानिस्तान (Afghanistan) के जलालाबाद (Jalalabad) और खोस्त शहर में तालिबान (Taliban) का जबरदस्त बंदोबस्त है और भारी संख्या में उसके आतंकवादी सड़कों पर तैनात हैं. लेकिन इसके बावजूद अफगानिस्तान के कुछ लोगों ने हिम्मत दिखाई है और अब तक तीन बड़े शहरों में तालिबान के झंडे हटाने के लिए प्रदर्शन हुए हैं.

नई दिल्ली 18अगस्त।: अमरुल्ला सालेह ने खुद को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति घोषित करने के बाद तालिबान पर हमले शुरू कर दिए हैं. ये हमले वहां के परवान प्रांत में हुए हैं. इसके अलावा अफगानिस्तान के पूर्व उप-राष्ट्रपति अब्दुल रशीद दोस्तम ने भी उत्तरी अफगानिस्तान में तालिबान के आंतकवादियों पर हमलों का नेतृत्व किया है.


तालिबान का विरोध शुरू

67 साल के अब्दुल रशीद दोस्तम 2014 से 2020 तक अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति थे और 2001 में उन्होंने तालिबान की सरकार गिराने में बड़ी भूमिका निभाई थी. अभी उन्होंने उज्बेकिस्तान में शरण ली हुई है और वो उत्तरी अफगानिस्तान में तालिबान से भी लड़ रहे हैं. ये तालिबान के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि तालिबान को लगा था कि उसके डर के आगे अफगानिस्तान का कोई नेता नहीं टिकेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

साल 2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक दोस्तम के पास अपनी एक सेना है, जिसमें 10 से 20 हजार सैनिक माने जाते हैं. इसके अलावा अफगानिस्तान के पंजशीर से अमरुल्ला सालेह के काफिले की भी कुछ तस्वीरें आई हैं, जो तालिबान को जरूर परेशान करेंगी.

दूतावास से हटाई गनी की तस्वीर

अमरुल्ला सालेह ने ये हिम्मत तब दिखाई है जब अशरफ गनी अपना देश छोड़कर भाग चुके हैं. इसी का नतीजा है कि ताजिकिस्तान में अफगानिस्तान के दूतावास में लगी अशरफ गनी की तस्वीरों को अब उतार दिया गया है और उनकी जगह अमरुल्ला सालेह की तस्वीरें लगा दी गई हैं.

ये अशरफ गनी को संदेश है कि वो अब अफगानिस्तान के लिए गद्दार और भगोड़े से ज्यादा कुछ नहीं हैं. ताजिकिस्तान में अफगानिस्तान की एम्बेसी ने इंटरपोल के जरिए भगोड़े राष्ट्रपति अशरफ गनी समेत कई नेताओं को लोगों को पैसा लूट कर भागने के लिए उन्हें हिरासत में लेने के भी निर्देश दिए हैं. हालांकि तालिबान के लिए अफगानिस्तान पर शासन करना इतना आसान नहीं होगा. क्योंकि अफगानिस्तान के कई हिस्सों में लोग तालिबान के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. आज काबुल से 150 किलोमीटर दूर जलालाबाद में तालिबान के आतंकवादियों ने तीन लोगों की हत्या कर दी.


जलालाबाद में तालिबान की गोलीबारी

अफगानिस्तान के लोग जलालाबाद और खोस्त शहर में तालिबान का झंडा लगाए जाने से नाराज थे, जिसके बाद उन्होंने इस झंडे को हटा कर अफगानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए एक रैली निकाली. लेकिन ये विरोध तालिबानियों को पसन्द नहीं आया और उसने भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी.

अफगानिस्तान के जलालाबाद और खोस्त शहर में तालिबान का जबरदस्त बंदोबस्त है और भारी संख्या में उसके आतंकवादी सड़कों पर तैनात हैं. लेकिन इसके बावजूद अफगानिस्तान के कुछ लोगों ने हिम्मत दिखाई है. ये एक अच्छी खबर है. हमें ये भी खबर मिली है कि अब तक तीन बड़े शहरों में तालिबान के झंडे हटाने के लिए लोगों ने प्रदर्शन किए हैं और आने वाले दिनों में ये विरोध बढ़ सकता है.

लेकिन तालिबान कट्टरपंथी विचारधारा छोड़ने के लिए तैयार नहीं है. आज तालिबान ने अफगानिस्तान के बाम्यान में अब्दुल अली मजारी की मूर्ति को तोड़ दिया. बाम्यान वही शहर है, जहां वर्ष 2001 में तालिबान ने बुद्ध की प्रतिमा को बम से उड़ा दिया था.

अत्याचारों पर चुप पश्चिमी देश

अब्दुल अली मजारी अफगानिस्तान के हजारा समुदाय के नेता थे, जिनकी तालिबान ने वर्ष 1995 में हत्या कर दी थी. तालिबान कई वर्षों से हजारा समुदाय को निशाना बनाता रहा है. अफगानिस्तान की कुल आबादी में करीब 9 प्रतिशत की हिस्सेदारी हजारा समुदाय की है, तालिबान की वापसी के बाद इस समुदाय में काफी खौफ है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बात करने वाले पश्चिमी देश इस पर चुप हैं.

तालिबान अभी अपनी छवि चमकाने के लिए पूरी दुनिया में जबरदस्त कोशिशें कर रहा है और अब भारत में भी एक खास वर्ग यहां बैठ कर तालिबान की तारीफ कर रहा है. भारत के कई लिबरल बुद्धिजीवियों और नेताओं को लगता है कि तालिबान स्वतंत्रत प्रेस और महिलाओं की आजादी के लिए काम करेगा. ऐसे लोगों की नजर में तालिबान की कल की प्रेस कॉन्फ्रेंस सुपर हिट रही है. इसलिए आज एक बार फिर से हम हमारे देश के इन लोगों से ये कहना चाहते हैं कि कुछ दिन तो गुजारिए अफगानिस्तान में.

भारत में भी तालिबान समर्थक

आज मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता सज्जाद नोमानी ने अफगानिस्तान में तालिबान की जीत के लिए अल्लाह को शुक्रिया कहा और ये भी कहा कि भारत का मुसलमान, तालिबान को सलाम करता है. हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि ये विचार व्यक्तिगत हैं, इसका मुस्लिम लॉ बोर्ड से लेना-देना नहीं है.


कल समाजवादी पार्टी के एक सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने भी तालिबानियों की तुलना भारत के क्रांतिकारियों से की दी और अब उनके खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज कर लिया गया है.

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