पुराणकथा: खुद को अजेय समझने वाले राजाओं को चेतावनी है नरसिंह भगवान

पुराणकथा:खुद को अजेय मानने वाले राजाओं के लिए पौराणिक चेतावनी है नरसिंह की कहानी

देवदत्त पटनायक

श्री वराह नरसिम्हा मंदिर में स्थित चंदन के लेप में लिपटी प्रतिमा। यह मंदिर आंध्रप्रदेश के विशाखापटनम के पास सिंहाचलम में स्थित है।

अंग्रेज़ों ने हिंदू धर्म के स्त्रैण स्वरूप पर ज़ोर दिया। इससे कट्टरपंथी परेशान हुए, क्योंकि वे हिंदू धर्म के पौरुष स्वरूप को साबित करने पर तुले थे। दोनों के लिए पुरुषत्व हिंसक आक्रामकता से और स्त्रीत्व निष्क्रियता से जुड़ा हुआ था। लेकिन हिंदू पुराणशास्त्र में ऐसा कोई द्विगुण विभाजन नहीं है। हिंसा और आक्रामकता के साथ-साथ अहिंसा और निष्क्रियता परमात्मा के पुरुष और स्त्री दोनों में मूर्त रूप ले सकते हैं। विष्णु के अवतार उन विभिन्न विचारों को प्रकट करते हैं जिन्हें भगवान मूर्त रूप दे सकते हैं। इन विभिन्न अवतारों में मर्यादा पुरुषोत्तम राम और मोहक कृष्ण सबसे लोकप्रिय अवतार हैं। आंध्रप्रदेश के विशाखापटनम के पास सिंहाचलम में एक पहाड़ी पर विष्णु के कम लोकप्रिय ‘पौरुष और आक्रामक’ वराह और नरसिंह अवतारों की एक मिश्रित प्रतिमा को पूजा जाता है, जिस कारण हिंदू धर्म में इस मंदिर का एक विशेष स्थान है।

यहां प्रतिष्ठापित देवता वराह-लक्ष्मी-नरसिंह-स्वामी के नाम से जाने जाते हैं। मंदिर में हमें देवता की छवि नहीं दिखाई देती। वह पूरी तरह से चंदन के लेप की परतों में ढंकी हुई होती है। साल में केवल एक बार और वह भी बारह घंटों के लिए यह चंदन निकाला जाता है। इस दिन हज़ारों लोग उनके दर्शन के लिए आते हैं। चंदन का लेप उग्र देवता को शांत करने के लिए होता है।

इन अवतारों की कहानी वैकुंठ के दो द्वारपालों – जय और विजय – से शुरू होती है। एक बार जब विष्णु अपने स्वर्गीय निवास वैकुंठ में आराम कर रहे थे, तब जय और विजय ने सनत कुमारों को विष्णु से मिलने से रोक दिया था। इसलिए उन्हें श्राप दिया गया कि वे पृथ्वी पर असुर बनकर जन्म लेंगे। उन्होंने हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु इन दो भाइयों के रूप में जन्म लिया। दोनों ने तय किया कि आतंक फैलाने से उन्हें तुरंत विष्णु के हाथों मृत्यु प्राप्त होगी। इसलिए हिरण्याक्ष ने भू-देवी को समुद्र के नीचे घसीटा, जबकि हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र और विष्णु भक्त प्रह्लाद, को कष्ट पहुंचाए। भू-देवी और प्रह्लाद की चीख़ों से तीनों लोक गूंज उठे। चीख़ें सुनकर विष्णु गहरी नींद से उठ गए। वराह का रूप लेकर उन्होंने समुद्र तल तक डुबकी मारी और हिरण्याक्ष को अपने शक्तिशाली दांतों से मार डाला। दूसरी ओर एक वरदान हिरण्यकशिपु की रक्षा कर रहा था और इसलिए उसे मारना अधिक जटिल था। इस वजह से हिरण्यकशिपु को मारने के लिए विष्णु को नरसिंह अवतार लेना पड़ा।

इस तरह जहां वराह की कहानी में शक्ति का उपयोग किया गया, वहीं नरसिंह की कहानी में युक्ति का उपयोग हुआ। दोनों कहानियां विपरीत-भक्ति से संबंधित हैं, जहां घृणा प्रेम का विकृत रूप है।

लेकिन स्थानीय कहानियों में असुर के वध के बाद के भी किस्से हैं। अपने उग्र रूप में नरसिंह ख़तरनाक थे। केवल लक्ष्मी की उपस्थिति उन्हें शांत कर सकती थी। इसलिए केवल नरसिंह की नहीं, बल्कि लक्ष्मी-नरसिंह की पूजा की जाने लगी। अकेले नरसिंह को योग नरसिंह की मुद्रा में होना आवश्यक था। जब उनके पास देवी नहीं होती, तब उग्र नरसिंह के रूप में केवल ब्रह्मचारी पुजारी उनकी सेवा करते हैं।

प्रकृतिवादियों के अनुसार श्रीलंका के द्वीप पर या दक्षिण पूर्व एशिया में सिंह कभी नहीं पाए जाते थे। फिर भी सिंहल (सिंह के लोग) और सिंगापुर (सिंह का नगर) पाए जाते हैं। प्राचीनकाल के ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में गंग और चोल राजाओं ने नरसिंह को पूजा। उदाहरणार्थ पुरी के जगन्नाथ परिसर में सबसे प्राचीन मंदिर नरसिंह को समर्पित है। यह संभव है कि सिंह का विचार इन राज्यों के बंदरगाहों से निकल रहे व्यापारियों ने भारत के बाहर फैलाया। लेकिन ऐसा नहीं कि सभी नरसिंह मंदिर तट पर ही हैं। आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के अहोबिलम में तट से दूर नौ नरसिंह मंदिरों का परिसर है। प्रत्येक मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है। जिन देशों में हिंदू राजत्व का क्षय हुआ, वहां नरसिंह व वराह की पूजा में भी क्षय हुआ और विष्णु के उन अवतारों की भक्ति बढ़ गई जिनकी पूजा करना आसान था, जैसे राम और कृष्ण।

यह कोई संयोग नहीं कि 20वीं सदी में अशोक के सिंहचतुर्मुख को भारत का प्रतीक बनाया गया और 21वीं सदी में ‘मेक इन इंडिया’ अभियान का प्रतीक भी सिंह है। प्राचीन काल से सिंह प्रभुत्व और राजसी शक्ति के प्रतीक रहे हैं। मठवासी आदेशों ने बुद्ध और तीर्थंकर महावीर की आध्यात्मिक विजय को दर्शाने के लिए भी सिंह का उपयोग किया था। जिन राजाओं ने मान लिया था कि वे अपराजेय हैं, उनके लिए नरसिंह की कहानी एक पौराणिक चेतावनी है: भगवान सबसे चतुर राजाओं को भी मात देते हैं।

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