मंत्रियों को अफसरों की एसीआर भरने से होगा क्या? मिलेगी पावर

Bureaucrats Not In Favor Of Giving Ministers The Right To Write ACR Uttarakhand

मंत्रियों को एसीआर लिखने का अधिकार देने के पक्ष में नहीं नौकरशाह

देहरादून/जयपुर 21 अप्रैल। प्रदेश में लोकशाही बनाम नौकरशाही के बीच एसीआर के अधिकार को लेकर यह रस्साकसी तब चल रही है जब राज्य 22 साल का हो चुका । उत्तराखंड की मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था में सचिवों की एसीआर लिखने का अधिकार मुख्यमंत्री के पास है।
Bureaucrats not in favor of giving ministers the right to write ACR

पुष्कर सिंह धामी सरकार के वरिष्ठ मंत्री सतपाल महाराज खुश हैं कि मुख्यमंत्री  पुष्कर सिंह धामी ने सचिवों की एसीआर लिखने के अधिकार पर मुख्य सचिव से प्रस्ताव मांगा है। लेकिन प्रदेश की नौकरशाही को यह नहीं सुहा रहा । ज्यादातर नौकरशाह मंत्रियों को एसीआर लिखने के अधिकार के पक्ष में नहीं हैं। राजस्थान के ऐसे ही अभियानकर्ता खाद्य आपूर्ति मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास को तो महाराज जितनी सफलता भी नहीं मिली ।

दबी जुबान अधिकारी कहते हैं कि सैद्धांतिक रूप से बेशक मंत्रियों को अधिकार देना सही हो, लेकिन व्यावहारिकता में यह उचित नहीं होगा। उनकी राय में इसके लिए जरूरी है कि लोकशाही में लोकतांत्रिक परिपक्वता हो।

मुख्यमंत्री के पास है अधिकार

स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने पहले सिविल सर्वेंट्स को संबोधित किया तो उन्होंने लोक सेवकों से राजनीतिक तटस्थता, भ्रष्टाचार और साहबों वाली मानसिकता से दूरी की अपेक्षा की थी। मगर आज तक लोकशाही और नौकरशाही के रिश्तों में मिठास और खटास का अतिरेक देखने को मिल ही जाता है।

उत्तराखंड की मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था में सचिवों की एसीआर लिखने का अधिकार मुख्यमंत्री के पास है। मुख्य सचिव उनके प्रतिवेदक और समीक्षक अधिकारी हैं जो उनकी एसीआर की समीक्षा करते हैं और मुख्यमंत्री अंतिम अधिकारी हैं। राज्य में यह व्यवस्था संभवतः विजय बहुगुणा सरकार के समय बनी।

अनुभवी अफसरों की एक टीम

इससे पहले मंत्री ही सचिवों की एसीआर लिखते थे। नाम गोपनी रखने की शर्त पर कुछ नौकरशाहों ने इस पर अपनी राय दी। उनका मानना है कि मुख्यमंत्री के पास अधिकार होना इसलिए व्यावहारिक है, क्योंकि उनके पास अनुभवी अफसरों की टीम होती है, जिनसे वे परामर्श बाद सही निर्णय कर सकते हैं। मंत्रियों को यह लगता है कि एसीआर का अधिकार होने से नौकरशाही उनके इशारे पर थिरकेगी। वे जो चाहे वो करा सकेंगे।

एसीआर बिगड़ी तो कैरियर खराब

नौकरशाहों के कैरियर में एसीआर महत्वपूर्ण हैं। एसीआर से ही वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति योग्य बनते हैं। खराब एसीआर  उनके कैरियर में रुकावट बनती है।

महाराज ने छेड़ा अभियान

उत्तराखण्ड में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने मंत्रियों की एसीआर लिखने के अधिकार का अभियान छेड़ा । त्रिवेंद्र-तीरथ सरकार से लेकर धामी सरकार तक वह यह मांग उठाते रहे हैं। इन कालखंड़ों में उनकी अपने विभाग के सचिवों से तनातनी रही । अभी भी वह अपने विभागीय सचिव की कार्यशैली से खुश नहीं माने जाते। मंत्री अपने सचिव काबू में रखने को एसीआर की लगाम चाहते हैं। उनका तर्क है कि बेलगाम नौकरशाही के नियंत्रण को उन्हें अधिकार मिले।

ACR मंत्रियों को बना सकता है BIG BOSS:जानिए- कैसे ये मंत्रियों के हाथ में देगा ब्यूरोक्रेसी की लगाम?

सबसे पहले राजस्थान की राजनीति में 90 के दशक में चर्चा में रहने वाला एक बयान पढ़िए……

भैरोंसिंह शेखावत की सरकार में उप मुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा ने कहा था….’ब्यूरोक्रेसी बेलगाम घोड़ा है,  सही चलाना उसके सवार पर डिपेंड  है।’

सवार अच्छा होगा, तो ब्यूरोक्रेसी अपने आप अच्छी चलेगी। सवार ढीला होगा, तो ब्यूरोक्रेसी मनमाना करेगी।

पिछले दिनों फूड सप्लाई मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और जलदाय मंत्री महेश जोशी में भी ब्यूरोक्रेसी पर लगाम को लेकर तू तू-मैं मैं हुई। वजह थी अफसरों की परफॉर्मेंस तय करने वाली ACR भरने का हक मंत्रियों को देना।

क्या IAS अधिकारियों की ACR (एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट) या APR (एनुअल परफॉर्मेंस रिपोर्ट) भरने का हक मंत्रियों के पास नहीं है? या मंत्री ऐसे बयान देकर जनता में ये धारणा बनाना चाहते हैं कि अधिकारी काम अटकाते हैं। कहा जा रहा है कि एसीआर भरने का अधिकार मंत्री के पास होगा तो अधिकारी खौफ खा मंत्री के बताए जनता के सारे काम झट से करेंगें।

ये ACR पावर है क्या? क्यों मंत्री चाहते हैं कि ये  केवल उनके पास ही रहे? जनता  से इसका क्या लेना देना है?

हमने इसकी पड़ताल कर ऐसी बयानबाजी पर खामोश अफसर वर्ग को भी टटोला।

शुरुआत ब्यूरोक्रेसी को लेकर दो घटनाओं से, जो इन दिनों चर्चित है-

 

दोनों में एक बात कॉमन है। योगी आदित्यनाथ ने अपनी पावर का इस्तेमाल कर एक भ्रष्ट अफसर डिमोट कर दिया। वहीं, राजस्थान के मिनिस्टर के बयान का सीधा सा अर्थ है कि हमें भी ये पावर दी जाए ताकि भ्रष्ट अफसरों पर नकेल कस सकें।

एसीआर क्या है, आसान भाषा में समझिए

एसीआर मतलब ‘एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट’ साल में एक बार बनती है। सालभर में अधिकारी ने अपने विभाग में क्या काम कराए, वो काम में कितने खरे उतरे। उस पर उच्चाधिकारी और विभागीय मंत्री टिप्पणी करते हैं। किसी अधिकारी की शिकायत मिलती है, वो कुछ गलत करता है तो उसका भी रिकॉर्ड एसीआर रिपोर्ट में चढ़ता है। इसी रिपोर्ट के आधार पर निर्णय होता है कि अधिकारी सही काम कर रहा है या नहीं। प्रमोशन और पोस्टिंग में यही रिपोर्ट निर्णायक है।

अगर एसीआर खराब हो तो इसका अधिकारी पर असर क्या पड़ता है?

ख़राब एसीआर वाले अफसर नॉन परफॉर्मर माने जाते हैं। ऐसे अधिकारियों को आमतौर पर डायरेक्ट जनता से जुड़े विभागों में या फील्ड पोस्टिंग नहीं मिलती। एसीआर खराब होने का असर अधिकारी के प्रमोशन पर भी पड़ता है। तबादला होता है। भ्रष्टाचार जैसे मामलों में दोषी पाया जाए तो एसीआर के आधार पर सस्पेंड तक हो जाते हैं।

मुख्यमंत्री कब भरते हैं ACR?

मंत्री विभाग का HOD (हेड ऑफ दि डिपार्टमेंट) होता है, तो ऐसे में अधिकारियों की ACR या APR (एनुअल परफॉर्मेंस रिपोर्ट) भरने का अधिकार उनके पास होता है। लेकिन ऐसे उदाहरण नाम मात्र के हैं, जहां कोई अधिकारी एक ही विभाग संभाल रहा हो। अब सवाल ये उठता है कि जब दो-तीन विभाग हों अधिकारियों के पास, तो ACR कौन भरेगा। तब मुख्यमंत्री ही संबंधित अधिकारी की ACR भरते हैं।

ACR यानी अधिकारियों को अंगुलियों पर नचाने वाली पावर…..

अब बड़ा सवाल ये है कि क्या इस रिपोर्ट को बनाने का अधिकार मंत्रियों के पास नहीं है, क्या केवल मुख्यमंत्री ही इस रिपोर्ट को भरते हैं। मंत्री खाचरियावास ने जो मुद्दा उठाया उसकी असली जड़ क्या है? इस मुद्दे पर हमने मुख्यमंत्री के सलाहकार और पूर्व केंद्रीय फाइनेंस सेक्रेटरी अरविंद मायाराम से सवालों के जवाब लिए…

ACR क्या है, जिसे मंत्री भरने की पावर चाह रहे हैं?

एसीआर में अधिकारी की सालाना परफॉर्मेंस का आकलन होता है। मंत्रियों के पास इसे भरने की पावर पहले से है, हो सकता है कि जो अधिकार मांग रहे हों, उन्हें पूरी जानकारी नहीं हो।

ACR की प्रक्रिया क्या है?

यह कोई छिपी हुई प्रक्रिया नहीं है, बिलकुल पारदर्शी प्रक्रिया है। पहले जरूर कागजों पर काम होता था। अधिकारी को खुद की परफॉर्मेंस को लेकर की गई टिप्पणी की जानकारी नहीं मिलती थी। लेकिन अब ये प्रोसेस ऑनलाइन है। अधिकारी खुद पर की गई टिप्पणियां देख सकता है। किसी भी IAS की ACR मुख्य सचिव के थ्रू संबंधित मंत्री को जाती है। मंत्री अपनी टिप्पणी करता है और फिर मुख्यमंत्री के पास ACR जाती है। मुख्यमंत्री फाइनल अथॉरिटी होते हैं। वैसे भी कार्मिक विभाग (DOP) मुख्यमंत्री के अधीन ही होता है।

क्या मंत्री फाइनल अथॉरिटी हो सकते हैं?

ऑल इंडिया सर्विसेज रूल पूरे देश में लागू है। सभी स्टेट के मुख्यमंत्री ही फाइनल अथॉरिटी होते हैं। यदि मंत्री को फाइनल अथॉरिटी बनाना होगा, तो इसके लिए भारत सरकार को ही सर्विस के रूल बदलने की प्रोसेस करनी होगी। साफ शब्दों में इसका मतलब है कि इस व्यवस्था में बदलाव  बहुत मुश्किल है।

विवाद क्यों उठ रहा है, ये क्यों कहा जा रहा है कि अधिकारी जनता का काम अटका रहे हैं?

राजस्थान में उठ रहे विवाद में  मंत्री और अधिकारी दोनों जिम्मेदार हैं। असली बात जवाबदेही (अकाउंटेबिलिटी) की है। अधिकारियों की ड्यूटी नियमों का ध्यान रखने की है। यदि मंत्री ने कहा कि फलाने को जमीन अलॉट कर दो, या राशन कार्ड बना दो गरीब आदमी है, तो अधिकारी को नियम देखने होंगे। मंत्री की मंशा पर सवाल नहीं है, लेकिन प्रक्रिया तो पूरी करनी ही पड़ेगी। हर चीज को प्रक्रिया अपनानी होगी। नियम टूटेंगे, तो जांच एजेंसियों का सामना कौन करेगा?

काम अटकाने के आरोपों के बीच आखिर गलत कौन है?

इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच सच ये है कि मंत्री भी सही हैं और अफसर भी सही हैं। किसी एक की कमी नहीं बताई जा सकती। कुछ मंत्री अकाउंटेबिलिटी नहीं चाहते। बस चाहते हैं कि उनका बताया काम हो जाए। चाहे सही हो या गलत। कुछ अधिकारी भी भ्रष्ट हैं। सभी जरूरतमंदों के बजाय सलेक्टिव लोगों का काम करना चाहते हैं। ऐसे में खींचतान होती है। ऐसे में जो निर्णय करेगा, उसे जवाबदेही भी उठानी पड़ेगी, जिससे वे बचना चाहते हैं।

यदि मंत्री जबरन काम करवाना चाहें तो?

यदि किसी फाइल पर अधिकारी नियमों का हवाला देते हुए काम के लिए मना करता है और मंत्री यदि फाइल पर ये लिख दे कि गलत है या सही काम करना पड़ेगा। हालांकि ऐसा कोई लिखता नहीं है, फिर भी ऐसा हो तो ऑफिसर के पास रास्ता है कि मुख्य सचिव के जरिए मुख्यमंत्री से निर्देश मांग ले। यदि मुख्यमंत्री भी काम करने के लिए लिख देते हैं, तो आपके काम को लेकर अकाउंटेबिलिटी ऊपर वालों की हो जाएगी। ये एक एक्सट्रीम उदाहरण है, वैसे ऐसा होता नहीं है। प्रक्रिया में नियमों को संतुष्ट करने में ही समय लगता है।

सरकार और अफसरों के बीच इन विवादों से बचने के क्या उपाय हैं?

देखिए, एक बात साफ है कि मंत्री परमानेंट नहीं है, लेकिन अधिकारी परमानेंट है। यदि कोई काम नियम के खिलाफ जाकर हो जाए, तो कुछ सालों बाद अधिकारी से यही कहा जाता है कि हो सकता हो मंत्री जानकार नहीं थे, लेकिन आप तो नियम जानते थे। रही बात मंत्रियों और अफसरों के बीच की, तो साफ है कि द्वंद हमेशा से चलता है और आगे भी चलता रहेगा, इसे खत्म करना संभव नहीं है।

 कुछ वरिष्ठ IAS अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा…

कुछ मंत्री हैं, जो चाहते हैं कि हम कहें वो अधिकारी कर दे बस। माना कोई फाइल अप्रूवल के लिए मंत्री के पास जाए, उसे उनके मुताबिक रिजेक्ट या पास करने का काम अधिकारी करें। उस फाइल पर टिप्पणी भी अधिकारी ही करे जिससे मंत्री कह सकें कि मैंने कुछ नहीं लिखा, फाइल में नीचे से ही लिखा हुआ आया। मंत्री चाहते हैं कि नियमों के विपरीत है, उसका प्रपोजल नीचे से अधिकारी ही भेज दे, अधिकारी वो भेजता नहीं है, असली लड़ाई ये है। जबकि मंत्री के पास भी इसकी पावर होती है।

शेखावत ने बढ़ाए थे मुख्यमंत्री के अधिकार

1990 से 1998 के बीच राजस्थान में भैरोंसिंह शेखावत मुख्यमंत्री के पद पर थे। उस दौर से पहले आम तौर पर देश के अधिकांश राज्यों में आईएएस अफसरों की एसीआर विभागीय मंत्री ही भरते थे। लेकिन शेखावत ने इस अधिकार का पूरी तरह से केन्द्रीकरण मुख्यमंत्री के रूप में कर लिया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि उस दौर में मिली-जुली पार्टियों की सरकारें चल रही थीं। मुख्यमंत्री को सभी विभागों में ज्यादा हस्तक्षेप रखने, सरकार में स्थिरता बनाए रखने को मंत्रियों के काम नियंत्रित रखने, अफसरों पर लगाम कसने, शक्ति संतुलन बनाए रखने की ज्यादा जरूरत थी। ऐसे में उन्होंने मुख्यमंत्री का पद और भी शक्तिशाली कर लिया था। बाद में यह परिपाटी मध्यप्रदेश और फिर देश के अधिकांश राज्यों में चल पड़ी, जो अब तक जारी है।

आईएएस अफसरों की एसीआर (एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट) भरने का अधिकार मंत्रियों को देने की मांग उठाने वाले खाद्य व रसद मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास अकेले पड़ गये। खाचरियावास को किसी और मंत्री का साथ नहीं मिला। राज्य में आईएएस अफसरों की रिपोर्ट केवल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही भर रहे हैं, ऐसा भी नहीं है। बहुत से मंत्री भी आईएएस अफसरों की एसीआर भरते  हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार में भी बहुत से मंत्री आईएएस अफसरों की एसीआर भरते थे।

वर्तमान सरकार के शीर्ष दो मंत्रियों में से एक मंत्री जो पिछले 40 वर्षों में 17-18 विभागों के मंत्री रह चुके हैं। वे एक बार आईएएस काडर के पैतृक कार्मिक विभाग के भी मंत्री रहे हैं। वे चार मुख्यमंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं, ने नाम जाहिर न करने के आग्रह से बताया कि वे अनावश्यक विवाद में नहीं पड़ना चाहते। उन्होंने मंत्री रहते  हर बार आईएएस अफसरों की एसीआर भरी है। इस कार्यकाल में भी भर रहे हैं। यह अधिकार मुख्यमंत्री ही मंत्रियों को देते हैं। मंत्री भी विधायकों से मुख्यमंत्री ही तय करते हैं। मुख्यमंत्री किस मंत्री को क्या अधिकार दें और क्या नहीं, यह सिर्फ उन्हीं पर निर्भर  है।

भैरोंसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे के शासन काल में दो बार मंत्री रहे और वर्तमान में राज्य सभा सदस्य घनश्याम तिवाड़ी ने कहा- हर राज्य में बिजनेस रूल्स बने हैं। उनसे ही एसीआर भरी जाती है। मुख्यमंत्री ही तय करते हैं किस की क्या भूमिका होगी।

पिछली भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री रहे वासुदेव देवनानी ने बताया कि उन्होंने मंत्री रहते हुए तत्कालीन विभागीय प्रमुख शासन सचिव स्तरीय आईएएस अफसरों की एसीआर भरी थी। मंत्री पद की शक्तियां और अधिकार सब मुख्यमंत्री ही अंतत: तय करते हैं।

भैंरोसिंह शेखावत की सरकार में कार्मिक मंत्री और वसुंधरा सरकार में उद्योग मंत्री रहे राजपाल सिंह शेखावत ने बताया कि राजस्थान में आम तौर पर मंत्री ही भरते हैं आईएएस अफसरों की एसीआर। मैंने भी कार्मिक, आयोजना, नगरीय विकास, उद्योग आदि विभागों के मंत्री रहते एसीआर भरी है। यह नैचुरल है कि कोई अफसर है, तो मंत्री ही उसकी एसीआर भरते हैं। अंतिम अधिकार हमेशा ही मुख्यमंत्री को होता है। कांग्रेस सरकार में यह एक नया अनावश्यक विवाद खड़ा हो गया है।

सभी राज्यों में अंतिम अधिकार मुख्यमंत्री के पास

राज्यों में आईएएस अफसरों की एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट) भरने का अंतिम अधिकार मुख्यमंत्री के पास ही रहता है। यह मुख्यमंत्री की इच्छा और विवेक पर  है कि वे किसी मंत्री को यह अधिकार देते हैं या नहीं। सभी राज्यों में इस संबंध में अलग-अलग नियम भी बनाए हुए हैं, लेकिन किसी भी राज्य में स्पष्ट रूप से और पूरी तरह से आईएएस अफसरों की एसीआर भरने का अधिकार मंत्रियों को नहीं सौंपा हुआ है। जिन राज्यों में मंत्री एसीआर भरते भी हैं, तो उसे भी पूरी तरह से बदलने का अधिकार अंतत: मुख्यमंत्री को होता है।

मुख्य सचिव की रहती है खास भूमिका

आईएएस अफसरों में जूनियर कैडर की रिपोर्ट उनके सीनियर अफसर भरते हैं। जैसे कोई आईएएस अफसर संयुक्त शासन सचिव के पद पर या शासन सचिव के पद पर कार्यरत हैं तो उनकी रिपोर्ट शासन सचिव और प्रमुख शासन सचिव भरते हैं। फिर यह रिपोर्ट मुख्य सचिव के पास जाती है। मुख्य सचिव के बाद यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री को जाती है। प्रमुख शासन सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव की रिपोर्ट मुख्य सचिव, विभागीय मंत्री (अगर मुख्यमंत्री ने अधिकार दे रखे हों) और मुख्यमंत्री भरते हैं। सभी आईएएस अफसरों की एसीआर एक बार मुख्य सचिव के समक्ष जरूर जाती है। ऐसे में इस पूरे सिस्टम में मुख्य सचिव की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है।

केन्द्र सरकार के मंत्रालयों में मंत्री ही भरते हैं एसीआर

केन्द्र सरकार के मंत्रालयों में कार्यरत आईएएस अफसरों की एसीआर संबंधित विभाग के मंत्री ही भरते हैं। केन्द्र सरकार में यह एक स्टैंडिंग ऑर्डर है, हालांकि वहां भी अंतत: रिपोर्ट कार्मिक मामलात मंत्री और प्रधानमंत्री तक जरूर जाती है। केन्द्र में आम तौर पर प्रधानमंत्री एसीआर के मामलों में मंत्रियों की टिप्पणी को खारिज नहीं करते हैं।

केवल एसीआर भरने से ही मंत्री ताकतवर नहीं बनेंगे

पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव पी. एन. भंडारी (सेवानिवृत्त आईएएस) और पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव राकेश वर्मा (सेवानिवृत्त आईएएस) ने  बताया कि आईएएस अफसरों की एसीआर भरने मात्र से ही मंत्री ताकतवर नहीं होते हैं। लोकतंत्र में राजनीतिक नेतृत्व ही सर्वोच्च होता है। मुख्यमंत्री चाहे तो मंत्री को यह अधिकार देते हैं और ना चाहे तो नहीं देते हैं। सामान्यत: देश के सभी राज्यों में यही व्यवस्था लागू है। मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री का दखल रहता ही है। मंत्रियों को अधिकार नहीं भी हो, तब भी उनकी राय बहुत महत्वपूर्ण रहती ही है। आईएएस अफसर भी व्यवस्था के हिस्सा हैं। ऐसे में उनकी जिम्मेदारी नियमानुसार काम करने की होती है। कई बार नियमों का पालन करने के दौरान भी मंत्रियों से विवाद हो जाते हैं।

1990 से 1998 के बीच  मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह ने भी इस अधिकार का पूरी तरह से केन्द्रीकरण मुख्यमंत्री  में कर लिया था।

 

दुरुपयोग न हो तो दिया जा सकता है अधिकार

उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडेय कहते हैं कि केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार में सचिवों की एसीआर मंत्री ही लिखते हैं। सैद्धांतिक रूप से यह बात सही है कि मंत्री ही सचिवों का बॉस है। उन्हें उनके फैसलों को बदलने का अधिकार है। लेकिन यह भी देखना होगा कि यह कितना व्यावहारिक है। जिन राज्यों में सचिवों की एसीआर मंत्री लिख रहे हैं, वहां की व्यवस्था का अध्ययन कर लेना चाहिए। यह जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं।

 

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