इलेक्टोरल बांड पर पूनम अग्रवाल की फजीहत, खुद मानी गलती,द वायर ने डिलीट की ‘खबर’
‘शानदार… पत्रकार हो पूनम जैसी’: रवीश कुमार ने ठोकी जिसकी पीठ इलेक्टोरल बॉन्ड पर उसकी झूठ की पोल खुली, वायर ने डिलीट की खबर
पूनम अग्रवाल वामपंथी गैंग
खोजी पत्रकार पूनम अग्रवाल की तारीफ में वामपंथी गैंग की फजीहत
इलेक्टोरल बॉन्ड पर चल रही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बीच वामपंथियों का एक नया खेल सामने आया। ‘द वायर’ ने हाल में अपनी साइट पर एक रिपोर्ट पब्लिश करते हुए द क्विंट की पत्रकार पूनम अग्रवाल का महिमामंडन किया क्योंकि पूनम ने चुनावी बॉन्ड की जारी लिस्ट पर सवाल खड़े कर दिए थे।
इस स्टोरी के बाद पूरी वामपंथी जमात पूनम अग्रवाल की ‘खोजी’ और ‘जुनूनी’ पत्रकारिता की तारीफ करने लगी। आरफा खानुम शेरवानी से लेकर रवीश कुमार तक ने जो पूनम की हवा बनाई वो देखने वाली थी। लेकिन, इन सबकी फजीहत तब हुई जब पूनम के किए दावे सच साबित नहीं हुए और द वायर को अपनी रिपोर्ट ही डिलीट करनी पड़ी।
नीचे स्क्रीनशॉट में आप डिलीट कंटेंट देख सकते हैं जिसका शीर्षक था- “वो पत्रकार जिसने इलेक्टोरल बॉन्ड की जारी लिस्ट में खामियाँ बताईं।”
क्यों डिलीट की द वायर ने स्टोरी
दरअसल, द वायर के इस आर्टिकल में एक जगह पूनम अग्रवाल का ट्वीट एड था जो कि 17 मार्च 2024 को किया गया था। इसमें दावा था कि एसबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देते हुए जो अपनी लिस्ट जारी की है, उसमें कहा गया है कि उन्होंने 20 अक्टूबर 2020 में बॉन्ड खरीदा था जबकि हकीकत में उन्होंने तो अप्रैल 2018 में खरीदा है। उन्होंने अपने इस ट्वीट में एसबीआई पर डेटा से छेड़छाड़ करने की बातें कहीं।
उनके इस ट्वीट के बाद वामपंथियों ने हल्ला मचा दिया कि एसबीआई बॉन्ड खरीदने वालों के विवरण के साथ छेड़छाड़ कर रहा है और पूनम की खोजी की पत्रकारिता को सलाम होना चाहिए कि उन्होंने इसे उजागर किया। खुद पूनम भी इन ट्विट्स में हो रही वाह वाही से खुश होने लगीं।
हालाँकि कुछ समय बाद पूनम अग्रवाल एक नए ट्वीट के साथ आई। इस ट्वीट में उन्होंने अपने लगाए आरोपों पर सफाई दी थी।
18 मार्च को किए गए उनके ट्वीट में देख सकते हैं, वो लिखती हैं- “मुझे एक वीडियो दिखी जो मैंने क्विंट के लिए रिकॉर्ड की थी और उसमें 20 अक्टूबर 2020 को जारी इलेक्टोरल बॉन्ड दिखा रही थी। मुझे नहीं याद है कि मैंने 2020 में खरीदा या 2018 में। यूनिक नंबर से मेरे डाउट क्लियर होंगे। तब तक एसबीआई डेटा पर कोई सवाल नहीं।”
इसके बाद अगले ट्वीट में पूनम अग्रवाल ने कहा कि आप चाहें तो मेरी कमजोर यादाश्त को दोषी ठहरा सकते हैं। 2020 कोविड वाला साल था। उस समय बहुत सारी चीजें हो रहीं थीं। शायद इसीलिए मुझे नहीं याद रहा। मेरी कमजोर यादाश्त के लिए क्षमा।
द वायर ने माँगी माफी लेकिन वामपंथी नहीं थक रहे तारीफ करते-करते
बता दें कि इस पूरे विवाद में पूनम अग्रवाल के दावे से लेकर ‘द वायर’ ने जो प्रोपगेंडा फैलाया उसे उन्होंने हटा लिया है लेकिन रवीश समेत कई वामपंथी पत्रकार सोशल मीडिया पर पूनम की तारीफ करते नहीं थक रहे। ट्वीट में उन्हें असली खोजी पत्रकार कहा जा रहा है। पूनम अग्रवाल के नए चैनल को सब्सक्राइब करने की अपील की जा रही है।
सुशांत सिंह ने लिखा- पूनम अग्रवाल तो असली पत्रकार हैं। लेकिन मोदी सरकार कभी नहीं मानेगी कि वो सीक्रेट नंबर के लिए बॉन्ड की जानकारी रख रहे थे।
आरफा ने लिखा- पूनम अग्रवाल का यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करें और उनकी इलेक्टोरल बॉन्ड पर शानदार वीडियोज देंखें।
रवीश कुमार ने लिखा- बिलकुल। पूनम का काम शानदार है। मैं सोचता हूँ जो सैंकड़ों संपादक हैं न्यूज रूम में दादा बनकर घूमते हैं वो पूनम जैसी पत्रकार को देखकर क्या सोचते होंगे। अपने पत्रकारों से कहते होंगे तुम लोग भजन करो साहेब का।
पत्रकार पूनम अग्रवाल ने SBI पर लगाया ‘गलत’ चुनावी बॉन्ड डेटा अपलोड करने का आरोप, बाद में मांगी माफ़ी
पत्रकार पूनम अग्रवाल ने SBI पर लगाया ‘गलत’ चुनावी बॉन्ड डेटा अपलोड करने का आरोप, बाद में मांगी माफ़ी
पूनम अग्रवाल ने X (अतीत में ट्विटर) पर स्पष्टीकरण में लिखा, फिलहाल SBI डेटा पर सवाल उठाना सही नहीं होगा. यह मेरी कमज़ोर याददाश्त का दोष हो सकता है. यह कोविड साल था, शायद इसलिए मुझे याद नहीं. मेरी कमज़ोर याददाश्त के लिए मुझे माफ़ करें.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने चुनावी बॉन्ड से जुड़ा डेटा चुनाव आयोग को उपलब्ध करवाया, जिसे 14 मार्च को आयोग की वेबसाइट पर भी अपलोड किया गया. इसी डेटा को लेकर स्वतंत्र पत्रकार पूनम अग्रवाल ने दावा किया कि उनके नाम से बॉन्ड की खरीद गलत तारीख से दिखाई गई है. पूनम का कहना था कि डेटा गलत है, क्योंकि उन्होंने 1,000 रुपये कीमत वाले दो बॉन्ड अप्रैल, 2018 में खरीदे थे, जबकि चुनाव आयोग की वेबसाइट पर मौजूद डेटा में उनके नाम से यही खरीद अक्टूबर, 2020 में दिखाई गई है.
लेकिन इसके बाद पूनम अग्रवाल ने माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट X (अतीत में ट्विटर) पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा, मैंने अपना एक पुराना वीडियो देखा, जिसमें मैं बता रही हूं कि मैंने अक्टूबर, 2020 में ही बॉन्ड खरीदा था. यूनीक नंबर से मेरा संदेह दूर जाएगा. लेकिन तब तक SBI डेटा पर सवाल उठाना सही नहीं होगा. उन्होंने यह भी लिखा, यह मेरी कमज़ोर याददाश्त का दोष हो सकता है. यह कोविड साल था, बहुत सारी चीज़ें हो रही थीं, शायद इसलिए मुझे याद नहीं. मेरी कमज़ोर याददाश्त के लिए मुझे माफ़ करें.
इसी बीच, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता ने भी X (अतीत में ट्विटर) पर पूनम अग्रवाल पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया.
This is an outright lie and a maliciously misleading post aimed at spreading deliberate disinformation.@poonamjourno did NOT buy any Electoral Bonds in April 2018, as claimed by her, and SBI did NOT suppress this info. She bought two bonds of ₹1000 each on 20 October 2020 for… pic.twitter.com/cFQvTehkHN
— Kanchan Gupta (Hindu Bengali Refugee)🇮🇳 (@KanchanGupta) March 18, 2024
बता दें कि चुनावी बॉन्ड में विसंगति के बारे में पूनम अग्रवाल के दावे धराशायी होने के बाद यह भी जानना जरूरी है कि खोजी पत्रकार ने जिस यूनिक नंबर को लेकर सवाल खड़े किए थे, उस पर एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वो नंबर संख्यात्मक कोड है।
एसबीआई का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने खुलासा किया कि बैंकों के जारी किए गए बांड नंबर केवल बांड पर उपलब्ध हैं, कहीं और नहीं। बैंक ने यह भी कहा कि छिपा हुआ अल्फ़ान्यूमेरिक कोड एक सुरक्षा सुविधा थी न कि ऑडिटिंग उद्देश्यों के लिए ।
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