मत:कांग्रेस को युवा नेतृत्व से समस्या क्या है? गांधी-नेहरू परिवार को असुरक्षा?
कांग्रेस में यूथ ब्रिगेड केवल वोट बटोरने का टूल!:ऐन मौके पर युवाओं को साइडलाइन कर देती है पार्टी; जगन मोहन रेड्डी, सिंधिया, पायलट, प्रीतम सब ठगे गए
नई दिल्ली 12 अप्रैल।चुनाव में वोट बटोरने को कांग्रेस युवा चेहरों पर भरोसा जताती है। आगे भी बढ़ाती है, लेकिन जिन दमदार चेहरों से पार्टी सत्ता में वापसी करती है, वेे ऐन मौके पर साइडलाइन कर दिये जाते है। आंध्र में जगन मोहन रेड्डी हों,मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया हों, राजस्थान में सचिन पायलट या फिर उत्तराखंड में प्रीतम सिंह… कांग्रेस में यह ट्रेंड लगातार दिखता है। राहुल गांधी ने असम के जिन युवा हेमंत बिस्व सरमा को बात करने लायक नहीं समझा,वे आज वहां भाजपा के मुख्यमंत्री हैं।
कांग्रेस नेतृत्व ने एक बार फिर कुछ ऐसा ही दांव पंजाब में खेला है। तीसरी बार के विधायक और 45 साल के अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनाया है। सवाल उठ रहे हैं कि 2027 में सत्ता में वापसी होगी तो क्या कांग्रेस राजा वड़िंग को मुख्यमंत्री बनाएगी? हालांकि इससे पहले पार्टी की चाल-ढाल गुजरात, हिमाचल, कर्नाटक और अन्य चुनावी राज्यों में दिख जायेगी।
आइए बताते हैं कि युवाओं को सत्ता से दूर रखने का कांग्रेस को अतीत में किस तरह से नुकसान उठाना पड़ा है…
पंजाब में कांग्रेस प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग को बनाया गया है। दिल्ली में उन्होंने पार्टी के नेताओं के साथ राहुल गांधी से मुलाकात की।
आंध्र प्रदेश
सितंबर 2009 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी का निधन हो गया तो कांग्रेस के ज्यादातर विधायकों ने उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की थी, लेकिन नेतृत्व नेेधायकों की मांग ठुकरा दी।
15 महीने बाद जगन मोहन रेड्डी ने अलग पार्टी बनाई, नतीजा 2014 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार में निकला। आंध्र में तेलुगू देशम पार्टी की वापसी हुई लेकिन जगन रेड्डी ने मेहनत जारी रखी।
2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जगन की पार्टी वाईएसआर ने सत्ता में वापसी कर सरकार बनाई। अब कांग्रेस को आंध्र में पैर जमाना मुश्किल है। जगन मोहन रेड्डी को स्वीकार किया होता तो आज आंध्र में कांग्रेस की स्थिति कुछ और ही होती।
मध्य प्रदेश
कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया को कैंपेन कमेटी का चेयरमैन और कमलनाथ को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था। चुनाव बाद सत्ता की कमान कमलनाथ को दी गई और सिंधिया के साथ उनके समर्थक विधायकों की पार्टी और सरकार में उपेक्षा होने लगी।
नतीजा 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की मध्य प्रदेश में बुरी तरह हार में निकला। बाद में मजबूर सिंधिया ने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा अपना ली जििससे मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिर गई। सवा साल बाद ही मध्य प्रदेश में भाजपा की सत्ता वापसी हो गई।
राजस्थान
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के चेहरे पर 2013 में कांग्रेस बुरी तरह हारी। पार्टी के 21 विधायक ही जीतकर लौटे । उसके बाद गांधी परिवार ने कांग्रेस मजबूत करने को 35 साल के युवा सचिन पायलट को राजस्थान में लॉन्च किया। पायलट को पांच साल तक फ्री हैंड मिला। पायलट ने भाजपा की वसुंधरा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले रखा।
पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता तक पहुंची, लेकिन मुख्यमंत्री बनाने की बारी आई तो नेेेतृत्व ने पायलट को किनारे कर दिया। नतीजा 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की राज्य की सभी 25 सीटों पर हार में आया।लेकिन विवाद नहीं थमा। सत्ता में पहुंचाने वाले पायलट और उनके समर्थक विधायकों को एसओजी और एसीबी के नोटिस मिलने शुरू हुुए। इससे राजस्थान में राजनीतिक संकट खड़ा हुआ। पायलट समर्थक विधायकों को लेकर दिल्ली पहुचे लेकिन गहलोत-पायलट संघर्ष अब तक खत्म नहीं हुआ।
उत्तराखंड
उत्तराखंड में हरीश रावत के नेतृत्व में 2017 में कांग्रेस बुरी तरह हारी। उसे सर्वकालिक कम सीटें मिली । उसके बाद प्रीतम सिंह को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन जैसे ही लगा कि कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो सकती है, प्रीतम को प्रदेश अध्यक्ष से हटा युवा गणेश गोदियाल लाये गए । प्रीतम सिंह को कुछ दिन को नेता प्रतिपक्ष पद पर खिसका दिया गया। खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कराने के लिए रावत दिल्ली पहुंचे। नेतृत्व ने संकेत देने में कोई कंजूसी नहीं की कि रावत के नेतृत्व में ही चुनाव होंगे। रावत और प्रीतम समर्थकों में संघर्ष तेज हो गया। 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने लगातार दूसरी बार करारी हार का इतिहास बना दिया। प्रीतम अपनी सीट तो बचा ले गए, लेकिन हरीश रावत अपनी सीट से भी हार गए। गोदियाल को पार्टी और अपनी सीट हारने की सजा मिली। उन्हे हटा कर अब युवा करन माहरा को लाया गया है जो खुद की सीट हारे हुए हैं। नेता प्रतिपक्ष राज्य के मौसमविज्ञानी नेता यशपाल आर्य बनाये गए हैं जो बेटे को विधायक बनाने भाजपा में गये। फिर माहौल देख अपनी और बेटे की विधायकी पक्का करने कांग्रेस में लौटे तो महिला कांग्रेस अध्यक्षा सरिता आर्य की बलि मांग ली। सरिता आर्य तो भाजपा से विधायक बन गई, यशपाल पुुुत्र रह गये। बेटे को विधायक नहीं बनवा पाये लेकिन खुद तो कैबिनेट रैंक का पद पा ही गये । कहने की जरूरत नहीं कि गोदियाल कांग्रेस को सत्ता में लाने का चमत्कार कर भी डालते ,तो भी मुख्यमंत्री तो उन्हें बनाया नहीं जाना था। फिर हारने की सजा क्यों? कारण है, चुनाव जीतने को कंधे युवा ही चाहिए होते हैं लेकिन उन्हें आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।
अब आइए बताते हैं कि इस पर एक्सपर्ट्स का क्या कहना है…
कांग्रेस अपना नुकसान करती जा रही है?
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई का कहना है, “इंदिरा गांधी रही हों या वर्तमान में नरेंद्र मोदी या अरविंद केजरीवाल जैसे नेता, सभी एक लीडरशिप मॉडल बनाते हैं, लेकिन राहुल गांधी ऐसा कुछ नहीं करते। उनमें विरोधाभास दिखता है। दिखाते कुुछ हैं,कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं। इस वजह से कांग्रेस और राहुल गांधी, दोनों को नुकसान होता है।
यूपीए सरकार में नए लोगों को मंत्री बनाया गया था, लेकिन अलग-अलग राज्यों में उन्हें प्रोजेक्ट नहीं किया गया। मध्य प्रदेश में सिंधिया, राजस्थान में पायलट पर दांव न खेलकर कांग्रेस ने अपना नुकसान कर लिया। प्रोजेक्शन होना चाहिए। एआईसीसी सत्र में इस पर चर्चा होनी चाहिए। उसमें पार्टी को और इनपुट मिलेंगे। तब पूरा दारोमदार राहुल गांधी पर नहीं आएगा।”
मौका नहीं मिलेगा, तो दूसरी पार्टी देखेंगे ही युवा नेता
चुनाव विश्लेषक यशवंत देशमुख का कहना है, “कांग्रेस पार्टी इनसिक्योरिटी कॉम्प्लेक्स से ग्रसित है। सोच ये है कि पार्टी में जो भी युवा चेहरा सफल होगा वो नेहरू-गांधी परिवार के बच्चों के लिए भविष्य में चुुुुनौती होगा। लोगों को तब तक आगे नहीं बढ़ाया जाएगा, जब तक गांधी परिवार 200 % आश्वस्त न हो जाए कि ये उनके लिए किसी तरह का खतरा नहीं बनेंगे।
पार्टी में जो पुराने चेहरे नजर आते हैं, उनकी जमीन पर खास हैसियत नहीं होती। वे उसी गुट के होते हैं, वो पूरी तरह से परिवार के सामने सरेंडर होते हैं। याद करें, पंजाब में तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पार्टी से बिदाई तक परिवार भक्ति छोड़ी नहीं थी। न वे राहुल के लिए कभी खतरा बनें। जहां तक बात युवा या दरकिनार नेताओं की है, तो जिन्हें आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिलेगा वो दूसरे दलों में संभावनाएं तलाशेंगे ही। बात विनेबिलिटी की है। इलेक्टोरल राजनीति में जो जिताने की क्षमता रखते हैं, उन्हें पार्टी में बढ़ावा मिलना चाहिए।”