फोन टेपिंग का इतिहास पुराना है भारत में, नेहरू तक के समय से लगते रहे हैं आरोप
:राजीव गांधी से मनमोहन और मोदी तक सब पर लगे जासूसी के आरोप; टैपिंग के आरोपों पर कुर्सी गंवाने वालों में चंद्रशेखर, हेगड़े भी शामिल
खोजी पत्रकारों के इंटरनेशनल ग्रुप का दावा है कि दुनियाभर में इजराइली कंपनी एनएसओ (NSO) के जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस से 10 देशों में 50 हजार लोगों की जासूसी हुई। भारत में भी अब तक 300 नाम सामने आए हैं, जिनके फोन की निगरानी की गई। इसे लेकर पिछले कुछ दिनों से सड़क से संसद तक हंगामा हो रहा है।
मांग उठ रही है कि मोदी सरकार इस मामले की जांच करवाए, पर सच तो यह है कि इस तरह के आरोप पहली बार नहीं लगे हैं। राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तो उन पर राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने राष्ट्रपति भवन की जासूसी के आरोप लगाए थे। 1980 के दशक में तो फोन टैपिंग के आरोपों की वजह से केंद्र और या कर्नाटक जैसे राज्य की सरकारें तक गिर गईं।
आप भी जानिए कि भारत में नेताओं की जासूसी का क्या इतिहास रहा है…
पहले तो यह जान लीजिए कि क्या सरकारों को फोन टैपिंग का अधिकार है?
हां। हमारे यहां कोई भी सरकार बिना किसी कारण के किसी का भी फोन टैप नहीं करवा सकती, पर इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 के सेक्शन 5 (2) और इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1951 के रूल 419-A के तहत देश की संप्रभुता और एकता को कायम रखने के लिए सरकार की 10 एजेंसियों को फोन टैपिंग और अन्य तरह की जासूसी का अधिकार है। यानी यह तो शक के आधार पर भी हो सकता है। बस कानून की इसी खामी का इस्तेमाल कर सरकारें विपक्षी नेताओं और अन्य लोगों की जासूसी करती रहती हैं।
क्या एजेंसियां किसी भी फोन को टैप कर सकती हैं?
नहीं। केंद्र के मामले में केंद्रीय गृह सचिव और राज्यों में गृह सचिव इसकी अनुमति देते हैं। पर हर कोई जानता है कि हर स्तर पर फोन टैपिंग होती है। हर पुलिस फोर्स में ऑफिसर हैं, जो कम्युनिकेशन को टैप करते हैं। मुकेश अंबानी के घर के बाहर मिले विस्फोटकों के मामले में गिरफ्तार मुंबई पुलिस के क्राइम ब्रांच के अधिकारी सचिन वझे के पास भी फोन टैपिंग के निर्देश देने का अधिकार था। आप समझ सकते हैं कि फोन टैपिंग किस स्तर पर हो सकती है।
इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 के सेक्शन 69 में केंद्र सरकार या राज्य सरकार को देश की संप्रभुता और एकता को कायम रखने के लिए किसी भी सूचना को इंटरसेप्ट, मॉनीटर या डिक्रिप्ट करने का अधिकार है। पर यह सब जानते हैं कि देश की संप्रभुता और एकता के बहाने सरकार अपने विरोधियों के भी फोन टैप करती है।
क्या कानून की आड़ में राजनीतिक दुश्मनों की भी जासूसी होती है?
हां। दिसंबर-2018 में RTI के तहत मिले जवाब से खुलासा हुआ कि UPA सरकार ने हर महीने 9,000 फोन टैप कराए। 500 ईमेल को इंटरसेप्ट किया। जाहिर है कि 2018 में मोदी सरकार थी और उसने यह जानकारी RTI के तहत दी। पर इससे यह साफ है कि सिर्फ मोदी ही नहीं, बल्कि उनके पूर्ववर्ती भी फोन टैपिंग और जासूसी करते रहे हैं।
तकरीबन हर साल ही एक-दो मामले केंद्र या राज्यों में आ जाते हैं। पिछले कुछ समय से तो यह सिलसिला और भी बढ़ गया है। यहां हम ऐसे ही कुछ मामलों को सामने ला रहे हैं…
नेहरु से मोदी सरकार तक भारत में फोन टैपिंग का इतिहास
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इससे पहले भी पेगासस पर लगे थे आरोप
2019 में भी इजराइल द्वारा तैयार किया गया स्पाईवेयर पेगासस सुर्खियों में था. तब व्हाट्सएप की ओर से कहा गया था कि वह इजराइल की इस कंपनी के खिलाफ केस कर रहा है, क्योंकि इसी के जरिए लगभग 1400 लोगों के व्हाट्सएप की जानकारी उनके फोन से हैक की गई थी.
भारत में फोन टैपिंग के प्रमुख मामले
आज तक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में फोन टैपिंग की शुरूआत पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जमाने में ही हो गई थी. उस समय यह आरोप खुद संचार मंत्री रफी अहमद किदवई ने लगाए थे. उन्होंने यह आरोप तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल पर लगाया था, जिसे उन्होंने तूल नहीं दिया.
सेना प्रमुख जनरल केएस थिमाया ने 1959 में अपने और आर्मी ऑफिस के फोन टैप होने का आरोप लगाया था.
नेहरू सरकार के ही एक और मंत्री टीटी कृष्णामाचारी ने 1962 में फोन टैप होने का आरोप लगाया था.,
1988 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री पर आरोप
1988 में कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े के कार्यकाल में भी फोन टैपिंग का बड़ा मामला सामने आया था. विपक्ष का आरोप था कि हेगड़े ने विपक्षी नेताओं के फोन टेप के आदेश देकर उनकी निजता में सेंध लगाई है.
आज तक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जून 2004 से मार्च 2006 के बीच सरकार की एजेंसियों ने 40 हजार से ज्यादा फोन टैप किए थे.
2006 में अमर सिंह ने यूपीए सरकार पर आरोप लगाया :
राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने 2006 में दावा किया था कि इंटेलीजेंस ब्यूरो (IB) उनका फोन टैप कर रही है. अमर सिंह ने केंद्र की यूपीए सरकार और सोनिया गांधी पर फोन टैपिंग का आरोप लगाया था. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय तक चला.
2011 में अमर सिंह ने केंद्र सरकार पर लगाए आरोपों को वापस ले लिया है. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अमर सिंह के फोन टेप को मीडिया में दिखाने या छापने पर लगी रोक भी हटा ली.
अक्टूबर 2007 में सरकार ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के फोन भी टेप करवाए. नीतीश कुमार तब अपने एक सहयोगी से बात कर रहे थे कि कैसे बिहार के लिए केंद्र से ज्यादा पैसा मांगा जाए.
नीरा राडिया मामले से आया था राजनीतिक भूचाल
देश के बड़े उद्योगपतियों रतन टाटा और मुकेश अंबानी की कंपनियों के लिए पीआर का काम कर चुकी नीरा राडिया के फोन टैप का मामला सामने आने के बाद देश में राजनीतिक भूचाल आ गया था. नीरा राडिया की विभिन्न उद्योगपतियों, राजनीतिज्ञों, अधिकारियों और पत्रकारों से फोन पर हुई बातचीत के ब्यौरे मीडिया में प्रकाशित हुए थे. ‘आउटलुक’ मैग्जीन ने अपनी वेबसाइट पर प्रमुखता से प्रकाशित एक खबर में कहा था कि उसे नीरा राडिया की बातचीत के 800 नए टेप मिले हैं. इस बातचीत के बाद से ही 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में नीरा राडिया की भूमिका पर सवाल उठने लगे थे.
मनमोहन सरकार पर कई नेताओं के फोन टैप करवाने का आरोप
आउटलुक पत्रिका ने अप्रैल 2010 में दावा किया था कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने देश के कुछ शीर्ष नेताओं के फोन टैप करवाए हैं. इनमें तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार, कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सीपीएम के पूर्व महासचिव प्रकाश करात का नाम सामने आया था.
इस मसले में संयुक्त संसदीय समिति बनाने की मांग की गई, जिसे यूपीए सरकार ने खारिज कर दिया था.
अरुण जेटली का मामला
फरवरी 2013 में अरुण जेटली राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे. उस समय उनके फोन टैपिंग मामले में करीब दस लोगों को गिरफ्तार किया गया था. यह मामला जनवरी में उस समय सामने आया था, जब विपक्ष ने सरकार पर जेटली का फोन टैप कराने का आरोप लगाया था.
जेटली की जासूसी के आरोप में दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने सहायक उपनिरीक्षक गोपाल, हेड कांस्टेबल हरीश, जासूस आलोक गुप्ता, सैफी और पुनीत के अलावा एक अन्य कांस्टेबल को गिरफ्तार किया गया था.
फोन टैपिंग के आरोप में इनकी कुर्सी गई
अपने राजनीतिक विरोधियों के फोन टेप करवाने के आरोप में कर्नाटक के मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े को 1988 में कुर्सी छोड़ना पड़ी थी.
1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर पर फोन टैप कराने का आरोप लगा था, जिसके बाद उन्हें अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा था.
और भी मामले हैं…
हाल ही में कर्नाटक सांसद सुमलता अंबरीश ने दावा किया कि 2018-19 में राज्य में कांग्रेस-जेडीएस (JDS) सरकार के कार्यकाल के दौरान उनका टेलीफोन टैप किया गया था.
महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने कुछ ही दिन पहले विधानसभा में आरोप लगाया था कि साल 2016-17 में जब वो बीजेपी के सांसद थे तब उनका फोन टैप किया जा रहा है।
जुलाई 2020: राजस्थान में सरकार के खिलाफ रची थी साजिश!
राजस्थान में 2020 में राजनीतिक संकट खड़ा हो गया था। कांग्रेस नेता सचिन पायलट और उनके 18 समर्थकों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इस बीच गहलोत के OSD लोकेश शर्मा ने भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की दो कांग्रेस विधायकों से हुई बातचीत की ऑडियो क्लिप जारी कर दी। आरोप लगे कि गहलोत सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की गई। जांच राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप को भी सौंपी गई। पर गहलोत और पायलट के बीच केंद्रीय नेतृत्व ने सुलह कराई तो मामला रफा-दफा हो गया। जांच भी बंद हो गई।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके डिप्टी सचिन पायलट की फोटो में जो दिख रहा है, वह सच है नहीं। दोनों में अनबन की खबरें पिछले एक साल से आ रही हैं।
अगस्त 2019: कुमारस्वामी ने फोन टैप कराए, CBI जांच भी हुई
कर्नाटक में कांग्रेस के समर्थन से सरकार चला रहे JDS नेता मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को लग रहा था कि कुछ बागी विधायक भाजपा में जा सकते हैं। उन्होंने उन बागी विधायकों के फोन टैप करने के आदेश दिए। 1 अगस्त 2018 से 19 अगस्त 2019 तक अवैध तरीके से फोन टैप हुए। इस मामले की जांच के आदेश हुए तो केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) भी सक्रिय हुई। पर इतना सब कुछ करने के बाद भी कुमारस्वामी अपनी सरकार नहीं बचा सके और ऑपरेशन लोटस कामयाब हुआ। बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में एक बार फिर राज्य में भाजपा की सरकार कायम हुई।
नवंबर 2019: छत्तीसगढ़ में तो सुप्रीम कोर्ट की एंट्री तक हुई थी
मामला 2015 के सिविल सप्लाई स्कैम का था। छत्तीसगढ़ पुलिस के टॉप अफसर मुकेश गुप्ता पर आरोप लगे कि जांच के दौरान उन्होंने कानून तोड़ते हुए फोन टैपिंग कराई। उस समय राज्य में भाजपा की रमन सिंह सरकार थी। 2018 में जब कांग्रेस जीतकर आई तो सारे पुराने मामले खुलने शुरू किए। मुकेश गुप्ता के खिलाफ भी मामला दर्ज हुआ। तब सुप्रीम कोर्ट ने तो यह भी कहा था कि ‘यह देश में हो क्या रहा है। किसी की प्राइवेसी रह ही नहीं गई है।’
फरवरी 2013: जेटली के कॉल डिटेल लेने चला गया कॉन्स्टेबल
दिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबल अरविंद डबास को 14 फरवरी 2013 को गिरफ्तार किया गया था। उसने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के कॉल डिटेल्स हासिल करने की कोशिश की थी।किसके कहने पर उसने ऐसा किया, यह सामने नहीं आ सका। और तो और, डबास ने इसके लिए दिल्ली पुलिस के असिस्टेंट कमिश्नर के ई-मेल पते का इस्तेमाल किया और मोबाइल सर्विस ऑपरेटर को रिक्वेस्ट भेजी थी। पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट में 36 लोगों को गवाह के तौर पर पेश किया।
नवंबर 2013: मोदी-शाह ने कराई थी महिला आर्किटेक्ट की जासूसी
मामला उस समय का है, जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह गुजरात की राजनीति में सक्रिय थे। गुजरात के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और शाह की बातचीत का टैप सामने आया था। इससे पता चला कि महिला आर्किटेक्ट की जासूसी हुई है। पर जब मामले ने तूल पकड़ा तो महिला के पिता ने कहा कि मैंने ही बेटी पर नजर रखने को कहा था। उस समय मामला रफा-दफा हो गया, पर संदेह जताया गया कि महिला एक निलंबित अधिकारी के संपर्क में थी और इस वजह से उस पर नजर रखी जा रही थी।
तस्वीर उस समय की है जब एंटनी रक्षा मंत्री और जनरल वीके सिंह सेना प्रमुख होते थे। दोनों के बीच हालात तब बिगड़े, जब सिंह के रिटायरमेंट की तारीख को लेकर विवाद सामने आया। इसी को लेकर एंटनी की जासूसी कराने की अटकलें भी लगाई गईं।
फरवरी 2012: वीके सिंह विवाद के बीच एंटनी की जासूसी
जनरल वीके सिंह के रिटायरमेंट को लेकर विवाद हुआ था। दो जगह अलग-अलग जन्मतिथि होने से रिटायरमेंट किस दिन होगा, यह विवाद में पड़ गया था। इसे लेकर रक्षा मंत्रालय और सेना में विवाद की स्थिति बनी थी। तब मिलिट्री इंटेलिजेंस (MI) के एक अधिकारी को रक्षा मंत्री एके एंटनी के दफ्तर में मॉनिटरिंग डिवाइस मिला था। आरोप लगे कि सिंह ने रक्षा मंत्रालय से चल रहे विवाद की वजह से यह जासूसी डिवाइस लगाया है। पर यह सिर्फ पॉलिटिकल बयानबाजी में ही आगे बढ़ा। 2014 में भाजपा जॉइन कर सिंह ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और केंद्रीय मंत्री भी बने।
जून 2011: मुखर्जी के वित्त मंत्रालय में जासूसी का संदेह
2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे। उस दौरान प्रणब मुखर्जी और पी चिंदबरम के बीच कथित तौर पर विवाद की स्थिति बनी थी। इस दौरान मुखर्जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखा कि उन्हें संदेह है कि उनके ऑफिस की जासूसी हो रही है। इसकी सीक्रेट जांच होनी चाहिए। इस सीक्रेट पत्र पर जांच हुई या नहीं हुई, यह तो पता नहीं चला पर यह सीक्रेट लेटर जरूर बाहर आ गया। खबरों के मुताबिक मुखर्जी की जासूसी उनके ही किसी कैबिनेट सहयोगी कराई। चिदंबरम उस समय गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे थे।
पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी यहां हंसते हुए मिल रहे हैं। पर उनके बीच अविश्वास का माहौल था। इस वजह से ज्ञानी जैलसिंह ने राजीव पर जासूसी के आरोप भी लगाए थे।
पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी यहां हंसते हुए मिल रहे हैं। पर उनके बीच अविश्वास का माहौल था। इस वजह से ज्ञानी जैलसिंह ने राजीव पर जासूसी के आरोप भी लगाए थे।
1984-87: राष्ट्रपति ने लगाए अपनी जासूसी के आरोप
यह बात 1984 से 1987 के बीच की है। प्रेसिडेंट ज्ञानी जैलसिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच कुछ मसलों पर अनबन थी। तब प्रेसिडेंट ने संदेह जताया था कि राष्ट्रपति भवन के कुछ कमरों में जासूसी हो रही है। मीडिया की खबरें और कुछ किताबें बताती हैं कि सिंह इतना डर गए थे कि उन कमरों तक में जाना बंद कर दिया था। यह बातें मीडिया में भी सुर्खियां बनी थीं। पर 1987 में कार्यकाल खत्म होने के बाद जैलसिंह का जिक्र राजनीति में कम ही हुआ।
और भी हैं मामले
सितंबर 2012 में यशवंत सिन्हा ने एयरसेल-मैक्सिस घोटाले में कांग्रेस नेताओं के शामिल होने का आरोप लगाया। इसे लेकर कथित तौर पर उनके फोन टैप हुए।
जुलाई 2011 में कर्नाटक के कांग्रेस नेताओं का आरोप था कि मुख्यमंत्री येदियुप्पा लोकायुक्त एन संतोष हेगड़े के फोन टैप करा रहे हैं। हेगड़े जमीन घोटाले की जांच कर रहे थे।