सुको की जमानती शर्तें:केजरीवाल त्यागपत्र न देते तो क्या करते?

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अरविंद केजरीवाल ने यूं ही नहीं की त्यागपत्र की घोषणा, सुप्रीम कोर्ट की शर्तों ने बांध दिए थे दिल्ली के मुख्यमंत्री के हाथ
Arvind Kejriwal Resign: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐसी घोषणा की जिससे राजनीतिक तापमान  चढ़ने लगा है। केजरीवाल ने कहा कि वो दो दिन में मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे। राजनीति के जानकारों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह सशर्त जमानत दी, उससे केजरीवाल के हाथ बंध गए थे। ऐसे में उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद को छोड़ना ही बेहतर समझा। जानिए पूरी बात।
मुख्य बिंदु
1-केजरीवाल की घोषणा- दो दिन में मुख्यमंत्री पद से दूंगा त्यागपत्र
2-सुप्रीम कोर्ट की सशर्त जमानत से बंध गए थे केजरीवाल के हाथ
3-आप संयोजक का ये दांव क्या चुनाव में बनेगा ट्रंप कार्ड?

नई दिल्ली 15 सितंबर 2024 : ‘अगर आपको लगता है कि मैं ईमानदार हूं, तो मुझे बड़ी संख्या में वोट दें। जब तक दिल्ली की जनता अपना फैसला नहीं सुना देती, तब तक मैं मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा। मैं 2 दिन बाद CM पद छोड़ दूंगा। चुनाव फरवरी में होने हैं। मेरी मांग है कि नवंबर में महाराष्ट्र चुनाव के साथ ही दिल्ली में चुनाव कराए जाएं।’ ये बातें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कही हैं। तिहाड़ जेल से छूटने के 40 घंटे बाद ही आम आदमी पार्टी के संयोजक ने जिस तरह मुख्यमंत्री पद छोड़ने की घोषणा की  उसने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है। सभी के मन में सवाल उठ रहा कि आखिर दिल्ली एक्साइज पॉलिसी केस में जब वो तिहाड़ जेल में बंद थे तब त्यागपत्र क्यों नहीं दिया। अब अचानक इस घोषणा का कारण क्या है?

केजरीवाल के पद त्याग की आंतरिक कथा
अगर आप सोच रहे कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बस यूं ही इतना बड़ा फैसला ले लिया तो ऐसा नहीं है।  केजरीवाल को लेकर ये माना जाता है कि वो बहुत चतुर खिलाड़ी हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो वो बीते 177 दिन से तिहाड़ जेल में ही बंद थे। लोकसभा चुनाव प्रचार को लेकर जरूर उन्हें 21 दिन की पैरोल मिली थी। उसके अलावा वो लगातार जेल में ही रहे। उन पर भाजपा समेत विपक्षी पार्टियां लगातार कुर्सी छोड़ने का दबाव बना रही थीं। उस समय उन्होंने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। उन्होंने और उनकी पार्टी ने तय किया कि जेल से अरविंद केजरीवाल अपनी सरकार चलाएंगे। इसी बीच शुक्रवार को केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिली और वो जेल से रिहा हो गए।

सुप्रीम कोर्ट ने दी थी सशर्त जमानत
अरविंद केजरीवाल के जेल से बाहर आते ही सभी को लगने लगा कि अब दिल्ली की सरकार सुचारू रूप से चलेगी। लेकिन रिहाई के कुछ घंटे बाद ही अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से मुख्यमंत्री पद छोड़ने की घोषणा की वो सभी को चौंका गया। हर कोई ये जानना चाहता है कि आखिर आम आदमी पार्टी प्रमुख को ये कदम क्यों उठाना पड़ा? विशेषज्ञों के अनुसार, केजरीवाल के इस फैसले में कहीं न कहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश में उन पर लगाई गई कई शर्तें हैं, जिनसे दिल्ली के मुख्यमंत्री पर ये निर्णय लेने का दबाव बना।

बड़े फैसले नहीं ले सकते थे  केजरीवाल
कानूनी जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत की शर्तें अरविंद केजरीवाल को उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में कर्तव्यों का पालन करने की पूरी आजादी नहीं देती हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा क्योंकि रिहाई के बाद भी वह सचिवालय या CM ऑफिस नहीं जा सकते। साथ ही साथ उन फाइलों के अलावा वो किसी भी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते हैं जिन्हें उपराज्यपाल की ओर से मंजूरी दी जानी है। केजरीवाल सरकार को इससे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता सकता था।
त्यागपत्र से केजरीवाल का ‘इमोशनल दांव’
विशेषज्ञों के अनुसार,दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल सशर्त मिली जमानत के चलते खुलकर कोई फैसला नहीं ले सकते थे। ऐसे में उन्हे त्यागपत्र वाला कदम उठाना सही लगा। पार्टी नेताओं से बात करने के बाद उन्होंने ये तय किया कि द‍िल्‍ली का मुख्यमंत्री कोई और बने जिससे राजधानी में अटके सभी जरूरी काम जल्‍द पूरा हो सके। यही नहीं, केजरीवाल ने दिल्ली में जल्द से जल्द चुनाव की भी मांग उठाई है, जिससे वो जनता के बीच अपने त्यागपत्र का इमोशनल कार्ड चल सकें। फिलहाल केजरीवाल के नए दांव ने विपक्ष को चौंकाया ही है, अब देखना होगा कि दिल्ली की जनता इस फैसले को कैसे लेती है।

भाजपा और कांग्रेस की बढ़ी दिल्ली चुनाव में चुनौती, AAP ने तलाशा एंटी-इन्कम्बेंसी का तोड़!

चुनाव विशेषज्ञों की मानें तो अरविंद केजरीवाल के इस कदम के पीछे का उद्देश्य उनके नेतृत्व में भ्रष्टाचार और शासन को लेकर दिल्ली की जनता के बीच बढ़ता असंतोष शांत करना है. साथ ही आम आदमी पार्टी (AAP) और उसके समर्थकों को ‘ईमानदारी और जवाबदेही’ के नैरेटिव के इर्द-गिर्द एकजुट करना है.
अरविंद केजरीवाल ने आज घोषणा की कि वह दो दिनों में दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे देंगे. उनके इस फैसले के बाद अटकलें तेज हो गईं कि राष्ट्रीय राजधानी में विधानसभा चुनाव फरवरी 2025 से पहले हो सकते हैं. हालांकि केजरीवाल का यह फैसला चौंकाने वाला नहीं है, क्योंकि कथित दिल्ली शराब घोटाला केस में सुप्रीम कोर्ट से उन्हें बेल जरूर मिल गई है, लेकिन इसके साथ शर्तें ​लगी हैं. इन शर्तों में केजरीवाल न तो मुख्यमंत्री दफ्तर जा सकते हैं, न ही सचिवालय और न ही फाइलों में हस्ताक्षर कर सकते हैं. दूसरे शब्दों में, वह मुख्यमंत्री बने भी रहे तो उनकी बेल शर्तों से य​ह सिर्फ एक दिखावटी पद बनकर रह जाएगा.

साथ ही भाजपा और कांग्रेस, केजरीवाल की जमानत शर्तों को मुद्दा बनाकर यह बताने की कोशिश करेंगी कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कथित शराब घोटाला मामले में क्लीन चिट नहीं दी है, जैसा कि आम आदमी पार्टी के नेता और प्रवक्ता अपनी प्रेस वार्ताओं में कन्वे करने की कोशिश कर रहे हैं. केजरीवाल लोगों की नब्ज पर पहचानते हैं और इसलिए वह लगातार तीन चुनावों से दिल्ली की जनता की पसंद बने हुए हैं. लेकिन इस बार दिल्ली में उनके लिए राह पहले जितनी आसान नहीं दिख रही. दिल्ली शराब घोटाला केस से AAP और अरविंद केजरीवाल की व्यक्तिगत छवि मलिन हुई है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता.

जनता के बीच बढ़ते असंतोष को शांत करने की रणनीति

चुनाव विशेषज्ञों के अनुसार अरविंद केजरीवाल के इस कदम के पीछे का उद्देश्य उनके नेतृत्व में भ्रष्टाचार और शासन के बारे में दिल्ली की जनता में बढ़ता असंतोष को शांत करना है. साथ ही आम आदमी पार्टी (AAP) और उसके समर्थकों को ‘ईमानदारी और जवाबदेही’ के नैरेटिव के इर्द-गिर्द एकजुट करना है. इस नुकसान की भरपाई को अरविंद केजरीवाल हर कीमत पर यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि दिल्ली की सत्ता में वह वापसी करें. मुख्यमंत्री पद छोड़ने की घोषणा में केजरीवाल ने जो बातें कहीं, उससे सिद्ध होता है कि वह अपना इमेज मेकओवर की तैयारी में जुटे हैं. अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘मैं दो दिन बाद मुख्यमंत्री पद छोड़ रहा हूं. मैं मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा. कुछ महीनों में दिल्ली में चुनाव होंगे और मैं लोगों से अपील करना चाहता हूं. अगर आपको लगता है कि केजरीवाल ईमानदार है तो मुझे वोट दें,आपको लगता है मैं दोषी हूं तो मुझे वोट न दें.’

अरविंद केजरीवाल ने आगे कहा, ‘उन्होंने (भाजपा) आरोप लगाया है कि केजरीवाल चोर है. मैं सत्ता का खेल खेलने नहीं आया था, देश के लिए कुछ करने आया था. जब 14 साल बाद भगवान राम वनवास से लौटे, सीता मैया को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी थी. आज मैं जेल से आया हूं और अग्निपरीक्षा देने को तैयार हूं. आपका हर वोट मेरी ईमानदारी का प्रमाण पत्र होगा. अगर आप मुझे वोट देंगे और बताएंगे कि केजरीवाल ईमानदार है, तभी चुनाव के बाद मैं मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठूंगा. तब तक मैं मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा.’ दरअसल, पद छोड केजरीवाल जनता के मन में अपनी छवि एक ऐसे नेता की बनाना चाहते हैं, जो भ्रष्टाचार का आरोपित नहीं बल्कि राजनीतिक षड्यंत्र का शिकार है. वह जानते हैं कि दिल्ली में उनके खिलाफ मजबूत सत्ता विरोधी लहर है.

जनता के बीच सहानुभूति की लहर पैदा करने की कोशिश

उनकी गिरफ्तारी में देखने को मिला कि पार्टी कार्यकर्ताओं के अलावा सामान्य जन से कोई प्रतिरोध नहीं था. इसलिए पद त्याग वह जन सहानुभूति हासिल करने की कोशिश करेंगे. हालांकि, यह तरीका वह गत लोकसभा चुनाव में अपना चुके. जब चुनाव प्रचार को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दी तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में ‘जेल के बदले वोट’ अभियान चलाया था. अरविंद केजरीवाल ने अपनी रैलियों में जनता से अपील की थी कि उन्हें भाजपा ने षड्यंत्र में झूठे केस में फंसाकर जेल में डाला, इसलिए दिल्ली की जनता AAP के पक्ष में वोट करके भगवा पार्टी को सबक सिखाए. उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल और पार्टी के अन्य नेता भी इसी नैरेटिव में वोट मांग रहे थे. लेकिन इसका असर नहीं दिखा. दिल्ली में AAP और कांग्रेस ने गठबंधन में चुनाव लड़ा, फिर भी भाजपा सातों सीटें जीत गई.
दिल्ली चुनाव में AAP को कितनी आसान होगी राह

आम आदमी पार्टी ने 2015 और 2020 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव रिकॉर्ड मत प्रतिशत से जीता था. पार्टी ने दिल्ली नगर निगम में भी भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया. लेकिन  10 सालों में केजरीवाल अपने भाषणों में जो वादे करते आए हैं, उसकी तुलना जब दिल्ली की वास्तविक स्थिति से की जाती है, तो उनकी बहुत सारी बातें हवा-हवाई साबित होती हैं. चाहे वह दिल्ली को दुनिया की सबसे शानदार कैपिटल सिटी बनाना हो, या सिंगापुर से उसकी तुलना. इस मानसून में दिल्ली 15 साल पहले से भी बदहाल दिखी. इस बार गर्मी के मौसम में पानी के लिए मचे हाहाकार और मानसून के मौसम में जगह-जगह जल भराव ने अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के दावों की पोल खोलकर रख दी. विपक्षी दल, खासकर भाजपा ने ये विषय मजबूती से उठाये हैं. AAP के लिए दिल्ली में अपने पिछले प्रदर्शन को दोहरा पाना इस बार आसान नहीं होगा.

एक दशक से दिल्ली की सत्ता और अब एमसीडी में शासन के बाद आम आदमी पार्टी के लिए नाकामियों का दोष दूसरे के सिर मढ़ने का विकल्प भी नहीं होगा. 10 वर्षों के शासन के बाद जनता के बीच किसी भी नेता और पार्टी के खिलाफ एंटी-इन्कम्बेंसी स्वत: पनपती है. AAP और केजरीवाल भी इससे अछूते नहीं हैं. ऐसे परिदृश्य में, अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद छोड़ने की घोषणा करके खुद को जिम्मेदारियों से मुक्त तो किया ही है साथ ही यह संदेश देने की कोशिश की है कि उन्हें कुर्सी का लालच नहीं है. अब वह जनता के बीच जाएंगे, यह प्रचारित करने की कोशिश करेंगे कि केंद्र उपराज्यपाल के जरिए उन्हें प्रभावी ढंग से काम नहीं करने दे रहा. अब देखना होगा कि अरविंद केजरीवाल की यह रणनीति उनके और कितनी फायदेमंद साबित होती है और भाजपा व कांग्रेस को वह कितनी चुनौती दे पाते हैं.

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